कर्मठ व जुनूनी व्यक्तित्व के धनी

-महेश बंसीधर अग्रवाल

मुंबई: कर्मों की कर्मठता से ही व्यक्ति की पहचान होती है। सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों का उद्देश्य मानव मात्र की प्रेमत्व सेवा से प्रारूपित होता है, ऐसे लोग समाज को नवसृजित करते हैं, जहां सहयोग की आमेटता के साथ समृद्धि का स्वरूप निखारता है, ऐसे ही कर्मठ व्यक्तित्व के धनी है सुप्रसिद्ध, उद्योगपति, जनमानस, राष्ट्र व समाज सेवार्थ समर्पित महेश बंसीधर अग्रवाल।
सुप्रसिद्ध समाजसेवी और दिग्गज उद्योगपति महेश बंसीधर अग्रवाल ने अपने बेमिसाल हुनर, शानदार तकनीक और बेहतरीन मैनजमेंट के कारण हैवी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जो ऊँचा मुकाम बनाया है उसे जानकर आज हर बृजवासी उन पर गर्व कर सकता है। आज वे अपने व्यवसाय में जिन बुलंदियों को छू रहे हैं उतनी ही ऊँचाईयां वे अपने द्वारा किए गए सामाजिक व धार्मिक कार्यों से भी हासिल कर चुके हैं। व्यवसासिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में काम के बीच जो सामंजस्य उन्होंने अपनी जिंदगी में बनाया है वह हर व्यक्ति के लिए एक बड़ा उदाहरण और प्रेरणा का स्त्रोत है।

सोलह कला संपन्न पालनहारा भगवान श्री कृष्ण की पावन जन्म स्थली मथुरा में ११ अक्टूबर १९५३ को जन्मे महेशजी शुरू से ही पढ़ाई-लिखाई में अव्वल थे। उन्होंने १९७५ में बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साइंस, पिलानी (राजस्थान) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की, अपनी उच्च तकनीकी शिक्षा को प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने मध्यप्रदेश के भोपाल व ग्वालियर शहरों में हैवी इंजीनियरिंग के अनेक उद्योगों की स्थापना कर वे पावर जनरेशन के आधुनिक टरबाइन, सीमेंट प्लांट, स्टील प्लांट आदि के निर्माण के चुनौतीपूर्ण कार्यों का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में हाइड्रो पावर जनरेशन प्लांट लगाकर, बिजली उत्पादन का कार्य भी आपकी व्यवसायिक सूची में उल्लेखनीय स्थान रखता है।
आपकी जिंदगी में १९७९ का साल वह यादगार समय है जब (स्वर्गीय) डॉ. वीना अग्रवाल आपकी जिंदगी में पत्नी बनकर आईं। देवभाषा संस्कृत में पीएचडी करने वाली वीना जी का आपके जीवन में आना एक ऐसी सुखद व अवर्णनीय अनुभति थी जिसे आप आज भी अपनी यादों में सर्वोच्च स्थान पर संजोकर रखे हुए हैं, आपकी सुपुत्री श्रीमती स्मिता गुप्ता, मुंबई के एक बहुत बड़े स्टील व्यवसायी घराने की बहू हैं, आपके सुपुत्र गौरव अग्रवाल अपने परिवार की इस विशाल औद्योगिक विरासत को आगे बढ़ाने में आपकी हर संभव मदद कर रहे हैं।
महेशजी अपने बेहद व्यस्त व्यवसायिक दिनचर्या से समय निकालकर सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। मुंबई की अनेक धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं से वर्षों से आपका गहरा नाता रहा है, जैसे श्री बृज मंडल, बृज उत्सव संस्थान ट्रस्ट, परोपकार, हरि सत्संग समिति, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, अग्रोहा विकास ट्रस्ट, अग्रबंधु सेवा समिति आदि अनेक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए समाज के जरूरतमंद लोगों की तन, मन, धन से मदद व सेवा कर रहे हैं, यही कारण है कि आप एक बेहद सफल व्यवसायी के साथ-साथ बड़े मानवतावादी व्यक्ति के रूप भी जाने जाते हैं।

- मेरा

सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला में राजस्थानी कलाकारों द्वारा मनमोहक प्रस्तुतियां

