माता-पिता और बच्चों का संबंध
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विश्व खेल न्यूज द्वारा कराटे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे स्कूली लड़के, साहसी लड़कियों तथा कराटे सिखाने वाले कोचों तथा कराटे खेल प्रतियोगिता में विश्व खेल दिवस के उपलक्ष पर बच्चों द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों हेतु प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अंतरराष्ट्रीय व अनेकों राष्ट्रीय राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित वरिष्ठ समाजसेवी व लेखक शरद गोपीदासजी बागड़ी, भाजपा उत्तर नागपुर अध्यक्ष दिलीप गौर, डाँ. हिना ईकबाल, पुलिस कराटे प्रशिक्षक मौशमी गुप्ता, मोना रामानी के हाथों दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। मौहम्मद सलीम ने मुख्य अतिथि शरद बागडी का परिचय देते हुए बताया कि शरदजी को अपनी समाजसेवा व लेखन के लिए दो अंतरराष्ट्रीय, नौ राष्ट्रीय, २७ राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं तथा ११३ संस्थाओं द्वारा मुख्य अतिथि के रूप में बुलाकर सम्मानित किया गया है। मुख्य अतिथि शरदजी ने अपना मनोगत व्यक्त करते हुए कहा कि हर माता-पिता ने अपने बच्चों की रुचि पहचान कर बच्चों का हौसला बढाना चाहिए, हर बच्चे, व्यक्ति में कुछ ना कुछ विशेष गुण, रुचि होती है तथा हर माता पिता को अपने बच्चों के अंदर की प्रतिभा को समझना जरूरी है। माता-पिता ने अपनी अधुरी इच्छाओं को बच्चों पर नहीं थोपना चाहिए। आज के दौर मे बच्चों के नाजुक मन पर इतना तनाव, टारगेट डाल दिया जाता हैं कि बचपन खत्म हो जाता है। बच्चों को पढाई के साथ खेलकुद में भी भाग लेना जरुरी है। दिलीप गौर ने बच्चों को नियमित कसरत, व्यायाम करने की सलाह देते हुए सक्त हिदायत दी कि बड़े होकर मातापिता का अहसान कभी नहीं भुलना व माता-पिता को कभी अकेले नहीं छोड़ना।
बच्चों के साथ पत्रकारिता तथा समाज में अच्छे कार्य कर रहे लोगों का भी सत्कार किया गया, जिसमें भारती शरदजी बागडी का इस अवसर पर पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह देकर विशेष सम्मान किया गया। पत्रकारिता के साथ दुर्बल, जरूरतमंद तथा शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर रहीं समाज सेविका प्रीति दास को मुख्य अतिथि शरदजी, मोना रामानी के हाथों समाज रत्न देकर सम्मानित किया गया, इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में समाज सेविका मोना रामानी, डाँ. हिना ईकबाल, महिला पुलिस कराटे कोच मौशमी गुप्ता, दिलीप गौर, वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत पात्रीकर उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन विश्व खेल न्यूज के संचालक इकबाल सादिक, कमल नामपल्लीवार, विनोद गुप्ता, श्याम पांडे, अनवर अली, प्राजक्ता चक्रवर्ती ने किया व प्रस्ताविका इरफान खान, मंच संचालन मौहम्मद सलीम तथा आभार प्रदर्शन अनस कुरैशी ने माना।
नवलगढ़ नागरिक संघ का होली स्नेह सम्मेलन संपन

नवलगढ़ नागरिक संघ का होली के अवसर पर भव्य रंगारंग कार्यक्रम मलाड स्थित, बजाज हाल में संपन्न हुआ, कार्यक्रम में नवलगढ़ के प्रवासी मुंबई वासियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम में राजस्थान की सांस्कृतिक छटा लिए हुए गीतों का भव्य प्रोग्राम हुआ।
कार्यक्रम के आयोजन में श्रीमती शारदा बूबना, दीनदयाल मुरारका, विनोद पोद्दार का विशेष सहयोग था। बनवारीलाल झुनझुनवाला, सुनील जीवराजका, कैलाश परशुरामपुरिया, प्रमोद बगडिया, कमल पोद्दार, सुनील परसरामपुरिया, राजेंद्र तुलसियान, श्रीराम शर्मा, बजरंग लाल गोयंका, जयप्रकाश जोशी, परमेश्वर तुलसियान, महेंद्र सोमानी, विजय अग्रवाल, आशा पोद्दार, गोपीकृष्ण बूबना आदि की विशेष उपस्थिति रही, सभी लोगों ने ढप केताल पर सांस्कृतिक गीतों का आनंद लिया। कार्यक्रम का संचालन राजेश मंडलोई ने किया। विदित हो कि नवलगढ़ नागरिक संघ, नवलगढ़ में शिक्षा एवं मेडिकल क्षेत्र में हमेशा सेवा कार्य करती रहती है।
- दीनदयाल मुरारका
ॐ नमः शिवाय ‘राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन’ की प्रेरणादायी पहल!

