दीपोत्सव
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पर्व, उत्सव, त्यौहार आदि मनुष्य के जीवन में मनोरंजन, उल्लास व आमोद-प्रमोद के लिये बहुत अनिवार्य है, इस उद्देश्य से हमारी भारतीय संस्कृति में समय-समय पर पर्व, उत्सव व त्यौहार मनाने की परम्परा है, प्रत्येक त्यौहार के पीछे धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रिय व वैज्ञानिक कारण भी है। आई जगमग दिव्य दीपावली मंगलमय दीप जलाये जा हो घट-घट अन्तर उजियारा निज आनन्द रस छलकाये जा जो धर्म का, अपने कर्तव्य का पालन धैर्य से करते हैं, कभी विचलित नहीं होते, उनके यहाँ ही लक्ष्मी निवास करती है। आनन्द, उल्लास, प्रसन्नता, प्रेम बढ़ाने वाला पर्व है दिवाली। भारतीय संस्कृति के इस प्रकाशमय पर्व पर आप सभी को खूब-खूब बधाईयाँ व शुभकामनाएँ। पर्वउत्सव एवम् व्रत भारतीय संस्कृति के आध्यामिक उन्नति के सशक्त साधन है। दु:ख, भय, शोक, मोह एवम् अज्ञान की आत्यन्तिक निवृत्ति और अखण्ड आनन्द की प्राप्ति ही इन व्रत-पर्वोत्सवों का लक्ष्य है। भारत एक विशाल देश है यहाँ विभिन्न जातियाँ, समुदाय तथा भाषा-भाषी लोग एवम् विभिन्न धर्मों को मानने वाले निवास करते हैं, इनके रहन-सहन, खान-पान, रीति रिवाजों आदि में थोड़ी बहुत भिन्नताएँ हैं लेकिन मूल रुप से हिन्दु संस्कृति एकरुपता इनमें समाविष्ठ है, यहाँ अनेकता में एकता है, विभिन्न भाषाओं की विविधता है कुछ पर्व-उत्सव ऐसे हैं जिनको एक साथ सभी लोग, अपने-अपने ढंग से मनाते हैं, उसी में से एक पर्व है ‘दीपावली’ हिन्दु संस्कृति प्रकाश की इच्छा रखने वाली एवम् अन्धकार में विश्व को मार्ग दिखाने वाली है, अमावस्या के अन्धकार की दीपों के प्रकाश से नष्ट करने वाला दिपोत्सव, भारत का सबसे प्रमुख पर्व है। दीपावली का पावन पर्व प्रकाश, प्रसन्नता एवम् प्रभुकृपा का प्रदाता बनें, यही ‘मेरा राजस्थान’ परिवार की माँ-लक्ष्मी से प्रार्थना है। नूतन वर्ष में आय, सुख समृद्धि एवम् भक्ति के आप अधिकारी बनें, दीपावली आती ही रहे, दीप जलते ही रहें, हम में राम-राम जपते रहें। तमसो मा ज्योतिर्गमय-अपने जीवन में सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, शुभकर्मों का ऐसा पावन दीप जलावें, जिसके प्रकाश से आपका, आपके परिवार का, आपके समाज का तथा आपके राष्ट्र की सम्पूर्णता का पथ आलोकित होवे। एक दीप से सहस्त्र दीप जगमगा उठे कोटि कण्ठ स्वर में मातृगान गा उठे बंदे देव भूमि, बन्दे मातृ-भूमि बन्दे भरत भूमि, बन्दे हिन्द भूमि दीपावली के सम्बन्ध में विभिन्न विचार निम्न प्रकार हैं:- ह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का, लंका पर विजय कर, आयोध्या लौट आने की खुशी में स्वयं स्पूर्त होकर, अवध के लोगों ने दीपमालिका जलाई ह आसुरी शक्तियों का मुकाबला व विजय का
- भगवान महावीर का व्यक्तित्व विराट था, विराट व्यक्तित्व का स्वामी ही
‘महावीर’ कहलाने का अधिकारी है, भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के
रुप में मनाया जाता है पर्व ‘दीपावली’
- स्वामी दयानन्द सरस्वती थे जिन्होंने दीपावली के दिन अपना शरीर छोड़ा। स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन अपना शरीर धारण किया। दीपावली के दिन समुद्र मन्थन के दौरान देवी महालक्ष्मी का प्राक्ट््य हुआ और देवताओं ने उन्हें विष्णु पत्नी स्वीकार कर उनका विवाह कराया। कार्तिक अमावस्या वाले दिन भगवान विष्णु ने वामन-अवतार लेकर, राजा बलि से दान में तीन पग भूमि माँगी और विराट रुप का दर्शन दिया। दीपावली के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध किया और उसकी वैद से सौलह हजार एक सौ राजकुमारियों को आजाद कराया। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ और प्रजा ने खुशी में घी के दीपक जलाये। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर का निर्माण भी दिवाली के दिन से शुरु हुआ। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दृष्टियों में बहुत महत्व है। दीपावली के दिन धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का पूजन का विधान। ब्रह्मपुराण में लिखा है कि कार्तिक अमावस्या को अर्धरात्री के समय लक्ष्मी जी जिस-जिस घर में विचरण करती है और जिस घर में स्वच्छ शुद्ध और
सुशोभित रुप से दीपमालिका के साथ पूजन होता है लक्ष्मी प्रसन्न होती है और उस घर में निवास करती है। स्कन्दपुराण, तथा भविष्यपुराण आदि में दीपावली के सम्बन्ध में विभिन्न मान्यताएँ हैं। अन्तरात्मा से नारायण को प्रेम करने से महालक्ष्मी अपने आप प्रसन्न होकर आती हैं क्योंकि वह नारायण की अर्धांगिनी है। दीपावली के इस राष्ट्रीय पर्व पर यदि हम स्नेह, भाईचारे का दीपक जलाकर ह्रदय को प्रकाशमान करें तभी सच्चे अर्थो में दीपावली मनाना सार्थक होगा। हमारे सभी पर्व, त्यौहार संस्कृति की जीवन प्रेरणा है, आज आवश्यकता है कि इन पर्वों का रक्षण पूरी तप्तरता व भारतीय संस्कृतिनुसार से किया जाये ताकि इनमें समयानुसार विकृतियाँ न आने पावे तथा इसका उद्देश्य व ज्ञान लुप्त ना हो।