धर्म और सेवा में समाज अग्र
by admin · Published · Updated
मुंबई:
भारत के समृद्धतम समुदायों में से एक अग्रवाल समाज की दानवीरता के चर्चे आपने अक्सर सुने होंगे, दान-धर्म के काम में हमेशा आगे रहने वाले इस समुदाय ने मुंबई आर्थिक योगदान को भी आगे बढ़ाने में अपना भरपूर योगदान दिया है। उद्योग-व्यापार से लेकर प्रशासनिक सेवाओं में भी परचम लहराने वाला यह समुदाय जहां भी रहता है, वहीं आस-पास में सेवा कार्यों के लिए जरूरतमंदों को भी खोज लेता है। धर्म में आस्था रखने वाले अग्रवाल समाज का मन सेवा कार्यों व अपने व्यापार से जुड़े कार्यों में रमता है। राजनीति से दूर रहने वाले इस समाज ने भारत के हर समाज के लिए भी तन, मन और धन के साथ लोगों के लिए सेवा कार्य किए हैं।
अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा का संक्षिप्त इतिहास
माहेश्वरी जाति का यह वृहद संगठन है, जिसकी शाखाएं न केवल भारत भर में फैली हैं, अपितु नेपाल, बांगलादेश, ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में भी है। माहेश्वरी समाज के साथ-साथ अन्य समाज की उन्नति करना, यह इस संगठन का उद्देश्य रहा है, यह संगठन समाज में समयानुकूल परिवर्तन का प्रयास करते हुए …. माहेश्वरी समाज राष्ट्र का प्रगतिशील अंग कैसा बनेगा इसकी ओर विशेष ध्यान देने की कोशीश करता आया है। सन्,१८९१ में अजमेर में स्व. श्री लोईवाल जी, किशनगढ़ के दीवान की अध्यक्षता में समाज संगठन की नींव रखी गई तथा माहेश्वरी महासभा की स्थापना हुई, हम सबके लिए यह गर्व की बात है कि माहेश्वरी समाज का यह संगठन सर्वप्रथम जातीय संगठन था, सभी के उद्देश्य के प्रचार के लिए ‘‘महेश्वरी” नामक पत्र निकाला गया, जिसकी प्रतियां देश भर में सभी माहेश्वरी सज्जनों को भेजी गई। मासिक रूप में ‘‘महेश्वरी” का प्रकाशन अजमेर से प्रारम्भ हुआ। सन् १८९२ में आगरा में ‘‘महेश्वरी” का प्रकाशन शुरू हुआ, लेकिन फिर यह प्रकाशन बंद हो गया और बाद में हापुड़ से इसका प्रकाशन शुरू हुआ, इस माहेश्वरी महासभा का द्वितीय अधिवेशन किशनगढ में तथा तृतीय अधिवेशन अजमेर में करने का निश्चय किया गया। १८९४ में माहेश्वरी महासभा द्वारा नियुक्त उपसभा के प्रयासों से सहारनपुर में श्रीनथमल जी मेहता (दीवान, जैसलमेर) की अध्यक्षता में प्रथम माहेश्वरी कॉन्फ्रेन्स हुई जिसमें १६ प्रस्ताव स्वीकृत हुए, उनमें निम्न प्रस्ताव प्रमुख थे :- १. पंजाबी, मारवाड़ी, जैसलमेरी, ढुढाढि, जयपुरी, बीकानेरी आदि सभी माहेश्वरी बंधुओं से आपस में प्रेम और विवाह सम्बन्ध करने का अनुरोध किया गया। २. विवाह तथा मृत्यु आदि अवसरों पर मर्यादा से ज्यादा खर्च करने पर निषेध किया गया। ३. कन्या के बदले में धन लेना निषेध माना गया। ४. गरीब माहेश्वरी भाईयों की सहायता करने का विचार किया गया। ५. अनाथ माहेश्वरियों की रक्षा के लिए अनाथालय, शिक्षा के लिए पाठशालाएं स्थापित करना तथा विधवा एवं अपाहिजों की सहायता करने की अपील की। ६. बाल विवाह को निषेध किया गया तथा विवाह के समय लड़की की आयु १४ तथा लड़के की आयु १८ वर्ष से कम न हो ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया। देश में माहेश्वरी समाज ही सबसे पहला समाज है जिसने बाल-विवाह को निषेध किया और ऐसा ही केन्द्रीय असेम्बली में दीवान बहादुर हरिविलास