स्वाभिभक्त ‘‘पन्ना धरा’’

‘‘पन्ना धरा’’

पन्ना धाय आमेट ठिकाने के कमेरी गांव की गुजर्र जाति की महिला थी। रानी कर्मवती ने जौहर से पूर्व कूँवर उदय को पन्ना को सौंपा था। एक दिन मौका पाकर दृष्ट बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर, सांगा के वंश को निर्मूल करने के उद्देश से उदय की हत्या हेतू नंगी तलवार लेकर पन्ना धाय के पास पहुँचा।परिस्थिति की गंभीरता देख पन्ना धाय ने उदय की हम अपने पुत्र चन्दन को उदय के कपड़े पहनाकर कटवा दिया। मेवाड़ के राजवंश को सुरक्षित रखने के लिए पन्ना ने अपने पुत्र की बलि दे दी। उदयसिंह को पत्तों की टोकरी में छिपाकर गुप्त द्वार से राजमहल से निकाल दिया। अपने लाल की हत्या होते देख भी अपने मुंह से आह तक नहीं निकली।
राष्ट्रभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण विश्व इतिहास में कहीं भी नहीं मिलता है। धन्य है पन्ना धाय, धन्य मेवाड़ भूमि, धन्य है आमेट।

पन्ना का त्याग मष्तिस्क पर जैसे गतिमान पुंगी पाषाण गिरा, कपाल से द्रवित रक्त भभक उठा, साहस की अग्नि सिमट गयी कागजी पन्नो में, काल चीखा चन्दन की देह लेके! ममतामयी दर्द दबा ह्रदय की ओट में, पन्ना प्रवीण स्वामिभक्ति में, चली अपने नंदन को काल को सौंपने, देख महाकाल के चक्षुओं से रुधिर टपक पड़ा! इतिहास की किताबों में तेरे आंसूओ का जिक्र नहीं, तू कैसी माँ थी जिसको अपने बच्चे की फ़िक्र नहीं! अंकित हुआ स्वर्ण अक्षर में तेरा नाम,तू सर पटक रोई थी, चन्दन सा बेटा खोकर कैसी स्वामिभक्ति निभाई थी! पन्ना का परचम सर्वोपरि विजयस्तम्भ की ऊंचाई पे, पन्ना के हृदय का रुदन सिसकता सूरजकुंड की गहराई में! मेवाड़ धरा की गौरव गाथा स्वामिभक्त पन्ना ने आत्मज त्याग से दोहराई, चन्दन का बलिदान था एक धाय माँ के अन्त:करण की अटूट गहराई!

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