माहेश्वरियों का अति पवित्र दिन महेश नवमी
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माहेश्वरियों का अति पवित्र दिन महेश नवमी (Mahesh Navami the most holy day of Maheshwaris in Hindi)
माहेश्वरियों का अति पवित्र दिन महेश नवमी (Mahesh Navami the most holy day of Maheshwaris in Hindi) : भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां विभिन्न धर्म, जाति और समुदाय के भिन्न-भिन्न रिति-रिवाज व अनुष्ठान
मौजूद हैं। इन्हीं समुदायों में से एक समुदाय है महेश्वरी समाज, जिस तरह प्रत्येक समुदाय के अपने अनुष्ठान और
त्यौहार होते हैं वैसे ही महेश्वरी समुदाय का भी अपना अनुष्ठान है, जिसे ‘महेश नवमी’ कहते हैं। यह समुदाय देश के
उत्तरी हिस्से में अधिक प्रचलित है और हर साल महेश्वरी समाज महेश नवमी उत्साह और हर्ष के साथ मनाता है।
हालांकि यह समुदाय छोटा है लेकिन फिर भी पूरे देश में फैला हुआ है। महेश नवमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्यैष्ठ
माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है, इस बार महेश नवमी १९ जून को मनाई जाएगी। यह त्यौहार मुख्य
रूप से भगवान शिव के भक्तों द्वारा मनाया जाता है। भगवान शिव के कई नाम है कोई उन्हें महादेव तो कोई भोले
भंडारी, तो कोई त्रिनेत्र कहता है। शिव के लोकप्रिय नामों में से एक नाम ‘महेश’ है। यह नाम भगवान शिव की ओर
अत्याधिक भक्ति का प्रतीक है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन वह अपने भक्तों के सामने पहली बार दिखाई
दिए थे। भगवान शिव के वरदान स्वरूप महेश्वरी समाज की उत्पत्ति मानी गई है, इनका उत्पत्ति दिवस ज्येष्ठ शुक्ल
नवमी है, जो महेश नवमी के रूप में मनाई जाती है। माना जाता है कि महेश स्वरूप में आराध्य भगवान ‘शिव' पृथ्वी
से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं।
महेश नवमी का महत्व: महेश नवमी मनाने के पीछे कई कहानियां छिपी है। खांडेलसेन नाम का एक राजा था,
जिसको पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने भगवान शिव की पूर्ण समर्पण और भक्ति के साथ पूजा की, जिसके बाद
भगवान ने उसे सुजानसेन नामक बेटा होने का आशिर्वाद दिया, बाद में वह राज्य का राजा बन गया। धार्मिक ग्रंथों के
अनुसार महेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक दिन जब इनके वंशज शिकार पर थे तो इनके शिकार
कार्यविधि से ऋषियों के यज्ञ में विघ्न उत्पन्न हो गया, जिस कारण ऋषियों ने इन लोगों को श्राप दे दिया था कि
तुम्हारे वंश का पतन हो जायेगा, महेश्वरी समाज श्राप के कारण ग्रसित हो गया, किन्तु ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की
नवमी के दिन भगवान शिव जी की कृपा से उन्हें श्राप से मुक्ति मिली तथा शिव जी ने इस समाज को अपना नाम
दिया, इसलिए इस दिन से यह समाज ‘महेश्वरी’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव जी की आज्ञानुसार महेश्वरी
समाज ने क्षत्रिय कर्म को छोड़कर वैश्य कर्म को अपना लिया, अतः आज भी महेश्वरी समाज वैश्य रूप में पहचाने
जाते हैं।
महेश नवमी का जश्न: महेश नवमी मुख्य रूप से हिंदुओं का त्यौहार है और देश के कई हिस्सों के साथ विशेष रूप से
राजस्थान में मनाया जाता है। देश के सभी हिस्सों में भक्त इस दिन भगवान महेश और देवी पार्वती की पूजा करते
हैं। मंदिर फूलों से सजाए जाते हैं और पूरे स्थान को पवित्र किया जाता है। इस दिन नए विवाहित जोड़ों से विशेष रूप
से खुशी और सद्भावना के साथ अपने जीवन में नया चरण शुरू करने के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा
करने के लिए कहा जाता है।
महेश नवमी के अनुष्ठान: महेश नवमी पर रात भर विभिन्न यज्ञों और मंत्रों का उच्चारण किया जाता हैं। भगवान
शिव की विशेष झांकी निकाली जाती है, भगवान महेश से प्रार्थनाएं की जाती हैं। उनकी कहानियां और प्रशंसा सुनाई जाती है। भगवान महेश का अभिषेक किया जाता है और शिव-पार्वती को इस दिन मंदिरों में सुंदर ढंग से सजाया जाता
है। भजन संध्या मंदिर परिसर में होती है और आखिर में सभी भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं। लोग इस उत्सव को
भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रति अत्याधिक समर्पण, प्रेम और विश्वास के साथ मनाते हैं। एक विशेष धारणा है
कि इस दिन जो महिलाएं बच्चे की इच्छा रखती हैं तथा शिव से इस दिन विशेष प्रार्थनाएं करतीं हैं उन्हें भगवान शिव
आशीर्वाद देते हैं, उनकी हर इच्छा पूरी करते हैं। केवल मंदिरों में ही इस दिन यज्ञ और प्रार्थना नहीं की जाती अपितु
लोग अपने-अपने घरों में भी महेश-पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही शिव-पार्वती से सुखी जीवन की
प्रार्थनाएं भी करते हैं।