जोश और जज्बे का नाम है बुद्धि प्रकाश दायमा
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बुद्धि प्रकाश दायमा
महनसर निवासी-वापी प्रवासी
जोश और जज्बे का नाम है बुद्धि प्रकाश दायमा (The Name Of Passion is Buddhi Prakash Dayma in Hindi)
वापी: झुंझुनू जिले के ‘महनसर’ गांव में १ अक्टूबर १९६१ को दधीचि ब्राह्मण परिवार श्री केशर देव जी दायमा के यहाँ
पांचवीं सन्तान के रूप में बुद्धि प्रकाश दायमा ‘बी. के. दायमा’ का जन्म हुआ। यथा नाम तथा गुण को साकार करते
हुये, सदा अपनी कक्षा में अव्वल रह कर, श्री बुद्धि प्रकाश ने दसवीं तक की पढ़ाई गांव के ही सेठ दौलत राम नोपानी
माध्यमिक विद्यालय से पूरी की।
बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा में संस्कारित होकर, आप पढ़ाई के साथ-साथ नेतृत्व क्षमता, राष्ट्र
प्रेम, भाषण, कला व सेवा कार्य जैसे गुणों को भी आत्मसात करते गये, इसके बाद आगे के अध्ययन के लिये समीप के
ही शिक्षा की काशी कहे जाने वाले रामगढ़ (शेखावाटी) के प्रसिद्ध सेठ राम नारायण रुईया राजकीय महाविद्यालय में
प्रवेश लिया।
यहाँ भी पढ़ाई के साथ-साथ, सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता का खूब परचम फहराया। प्रथम वर्ष में ही छात्र संसद के
महासचिव चुने गए, इसके अलावा महाविद्यालय योजना मंच के अध्यक्ष के रुप में भी आपका कार्यकाल बड़ा प्रभावी
रहा। एन. सी. सी. की ‘सी' सर्टिफिकेट परीक्षा आपने सीनियर अंडर ऑफिसर की रैंक के साथ उत्तीर्ण की। आपने
कॉलेज बटालियन के कैडेटस की चुरू से चंडीगढ़ की १४५० किमी की साहसिक साइकिल यात्रा का भी सफल नेतृत्व
किया।
इसी दौरान आप ‘महनसर’ के नवरत्न व बिरला ग्रुप की इण्डियन समेल्टिंग एंड रिफाइनिंग लि. मुंबई स्थित भांडुप
के अध्यक्ष श्री सांवरमल खेतान के सम्पर्क में आये। उन्होंने आपकी प्रतिभा व नेतृत्व क्षमता को पहचान कर शिक्षा
पूरी करने के बाद मुंबई आने की सलाह दी। उनकी प्रेरणा अनुसार, बी.कॉम. के बाद मुंबई को कर्मक्षेत्र बना कर बिड़ला
ग्रुप से अपने कैरियर की शुरुवात की, उसके बाद निरन्तर प्रगति पथ पर चलते हुए ३० वर्ष पूर्व उद्योग नगरी ‘वापी’
को स्थायी ठिकाना बनाया। वर्तमान में आप यहाँ के गायत्री शक्ति पेपर मिल समूह में, ग्रुप प्रेसिडेंट के पद पर
कार्यरत हैं।
आपके पद चिन्हों पर चलते हुए, आपके बड़े बेटे हेमन्त ‘वापी’ में ही स्वयं की पैकेजिंग यूनिट का संचालन कर रहे हैं।
छोटे बेटे रौनक पेशे से चार्टर्ड एकाउन्टेंट है व परिवार की व्यापारिक-सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बी. के. दायमा जी का जीवन समाज सेवा को भी समर्पित रहा है।
वापी-दमण-सिलवासा के राजस्थानी समाज के साथ आपका गहरा जुड़ाव है। यहाँ के समाज का मुख्य संगठन
‘राजस्थान प्रगति मंडल’ के आप संस्थापक ट्रस्टी है व वापी में स्थित भव्य राजस्थान भवन के निर्माण में आपका
उल्लेखनीय योगदान रहा है, इसके अलावा आप श्री सदगुरू धाम बरुमाल के प्रवक्ता, सरीगाम इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
वेलफेयर कमेटी चेयरमैन, वापी रेलवे स्टेशन सलाहकार समिति सदस्य, वापी शहर भाजपा के उपाध्यक्ष, हिंदी
दैनिक राजस्थान पत्रिका के पत्रकार की जिम्मेदारी भी वर्षों से बाखुबी निभा रहे हैं। आपकी धर्मपत्नी स्व.मंजू दायमा भी वापी की प्रखर समाज सेविका थी, जिन्हें वर्ष २,००० में वापी नगर पालिका में समाज की प्रथम पार्षद निर्वाचित
होने का गौरव प्राप्त हुआ था, जिनकी पुण्य तिथि पर समाज द्वारा गत १३ वर्षों से लगातार राजस्थान भवन में
विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है, उनके द्वारा शुरू किये गये सेवा यज्ञ को जारी रखने के लिये
आपके परिवार द्वारा ‘मंजू दायमा मेमोरियल ट्रस्ट’ स्थापित किया गया है, जिसके द्वारा मंजू दायमा संस्कार
विद्यापीठ सहित महिला कल्याण के कई कार्यो का संचालन किया जाता है।
कर्मभूमि वापी (गुजरात) में स्थायी होने के बावजूद आपका जन्म-भूमि महनसर से भी पुरा लगाव बना हुआ है।
अपनी माताजी गंगा देवी को जीवन की प्रेरणा मानते हुए आपने वहां गंगा विद्यापीठ शिक्षण संस्थान की स्थापना की
है जो आज माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत होकर क्षेत्र के बालकों को स्तरीय शिक्षा प्रदान कर रहा है, इसके
अलावा आप ‘महनसर’ में संचालित श्री गोपाल गौशाला के संस्थापक ट्रस्टी व संचालक मंडल के मुख्य स्तंभ हैं।
गांव में अन्य आधारभूत सेवाएं उपलब्ध करवाने में आप सदा प्रयत्नशील व सहभागी रहते हैं। शेखावाटी के
साहित्यकार, कवि, पत्रकारिता के प्रबुद्धजनों को सम्मानित करने के लिये भी आपके गंगा विद्यापीठ ट्रस्ट द्वारा श्री
भँवर लाल जोशी स्मृति सम्मान शुरू किया गया है, जिससे अभी तक पं श्री ताऊ शेखावाटी, डॉ. श्री गंगा प्रसाद शास्त्री,
डॉ. श्री उदयवीर शर्मा, श्री हरीश हिंदुस्तानी जैसी हस्तियों को सम्मानित किया जा चुका है।
जन्मभूमि ‘महनसर’ के युवा अपनी प्रतिभा को सँवारकर यहाँ के गौरवशाली इतिहास में नया इतिहास लिखते रहें,
यही आपका सपना है और इसी के लिये बिना कोई प्रचार के आप लगातार कार्य करते रहते है, आपका मानना है
‘पसीने की स्याही से जो लिखते हैं मुक़द्दर, उनकी तकदीर के पन्ने कभी कोरे नहीं रहते’ यही आपकी सफलता का
राज है।