नई दिल्ली: सूरजकुंड में आयोजित १५ दिवसीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला में राजस्थान के लोक कलाकारों ने अपनी आकर्षक एवं मनमोहक प्रस्तुतियां दी।
सांस्कृतिक – संध्या में बस्सी के बनवारी लाल जाट एवं दल के सदस्य कच्ची घोड़ी, पाबूसर,चुरू के गोपाल गीला एवं साथियों ने चंग-ढप-नृत्य,अलवर के यूसुफ खान एवं दल सुविख्यात भपंग वादन,भनोखर,अलवर के बिनय सिह प्रजापत एवं दल ने रीम भवई नृत्य,जोधपुर के रफ़ीक लँगा एवं साथी कलाकारों ने खड़ताल वादन एवं राजस्थानी गायन, दिल्ली के अनिशुद्दीन एवं साथी चरी नृत्य तथा वीरेंद्र सिंह गौड़ एवं दल घूमर नृत्य,भरतपुर के ही जितेंद्र पराशर एवं साथी कलाकार अपना लोकप्रिय मयूर डान्स और फूलों की होली एवं जयपुर की सुआ सपेरा ने अपनी साथी नृत्यांगनाओं के साथ कालबेलिया डान्स की प्रस्तुतियां दे कर दर्शकों का मन मोह लिया, कार्यक्रम का संचालन जैनेन्द्र सिंह किया ।

राजस्थान मंडप का आकर्षण:
राजस्थान पर्यटक स्वागत केंद्र, नई दिल्ली की अतिरिक्त निदेशक गुंजीत कौर एवं सहायक निदेशक श्रीमती सुमिता मीना ने बताया कि सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला में राजस्थान मंडप को सैकड़ों लोग प्रतिदिन देखा। पर्यटन विभाग, राजस्थान द्वारा लगाये स्टॉल में राजस्थान के सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थलों को दर्शाया गया है, तद सम्बन्धित जानकारी दी गई। सूरजकुंड में अन्य प्रदेशों के साथ ही राजस्थान की बहुरंगी एवं अनूठी संस्कृति के विविध रंगों को देखने भारी भीड़ उमड़ी।

महाशिवरात्रि की पवित्र, प्राचीन और प्रामणिक

महाशिवरात्रि त्योहार की व्रत-कथा

पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था, जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था, वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका।
क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया, संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा, चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की, शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया, अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था, शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया, जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी, वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई, इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए, एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है, मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’

शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ीयों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए, इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली, शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया, तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं, कामातुर विरहिणी हूं, अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं, मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया, दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका, वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था, इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई, तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली, शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि पालन नहीं कर पाएंगी, अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया, इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रिजागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई, पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला, शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई, उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई, जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए।
शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं, पर वास्तव में महादेव शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए, अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जाने दिया, यह करुणा ही वस्तुत: उस शिकारी को उन पण्डित एवं पूजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ रात्रि जागरण, उपवास एव दूध, दही एवं बेल-पत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते हैं।
प्रस्तुत कथा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कथा में ‘अनजाने में हुए पूजन’ पर विशेष बल दिया गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव किसी भी प्रकार से किए गए पूजन को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में भेद नहीं कर सकते।
वास्तव में वह शिकारी शिव पूजन नहीं कर रहा था, इसका अर्थ यह भी हुआ कि वह किसी तरह के किसी फल की कामना भी नहीं कर रहा था।
उसने मृग परिवार को समय एवं जीवन दान दिया जो कि शिव पूजन के समान है, शिव का अर्थ ही कल्याण होता है, उन निरीह प्राणियों का कल्याण करने के कारण ही वह शिव तत्व को जान पाया तथा उसका शिव से साक्षात्कार हुआ।
परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस होना भी आवश्यक नहीं है, पुराण में चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है, मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि तथा महाशिवरात्रि, पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि हैनित्य शिवरात्रि, वस्तुत: प्रत्येक रात्रि ही ‘शिवरात्रि’ है अगर हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें, वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।

महाशिवरात्रि पर्व

महाशिवरात्रि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है, दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है, वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है, इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम : महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं –
१. चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं, रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
२. चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।
३. उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।

शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि :
१. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए, अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
२. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए, साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
३. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है, हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।

ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व : चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं, इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है, ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है, गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं, चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है – अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है, दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा : शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं, विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला, वह थक कर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था, अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरी, ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने नीचे को झुका, इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली।
मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया, जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।

