शेखावाटी क्षेत्र (बिसाऊ-राजपूताना) का ‘टमकोर’ गांव हमेशा से पिछड़ा रहा है, कारण भूमि की अनुर्वरता, जल का अभाव, १२५-१५० फिट गहराई तक खोदने पर भी अत्यन्त खारा पानी, पीने के लिए सालाना सिर्फ एक श्रावण बरसात का एकत्रित जल (कुण्डों) पर आश्रित जीवन एवं सामान्ती राज्यों (बीकानेर-जयपुर) के बीच सीमा पर पड़ने वाला स्थल होने के कारण विशेष उपेक्षित आदि ने यहां का जन-जीवन अस्त-व्यस्त बना रखा था। धार्मिक स्थलों के नाम पर सिर्फ गोगामैड़ी, भौमियादेव, मालासी-खेरतपाल, भैंरूजी, गुंसाईजी का मठ व शीतला माता का मंदिर आदि ही थे।
ईश्वर नियति कहें या ग्रामवासियों का भाग्योदय वि.सं. १९५५ में ‘बिसाऊ’ में महात्मा कालूरामजी का कुछ लम्बे दिनों का सत्संग हुआ और उस दौरान वहाँ के ठाकुर श्री रघुवीरसिंहजी ने उन्हें शेखावाटी जागरण के पुरोधा जानकर, योगीराज महात्मा कालूरामजी को ‘टमकोर’ जाकर सत्संग-प्रवचन कराना चाहा। महात्माजी उच्च कोटि के योगी, साधक, ईश्वर भक्त वैदिक निर्गुणवाद के प्रखर प्रचारक थे, उन्होंने शेखावाटी के चुरू, सीकर, झुझुनूं व नागौर जिलों के सैकड़ों ग्रामों में धर्म प्रचारार्थ भ्रमण किया था, सहस्त्रों नर-नारियों तक अपना स्फूर्तिदायक, प्रेरणाप्रद धर्म सन्देश सुनाया था। समाज में प्रचलित रूढ़िवाद, मिथ्याचार, पाखण्ड एवं आडम्बरों का खण्डन किया था। लोगों को मादक द्रव्यों एवं अन्य दुर्व्यसनों से मुक्त होने की प्रेरणा दी थी तथा वैदिक धर्म की निर्मल पावन शिक्षाओं का प्रसार किया था। विभिन्न स्थानों पर सत्संगों का आयोजन, गौ-रक्षा, समाज सुधार आदि लोकोपकारी प्रवृत्तियों का अनुशीलन करते हुए, उपरोक्त शेखावाटी अंचल में लगभग ३० आर्य समाजों की स्थापना की, जिनमें ‘टमकोर’, दुजार, फतेहपुर, सुजानगढ़ आदि के समाज प्रमुख व उल्लेखनीय हैं।
फलत: रामगढ़ (सीकर-राजस्थान) में जन्में शेखावाटी के अनेक गाँवों/ शहरों में सत्संग करते हुए, महात्मा कालूरामजी का वि.स. १९५६ में ‘टमकोर’ आगमन हुआ। गाँव के तत्कालीन समृद्ध एवं संस्कारित राजपूत परिवारों (मूलपुरिया/मेघराजोत) ने आगे होकर, अन्य धेतरवाल, जांगिड व महाजन (अग्रवाल) परिवारों को साथ लेकर महात्मा कालूरामजी का कुछ दिनों तक सत्संग गांव में करवाया। महात्माजी के विशेष सानिध्य एवं सत्संग से प्रभावित मूलपुरिया परिवार ने, महात्माजी के आव्हान पर अपनी गुवाड़ी में से ही आवश्यक जमीन दे दी और इस तरह वि.सं. १९५६ (ई. १८९९) में महात्मा कालूरामजी द्वारा ‘टमकोर आर्य समाज’ की स्थापना हुई।
गुरूजी विष्णुदत्तजी शर्मा ने समाज में लड़कों की और पास ही अपने घर की खुड्डी में एक अध्यापिका रख कर लड़कियों की प्रथम पाठशाला शुरू की, उन्हीं गुरूजी के शिष्यों में से थे राष्ट्रसन्त आचार्यश्री महाप्रज्ञजी, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और आध्यात्मिक उँâचाई से अपनी जन्मस्थली ‘टमकोर’ का नाम अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुँचाया।
समाज का काम सुचारू चलाने में पुरोधाओं के अलावा कर्मठ मंत्रियों तथा प्रधानों ने टमकोर आर्य समाज की ख्याति व कार्यकलापों को काफी बढ़ाया।
आर्य समाज टमकोर का कार्य बड़ी सादगी, लगन एवं उत्साह के साथ चलता रहा, राजवंशीय मूलपुरिया मेघराजोत, धेतरवाल, महला, सोनी, महाजन, परिवारों ने समाज के काम को दृढ संकल्प से आगे बढ़ाया। १९६० का युग (१९५६ से १९६५ तक) टमकोर आर्य समाज का स्वर्णिम काल रहा।
यह क्रम आगे आये सभी प्रधान एवं मंत्री पूरी लगन से, बिना किसी प्रोग्राम की शिथिलता के चलाते आ रहे हैं।
अपने बुजुर्गों का ‘टमकोर’ आर्य-समाज की हर ईंट में छुपी मेहनत, त्याग वर्तमान एवं सही भविष्य निर्माण के लिए आदर्श व आशीर्वाद है।
शेखावाटी के महान सन्त ऋषि दयानन्द के अनन्य भक्त व राष्ट्र को समर्पित जीवन, ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी महात्मा कालूरामजी ने आज से ११५ वर्ष पूर्व ‘टमकोर’ में आर्य समाज की स्थापना की, उनके द्वारा बोया गया छोटा सा बीज आज एक विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। महात्माजी ने आर्य समाज की स्थापना के समय तत्कालीन संस्थापकों को तीन मूल मंत्र दिए थे-
वैदिक मिशन, नारी शिक्षा व अंध विश्वास को जड़ से मिटाना।
गौरव इस बात का है कि आर्य समाज ‘टमकोर’ आज भी उन तीनों मूल मंत्रों का सिद्धान्त के साथ पालन कर रहा है व महर्षि दयानन्द के वैदिक मिशन को आगे बढ़ा रहा है।
महात्मा कालूरामजी ने एक कच्ची खुड्डी के रूप में आर्य समाज की नींव ‘टमकोर’ में रखी गयी थी तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि आर्य समाज का भवन इतना सुन्दर व व्यवस्थित रूप ले लेगा, पर महात्माजी के आशीर्वाद प्रभु की कृपा व दानदाताओं के अथक सहयोग से आर्य समाज का भवन बहुत ही सुन्दर व व्यवस्थित रूप धारण कर लिया। वर्तमान में प्रधान नरेंद्र सिंह जी शेखावत, मंत्री शिव भगवान जी, उप प्रधान सरदारा राम जी जांगिड़, राजू सिंह जी शेखावत, कोषाध्यक्ष शिव शंकर जी आर्य के नेतृत्व में आर्य समाज टमकोर की गतिविधियां सुचारू रूप से चल रही है।