भारत के सभी राज्यों में राजस्थान का अपना विशिष्ट महत्व है जैसा कि हम सब जानते हैं कि सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, राजस्थान – आदि नामों के द्वारा इन राज्यों की खूबियों को सहजता से समझा जा सकता है वीरों, शूरों, धीरों, सन्तों, भक्तों, कलाकारों, विद्वानों तथा कवियों की यह धरती सदा आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायिनी रही है, इसी कड़ी में वर्ष २०१९ के ७, ८ और ९ फरवरी को जयपुर में सम्पन्न ‘राष्ट्रिय संस्कृत सम्मलेन’ सभी संस्कृतानुरागियों और संस्कृत-विद्या के समुपासकों के लिए स्फूर्तिदायी रहा, आशा की जा सकती है कि सुख्यात संस्कृत-समाराधक पंडित मोतीलाल जोशी जी की पुण्यस्मृति में सर्वतोभावेन उनके सुपुत्र डॉ. राजकुमार जोशी द्वारा की गई, इस पहल से राजस्थान में पिछले कई वर्षों से मन्दगति से चल रहे संस्कृत-कार्यों को अवश्यमेव गति, संगति और प्रगति मिलेगी।
देखते हैं इस सम्मेलन का आँखों देखा हाल जी…!
किसी भी गम्भीर आयोजन के लिए यह कह देना कि सम्मेलन बहुत अच्छा था, ठीक-ठीक था या चलो हो गया आदि सामान्य प्रतिक्रियाएँ तो मिलती रहती हैं, लेकिन मैं पूरी प्रामाणिकता और सत्यानुभूति के साथ कहना चाहूँगा कि वास्तव में यह संस्कृत सम्मेलन अनुपम था और उत्साह से भरा हुआ था, इसके लिए संस्कृत-प्रेमियों की ओर से श्रीराजकुमार जोशी जी को हार्दिक अभिनन्दन और खूब-खूब बधाई। परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि उनको स्वस्थता-पूर्ण दीर्घायुष्य मिले और इसी प्रकार से संस्कृत-संस्कृति के कार्य करते रहें, इस बहु-आयामी सम्मेलन के अनेक पक्ष हैं जिनकी हम क्रमशः समीक्षा करने का प्रयास करते हैं, हमारे सभी मंगल-कार्य वैदिक-अनुष्ठान के साथ आरम्भ होते हैं।
७-फरवरी’१९ को प्रात: इस महनीय उपक्रम के लिए वैदिक-यज्ञ के शुभारम्भ के साथ जयपुर में एक या दो दिन पहले पहुँचे विद्वत्व प्रतिनिधि, स्थानीय सहभागियों और ‘राजस्थान शिक्षक प्रशिक्षण विद्यापीठ’के अध्यापकविद्यार्थि यों के साथ कार्यक्रम-स्थल पर आना शुरू हुए। प्रातःकालीन स्वल्पाहार के बाद सभी प्रतिभागी सभास्थल में इकठ्ठे हुए, जहाँ पर सम्मेलन के पहले प्रकल्प के रूप में ‘राष्ट्रिय संस्कृत पत्रकार सम्मेलन’ का आयोजन पूर्व संकल्पित था, देश के विभिन्न भागों से पधारे, ‘भारतीय संस्कृत-पत्रकार संघ’ के आमन्त्रित संस्कृत-पत्रकार मञ्च पर विद्यमान थे। ‘भारतीय संस्कृत-पत्रकार संघ’ के संस्थापक, ‘शारदा’-सम्पादक एवं वरिष्ठ संस्कृत-पत्रकार पण्डित श्रीवसन्त-राव गाडगिल एवं सुख्यात संस्कृत-कवि तथा संघ के प्रवर्तमान अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. रमाकान्त शुक्ल जी की उपस्थिति में यह संस्कृत पत्रकार सम्मेलन का शुभारम्भ हुआ, पत्रकार संघ के महासचिव डॉ. बलदेवानन्द सागर ने अध्यक्ष की अनुमति से मंच-संचालन का दायित्व सम्भालते हुए, इस महत्त्वपूर्ण और बहुप्रतीक्षित राष्ट्रिय संस्कृत पत्रकार सम्मेलन के जयपुर-सत्र का श्रीगणेश किया।
मंच पर स्थित, भुवनेश्वर, उडीशा से आये, ‘लोकभाषा प्रचार समिति’ के महासचिव डॉ.सदानन्द दीक्षित ने अपने प्रास्ताविक अभिभाषण में राष्ट्रिय-स्तर पर, ‘लोकभाषा प्रचार समिति’ द्वारा किये जानेवाले कार्यों का उल्लेख किया और विस्तार से बताया कि संस्कृत पत्रकारिता की सक्रिय गति के लिए वरिष्ठ संस्कृत-पत्रकारों को मिलकर आगे आने की आवश्यकता है।