शरदजी बागडी को दिव्य श्री पुरस्कार प्रदान

नागपुर: वरिष्ठ समाज सेवक शरद गोपीदासजी बागडी को समाज की मुल समस्याओ महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाव – बेटी पढाव, बुजुर्गों के मानवाधिकार पर उनके निष्पच्छ लेखन, समाजसेवा के लिए माहेश्वरी अखाड़ा की ओर से दिव्य-श्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। माहेश्वरी अखाड़ा ने पुरे विश्व भर से करीब बीस लाख माहेश्वरी में से २० लोगोंको अपने अलग-अलग क्षेत्रों मे किये गये विशेष कार्यों के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह पुरस्कार दिये गये है। शरद बागडी को अब तक दो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार लोकनायक जयप्रकाशनारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र नयी दिल्ली से ‘संपूर्ण क्रांति पुरस्कार -२०१८’ नौ राष्ट्रीय पुरस्कार
१) मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटी लि. से ‘वेल्थ क्रियेटर आँफ डिकेड’,
२)केंद्रीय मानवाधिकार संगठन, नयी दिल्ली से ‘समाज-भुषण’,
३)भारत विकास परिषद से ‘विकास-रत्न’,
४)राजस्थान सेवा से ‘राजस्थान-श्री’
५) माहेश्वरी टाईम्स से ‘माहेश्वरी आँफ द इयर २०१६’
६) टाईम्स आँफ इंडिया द्वारा ‘ट्रस्टैड पोर्टफोलियो कंसलट-२०१८’
७) जीरो माईल फाऊंडेशन द्वारा जीरो माईल समाज रत्न२०१८’
८) जीवन गौरव सम्मान’ नागपुर विद्यापीठ व क्रीडा भारती सालाना कार्यक्रम में।
९) ‘समाज-सेवा-गौरव’ भाजपा सांस्कृतिक आघाडी द्वारा, राज्य स्तर पर शरदजी को विभिन्न संस्थाओं से २७ पुरस्कार प्राप्त हुए।
महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री मा.देवेन्द्र फडनवीस, आसाम-तामिलनाडु के राज्य पाल, भारत सरकार केंद्रीय भुतल परिवहन मंत्री मा.नितीनजी गडकरी आदि द्वारा विशेष सत्कार किया गया। करीब ११२ सामाजिक, राजनीतिक,सरकारी, व्यावसायीक संस्थाओं द्वारा बतौर मुख्य अतिथि रूप मे बुलाकर सत्कार किया गया।
सबसे बड़ी उपलब्धी क्रीड़ा भारती का पुरस्कार वितरण कार्यक्रम की अध्यक्षता शरद बागड़ी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक आ. मोहनजी भागवत के साथ मंच पर उपस्थित रहकर की।

अग्रोहा विकास ट्रस्ट प्रीमियर लीग २०१९

अग्रोहा विकास ट्रस्ट, वाशी नवी मुंबई समिति द्वारा अग्रवाल प्रीमियर लीग २०१९ (एपीएल) तैरना डेंटल कॉलेज में आयोजन किया गया । केन्द्रीय मंत्री आनंद प्रकाश गुप्ता ने ‘मेरा राजस्थान’ को बताया कि इस क्रिकेट टूर्नामेंट में नवी मुम्बई की सभी अग्रवाल समितियों की ८ टीम ने हिस्सा लिया, जिसमें ८८ पुरुष और महिला सदस्यों ने भाग लिया, लीग में अध्यक्ष महावीर गुप्ता के नेतृत्व में महालक्ष्मी मंदिर की टीम महालक्ष्मी रॉयल्स ने ट्रॉ फी में कब्जा किया, टीम के कप्तान डॉ अमित अग्रवाल थे। ६५० सदस्य परिवारों की उपस्थिति में कार्यक्रम का उद्घाटन मुम्बई समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र अग्रवाल और मंत्री आनन्द प्रकाश गुप्ता ने किया ।
कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रवण अग्रवाल (बालाजी ग्रुप), जय भगवान गोयल, अवतार पोद्दार, सौरभ मित्तल, अवंतिका कैटर्स, वाशी समिति के अध्यक्ष सचिन ओमप्रकाश अग्रवाल, सचिव अनिल मित्तल, उपाध्यक्ष टी आर गुप्ता, संयुक्त मंत्री हरीश गुप्ता, कोषाध्यक्ष प्रवीण लालचंद अग्रवाल आदि का बिशेष योगदान रहा।

-आनंद प्रकाश गुप्ता मंत्री
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