जी शारदा (अजमेर) द्वारा रखा गया जो ‘‘शारदा एक्ट” नाम से विख्यात है, यह एक्ट १९३० में पास हुआ, अर्थात् कानून बनने के पहले ‘‘माहेश्वरी महासभा ‘ समाज में इसका प्रचार कर चुकी थी। १८९५ में द्वितीय माहेश्वरी कॉन्फ्रेन्स मथुरा में आयोजित की गई, इसमें कन्या विक्रय की निंदा, बाल-विवाह का निषेध,वृद्ध विवाह की निंदा, ओसर-मोसर करने का निषेध एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों का निषेध किया गया। १८९६ में तृतीय माहेश्वरी कॉन्फ्रेन्स अजमेर में वैश्य महासभा के साथ आयोजित की गई इसका निमंत्रण देश भर में माहेश्वरी सज्जनों के पास भेजा गया था, १८९८ में दिल्ली में चतुर्थ अधिवेशन वैश्य महासभा के साथ सम्पन्न हुआ। १९०० में अलीगढ़ में पंचम अधिवेशन सम्पन्न हुआ, इसके बाद महासभा का कार्य बंद हो गया, दस वर्ष की अवधि में इस सभा ने माहेश्वरी समाज में सामाजिक जागृति का ठोस एवं महत्वपूर्ण कार्य किया। १९०८ में माहेश्वरी महासभा का प्रादुर्भाव हुआ और पहला अधिवेशन अमरावती में सम्पन्न हुआ, जिसमें राजा गोकुलदास जी मालपाणी अध्यक्ष तथा श्री श्रीकृष्णदास जी जाजू प्रधानमंत्री चुने गए, इस अधिवेशन में ७- ८ हजार समाज बंधु पधारे थे, जिस अधिवेशन में मुखयतः निम्न प्रस्ताव पारित हुए|
अकारण सगाई न तोड़ी जाए, पच्चीस वर्ष से कम आयु वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर मोसर न किया जाए, विवाह में वधु की आयु वर से ४ वर्ष कम होनी चाहिए, कन्या विक्रय पर बंधन, ४५ वर्ष की आयु के बाद विवाह न किया जाये, विवाह से पूर्व जनेऊ धारण कर लेना चाहिए। १९१२ में दूसरा अधिवेशन नागपुर में श्री सेठ फतेहचन्द्र जी सावणा (राठी) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री श्रीकृष्णदास जी जाजू प्रधानमंत्री थे, इस अधिवेशन में करीब २००० हजार से ज्यादा समाज बंधु पधारे थे, जिनमें ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ यथा समय पर करने का अनुरोध तथा बालक-बालिकाओं को शिक्षा देने पर जोर दिया गया। ओसर सम्बन्धी नियम राज्यभर में सामाजिक रूप से जारी करने सम्बन्धी जोधपुर महाराज से प्रार्थना की गई, इस अधिवेशन में ५० हजार रू. का शिक्षा कोष स्थापित हुआ। १९१३ में अलीगढ़ में श्री भागीरथदास जी भूतड़ा के प्रयत्नों से ‘श्री जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा’ स्थापित हुई तथा इसके प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता श्री गिरीधरलाल केला ने की, जिसमें छः प्रस्ताव स्वीकृत हुए १९१४ में ‘श्री जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा’ का अकारण सगाई न तोड़ी जाए, पच्चीस वर्ष से कम आयु वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर मोसर न किया जाए, विवाह में वधु की आयु वर से ४ वर्ष कम होनी चाहिए, कन्या विक्रय पर बंधन, ४५ वर्ष की आयु के बाद विवाह न किया जाये, विवाह से पूर्व जनेऊ धारण कर लेना चाहिए। १९१२ में दूसरा अधिवेशन नागपुर में श्री सेठ फतेहचन्द्र जी सावणा (राठी) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री श्रीकृष्णदास जी जाजू प्रधानमंत्री थे, इस अधिवेशन में करीब २००० हजार से ज्यादा समाज बंधु पधारे
