एक और कदम अपनी ओर -सरोज राठी चैन्नई, तामिलनाडु, भारत

मैं सरोज राठी चेन्नई प्रवासी हूं। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका बहुत ही सशक्त साधन है, अपनी बात समाज तक पहुंचाने के लिए… मैं काफी दिनों से विचार कर रही थी एक बात समाज में पहुंचाने को, हमलोग सभी भारत के वासी सनातनी हैं। हमारी सभ्यता संस्कृति विरासत को हम अपने ही हाथों मसल देंगे तो कौन सम्भालने आएगा? इसी कड़ी में एक बात का विचार आ रहा है, हमारी मजबूत कड़ी हमारे त्योहार पर्व आदि हैं। सभी त्यौहार हमलोग धूमधाम से मनाते हैं। सारे त्यौहार हमलोग अपने महीनों की तिथियों के अनुसार ही मनाते हैं, साल के शुरुआत में एक सवाल हमारे मन में होता है, इस बार दिवाली कब है, होली कब है, वगैरह वगैरह दिवाली अक्टूबर में या नवंबर में जन्माष्टमी, रामनवमी कब? ऐसे सवालों का जवाब हमारे बड़े बुजुर्ग या पंडित बताते हैं पंचांग देखकर और तभी हमलोग मनाते हैं। सवाल यह है कि सब कुछ हम तिथियों के अनुसार ही करते हैं तो अपना जन्मदिन और विवाह का दिन अंग्रेजी तिथि के अनुसार क्यों याद रखते हैं? क्या आपने इस बारे में विचार किया है, हम ऐसा किसकी सुविधा के लिए कर रहे हैं? क्या हमें अपने विवाह की तिथि याद नहीं रहती, किसी भी मंदिर में पूजा अर्चना से पहले आपका नाम गोत्र राशि पूछते हैं, हम सब याद भी रखते हैं, तो फिर जन्मतिथि को क्यों नहीं याद रख सकते? मेरे पति का जन्मदिन ९ जनवरी का है, उसी दिन ग्यारस थी, हमने उस दिन फलाहार का प्रसाद सबको दिया। शाम को हमारे शास्त्रीजी को फोन किया, आशीर्वाद के लिए, उनको मैंने बताया कि मैंने ग्यारस होने के कारण फलाहार बनाया, उन्होंने पूछा जन्मदिन ग्यारस का नहीं है क्या? मैंने कहा नहीं, उन्होंने जो कहा वह समझने की बात है, इसी बात से मुझे यह लेख लिखने की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा जब आप जन्में उस वक्त जो घड़ी मुहूर्त नक्षत्र ग्रह आदि थे, वो आपके अनुकूल थे, आप उस सारे सुयोग से धरती पर आए हो, हर साल वो तिथि नक्षत्र आता है, आपको आशीर्वाद देने के लिए, पर आप तो उस घड़ी का आशीर्वाद लेते ही नहीं, वो सब बेकार चला जाता है जैसे नल तो खुला है पर आपने बाल्टी नल के नीचे रखी ही नहीं। हमारे विवाह का दिन हमारे मां बाप ने पता नहीं कितनी ही जुगत से शुभ मुहूर्त निकाला होगा, पर हमें तो कोई कद्र ही नहीं। हममें से कई का विवाह आखा तीज, बसंत पंचमी, आडूलो नवमी, जानकी नवमी आदि शुभ मुहूर्त में हुआ है, पर हम तो मॉडर्न अंग्रेजी तारीख का इंतजार कर रहे होते हैं। मां-बाप को पिछड़ा साबित करने में एवं अपने आपको मॉडर्न साबित करने में हम क्या खो रहे हैं, जब समझ आएगी तो देर हो सकती है। मेरा जन्म चौथ का है। मैं मां को अंग्रेजी तिथि से फोन करती हूं प्रणाम के लिए तो मां नाराज हो जाती है। एक ही बात कहती है। इतने शुभदिन तेरा जन्मदिन है, उसी दिन को याद रखा कर, बहुत बार आपने देखा होगा कि नक्षत्रों का योग सही नहीं है, तो विवाह की तिथि नहीं निकलती, यहां तक सगाई छोड़नी पड़ती है। जन्माष्टमी बिना रोहिणी नक्षत्र आये नहीं मनाई जाती हजारों सालों से चला आ रहा है। मरने वालों की भी तिथि याद रखते हैं। मेरा विश्वस्तरीय ऐतिहासिक पत्रिका ‘मेरा राजस्थान’ सभी प्रबृद्ध पाठकों से निवेदन है कि कृपया अपना जन्मदिन, विवाह का दिन अपने पंचांग के अनुसार ही मनाएं, बच्चों को भी यही सिखायें, साल की शुरुवात में जब पंचांग आता है उसी दिन उसमें टिक लगा दें, बच्चों को बता दें। आप अगले ही साल से पायेगें, बच्चे जन्माष्टमी, रामनवमी को अंग्रेजी तारीख आपसे पूछते हैं, उसी तरह अपने जन्मदिन और विवाह की तारीख पूछेंगे, क्या ही सुखद अनुभव होगा। उस क्षण का इंतजार करें कि आपके पोता-पोती पूछें: दादी मां मेरा जन्मदिन कब है, आपकी बहू पूछे माजी इस बार हमारी शादी की सालगिरह कब है?
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