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फ्रूट थैरेपी

फ्रूट थैरेपी

यदि हम स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण जागरूक हैं तो निश्चित ही हमारा जीवन शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अनुकूलित का समवेत व्यक्तित्व बन सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को ही प्रमुख औषधि माना गया है। सात्विक आहार की नियमितता हमें पूर्ण स्वस्थ बना सकती है। अन्कुरित अनाज, ऋतु अनुकूलित हरी सब्जी, फल आदि का सेवन निश्चित ही स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखता है। सन्तुलित भोजन, विश्राम, व्यायाम, योगाभ्यास आदि का दूसरा नाम ही प्राकृतिक चिकित्सा है। वैज्ञानिक अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि शाकाहारी भोजन के साथ फलों का आहार शरीर को चिरयौवन प्रदान करता है। मांसाहारी और तेज मिर्च मसाले... ...
स्वाभिभक्त ‘‘पन्ना धरा’’

स्वाभिभक्त ‘‘पन्ना धरा’’

‘‘पन्ना धरा’’ पन्ना धाय आमेट ठिकाने के कमेरी गांव की गुजर्र जाति की महिला थी। रानी कर्मवती ने जौहर से पूर्व कूँवर उदय को पन्ना को सौंपा था। एक दिन मौका पाकर दृष्ट बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर, सांगा के वंश को निर्मूल करने के उद्देश से उदय की हत्या हेतू नंगी तलवार लेकर पन्ना धाय के पास पहुँचा।परिस्थिति की गंभीरता देख पन्ना धाय ने उदय की हम अपने पुत्र चन्दन को उदय के कपड़े पहनाकर कटवा दिया। मेवाड़ के राजवंश को सुरक्षित रखने के लिए पन्ना ने अपने पुत्र की बलि दे दी। उदयसिंह को पत्तों की टोकरी... ...
राजस्थानी लोकनाट्य

राजस्थानी लोकनाट्य

राजस्थानी लोकनाट्य लोक अर्थात जन-जन के कंठ पर आसीन साहित्य ही लोकसाहित्य है, इस कंठासीन साहित्य से तात्पर्य मौखिक अथवा वाचिक साहित्य से है, यह साहित्य परम्पराशील होता है और उन लोगों में व्याप्त होता है जो दिखावे से दूर सहज प्रवृत्तियों में संस्कारित होते हुए परिपाटीगत आस्था एवं विश्वासों की डोर में बंधे सामूहिक जीवन के सहयात्री होते हैं,वे समष्टिगत धर्म-कर्म तथा अध्यात्म- अनुष्ठान के जीवनचक्र से बंधी लोकमानसीय प्रज्ञा-मनीषा के महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं, उनका व्यक्ति गौण होता है, वे समग्रत: लोक के वशीभूत होते हैं, यही कारण है कि उनमें प्रचलित गीत, नाट्य, कथा, वार्ता, प्रहसन, नृत्य, शिल्प,... ...
जयसिंह श्याम गोशाला

जयसिंह श्याम गोशाला

अरावली शृ्रंखला अरावली शृ्रंखला की सुरम्य पहाड़ियों में बसा राजसमंद जिले का आमेट कस्बा मार्बल पत्थर व कपड़ा मण्डी के रूप में विख्यात है। वर्षों पूर्व अम्बाजी नामक पालीवाल ब्राह्मण ने आमेट नगर की नींव रखी। रघन आम्रकुंज की स्मृति में गांव का नाम आमेट पड़ा। क्षत्रिय काल उत्तराद्र्ध में यहां चुण्डावतों का शासन रहा। उनके वंशजों में जग्गा व पत्ता जैसे वीर हुए। उन्होंने मेवाड़ी इतिहास में शौर्य व गौरव के पन्ने जोड़े। राजा जयसिंह की अनूठी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान चारभुजानाथ चमत्कारिक रूप में आमेट की धरा पर अवतरित हुए। जो आज जन-जन की श्रद्धा का केन्द्र बना... ...
आमेट

आमेट

तेरह सौ वर्ष ब्राह्मण अम्बाजी पालीवाल ने प्रकृति प्रकाप से ग्रस्त पाटन नगरी से पूर्व दिशा में प्रस्थान कर, सघन आम्रकुंज वृक्षों से आच्छादित, जंगली समतल भू-भाग को आवास-स्थल बनाया, जिसको पूर्व में अम्बापुरी बाद में इसी का अपभ्रंश आमेट इस नगर की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि है। आमेट नगर पूर्वाद्र्ध में ब्राम्हणों एवं राठौड़ वंशीय शासकों के अधिनस्थ रहा। क्षत्रियकाल के उत्तराद्र्ध में यहां पर चूण्डावतों का आधिपत्य रहा। सोलहवीं शताब्दी में मेवाड़ रियासत के सोलह उमरावों में से आमेट ठिकाने के ‘‘रावसाहब’’ भी एक उमराव थे, जिन्हें रावल कहा जाता है, विद्यमान विशेषताएँ आमेट कस्बा दक्षिणी राजस्थान में जिला... ...