अग्रबंधु द्वारा केशव सृष्टी का भ्रमण

ठाणे के सभी अग्रबंधु एकत्रित रूप में मिलजुल कर अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, उसी कड़ी में अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन (ठाणे), अग्रोहा विकास ट्रस्ट एवं अग्रवाल समाज, ठाणे के सभी अग्रबंधुओं के एकीकरण के लिए विचार गोष्ठी का आयोजन एवं एक दिवसीय मनोरंजक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक यात्रा दिनांक १७-०२-२०१९ रविवार को केशव श्रृष्टि में संपन्न हुई।
संस्था के चेयरमैन महेश बंशीधर अग्रवाल के अनुसार केशव सृष्टि के प्राकृतिक सौंदर्य में स्थित गौशाला, वन-औषधि, वृद्धाश्रम एवं निकट में ही स्थित पेगोडा मेडिटेशन हाल का भ्रमण करके सभी अग्रबंधुओं को अद्भुत आनंद आया, यात्रा का संपूर्ण खर्च संस्था के कोषाध्यक्ष विकास बंसल द्वारा वहन किया गया, समाज के अनेक गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ, संस्था के सभी अधिकारीगण एवं कार्यकारिणी कमेटी के सभी सदस्यों ने मिलजुल कर कार्यों में भाग लिया।
समुचित व सम्माननीय व्यवस्था केशव श्रृष्टि के संयोजक शरद बंसल के सहयोग से सम्पन्न हुआ, संस्था के अध्यक्ष कैलाश गोयल ने सभी अग्रबंधुओं एवं केशव श्रृष्टि के संयोजकों का आभार व्यक्त किया।

आमेट महिला मंडल का शपथ समारोह सम्पन्न

मुम्बई: आमेट महिला मंडल मुंबई का शपथ समारोह वाशी तेरापंथ सभा भवन में आयोजित हुआ।
अध्यक्षता निर्मला चण्डालिया ने की, ललिता डांगी, रिंकू डांगी, रूचिता चौधरी ने मंगलाचरण किया, पायल चण्डालिया, आशा बाफना, सीमा कोठारी, पूजा बाफना ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
मित्र मंडल अध्यक्ष नवरत्न दुग्गड़, भरत लोढ़ा, तेरापंथ महिला मंडल की पूर्वाध्यक्ष सुनीता परमार, मेवाड़ महिला मंडल अध्यक्ष राजकुमारी बोहरा, संरक्षक भगवतीदेवी हिरण, पुष्पा गेलडा, पुष्पा वागरेचा, वाशी संयोजिका वनिता बाफना ने विचार रखे, अध्यक्ष निर्मला चण्डालिया ने आगामी कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए मंडल की विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला। मंत्री विमला हिरण, कोषाध्यक्ष सरोज डांगी के साथ १०० सदस्यों की कार्यकारिणी की घोषणा की, आभार ज्ञापन भावना बाफना व संचालन कल्पना सांखला ने किया। कंचन बम्ब, लाडजी डांगी, निर्मला छाजेड, उपाध्यक्ष सुधा छाजेड, पिंकी कच्छारा, सुशीला सिंघवी व वाशी से सीमा मेहता, रेखा कोठारी एवं गोल्डन ग्रुप की उपस्थिति रही, कार्यक्रम को सफल बनाने में मदनलाल, देवेन्द्र, प्रवीण चण्डालिया सक्रिय रहे।

बैकुण्ठ लोक के द्वार खोलता है

होलिका दहन

वैदिक काल से ही होलिकोत्सव को नवत्रिष्टि यज्ञ कहते आए हैं, कालान्तर में प्रहलाद को मारने का प्रयास जब उसके पिता राक्षस सम्राट हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के द्वारा किया तो होलिका तो भस्म हो गयी, परन्तु प्रहलाद बच गये, तभी से प्रहलाद के बचने की स्मृति और होलिका (बुराई) के दहन की याद में इसे पर्व के रुप में मनाया जाता है।
मनाने की विधि:- यह पर्व पूर्णिमा के दिन पड़ता है, अत: नर-नारी सत्यनारायण का व्रत रख कर सूर्यास्त से पूर्व पूजा करके होलिका दहन की तैयारी आरम्भ करें, व्रत नहीं रखें तो भी अपने आंगन के पवित्र कोने में एक बांस को प्रहलाद का रुप मानते हुए रखें, उसके आस-पास गोबर के बटिये और लकड़ी व घास फूंस लगायें और कच्चे सूत से लपेट दें। रोली, चावल, धनिया, हल्दी की गाँठ और गुड़ चढ़ाने हैं, परिवार का मुखिया शुभ मुहूर्त में निम्रलिखित मंत्र उच्चारण से उसकी पूजा करता है साथ ही

