प्राच्यविद्या सम्मेलन

अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक, मानवता के मसीहा, इन्दिरागांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से पुरष्कृत आचार्य तुलसी ने एक स्वप्न देखा कि जैन धर्म का भी एक ऐसा विश्वविद्यालय होना चाहिए जो प्राच्यविद्याओं विशेषकर जैनविद्या एवं आगमविद्या को सुरक्षित, संरक्षित, पुष्पित एवं पल्लवित कर सके। यह स्वप्न साकार हुआ जब २० मार्च, १९९१ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर, मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की और विश्वविद्यालय के मान्य संविधान के अनुसार आचार्य तुलसी इसके प्रथम अनुशास्ता बने। महान दार्शनिक विभूति, महान साहित्यकार, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के दशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ इस विश्वविद्यालय के अनुशास्ता के बाद आचार्य श्री महाश्रमण वर्तमान में अनुशास्ता हैं और तुलनात्मक धर्म दर्शन की परम विदुषी डॉ. समणी मंगलप्रज्ञा इस विश्वविद्यालय की वर्तमान में कुलपति हैं। राजस्थान के मरूभूमि नागौर जिले के लाडनूँ कस्बे में स्थित यह विश्वविद्यालय मानों रेगिस्तान में विद्यारायिनी के रूप में प्रसिद्ध है। चतुर्दिक हरीतिमा से आच्छादित साफ सुथरा परिसर, मयूरोंं के नर्तन भरे दृश्यों से भी आकर्षण का केन्द्र है। भौगोलिक दृष्टि से यह जयपुर, जोधपुुर, अजमेर एवं बीकानेर से लगभग समान दूरी पर स्थित है। तपोवन के रूप में विख्यात आध्यात्मिक परिसर अहिंसा और शान्ति का अनुुपम केन्द्र है। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रवर्तित अहिंसा प्रशिक्षण मॉडल द्वारा अहिंसा शांति विभाग के माध्यम से अहिंसा प्रशिक्षण का नियमित कार्यक्रम चलता है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से हिंसा पर अंकुश लगाने का प्रयत्न यहाँ हो रहा है। जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग विभाग द्वारा मूल्यपरक शिक्षा, तनाव विसर्जन, संवेग नियन्त्रण एवं व्यक्तित्व निर्माण के अनूठे प्रयोग यहाँ चल रहे हैं। आगमरूपी विशाल समुद्र से मंथनकर नवनीत निकालकर जन सम्मुख प्रस्तुत करने का कार्य संस्कृत एवं प्राकृत विभाग के माध्यम से हो रहा है। जैन सिद्धान्त अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकान्त की वर्तमान में प्रासंगिकता को चरितार्थ करने की दिशा में अग्रसर है। जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग। अणुव्रत मूल्यों पर आधारित समाज सेवा के प्रकल्प को लाडनूँ के परिपार्श्व में स्थित गांवों में विस्तार दे रहा है यहाँ का समाजकार्य विभाग। नवाचार के अधुनातन प्रयोगोंं के माध्यम से आचारनिष्ठा शिक्षक तैयार करने का कार्य यहाँ के शिक्षा विभाग के माध्यम से हो रहा है। अंग्रेजी की उच्चस्तरीय शिक्षा के साथ-साथ समझ, लेखन, वक्तृत्व, सम्पादन, साक्षात्कार, घटना एवं परिदृश्य को प्रस्तुत करने की शक्ति को विकसित करने का कार्य अंग्रेजी विभाग द्वारा हो रहा है। प्राच्य विद्याओं का आधुनिक एवं वैज्ञानिक अनुसंधान सरावगी अनेकान्त शोधपीठ के माध्यम से हो रहा है। ग्रामीण निरक्षर एवं अनपढ़ महिलाओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उन्हें उनके गाँव में ही शिक्षित करने का अनूठा कार्य आचार्य तुलसी शिक्षा परियोंजना के माध्यम से हो रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा परिषद नयी दिल्ली के पाठ्यक्रम ’अखिल भारतीय महिला मंडल’ के सहयोग से गाँवों में संचालित किये जा रहे हैं। यहाँ के सभी नियमित विद्यार्थियों के अंग्रेजी संभाषण, क्षमता एवं कम्प्यूटर दक्षता हेतु अलग प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम के अध्ययन की व्यवस्था है। एतदर्थ दोनों ही प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम सभी विद्यार्थियों को करने अनिवार्य है। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य ‘णाणस्स सारमायारो` अर्थात ज्ञान का सार आचार है। अत: अपने पाठ्यक्रमों के माध्यम से अनेक शिविर एवं कार्यशालाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण पर यहाँ विशेष बल दिया जाता है। यह कहना अतिरेकपूर्ण कथन नहीं होगा कि यह विश्वविद्यालय चरित्र निर्माण का कारखाना है। यहाँ के नियमित पाठ्यक्रम अत्यन्त उपयोगी हैं जो इस प्रकार हैं- स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम- एम.ए. जैनविद्या एवम् तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन, एम.फिल. जैन विद्या एवम् तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन, एम.ए. प्राकृत, एम.ए. अहिंसा, शान्ति एवं सापेक्ष अर्थशास्त्र, एम.ए./एम.एस.सी. जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग, एम.ए. समाजकार्य, एम.ए. संस्कृत, एम.ए. शिक्षा, एम.एड., एम.ए. इंगलिश स्नातक पाठ्यक्रम (केवल महिलाओं के लिए) : बी.ए., बी.काम., बी.एड. प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम-प्राकृत, स्किल्स इन इंगलिश, जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग, कम्प्यूटर, जैन विद्या, समाज कार्य, अहिंसा एवं शांति। विदेशी विद्यार्थियों के आकर्षण का केन्द्र- चूंकि प्राच्य विद्याओं का यह एक अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र है। इसलिए प्राच्यविद्याओं विशेषकर जैन विद्या के अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए विभिन्न देशों के छात्र समय-समय पर यहां आते रहते हैं। लगभग ७०००० पुस्तकों एवं ६००० दुर्लभ पाण्डुलिपियों से युक्त विश्वविद्यालय की समृद्ध लाइब्रेरी वर्धमान ग्रन्थागार का लाभ विदेशी छात्र वर्षों से उठा रहे हैं। यह ग्रन्थागार प्राच्यविद्याओं के अनुसंधान में रत छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो रहा है। रूस, अमेरिका, चीन, जापान, यूक्रेन आदि के लोग यहाँ आकर प्रेक्षाध्यान के विविध शिविरों में भाग लेकर शाान्ति एवं सौहार्द की अनुभूति का, विश्वविद्यालय की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। सुविधाएँ- महिला एवं पुरुष छात्रावास की पृथक-पृथक उत्तम व्यवस्था है। जरूरतमन्द मेधावी छात्रों को आकर्षक छात्रवृत्ति का प्रावधान है। नेट एवं जे.आर.एफ. की नि:शुल्क कोचिंग की व्यवस्था का लाभ उठाकर प्रतिवर्ष अधिक संख्या में विद्यार्थी नेट, जे.आर.एफ. उत्तीर्ण कर रहे हैं। अंग्रेजी प्रमाण पत्र एवं कम्प्यूटर प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम के माध्यम से सभी विद्यार्थियों को अपनी-अपनी क्षमताओं का विकास कर, समय के साथ चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। दूरस्थ शिक्षा-यहाँ का पत्राचार पाठ्यक्रम अत्यन्त उपयोगी है। लाडनूँ में स्थित यह विश्वविद्यालय पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से न केवल देश के कोने-कोने के विद्यार्थियों को आकर्षित कर रहा है अपितु लंदन एवं न्यूजर्सी (अमेरिका) केन्द्र से विदेशी छात्र भी अध्ययन कर, परीक्षा दे रहे हैं। विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों की लगभग २५० साधु-साध्वियां प्रतिवर्ष पत्राचार पाठ्यक्रम का लाभ उठाकर बी.ए. एवं एम.ए. कर रहे हैं। पत्राचार पाठ्यक्रम इस प्रकार है- स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम – एम.ए. जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन, एम.ए./एमएस-सी. जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग, एम.ए. हिन्दी, एम.ए. शिक्षा। स्नातक पाठ्यक्रम- बी.लिब.आई.एस.सी,, बी.ए., बी.काम., अतिरिक्त विषय से बी.ए., बी.पी.पी. प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम – अहिंसा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम , जैन धर्म तथा दर्शन, प्राकृत, ज्योतिष विज्ञान, जैन एस्थेटिक्स एण्ड आर्ट, ह्यूमन राइट्स एवं अण्डर स्टेंडिंग रिलिजन। अस्तु सेवा, संस्कार निर्माण, संस्कृति उन्नयन, उत्तम शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि से यह एक अद्वितीय विश्वविद्यालय है।
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