ऐतिहासिक आध्यात्मिक नगरी नापासर
by admin · February 11, 2021
ऐतिहासिक आध्यात्मिक नगरी नापासर
‘नापासर’ भारत के राजस्थान राज्य में बीकानेर जिले का एक कस्बा है।
नापासर कस्बा एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धार्मिक धरोहरो को संजोये हुए हर क्षेत्र में प्रगती की ओर अग्रसर होता हुआ बिकानेर ही नहीं पूरे राजस्थान के हृदयपटल पर अपनी छाप बनाये हुए है।
इसे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी के भतीजे, युगदृष्टा कुशल राजनीतिज्ञ नापाजी सांखला ने बीकानेर स्थापना के एक वर्ष बाद संवत् १५४६ में नापासर की नींव रखी, जिसका शिलालेख नाइयों का मोहल्ला, रामसर रोड पर शिव मंदिर के दरवाजे के ऊपर लगा हुआ है। ‘नापासर’ की स्थापना के साथ सांखला, धांधल राजपूतों के साथ राठी, डागा, नाई, दर्जी, जोतकी, पारीक, नायक मेघवाल आदि जातियाँ पानी एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से
आकर बस गयी। किंवदन्तियों के अनुसार पूर्व में यहाँ अन्य जातियाँ भी बस्तियों के रूप में अस्तित्व में थी, उस समय के देवासर बस्ती के अवशेष अभी भी मौजूद है। वर्तमान में देवासर काँकड़ अवस्थित है। लेकिन गाँव नगण्य है। कालान्तर में धीरे-धीरे झँवर, आसोपा, मोहता, कर्डू (सूरतगढ़) सोमाणी वृन्दावन से, ओझा रामसर से, मूंधड़ा डीडवाना से, करनानी केसरदेसर से, जाटान बादनूं व आसपास के गाँवों से आ-आकर यहाँ पानी एवं सुरक्षा की दृष्टिकोण से अपने परिवारों के साथ बसते चले गए। सर्वप्रथम यहां कोई प्रमाणिक शैक्षणिक संस्था नहीं थी, लोग अपने स्तर से ही वाणिका आदि का अध्ययन कर लेते थे।
नापासर राजस्थान की एक बड़ी ग्राम पंचायत है। स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और उनके पूर्व सरपंच स्व. बजरंगलाल आसोपा का ‘नापासर’, जिसे नेताजी के नाम से भी जाना जाता है।
‘नापासर’ रेलवे स्टेशन में २ प्लेटफार्म हैं। पैसेंजर, एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनें यहां रुकती हैं।
नापासर जनसंख्या: ‘नापासर’ में करीब ४००० परिवार निवासित हैं। ‘नापासर’ गाँव की जनसंख्या २२८९३ है जिसमें ११८८८ पुरुष हैं और ११००५ महिलाएँ हैं।
नापासर गाँव में ०-६ आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या ३४८८ है जो गाँव की कुल जनसंख्या का १५.२४ज्ञ् है। नापासर गाँव का औसत लिंग अनुपात ९२६ है जो राजस्थान राज्य के औसत ९२८ से कम है। जनपद की जनगणना के अनुसार बाल लिंग अनुपात ९१९ है, जो राजस्थान के औसत ८८८ से अधिक है।
बीकानेर की तुलना में नापासर गाँव में साक्षरता दर अधिक है। २०११ में राजस्थान के ६६.११ज्ञ् की तुलना में नापासर गाँव की साक्षरता दर ७३.०५ज्ञ् थी। नापासर में पुरुष साक्षरता ८२.२९ज्ञ् है जबकि महिला साक्षरता दर ६३.०७ज्ञ् है। भारत और पंचायती राज अधिनियम के अनुसार नापासर गाँव का प्रशासन सरपंच (गाँव के मुखिया) द्वारा किया जाता है, जो गाँव का प्रतिनिधि होता है।
पशुपालन एवं कृषि क्षेत्र: पशुपालन एवं कृषि क्षेत्र के कार्यों में वस्तु विनिमय तथा सामाजिक व्यवस्थाओं के अनुकूल जीवन निर्वाह करते थे। पशुपालन एवं कृषि के अलावा कोई अन्य आजीविका का कोई विशेष साधन नहीं था। पानी के लिए ताल-तलैया या बरसाती पानी के संग्रहण से ही काम चलाते थे।
बीकानेर के गावों में नापासर वृक्षारोपण में भी अग्रणी रहा है, नापासर की सीमा से लगे सभी गावों को जानेवाली सड़कों के किनारे हरे-भरे वृक्ष लगाए गए है, जिनके लिए गांव के ही गोपी किशन झंवर, बद्रीनारायण मूंधडा, मदन गोपाल झंवर, भैरूदान मूंधड़ा, गोपाल झंवर, दामोदर प्रसाद जोशी, ओम लखानी तथा गणेशलाल नागर, व अन्य ग्रामवासियों का सराहनीय योगदान रहा।
