उदासर में देवस्थान ( God place in Udasar in hindi )
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उदासर में देवस्थान
ठाकुरजी का मंदिर धार्मिक श्रद्धा एवं आस्था के प्रतीक इस मंदिर का निर्माण उदासर गाँव के ठा. इन्द्रभाण के
वंशज ठा. मानसिंह के पुत्र क्रमश ठा. नत्थूसिंह, चांदसिंह के वंश में ठा. नत्थूसिंह के दत्तक पुत्र कुंवर खुमाणसिंह
पड़िहार द्वारा विक्रमी सम्वत् १९४५ फाल्गुन शुक्ल तृतीया वार सोमवार को कराया गया। निर्माण-कार्य पूरा होने
पर इसी दिन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करवा कर ब्रह्मभोज का आयोजन किया गया, इस ब्रह्मभोज में ब्राह्मणों
के साथ-साथ ही पूरे ‘उदासर’ गाँव को भोजन के लिए बड़े ही आदर से निमंत्रण दिया गया था।
इसी वंशवृक्ष में ठा. बालजी पड़िहार की जोड़ायत पार्वती कंवर ने इस ठाकुरजी के मंदिर की सार-संभाल एवं पूजा-
अर्चना सही ढंग से निर्विघ्न रूप से चलती रहे, इसके लिए तत्कालीन उदासर गाँव के रूगदास स्वामी को इस
मंदिर का पुजारी नियुक्त कर ५० बीघा कृषिभूमि संकल्प के साथ इस मंदिर के नाम पर दान में दी गई। वर्तमान
में इस मंदिर का पुजारी रूगदास स्वामी के वंश का ही कालूराम स्वामी है।
किसी शादी-विवाह आदि शुभ-कार्य एवं होली-दीवाली आदि त्यौहारों पर ‘उदासर’ ग्रामवासी बड़े ही श्रद्धा से धोक
लगाने आते हैं एवं कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाते है।
श्री राम मंदिर (खाखीजी कुएं के पास) कुछ ही वर्षों पूर्व इस मंदिर का निर्माण एवं मूर्तियों की विधि-विधान से प्राण
प्रतिष्ठा जाजड़ा ब्राह्मणों की ‘धर्मशाला ट्रस्ट गाँव उदासर’ द्वारा करवाया गया।
पड़िहारों की कुलदेवी गाजण माता चौपड़ों का मोहल्ला में काफी समय पूर्व इस मंदिर के इर्द-गिर्द पड़िहार राजपूतों
के घर आबाद थे, जिनमें ज्यादातर मेहरासर गाँव वाले एवं बेरासर गाँव के पड़िहार थे। उस समय यह स्थान
पड़िहारों का मोहल्ला नाम से जाना जाता था।
वर्तमान में इस मोहल्ले में पड़िहारों की कुळदेवी माँ गाजण का मंदिर है। वैसे तो इस गाँव के पड़िहारों द्वारा साल
में एक या दो बार माँ का जागरण लगाया जाता है, परंतु श्रावण शुक्ल सप्तमी को ‘उदासर’ गाँव के पड़िहार
परिवारों द्वारा अवश्य ही जागरण लगाया जाता है, क्योंकि श्रावण शुक्ल सप्तमी माँ गाजण की पूजा-अर्चना का
विशेष दिन है। श्रावण मास के अलावा भी हर माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भी माँ का जागरण लगाया जा
सकता है।
विगत कुछ समय से सुबह-शाम माँ गाजण की पूजा-अर्चना ‘उदासर’ गाँव के ऊदादास स्वामी के परिवार द्वारा
की जा रही है।
बायाँजी का देवालय सीनियर सेकण्डरी स्कूल के पास वर्तमान में यह देवालय एक चौकी (चबूतरा) के रूप में ग्राम
पंचायत उदासर के प्लॉट नम्बर १३४ के पूर्व में स्थित है। यह स्थान विशेषकर आम वर्गों की औरतों के लिए गहरी
आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र है।
भोमिया महाराज का थान गाँव के बीच वाले कुएं के पास पड़िहार भोमियों की देवलियां एक कतार में लगी हुई हैं।
वैसे तो यह भोमियों का थान पूरे गाँव की आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र है, परन्तु विशेषकर किसी भी शादी-विवाह
एवं खुशी के मौके पर पड़िहार सरदार इनकी पूजा-अर्चना बहुत ही आस्था एवं श्रद्धा से करते हैं। नव वर-वधू
सर्वप्रथम यहां पर गठजोड़े की जात देने आते हैं।
रूपनाथजी का आश्रम एवं खाखीबाबा का धूणा वि. सं. १३४० के लगभग लोकदेवता पाबूजी राठौड़ के बड़े भ्राता
बूड़ोजी राठौड़ के पुत्र झरड़ोजी ने नाथ सम्प्रदाय में सम्मिलित होकर श्री गुरू गोरखनाथ को अपना गुरू धारण
करते हुए अपना नाम रूपनाथ रख लिया था, परन्तु उदासर गाँव में पेमासर रोड स्थित ‘रूपनाथ जी का आश्रम
एवं खाखीबाबा का धूणा का उपरोक्त विवरण से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। यद्यपि दोनों का नाम रूपनाथ है
एवं दोनों ही गुरू गोरखनाथ के शिष्य हैं फिर भी घटनाक्रम भिन्न-भिन्न है।
उदासर गाँव स्थित ‘रूपनाथजी का आश्रम एवं खाखीबाबा का धूणा का संक्षिप्त इतिहास निम्न प्रकार से है।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी ‘उदासर’ गाँव के वयोवृद्ध बुजुर्गों से सुनने में आता है कि वि. सं. १८३८ के लगभग उदासर गाँव में
नाथ सम्प्रदाय का एक रूपनाथ नाम का जोगी अपनी कुछ गायें लेकर आया तथा सांवतसी पुत्र बगतसी पड़िहार
के घर अन्न-जल करने के उपरान्त अपनी प्यासी गायों को जल पिलाने गाँव के कुएं पर लेकर गया, परन्तु कुआं
जोतने वालों ने गायों को जल पिलाने से मना कर दिया तो जोगी ने वहीं समाधिस्थ होकर पता नहीं किस का नाम
जप किया कि थोड़ी-सी देर में ही घनघोर वर्षा होकर गाँव में जगह-जगह पानी ठहर गया। गायों ने जल पीकर
अपनी प्यास बुझाई।
यही जोगी ‘खाखीबाबा’ के नाम से भी जाना जाता है। वि. सं. १८३८ में इसी जोगी ने उदासर गाँव में अपने निजी
खर्च से कुएं का निर्माण कराया। इस दो-तीणी कुएं की एक तीण ठा. सावंतसी पड़िहार को सुपुर्द करके हिदायत दी
कि कोई भी राहगीर, बटाऊ, पशु-पक्षी आदि इस कुएं पर आकर प्यासा नहीं जाए। अगर यहां से कोई प्यासा जाए
तो मेरी गद्दी को बट्टा लगे। यहां का आश्रम आदि को इसी जोगी ने निर्माण करवाया। वर्तमान में यह कुआं तो
उपयोग में नहीं लिया जाता, परंतु यह स्थान रूपनाथ का आश्रम एवं खाखीबाबा का धूणा नाम से दूर-दूर तक
प्रसिद्ध है। खाखीबाबा के कुएं का शिलालेख, जो वर्तमान में रूपनाथ जी आश्रम में प्रतिष्ठित है, इस शिलालेख में
स्पष्ट उल्लेख पढ़ने को मिलता है कि इस जोगी ने कुएं व्ाâी एक ‘तीण’ ठा. सांवतसी को सुपुर्द की थी।
लोकदेवता पाबूजी राठौड़ का मंदिर गाँव के बीच कुएं के पास, अगूणा बास में यह पुरातन मंदिर स्थापित है, जो पूरे
