दधीचि तीर्थ नेमिषारण्य नव निर्माण के लिये पधारें
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नैमिषारण्य महर्षि दधीचि की तपस्थली रही, शिव के परम भक्त दधीचि यहाँ दधिचेश्वर महादेव की नित्य पूजा करते थे, यहीं पर वृत्रासुर को मारने के लिए इन्द्र को वज्र बनाने हेतु अस्थिदान दिया गया था, समस्त तीर्थों के स्नान, दर्शन की इच्छा को पूरा करने के लिए इन्द्र ने सभी तीर्थों को यहां आमंत्रित किया, इसीलिये यह स्थान ‘मिश्रित तीर्थ’ कहलाता है, यहीं पर दधीचि ने अश्विनीकुमारों को मधु विद्या का ज्ञान दिया था, यहीं पर महर्षि पत्नी सुवर्चा (वेदवती) ने पिप्पलाद को गर्भ से निकालकर महर्षि दधीचि के शरीर के साथ आत्मोसर्ग किया था तथा माँ दधिमथी ने बालक पिप्पलाद का लालन-पालन भी यहीं किया था। हम दाधीचों ने गोठ मांगलोद स्थित दधिमथी मंदिर का जीर्णोद्धार करने की भरपूर कोशिश की है क्या हमारा दायित्व हमारे पितृपुरुष महर्षि दधीचि के आश्रम (मिश्रित तीर्थ) के विकास व उत्थान के लिए नहीं बनता, इस दिशा में १३-९-१३ से इन्दौर से ‘दाधीच सोश्यल गु्रप’ ने प्रतिवर्ष यहाँ महर्षि दधीचि जयंती पर्व मनाना शुरू किया। द्वितीय जयंती के अवसर पर पधारे परमपूज्य गोविंददेवगिरिजी कार्य करने का निर्देश देते हुए इस तीर्थ के सर्वांगीण विकास में गति प्रदान करने के लिए श्रीमद् भागवतम् कथा की अनुमति दी। विगत् पांच वर्षों में इस तीर्थ में बहुत कार्य होने लगे, जिसमें दाधीच बंधुओं के साथ राज्य व केन्द्र सरकार का भी सहयोग मिला, यहाँ की सांसद डॉ. अंजुबाला तथा विधायक श्री रामकृष्ण भार्गव इस तीर्थ को