कोज़ीकोड, केरल से आयी, मासिक-संस्कृत पत्रिका ‘रसना’ की सम्पादिका डॉ. श्यामला कृष्णश्री ने संस्कृत-मासिक के प्रकाशन की आधारभूत कठिनाइयों का उल्लेख करते हुए इस मिशनरी कार्य के लिए अधिक समर्पण और निष्ठा की ज़रूरत की बात कही। डॉ. श्यामला कृष्णश्री ने यह भी बताया कि केरल में यद्यपि संस्कृतविद्या के लिए अभी परिवेश उतना अनुकूल नहीं है फिर भी सभी संस्कृत शिक्षक और संस्कृतानुरागी मिलकर काम कर रहे हैं उन्होंने यह भी कहा कि पिछले चार-पाँच वर्षों में केरल के कुछ कलाकारों और चलचित्र-निर्देशकों ने मिल कर कई संस्कृत फीचर फिल्मों और थ्री-डी संस्कृत फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं, यह पदक्षेप अवश्यमेव संस्कृतविद्या और संस्कृत-पत्रकारिता के नवोन्मेष का प्रतीक है।
मैसूर, कर्णाटक से संस्कृत-दैनिक ‘सुधर्मा’ की सह-सम्पादिका श्रीमती जयलक्ष्मी ने अपने सम्बोधन में कहा कि किसी भी दैनिक-पत्र और ख़ासकर संस्कृत-दैनिक का निर्बाध प्रकाशन असिधारा-व्रत के समान है इस दैनिक को मेरे ससुर आदरणीय कळाळेनडादुर वरदराज अयंगार ने १९७० में शुरु किया था, उनके दिवंगत होने के बाद, कुछ समय तक इसका प्रकाशन अवरुद्ध रहा और आर्थिक कमी के कारण भी बीच-बीच में कई तरह की बाधाएँ आती रहीं, लेकिन अयंगार-साहेब के इस शुभसंकल्प को पूरा करने तथा संस्कृत-पत्रकारिता की इस दीपशिखा को जलाए रखने के लिए मैं, मेरे पति श्रीसम्पत् कुमार और हमारा पूरा सहयोगी विद्वत्वृन्द कटिबद्ध है।
देहरादून, उत्तराखंड से पधारे ‘वाक’ साप्ताहिक-पत्रिका के संस्थापकसम्पादक विद्वान-पत्रकार डॉ.बुद्धदेव शर्मा ने उपस्थित युवा-श्रोताओं को प्रेरित किया कि आनेवाली पीढ़ी को समुन्नत तकनीकी ज्ञान का लाभ लेकर संस्कृत-पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करना चाहिए, वैसे आज की युवा-पीढ़ी बहुत ही प्रबुद्ध है और वह ये कार्य पहले से ही कर रही है लेकिन इसके लिए और अधिक समर्पण तथा समझ अपेक्षित है।
दैनिक ई-संस्कृतपत्र ‘सम्प्रति वार्ताः’ के सम्पादक अयम्पुषा हरिकुमार, जो कालडी, केरल से आये थे, ने अपने संक्षिप्त सम्बोधन में बताया कि पिछले कुछ वर्षों से केरल में संस्कृत-पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत वेग से कार्य हो रहे हैं ‘सम्प्रति वार्ता:’ के माध्यम से होने वाले कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि केरल में छोटे-छोटे बच्चों और विद्यार्थियों को दृश्यवाहिनी के द्वारा संस्कृत-समाचारों के प्रसारण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, यह कार्य बहुत ही श्रमसाध्य है, जिसके लिए संस्कृत के उत्साही स्वयंसेवकों की महती आवश्यकता है, इस महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला में अभी तक सौ अंक प्रकाशित किये जा चुके हैं जो कि अब यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। नागपुर, महाराष्ट्र से पधारे, साप्ताहिक ‘संस्कृतभवितव्यम’ के प्रकाशक डॉ.चन्द्रगुप्त वर्णेकर ‘संस्कृत पत्रकारिता विशेषांक’ के रूप में ‘संस्कृतभवितव्यम’ का संस्करण मुद्रित करके साथ लाये थे जिसमें उनका विशेष लेख ‘सठणकयुगे संस्कृतपत्रकारिता!’ उल्लेखनीय रहा इस लेख में डॉ.वर्णेकर ने संस्कृतपत्रकारिता के विभिन्न आयामों का वर्णन किया, मंच से उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने अपने पिता सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ.श्रीधर भास्कर वर्णेकर जी को याद किया और कहा कि आज से ६६ वर्ष पहले उनके द्वारा संस्थापित-सम्पादित यह साप्ताहिक संस्कृत-पत्र ‘संस्कृत-भवितव्यम’ विद्वद्-वृन्द में बहुत लोकप्रिय है। ‘संस्कृत भाषा प्रचारि-सभा’ का यह मुखपत्र अधुनातन सूचना-तकनीकी के उपयोग के साथ ‘संस्कृतविद्या’ के यथार्थ गौरव को प्रतिष्ठापित करने के लिए सर्वात्मना कार्यरत है।