ग्रामवासियों की आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र है। नायक जाति के लोगों में पाबूजी महाराज के प्रति अपार श्रद्धा है।
लोकदेवता गोगाजी चौहान की मेड़ी नायकों का मोहल्ला में लोकदेवता गोगाजी चौहान की मेड़ी पर उदासर
ग्रामवासियों से सामूहिक चन्दा एकत्र करके नायक जाति के लोगों द्वारा हर साल जागरण लगाया जाता है।
सुबह-शाम इस मेड़ी पर पूजा-अर्चना एवं धूप-दीप खेताराम पुत्र अकूड़ाराम नायक बहुत ही श्रद्धा एवं भक्तिभाव
से करता है।
तोलियासर भैरूंजी का मंदिर ‘उदासर’ बिजलीघर के पीछे यह गाँव का बहुत प्राचीन मंदिर है। पहले-पहल इस
स्थान पर एक चौकी पर भैरूंजी महाराज की मूर्ति विराजमान थी।
सन् २०१२ में श्री नवरतनजी पुत्र श्री चुन्नीलालजी सेठिया ने इस मंदिर का से जीर्णोद्धार करवाया।
वैसे तो स्थायी तौर पर इस मंदिर का कोई पुजारी नियुक्त नहीं है, परंतु अपनी आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा से
नारायणसिंह पुत्र भैरूंदानसिंह ‘रावल’ हाल निवासी गाँव उदासर विगत ३० वर्षों से सुबह-शाम इस मंदिर में धूप
दीप आदि करते आ रहे हैं।
लोकदेवता पाबूजी राठौड़ का मंदिर आथूणा बास ग्रामवासियों की आस्था का केन्द्र, यह एक पुरातन मंदिर है।
साल में कम से कम एक बार यहां भी जागरण लगता है।
करणी माता का मंदिर पंचायत रोड पर काफी वर्षों पूर्व एक कच्ची चौकी पर करणी माता की मूर्ति थी, जो कि
भूतपूर्व सरपंच श्री विक्रमसिंह ने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करायी।
लोकदेवता हरिरामजी का मंदिर ‘उदासर’ से सागर गाँव के रास्ते पर झोटड़ा गाँव के हरिराम बाबा को बीकानेर
अंचल के साथ-साथ चारों दिशाओं में लगने वाले क्षेत्र में लोग दूर-दूर तक लोकदेवता के रूप में पूजा-अर्चना करते
हैं। ‘उदासर’ ग्रामवासियों के लिए भी यह एक आस्था एवं विश्वास का केन्द्र है।
लोकदेवता बाबा रामदेवजी का मंदिर गाँव के बीच, कुएं के पास, अगूणा बास में यह एक पुरातन मंदिर है, जो कि
पूरे गाँव एवं सब वर्णों के लिए आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र है।
शीतलामाता का मंदिर राजकीय सीनियर सेकण्डरी स्कूल परिसर में शीतलामाता की पूजा का दिन चैत्र कृष्ण
सप्तमी को माना जाता है। यह दिन बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र कृष्ण छठ की शाम को भोजन
बनाया जाता है और अगले दिन शीतला सप्तमी को बासी भोजन ही ग्रहण करते हैं। इस प्रकार आम आदमी को
यह सन्देश दिया जाता है कि गरमी, दिन-प्रतिदिन उग्रता से बढ़नी शुरू हो गई है सो आज के बाद ‘बासी’ भोजन
ग्रहण करना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। अत बासोड़ा से हमें यह संदेश भी मिलता है कि सुबह-शाम
दोनों समय ताजा भोजन बना कर खाओ, जब तक कि वापस शीतकाल न आ जावे।
लोकदेवता बाबा रामदेवजी का मंदिर ग्राम पंचायत रोड पर इस मंदिर की स्थापना रामलालजी पुत्र बनेचन्द