‘नापासर’ के आकर्षण में शामिल हैं:
१. बाबा रामदेव जी मंदिर (पुराना मंदिर) देशनोक रोड
२. माँ भद्र काली मंदिर (पारीक चौक)
३ गायत्री माता मंदिर
४. श्री द्वारकेशदेव अवं सन्तशिरोमणि श्री पापाजी महाराज मंदिर (पीपी चौक पर चतरिया समाज द्वारा
निर्मित)
५. गणेश मंदिर (देशनोक रोड पर)
६. झंवर गेस्ट हाउस: स्वर्गीय हनुमानदास जी झंवर द्वारा निर्मित और सत्यनारायण जी झंवर द्वारा प्रबंधित।
(गंगासागर (पश्चिम बंगाल) में पहला गणेश मंदिर भी झंवर परिवार द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है)
७. वेद विद्यालय (संस्कृत पाठशाला-शिक्षा के लिए प्रसिद्ध)
८. माँ दुर्गा का मंदिर (सोनी परिवार के अधिक प्रभाव/देखभाल के कारण सोनिया री बगीची के नाम से जाना
जाता है)
९. हनुमान धोरा
१०. लक्ष्मीनाथ जी मंदिर
११. माहेश्वरी भवन (माहेश्वरी परिवारों के योगदान के साथ निर्मित )
१२. करणी माता मंदिर
१३. साई बाबा मंदिर (नापासर-सिंधल) रोड
१४. गोपाल मंदिर (मुंडारा इलाके में)
१५. श्री रामचंद्र जी मंदिर (करणी परिवार के योगदान से निर्मित)
१६. हनुमान वाटिका
१७. डूंगरपुरी हनुमान जी मंदिर
१८. हनुमान मंदिर (जन्माष्टमी महोत्सव के लिए प्रसिद्ध)
१९. हनुमान मंदिर (जाट मोहल्ला)
२०. तारा माता मंदिर, जिसे काली माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
२१. वीर तेजाजी मंदिर (चुंगी चौकी के पास)
२२. जसनाथ जी का बदी (जाट मोहल्ला)
२३. हनुमान जी का मंदिर पट्ट बास, नेहरू चौक
२४. प्राचीन भगवान शिव मंदिर के पास एक पवित्र झील, जिसे पंडरिया झील के नाम से जाना जाता है।
२५. रामदेव जी मंदिर के पीछे, एक झील जिसे पकोरी झील के नाम से जाना जाता है।
२६. विश्वकर्मा जी मंदिर (नेहरू चौक)
२७. एसबीआई बैंक सिंतल रोड
२८. आरएमजी बैंक मुख्य बाजार
२९. पीएनबी बैंक स्टेशन रोड
३०. पंचायत भवन में डाकघर
नापासर की प्रथम पाठशाला: सर्वप्रथम पंडित शिवदयाल शर्मा ने अक्टूबर सन् १९१८ में एक झोपड़े में पाठशाला शुरू की, जहाँ १००-११० छात्र वणिका व हिन्दी पहाड़ा का अध्ययन करते थे, जिसका समय-समय पर निरीक्षण होता था। सेठ साहूकारों ने कलकत्ते से दस हजार रुपये की व्यवस्था कर तथा नापासर के जाटों ने मिलकर विद्यालय का नवीनीकरण किया तथा पक्के कमरों का निर्माण भी करवाया, जिसमें बीकानेर दरबार ने
भी अपने खजाने से सहयोग प्रदान किया।
१३ अप्रैल सन्ा् १९२५ में पं. शिवदयाल शर्मा की बदली होने के बाद छात्र संख्या कम होने लगी तथा पढ़ाई स्तर गिरने लगा, जिसके फलस्वरूप पूरणमलजी एवं मोतीलालजी ने व्यवस्था संभाली।
दिनांक २७.१०.१९३० को स्टेट स्कूल में हिन्दी वणिका के साथ-साथ अंग्रेजी विषय पढ़ाने की स्वीकृति मिल गयी तथा समुचित पढ़ाई भी शुरू होने से पुनः छात्र संख्या बढ़ने लगी। जैसे-जैसे शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ी, अन्य लोगों ने भी प्राइवेट शालाएं खोलना शुरू कर दिया। श्री टीकूराम जी मथेरण ने रुघजी महाराज की पिरोल के कमरों में तथा बेरासर से आये स्वामी तनसुखदासजी ने अपने घर में ही पढ़ाना शुरू किया। मिडिल स्कूल की स्वीकृति मिलने पर स्टेट की स्कूल में ही अच्छी पढ़ाई होने लगी। उत्तरोत्तर १९५७-५८ में हाईस्कूल तथा अक्टूबर १९८२ में हायर सैकण्डरी स्कूल की मंजूरी मिलने पर ऋषिकेश शर्मा प्रधानाचार्य के सान्निध्य में ‘नापासर’ बीकानेर जिले में पायलेट स्कूल की श्रेणी में आने लगा तथा बालक-बालिकाओं ने कीर्तिमान स्थापित किया। आज की स्थिति का अवलोकन कर विहंगम दृष्टि डालें तो ‘नापासर’ कस्बा शिक्षा क्षेत्र में अग्रणीय बन रहा है।