द्वारिका, गुजरात से आये प्रो. जयप्रकाश नारायण द्विवेदी ने संस्कृतपत्रकारिता के समृद्ध इतिहास को बताते हुए, इसके विकास और शिक्षाप्रद स्वरूप के संवर्धन के लिए आह्वान किया। द्वारिका संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष और सुख्यात विद्वान, प्रो.द्विवेदी ने द्वारिका और गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में किये जाने वाले संस्कृतविद्या और संस्कृत-पत्रकारिता के विभिन्न कार्यों का उल्लेख करते हुए बताया कि आज की पीढ़ी के बहुत सारे युवा अनुसन्धाता जैसी विधा में अनुसन्धान कर रहे हैं – ये बहुत प्रसन्नता की बात है।
इस अवसर पर राजस्थान संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्षा डॉ.सुषमा संघवी ने सभा को सम्बोधित करते हुए संस्कृत के बहु-आयामी प्रसार-प्रचार के लिए आज की सक्षम युवापीढ़ी को आह्वान किया और सूचना-तकनीकी के प्रयोग के साथ कटिबद्ध होकर कार्य करने की प्रेरणा दी। डॉ.सुषमा संघवी ने ये भी कहा कि राजस्थान में वर्षों से चली आ रही संस्कृत-विद्या की समृद्ध परम्परा की धरोहर को संजोये रखने लिए युवाओं को परिनिष्ठित भाव से कार्य करना होगा, जिसको अब आधुनिक प्रौद्योगिकी ने और आसान कर दिया है।
दिल्ली से आये, संस्कृत-पाक्षिक ‘संस्कृत-संवाद’ के प्रकाशक-प्रबन्धक श्रीवेद शर्मा ने संस्कृत-पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि संस्कृत-पत्र पत्रिकाओं के ग्राहक-पाठक की संख्या में बढ़ोत्तरी होने से इनको आर्थिक संरक्षण भी मिलेगा और वर्षों से उपेक्षित-सी यह विधा अवश्य ही विकसित और संवर्धित होगी।
सत्राध्यक्ष के सम्बोधन से पहले,‘भारतीय संस्कृत-पत्रकार संघ’ के संस्थापक, ‘शारदा’-सम्पादक एवं वरिष्ठ संस्कृत-पत्रकार पण्डित श्रीवसन्त-राव गाड्गिल ने सुमधुर कण्ठ से अपनी रचना ‘प्रवहतात् संस्कृत-मन्दाकिनी’ का गान किया और सब से करवाया। संक्षिप्त सम्बोधन में गाडगिल जी ने अपनी सुदीर्घ संस्कृत-पत्रकारिता की यात्रा का उल्लेख किया और कहा कि अब समय और अधिक अनुकूल बन पड़ा है, युवाओं को इस क्षेत्र में, संस्कृतपत्रकारिता के बहुमुखी आयामों पर काम करने के अवसर उपलब्ध हैं, जैसे कि संस्कृत की छोटी-छोटी एनिमेशन फिल्मों का निर्माण, स्वयं सरल संस्कृत में विविध-विषयों पर आलेखन, विविध प्रकार के सॉफ्टवेयर की सहायता से संस्कृत के पोस्टर और व्यंग्यात्मक चित्रों की रचना वगैरह।
अध्यक्षीय भाषण में सुख्यात संस्कृत-कवि तथा भा.सं.प.