सेठिया ने की, जो बाबा रामदेवजी का अनन्य भक्त थे। आगे चल कर इस मंदिर का जीर्णोद्धार रामलालजी के
पुत्र मोहनलाल सेठिया ने करवाया। कुछ वर्षों के पश्चात् इस मंदिर का पुन जीर्णोद्धार मोहनलाल सेठिया के पुत्रों
क्रमश माणकचन्दजी, मोतीलालजी एवं ओमप्रकाशजी द्वारा करवाया गया।
स्व. मोहनलालजी सेठिया की बाबा रामदेवजी के प्रति अनन्य भक्ति एवं समर्पण भावना के अनुसार विगत कई
वर्षों से साल में दो बार जुम्मा (जागरण) लगाया जाता है एवं मंदिर में नित्य पूजा-पाठ एवं धूप-दीप बड़ी ही श्रद्धा
के साथ किया जाता है।
इस मंदिर से सम्बन्धित सारा खर्चा स्व. मोहनलालजी सेठिया के वंशजों द्वारा वहन किया जा रहा है।
जैन सुपार्श्वनाथ का मंदिर उदासर के पुराने बस स्टेण्ड के पास इस मंदिर का निर्माण लालचन्दजी पारख ने वि.सं.
१९३१ में करवाया था अपना पुराना निजी मकान राजकीय प्राथमिक विद्यालय के संचालन हेतु दान में दे दिया
था। इसी पाठशाला के पास में एक धर्मशाला का निर्माण भी करवाया गया। यह जानकारी मौखिक रूप से
चुन्नीलाल पुत्र ताराचन्द सेठिया द्वारा प्राप्त हुई है।
करणी माताजी का मंदिर पेमासर रोड, खाखीबाबा कुएं के पास स्व. धूड़मलजी पुत्र किशनलालजी सेठिया ने
‘उदासर’ गाँव में निजी आवास हेतु अपने मकान के निर्माण से पूर्व विक्रमी सम्वत् १९९७ चैत्र शुक्ल १ को इस
मंदिर का निर्माण करवा कर विधि-विधान से करणी माता की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। वर्तमान में स्व.
शेरमलजी एवं धर्मचन्दजी सेठिया के वंशज इस मंदिर में पूजा-पाठ तथा देखरेख कर रहे हैं।
वर्ष में एक बार आश्विन शुक्ल १ को इस मंदिर में शारदीय नवरात्रि उत्सव उपरोक्त सेठिया वंशजों द्वारा बड़े ही
धूमधाम से मनाया जाता है एवं बहुत ही श्रद्धा एवं आस्था के साथ प्रसाद वितरण किया जाता है।
श्री नखतबनासा धाम पेमासर गाँव जाने वाली रोड पर क्षत्रिय वंश की सौलंकी खांप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी सिद्ध पुरूष
होते आये हैं। इसी वंश के नखत बनासा का यह पुराना धाम है। इस धाम की स्थापना हेतु स्वेच्छा से एक बीघा
कृषि भूमि कालूराम पुत्र रामूराम जाति नायक निवासी गाँव ‘उदासर’ (बीकानेर) के चार पुत्रों क्रमश उमाराम,
भींवाराम, जेठाराम एवं ऊदाराम ने इस नखतबनासा धाम के अधीन छोड़ दी तथा उपरोक्त नायक परिवार द्वारा
ही इस धाम का निर्माण किया गया, जो इस परिवार का निजी धाम है, परंतु अन्य किसी भी श्रद्धालु के लिए भी
पूजा-अर्चना करने में किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। इस धाम की पूजा-अर्चना शुरूआत से ही जेठाराम
नायक निवासी ‘उदासर’ करता आ रहा है। हर शुक्ल पक्ष की पंचमी को इस धाम पर जागरण लगते हैं, परंतु
भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की पंचमी को वर्ष में एक बार बड़ा जागरण भी धूमधाम से लगता है।