दीपदान की महिमा निराली

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ‘धनतेरस‘ कहलाती है, इस दिन चांदी का बर्तन खरीदना अत्यन्त शुभ माना गया है, वस्तुत: यह यमराज से संबंध रखने वाला व्रत है, इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य द्वार पर एक पात्र में अन्न रख कर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीपदान करना चाहिए तथा उसके गन्ध आदि से पूजन करना चाहिए, दीपदान करते समय निम्नलिखित प्रार्थना करनी चाहिए, इस प्रकार मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्भया सह त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीयतामिती यमुना जी यमराज की बहन हैं, इसलिए धनतेरस के दिन यमुना स्नान का भी विशेष महातम्य है, यदि पूरे दिन का व्रत किया जा सके, तो अत्युतम है। कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे यमदीपं बहिर्दघादप मृत्युविनश्यति कथा: एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि ‘‘तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो, क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दु:ख भी हुआ, क्या कभी दया भी आई है?’’ इस पर यमदूतों ने कहा, ‘‘महाराज, हम लोगों का क्रम अत्यंत क्रूर है, परंतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु पर उसका प्राण हरण करते समय वहाँ का करूण-क्रन्दन सुनकर हम लोगों का पाषाण हृदय भी विचलित हो जाता है, एक बार हमलोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े, उस समय वहाँ का करूण-क्रन्दन चित्कार और हाहाकार देख-सुनकर हमें अपने कृत्य पर अत्यन्त ग्लानि हुई, उस मंगलमय उत्सव के बीच हमारा यह कृत्य लोगों को अत्यन्त दु:खी कर गया। अत: हे स्वामिन! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे ऐसी असामयिक मृत्यु न हो’’ इस पर यमराज ने कहा कि ‘‘जो धनतेरस के पर्व पर मेरे उद्देश्य से दीपदान करेगा, उसकी असामयिक मृत्यु नहीं होगी।’’
?>