भृगुवंशी अथर्वानन्दन महर्षि दधीचि

भारत भूमि के लिए किसी ने सत्य ही कहा है ‘‘आतो सगला ने शरमावे, इन पर देव रमण न आवे, इनरो यश नर-नारी गावे, आ धरती आपा सगलां री.ऐसी पावन भूमि पर महात्यागी, महाज्ञानी, परोपकारी, धर्मनिष्ठ, तपोमुर्ति प्रात: स्मरणीय महर्षि दधीचि ने सतयुग में जन्म लिया। द्वापर युग की बात है – राजा जनमेजय भगवान वेद व्यासजी से पूछते हैं- महर्षि दधीचि कौन थे, वे किसके पुत्र थे, इनकी माता कौन थी और भगवती दधिमथी उनकी रक्षा करने वाली कौन थी? व्यासजी बोले – हे राजन! तुमने बड़ा ही सुन्दर प्रश्न पूछा? जो बड़ा ही रोचक है। ध्यान पूर्वक तुम श्रवण करो, यह प्रश्न पर्वतराय हिमालय ने अपने गुरु तपोमुर्ति वशिष्ठजी से पूछा और वशिष्ठजी का संवाद पार्वती ने भगवान शिव से किया, कथा इस प्रकार है हिमालय ने वशिष्ठजी से कहा, कृपा करके मुझे महर्षि दधीचि के उत्तम चरित्र को कहो। वशिष्ठजी ने हिमालय से कहा – हे शैलराज! संसार के आदि समय (सृष्टि की रचना के पहले) अनन्तासन पर श्री हरि सो रहे थे, उनके मन में विकार आने पर, उनके नाभिकमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी ने तपोबल से अपने विभिन्न अंगों से दौहिक (मानस) दस

?>