संघ के प्रवर्तमान अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. रमाकान्त शुल्क ने उपस्थित सभी संस्कृत-पत्रकारों और सभासदों को साधुवाद देते हुए कहा कि आज हमको आदरणीय पण्डित श्रीमोतीलाल जोशी की स्मृति भावविह्वल कर रही है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल में संस्कृत-विद्या और भारत की सांस्कृतिक परम्पराओं के संरक्षण तथा सम्वर्धन के लिए ‘राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मलेन’ की स्थापना की, जो विगत ७० वर्षों से विभिन्न गतिविधियों में संलग्न होकर संस्कृत-सेवा कर रही है, यह सम्मेलन-संस्थान,राजस्थान में अनेक उच्च शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और निर्माण में राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजकर एवं सहयोग देकर संस्कृत के वेगवान् विकास का साक्षी रहा है साथ ही, गुजरात और मध्यप्रदेश में स्वतन्त्र संस्कृत विश्वविद्यालयों की स्थापना में भी अपनी प्रमुख भूमिका का निर्वाहक रहा है, इस समग्र आयोजन के निमित्तमात्र और अभिनायक डॉ.राजकुमार जोशी की कर्मयोग की भूमिका का अभिनन्दन करते हुए आचार्य शुक्ल जी ने कहा कि मेरे सम्पादकत्व में पिछले चार दशकों से त्रैमासिक पत्रिका ‘अर्वाचीन-संस्कृतम’ का प्रकाशन हो रहा है, यद्यपि व्यावसायिक-दृष्टि से संस्कृत-पत्रकारिता तो ‘घर फूंक, तमाशा देख’ वाली कहावत को चरितार्थ करती है, लेकिन हम तो दीवाने हैं और इस मार्ग पर सर्व-समर्पण के साथ आगे बढ़ते हुए ऋषिऋण से उऋण होने की साधना अन्तिम साँस तक करते रहेंगे, देश के विभिन्न भागों से आये सभी संस्कृतपत्र्ाकारों को धन्यवाद देते हुए डॉ. शुक्ल ने कहा कि यह सम्मलेन तो शुरूआत है समय-समय पर अन्य राज्यों में भी संस्कृत-सम्मेलन आयोजित होने चाहिए, हिमाचल प्रदेश ने संस्कृत को अपनी दूसरी राजभाषा घोषित किया है इस बात पर राज्य सरकार को धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक राज्य में संस्कृत को दूसरी राजभाषा बनाना और अन्ततोगत्वा संस्कृत को भारत की राष्ट्रभाषा बनाना हमारा लक्ष्य है यह लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब हम सभी संस्कृतानुरागी वैचारिक और मानसिक स्तर पर एक होकर काम करें। आशा करता हूँ –‘राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मलेन’ का यह बहु-आयामी सम्मेलन इस दिशा में प्रेरणादायक सिद्ध होगा।
जयतु भारतम् ,जयतु संस्कृतम!! जयतु राजस्थानम!!!
-डॉ.बलदेवानन्द सागर दूरभाष: -९८१०५६२२७७ अणुडाक - baldevanand.sagar@gmail.com
ऊँट मिठाई इस्तरी, सोनो गहणो साह! पाँच चीज पिरथी सिरे, वाह बीकाणा वाह!

हे बीकानेर तेरी धरती पर यहां के ऊंट (जो रेगिस्तान का जहाज तो है ही, यहां के ऊंटों की नस्ल भी श्रेष्ठ है, यहां की मिठाई का लाजबाब स्वाद, सुन्दर श्रृंगार की हुई स्त्रियां, यहां के सोने के आभूषण, यहां के साहूकार – ये पांच चीजें प्रसिद्ध हैं, इसलिये तेरी चारों ओर वाह-वाही हो रही है, इन पांच वस्तुओं की विशिष्टता के कारण बीकानेर अन्यान्य सभी नगरों में सिरमौर है, यहां के तथ्य विशेष रूप से प्रस्तुत करते हुए सोने की बहुमूल्यता गहणों (आभूषणों) रूप में उसकी बनावट – कारीगरी और उसके संग्राहक नगर श्रेष्ठियों का धनिक रूप भी विशेष तौर पर गिनवा दिया है, स्थापित कर दिया है। शब्द चयन की इस विशिष्ट शैली में चतुराई से जैसा कहा गया है उससे इन्कार करने की तो हिम्मत ही नहीं होती, क्योंकि यह क्रम तो वैसा ही है जैसे यह है तो वह है, वह दोनों ही है तो फिर सब कुछ है सर्वश्रेष्ठ है, यह तो नहीं मालूम कि इस दोहे की रचना कब और किसने की, लेकिन यह तो आज भी सुनिश्चित है कि बीकानेर नगर की ख्याति को प्रकट करने वाले इस दोहे में जो प्रशंसा की गई है वह आज भी अक्षरश: सत्य है, ये पांचों चीजें आज भी उसी प्रसिद्धि पर कायम है जब इस दोहे की रचना