‘अहकूटा भयत्रस्तै: कृत: त्वं होलि बालिशै:’ ‘अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम।।’

परिक्रमा करके हाथ जोड़ कर प्रहलाद रूपी बांस को निकालकर अग्नि लगाता है। स्त्रियां अपने-अपने क्षेत्र परम्परा के अनुसार गीत गाये। बर्तन में पानी, तिल का लड्डू, हल्दी की गाँठ, मोठ के दाने, सब होली अग्नि को दिखाते हैं। मोठ भूमि पर गिराकर पानी से अध्र्य देवें और गीत गाते-गाते परिक्रमा कर पूजन समाप्त करें। पुरुष और बच्चे, गेंहू, जौ, चने की बालियां होली की लपटों में जलाकर दाने निकाल कर सब में बाटें और प्रसाद के रुप में बिना चबाये निगल सकते हैं। आम्रमंजरी तथा चंदन को मिलाकर भी खाते हैं ऐसी मान्यता है, यह प्रसाद ग्रहणकर्ता को बैकुण्ठ लोक ले जाता है।


नई उमंग और नए उत्साह का संचार करती है होली

होली अनेकता में एकता का प्रतीक एक राष्ट्रीय एवं सामाजिक पर्व है। विविध रंगों से ओत-प्रोत यह त्यौहार फाल्गुन-पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। राजस्थान में ‘होली’ एक अलग शैली और अलग अंदाज में मनाई जाती है। होली के कई दिन पहले से ही ढप-धमाल, गिंदड़ आदि लोक नृत्यों के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। रात-रात भर चलनेवाले इन कार्यक्रमों के जरिए नई उमंग और नए उत्साह का संचार होता है।

होलिका दहन का मुहूर्त: होलिका दहन विशेष मुहूर्त में ही किया जाता है। प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा तथा दिन में होलिका दहन का विधान नहीं है।
पूजा विधि एवं सामग्री : सर्वप्रथम थोड़े से गोबर और जल से भूमि पर चौका लगायें, फिर होली का डंडा रोपें और चारों ओर बड़कुल्लों की माला लगायें। मालाओं के आस-पास गोबर की ढाल, तलवार, खिलौना आदि रखें। जल, मौली, रोली, चावल, पुष्प, गुलाल आदि से होली का पूजन करें। पूजन के बाद ढाल व तलवार अपने घर में रख लें। बड़कुल्लों की चार माला अपने घर में पितरजी, हनुमानजी, शितला माता और घर के नाम पर उठाकर अलग रख दें।
होलिका पर्व : इस दिन सब स्त्रियां कच्चे सूत की कूकड़ी, जल का लोटा, नारियल, कच्चे चने युक्त डालियां, पापड़ द्वारा होली की पूजा करें। पूजन के बाद होलिका को जलाया जाता है, इस त्यौहार पर व्रत भी करना चाहिए। होली के दिन प्रात: स्नान आदि कर पहले हनुमानजी, भैंरोजी आदि देवताओं की पूजा करते हैं, उन पर जल, रोली, मोली, चावल, पुष्प, गुलाल, चंदन, नारियल, नैवेद्य आदि चढ़ायें। दीपक से आरती कर प्रणाम करें, फिर आप जिन इष्ट देवों को मानते हैं उनकी भी पूजा करें। होली में कच्चे चने युक्त हरी डालियां, कच्चे गेहूं की टहनियां (बालें) आदि भूनकर वापस घर ले आएं, होली जलने पर पुरुष होली के डंडे को बाहर निकाल लें, क्योंकि इस डंडे को भक्त प्रह्लाद का रूप माना जाता है।

भारतीय रंगों का रंगारंग त्यौहार होली

होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हैं। होली मनाने के एक रात पहले होली को जलाया जाता है। इसके पीछे एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है।
भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका, जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।
प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी, परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई, यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार रंगों का त्योहार है, इस दिन लोग प्रात:काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियां व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं। सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं, घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुझिया आदि बनाती हैं व अपने पासपड़ोस में आपस में बांटती हैं। कई लोग होली की टोली बनाकर निकलते हैं उन्हें हुरियारे कहते हैं।

ब्रज की होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाने की होली, काशी की होली पूरे भारत में मशहूर है।
आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग नहीं होता और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह सरासर गलत है। इस मनभावन त्योहार पर रासायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से आंखों में घाव भी हो सकता है, रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए।

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