आदर्श शिक्षालय श्री जवाहर विद्यापीठ
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आदर्श शिक्षालय श्री जवाहर विद्यापीठ
भीनासर: हुक्म संघ के षष्ठम आचार्य ज्योर्तिधर श्री जवाहरलाल जी महाराज एक महान क्रांतिकारी क्रांतद्रष्टा
युगपुरुष हुए थे। अपने जीवन के अन्तिम दो वर्ष स्वास्थ्य अनुकूल न होने से सेठ हमीरमल जी बाँठिया
स्थानकवासी जैन पौषधशाला में विराजे और आषाढ़ शुक्ला अष्ठमी संवत् २००० को इसी पौषधशाला के हॉल में
उन्होंने संथारा पूर्वक अपनी देह का त्याग किया। उनकी महाप्रयाण यात्रा के बाद चतुर्विध संघ द्वारा एक
श्रद्धांजलि सभा सेठिया कोटड़ी बीकानेर में आयोजित की गई थी जिसमें उनके भक्त भीनासर के सेठ
चम्पालालजी बाँंठिया ने उनकी स्मृति में ज्ञान दर्शन चरित्र की आराधना हेतू एक जीवन्त स्मारक बनाने की
अपील पूरे समाज के समक्ष रखी, जिसका समर्थन बीकानेर के सेठ भेंरुदानजी सेठिया ने किया और अपनी तरफ
से इस पावन कार्य हेतू ११०००/- की राशी लिखाई, इतनी ही सेठ चम्पालाल जी बाँठिया ने लिखाई, उस समय
११०००/- की कीमत आज लाखों में है, इसके बाद पूरे चतुर्विध संघ के श्रावकों ने इस पुनीत कार्य हेतू पूर्ण समर्थन
दिया और लाखों रुपया उसी दिन एकत्रित हो गया। सभा में उपस्थित लिखमीचन्द जी मूलचन्द जी लूणिया
भीनासर ने उपरोक्त हॉल के सामने की अपनी १६६७ गज जमीन देने की घोषणा की। इसके बाद पूरे समाज की
कई बार मीटिंग होने के बाद आखिर दिनांक २९ अप्रैल १९४४ को श्री जवाहर विद्यापीठ के रुप में मूर्त रुप लिया।
विद्यापीठ की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य आचार्य श्री जवाहर की वाणी को कालजयी बनाना था। अत:
जवाहरलाल जी महाराज के व्याख्यानों पर आधारित ३५ जवाहर किरणावलियों के रुप में संस्था द्वारा प्रकाशन
किया जा रहा है। सेठ चम्पालालजी ने श्री जवाहरलाल जी म.सा. के बारे में सोचा कि ये अमूल्य वाणी आने वाली
पीढ़ीयों के लिए एक धरोहर बनेगी, उन्होंने ब्यावर से विद्वान शोभाचन्द्रजी भारिल्ल को बुलवाया जो आचार्यश्री
के व्याख्यानों को नोट करते थे और उन्हीं के आधार पर आचार्य श्री के जीवनकाल में ही सेठ चम्पालाल जी के
सौजन्य से दो जवाहर किरणावलियों का प्रकाशन किया गया बाकि ३३ किरणालियों का प्रकाशन बाद में हुआ, जो
आज भी निरन्तर जारी है।