की गई थी, यदि यह कहा जाये कि नगर के श्रेष्ठि समुदाय में साहूकार उस काल से विशिष्ट है जिस समय राव बीका राज्य स्थापना के अपने अभियान पर अग्रसर थे, कहा जाता है कि सालोजी माहेश्वरी उस अभियान में उनके सहयोगी भी रहे, कालान्तर में ‘राव बीका द्वार’ राज्य व राजधानी नगर बीकानेर की स्थापना किये जाने के पश्चात सालोजी को राव बीका ने अपने राज्य में दीवान के पद पर नियुक्त किया। बीकानेर नगर में बसने के पश्चात उनके वंशज विशेषत: मोहता, दम्मानी, डागा, कोठारी, बागड़ी और द्वारकाणी भी समय समय पर बीकानेर राज्य में दीवान का पद सम्भालते रहे तथा अन्य प्रशासनिक पदों पर रहते हुए राज्य की सेवा की। सालोजी अपने साथ अपने ईष्ट देव की जो मूर्ति लेकर आये थे उसकी स्थापना उन्होंने एक मंदिर बनवा कर उन्हें इस मरु प्रदेश का संरक्षक देव घोषित मरुनायक भगवान के रूप में की, इसी क्रम में धार्मिक एवं सामाजिक हित के कार्य करने में माहेश्वरी परिवारों का सर्वाधिक योगदान रहा, नगर के विभिन्न इलाकों जैसे मोहता चौक, डागा चौक, दम्माणी चौक, बेगानियों का चौक, कोचरों, झवरों का चौक में बने इनके निवास, भवन इनकी सम्पन्नता और कला-अभिरुचि के कारण बीकानेरी भवन कला के श्रेष्ठ उदाहरण बने खड़े हैं। सम्पन्नता के इसी क्रम में माहेश्वरी श्रेष्ठिजनों के घर परिवार में स्वर्णाभूषणों की श्रृंखला भी विशिष्ट रही है, बीकानेरी बोरला (बोरिया) बड़ा और नगीनेदार, आज जिसे अनमोल कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि उस समय में एक श्रेष्ठि परिवार की स्त्री अगर दो से तीन किलो सोना अपने नख शिख के श्रृंगार में शामिल भी कर लेती तो आश्चर्य नहीं था, अत: यह भी कोई आश्चर्य नहीं कि इनकी बनावट भी कम आकर्षक न रही हो।
मनमोहन बागड़ी, मुंबई
श्री श्याम मंदिर आलमबाज़ार में खाटूधाम सा नजारा
भक्तों ने चढ़ाए निशान, मंदिर में लिफ्ट का हुआ उदघाटन, राजस्थान से आये कलाकारों ने प्रस्तुत की बाबा की धमाल, दिन भर चला भंडारा, दर्शन को उमड़ते रहे श्रद्धालु


कोलकाता : पूर्वी भारत,पश्चिम बंगाल में शस्य श्यामला बंग भूमि के पवित्र तीर्थस्थान दक्षिणेश्वर के निकट खाटूवाले श्याम प्रभु के पावन धाम श्री श्याम मंदिर आलमबाज़ार में तीन दिवसीय विराट सतरंगी फाल्गुन मेला बड़े ही हर्सोल्लाष के साथ संपन्न हुआ, हर साल की भांति इस साल भी खाटू नरेश का यह फाल्गुन मेला भक्तों के ह्रदय में अमिट छाप छोड़ गया, जो भक्त किसी कारणवश नहीं पहुंच सके उन्होंने न्यूज चैनल पर मेले के सीधे प्रसारण का लाभ उठाया, कुल मिलाकर देखा जाये तो पुरे फाल्गुन माह के आगाज से समापन तक हजारों की संख्या में इस पावन धरा पर विराजमान बाबा श्याम के भक्तों ने दर्शन किए, होली पर हुई साज-सज्जा ने भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया, प्रारम्भ में श्री गणेश सहित अन्य देवी-देवताओं की वंदना गाई गयी, उसके पश्चात प्रधान पाठ वाचक राजा अग्रवाल के नेतृत्व में श्याम बाबा की जीवन महिमा पर आधारित अनमोल रचना श्री श्याम अखण्ड ज्योति पाठ का गुणगान सुबह ११ बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि ८ बजे तक लगातार चलता रहा, जिसमें बिना किसी विराम के श्रद्धालु संगीत लहरी का आनंद लेते हुए पाठ के दौरान श्याम रंग में सराबोर दिखाई पड़े, कोलकाता के सुप्रसिद्ध कलाकारों द्वारा सम्पूर्ण पाठ में सजीव मंचन के माध्यम से नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गयी, जिसमें भीम अहिलवती का विवाह, खाटू श्याम जी का जन्म, श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक (खाटू नरेश) की परीक्षा, शीशदान आदि प्रसंग ने भक्तों का मन मोह लिया, दूसरी ओर मयूर नृत्य के साथ बाबा श्याम की मनुहार की गयी, पाठ प्रारम्भ होने के पश्चात श्याम बाबा के दर्शन करने वाले भक्तों के आवागमन का सिलसिला प्रारम्भ होकर देर रात्रि तक चलता रहा, दूसरी और पाठ प्रारम्भ होने के पश्चात श्याम बाबा के दर्शन करने वाले भक्तों के आवागमन का सिलसिला प्रारम्भ होकर देर रात्रि तक चलता रहा, दूसरी ओर फाल्गुन शुक्ल एकादशी के अवसर पर रात भर मंदिर खुले रहने से हजारों भक्तों ने सपरिवार तो कोई अपने बंधू-बांधवों
के साथ आते दिखाई पड़े, धार्मिक एवं सामाजिक सेवा कार्यों में विशिष्ट योगदान हेतु शरद केडिया एवं रामजीलाल अग्रवाल को परंपरागत तरीके से अभिनन्दन करते हुए समाज रत्न से अलंकृत किया गया, फाल्गुन शुक्ल द्वादसी के दिन मंदिर प्रांगण से लेकर पूरा आलमबाज़ार अंचल श्याम भक्तों के भारी आवागमन का आकर्षण बना रहा और यह नजारा कोलकाता में खाटूधाम मेले की रौनक भांति निरंतर बना रहा, प्रात: ६ बजे से मध्य रात्रि तक आस-पास की सभी सड़कों पर केवल श्याम बाबा के दीवाने ही श्री श्याम मंदिर आलमबाज़ार की ओर बाबा के दर्शन एवं बाबा को धोक लगाने हेतु नजर आये। मेले की प्रबंध व्यवस्था में स्थानीय बरानगर पुलिस का सराहनीय सहयोग रहा, स्वर्गीय हजारीमल दीवान की पुण्य स्मृति में सरस्वती देवी दीवान चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रदत दिव्यांग एवं बुजुर्गों हेतु लिफ्ट का उदघाटन मुरारीलाल दीवान के कर कमलों से हुआ, एक और जहाँ मंदिर स्थल में बाबा के दर्शन एवं धोक लगाने का सैलाब उमड़ना शुरू हुआ, वहीं दूसरी ओर प्रात: ८ बजे बनहुगली बीटी रोड से पैदल इच्छापूरण निशान यात्रा डनलप एवं विभिन्न मार्गों का परिभ्रमण करती हुई श्री श्याम मंदिर आलमबाज़ार पहुंची, जिसमें हजारों की संख्या में इस वर्ष भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, इस बार के फाल्गुन मेले का मुख्य आकर्षण ये रहा कि एक वर्ष के बच्चे ने भी बाबा को निशान चढ़ाकर अपने मीठे बोल से बाबा की जयकार लगाकर भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया, अनेक भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाने पर उन्होंने चाँदी क़े निशान भी बाबा को चढ़ाये, पूरा मंदिर प्रांगण व् आस-पास की सड़कें श्याम भक्तों से भरी नजर आयी, दिन भर चले भंडारे में हजारों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया, मेले के तीसरे दिन जयपुर से आये राजस्थानी ढप एवं धमाल के लिए प्रसिद्ध मनीष गर्ग के भजनों पर जमकर आनंद बरसा, वहीं स्थानीय गायकों में देवेंद्र बेगानी, बालकिशन शर्मा, गौरीशंकर अग्रवाल ने भी एक से बढ़कर एक भजनों की प्रस्तुति से उपस्थित भक्तों को श्याम रंग में सराबोर कर दिया। श्री श्याम परिवार गंगेज चिरंजीवी, श्री श्याम सेवा मंडल, श्री श्याम कला भवन, श्री सेवक मंडल बजरंगबली, श्री श्याम परिवार युवा बड़ाबाजार, श्री श्याम सेवा संघ हिन्दमोटर, श्री श्याम परिवार कैस्टोपुर, श्री श्याम सहारा परिवार, श्री श्याम बाजीगर मंडल, श्री श्याम मस्त मंडल, श्री श्याम कृपा मंडल बड़ाबाजार, श्री श्याम सरकार मंडल, श्री हनुमान मित्र संघ सेवा ट्रस्ट, श्री सावरिया भक्त वृन्द, श्री श्याम बाल मंडल गिरजा, श्री श्याम कला मंडल काशीपुर, श्री श्याम परिवार लिलुआ, श्री श्याम परिवार डनलप, श्री श्याम अखंड ज्योत मंडल बैरकपुर, श्री श्याम परिवार कमरहटी, नीमकाथाना अंचल नागरिक संघ, श्री श्याम मंदिर घुसुड़ीधाम, जगकल्याण के अलावा काफी संख्या में महानगर की भजन मंडलिया मौजूद थी, मंदिर परिवार की ओर से सभी का स्वागत अभिनन्दन किया गया, दमदम लोकसभा सांसद प्रोफेसर सौगत राय, योजना एवं संसदीय मंत्री तापस राय, पूर्व विधायक दिनेश बजाज, महाबीर प्रसाद अग्रवाल, बजरंग लाल अग्रवाल, अशोक मित्तल, प्रदीप संघई, प्रमोद धानुका, रामावतार किल्ला, श्रवण धानुका, राजेश सिन्हा, शांतिलाल जैन, नवल रूंगटा,देवेंद्र जाजोदिया, रामकिशन दिनोदिया, सुनील खेतान, पवन अग्रवाल, कैलाश डालमिया, नवल रूंगटा, घनश्याम मनिहार, संजय सुरेका, जुगलकिशोर जाजोदिया, रामअवतार पोद्दार, ओमप्रकाश पटवारी, महेश शर्मा, रामकिशन दिनोदिया, राजकुमार मनकसिया, संजय मनकसिया, अशोक अग्रवाल, घनश्याम सराफ, बनवारीलाल सोती, सुरेश अग्रवाल, भानीराम सुरेका, सुशील कुमार चौधरी, विश्वनाथ सुरेका, संतोष सिंघानिया, अशोक अग्रवाल, राहुल अग्रवाल, श्रवण कुमार धानुका, विजय शंकर अग्रवाल,अशोक शाह, संदीप पड़िया, महेंद्र गुप्ता, रामनरेश अग्रवाल, बिमल सदाका, किशन सुल्तानिया, प्रीतम जैन, पवन चौधरी, विश्वनाथ सिंघानिया, शंकर लाल हरलालका, संजय हरलालका, संजय अग्रवाल, के पी बिहानी सहित काफी संख्या में विशिष्ट अतिथिगण मौजूद थे, मेले में आये सभी भक्तों को वार्षिक पंचांग एवं सेवा साधना मासिक पत्रिका का नवीनतम फाल्गुन विशेषांक अंक सप्रेम वितरित किया गया, तीन दिवसीय सतरंगी फाल्गुन मेले को सफल बनाने में मेला कमिटी सदस्यों में बसंत कुमार अग्रवाल, विश्वनाथ दारुका,सांवरमल अग्रवाल, सुशील शाह, राजेश अग्रवाल, आत्माराम गाडिया, बालमुकुंद अग्रवाल, आशुतोष लड़िया, गोपाल जालान, हरिकिशन अग्रवाल, रामजीलाल अग्रवाल, बिमल अग्रवाल, अशोक अग्रवाल, राहुल चौधरी, कैलाश केडिया, राजा भावशिंगका, राकेश अग्रवाल, कैलाशचंद्र गुप्ता, मनोज बजाज, जितेंद्र आर्य, मुकेश अग्रवाल, श्याम अग्रवाल, प्रकाश अग्रवाल, आशीष शाह, पवन गुप्ता, बिहारीलाल अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, जितेंद्र राय, कमल डागा, राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, दिनेश कुमार गुप्ता, पवन अग्रवाल, विजय साव, सुखेन चक्रवर्ती, मनोज सिंह एवं अन्य की सराहनीय भूमिका रही, अध्यक्ष राजपाल गुप्ता ने मेला समापन के दौरान स्थानीय बरानगर पुलिस प्रशासन एवं पौरसभा के साथ-साथ इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी महानुभावों के प्रति आभार व्यक्त किया। नीमकाथाना अंचल नागरिक संघ द्वारा मेला समापन के दिन भी सभी श्रद्धालुओं के लिए बादाम सरबत एवं चाय की निशुल्क सेवा प्रदान की गई, मंदिर के प्रबंध न्यासी गोविन्द मुरारी अग्रवाल एवं गणेश अग्रवाल ने मेले को सम्बोधित करते हुए बताया की मंदिर में प्रथम तल का कार्य पूर्णता की ओर है और हाल ही में फाल्गुन शुक्ल बारस को दीवान परिवार द्वारा प्रदत्त लिफ्ट का भी उदघाटन संपन्न हुआ, अत: इसी वर्ष बाबा श्याम को स्थायी रूम से प्रथम तल पर निर्मित भव्य मंदिर में विधिवत पूजा एवं भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ विराजमान किया जायेगा।