शिक्षा व खेलकूद क्षेत्र में कई छात्र-छात्राओं ने मैरिट में स्थान प्राप्त किया है। खेलकुद में श्री किशनलाल झंवर, श्री अशोक कुमार आसोपा, श्री बजरंगलाल सोमाणी ने राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ‘नापासर’ का गौरव बढ़ाया है तथा ‘नापासर’ के कई सपूत भारतीय एवं राज्य प्रशासनिक सेवाओं में भी कार्यरत हैं। यही नहीं व्यापारिक एवं व्यवसायिक क्षेत्र का अवलोकन करें तो एक से एक विलक्षण प्रतिभाएँ देश-विदेश में ‘नापासर’ का गौरव बढ़ा रही हैं।
धार्मिक भूमि नापासर: ऐतिहासिक नगरी ‘नापासर’ बीकानेर से २७ किलोमीटर दूर स्थित है। नापासर सन्त सेवाराम जी महाराज की तपोभूमि है तथा श्री बजरंगलाल जी आसोपा की कर्मस्थली रही है, जहाँ महान संतों का हमेशा समागम एवं आशीर्वाद रहा है। चारों जगतगुरु शंकराचार्यों का भी परम पूजनीय प्रात: स्मरणीय करपात्री जी महाराज के साथ पदार्पण हुआ। स्वामी रामसुखदासजी महाराज की तो ‘नापासर’ के प्रति हमेशा कृपा
दृष्टि रही, उसी का प्रतिफल है कि यहाँ प्रात:काल उठते ही गायत्री पुरश्चरणों से परिष्कृत स्वर सन्तों एवं भागवत् वाचकों के मुख से मुखरित वाणी, ब्रह्म तेजस्वी ब्राह्मणों के वेदपाठ एवं शिव महिमा पूजा पाठ अर्चना, घंटा घड़ियालों की मधुर ध्वनि सारे वातावरण में शीतल मंद पवन के झोंकों के साथ झंकृत होती नजर आती है। दानदाताओं द्वारा ‘नापासर’ की चतुर्दिक दिशाओं में लगाये गये पेड़ों के झुरमुटों से आती ठण्डी बयार जन-मानस को नया जीवन प्रदान करती है।
नापासर की सामाजिक संस्थाएं: कर्मवीर सभ्यता एवं संस्कृति को संजोये हुए धर्मपरायण लोग ‘नापासर’ में निवास करते हैं, जिसका प्रमाण है कि सभी सार्वजनिक संस्थाएं रा. उ. मा. वि., गीता देवी बागड़ी बालिका उच्च मा. विद्यालय, चौतीना कुआं, मिडिल स्कूल, रेफरल हॉस्पिटल, पशु चिकित्सालय, नवयुवक पुस्तकालय, सुभाष क्लब, सन्त श्री सेवाराम गौशाला, धर्मार्थ औषधालय, सनातन संस्कृत पाठशाला आदि अनेक संस्थाओं का
निर्माण यहां के प्रवासी एवं स्थानीय दानदाताओं के सहयोग से हुआ है।
माहेश्वरी भवन का निर्माण भी जनसहयोग से हुआ है, जो कि उल्लेखनीय है। ‘नापासर’ की शान उ. मा. वि. विद्यालय का निर्माण करवाया गया है, श्री अनिल ओझा ने विज्ञान वर्ग प्रयोगशाला हेतु चार कमरे का सभी सुविधाओं से सुसज्जित कर चार चांद लगा दिए है।
नापासर नागरिक परिषद के रतनलाल मूंधड़ा ने अवगत कराया कि परिषद रेफरल हॉस्पिटल का निर्माण करवाकर साधन सम्पन्न कर, राज्य सरकार को समर्पित किया गया है, जहाँ गांवों के रोग ग्रस्त लोगों का इलाज होता है। बालिका शिक्षा की बढावा के लिए गीतादेवी बागडी बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय का निर्माण मांगीलाल बागडी ने करवाकर, सी. एम. मूंधडा मेमोरियल चेरिटेबल में १९ कमरे व तीन लॅब का निर्माण करवाकर आदर्श प्रस्तुत किया है। इसके अलावा प्राइवेट विद्यालयों से सहित १३ हजार विद्यार्थी ‘नापासर’ में अध्ययनरत है।
नापासर कस्बे के शिक्षा स्तर को सुधारने हेतु एवं जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करने हेतु नि:शुल्क पाठय पुस्तकें, गणवेश, अन्य आर्थिक सहयोग सदैव मिलता रहा है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने सही कहा है-
जिसकी रज में लौट-लौटकर बड़े हुए हैं
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं
उस माटी को हम प्रणाम कर रहे हैं
परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये
जिसके कारण धूल भी हीरे कहलाये
मिलकर नापासर को संवारें व सजायें
वास्तव में मातृभूमि स्वर्ग से भी महानतम् है, उसके प्रति लगाव रहता ही है, जहाँ सभी जनवासी सर्वधर्म समभाव, पारस्परिक सौहार्द्र, बन्धुत्व और सहिष्णुता से निवास करते हैं।