अनन्त चतुर्दशी का व्रत
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अनन्त भगवान् का स्मरण करता हुआ वह पूजा की तैयारी करे। आँगन में बेदी बनाकर उसे गोबर से लीपे और उसके उपर रखकर अष्टदल लिखे अगर बेदी नहीं बनावें तो पाटिया काम में लेवें। अष्टदल पर सोना, चाँदी, ताँबा अथवा मिट्टी की स्थापना करें, उसके पास कच्चे सूत का, १४ तार का, १४ गाँठों का डोरा रखें। भ में आम, अशोक, गूलर, पीपल और बड़ के पत्ते रखें, फिर शुद्ध आसन पर बैठकर तीन आचमन करें। प्रणायाम करके यह संकल्प करें कि ‘मैं अपने कुटुम्ब तथा अपने कल्याण, आरोग्य, आयु और चतुर्विध पुरूषार्थ की सिद्धि के लिए भगवान् अनन्त का व्रत व पूजन करूँगा।’ संकल्प करने के पश्चात् जल छोड़ दें। ‘‘कलशस्य मुखे, सर्वेदमुद्रा: वसंति’ ऐसा कह कर कलश में जल छान कर डालें और सर्वोषधि, पुष्प, चन्दन तथा अक्षतादि से वरूणदेव की पूजा करें फिर शंख और घण्टा का पूजन करें और मंत्रपूर्वक अपना आसन करें। सूर्य की पूजा करने के पश्चात्, गोबर की बनाई गई यमुना की पूजा कर उसका ध्यान करें। विधि-विधान : अनन्त चतुदर्शी के पहले दिन त्रयोदशी को जल्दी उठकर विधिपूर्वक स्नान करें और ब्रह्मचर्य रखें, उस दिन एक समय भोजन करें, पितरों का दर्पण करें और फिर वेदी के पास बैठकर संकल्प करें। गणपतिपूजन और स्वस्ति-वाचन करने के पश्चात् आचार्य का वरण करें। पूजा में १४ ऋत्विजों और उनके सहायकों का वरण करें, उन्हें अलंकार और पात्र अर्पण करें, फिर ‘‘सर्वतोभद्र’’ नामक मण्डल बनावें। ब्रह्मा आदि देवताओं की भी इस व्रत में स्थापना करें। बीच में ध्यान रखकर सोना-चाँदी,ताँबा अथवा मिट्टी के स्थापना करें, उसके जल में गन्ध और अशोक के पत्ते डालें और सोने की टिकड़ी और तथा पंचरत्न भी उसमें रखें, के उपर लाल रंग के दो कपड़े लपेटकर बाँस, ताँबा, पीतल की कोई भी एक छाब उस पर रखें, उसमें चावल भरें और फिर उस पर अनन्त भगवान् की स्थापना करें, चाँदी का साँप भी उसमें अवश्य रखा जाना चाहिए फिर आह्वान, ध्यान, पाद्य, अध्र्य आदि से उसकी पूजा करें तथा पंचामृत से उसे स्नान करावें, उन्हें दो अर्पण करें और गन्धपुष्पादि से उसका पूजन करें फिर नैवैद्य चढ़ावें और तत्पश्चात् पुष्प, गन्ध और अक्षत हाथ में लेकर, नीचे लिखे हुए नाम बोलकर उसकी पूजा करें। नमस्कारपूर्वक मंत्र बोलकर, उनके अनुसार ही निम्नलिखित कर्मकाण्ड अवश्य करने चाहिए जो इस प्रकार है अनन्ताय नम: पादौ पूजयामि (पैरों पर चढ़ावें) संकर्षणाय नम: (पैरों की गिरियाँ पर चढ़ावें) कालात्मने नम: (घुटनों पर), विश्वरूपिणे नम: (जांघों पर) विश्वरूपाय नम: (कमर पर), विश्वाक्षिणे नम: (गुह्यप्रदेश पर) पद्यनाभाय नम: (नाभि पर), परमात्मने नम: (हृदय पर) श्री कण्ठनाथाय नम: (कण्ठ पर), सर्वाध्धारिणे नम: (भुजा पर) वाचस्पते नम: (मुखपर), कपिलाय नम: (आँखों पर) केशवाय नम: (ललाट पर), सर्वात्मने नम: (सिर पर) इस तरह पूजा कर, त्रयोदशी की रात को जागरण करें तथा भजन-कीर्तन करते हुए पुराणों का