थे, जिनमें ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ यथा समय पर करने का अनुरोध तथा बालक-बालिकाओं को शिक्षा देने पर जोर दिया गया। ओसर सम्बन्धी नियम राज्यभर में सामाजिक रूप से जारी करने सम्बन्धी जोधपुर महाराज से प्रार्थना की गई, इस अधिवेशन में ५० हजार रू. का शिक्षा कोष स्थापित हुआ। १९१३ में अलीगढ़ में श्री भागीरथदास जी भूतड़ा के प्रयत्नों से ‘श्री जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा’ स्थापित हुई तथा इसके प्रथम अधिवेशन
की अध्यक्षता श्री गिरीधरलाल केला ने की, जिसमें छः प्रस्ताव स्वीकृत हुए १९१४ में ‘श्री जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा’ का दूसरा अधिवेशन मथुरा में श्री गिरिधरलाल केला की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसमें श्री जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा का नाम बदलकर ‘माहेश्वरी सभा’ कर दिया गया, इस माहेश्वरी सभा के कुल ६ अधिवेशन हुए। तीसरा मेरठ में, चौथा देहली में श्री रा.ब. श्यामसुन्दर जी लोईवाल की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें पहला प्रस्ताव नाम परिवर्तन के बारे में था, इस प्रस्ताव में माहेश्वरी सभा का नाम श्री माहेश्वरी महासभा किया गया (जो शुरू जैसलमेरी माहेश्वरी महासभा था) जिसमें इतिहास लिखने सम्बन्धी, विवाह में दो गोत्र टालने सम्बन्धी, नव-युवकों को कला कौशल की शिक्षा देने, विदेश भेजने एवं उनकी सहायता करने सम्बन्धी प्रस्ताव पारित हुए। पांचवा अधिवेशन १९१६ में कलकता में श्री रा.ब.श्यामसुन्दर जी लोईवाल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसमें करीब ७ प्रस्ताव पारित हुए, जिसमें वैश्यानृत्य, अश्लील गायन, आतिशबाजी, फिजूल खर्ची बंद करने सम्बन्धी तथा हिन्दी भाषा अपनाने सम्बन्धी प्रस्ताव तथा वेशभूषा सुधारने का अनुरोध किया गया। १९१७ में पाली में श्री किरोडीमल जी मालू की अध्यक्षता में माहेश्वरी महासभा का तृतीय अधिवेशन हुआ। श्री शिववल्लभ जी मानधन्या प्रधानमंत्री थे, इस अधिवेशन में तेरह प्रस्ताव पारित हुए, जिसमें मुखयतः यथा समय यज्ञोपवीत संस्कार करने, शिक्षा प्रचारार्थ संस्थाएं खोलने के सम्बन्ध में तथा बाल, वृद्ध बेजोड विवाह, कन्या विक्रय, फिजूल खर्ची आदि का निषेध किया गया, महासभा की कार्यकारिणी समिति का चुनाव किया गया तथा कार्यकारिणी का नाम ‘माहेश्वरी मंडल’ रखा गया। १९२० में श्री माहेश्वरी महासभा (जैसलमेरी) का छठा अधिवेशन अलवर में हुआ, उसमें दोनों महासभाओं को सम्मिलित करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, इस सम्मिलिकरण के लिए श्री रा.ब.श्यामसुन्दर लोईवाल तथा तपोधन श्री श्रीकृष्णदास जी जाजू ने प्रयास किए।
सन् १९२१ में माहेश्वरी महासभा का चौथा अधिवेशन आकोला में श्री.ब.श्री बल्लभदास जी मालपाणी (जबलपुर) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसके स्वागत मंत्री ब्रजलाल जी बियाणी थे, अधिवेशन में करीब २००० समाज बंधु पधारे थे, इस अधिवेशन में महासभा के उद्देश्य और नियम निर्धारित किये गये, छात्रवृति देने का उपक्रम इसी अधिवेशन से शुरू हुआ। सन् १९२२ में कलकत्ता में दोनों सभाओं का संयुक्त अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसका निमंत्रण आकोला के अधिवेशन में ही मिला था। श्री कृष्णदास जी जाजू ने अध्यक्ष पद का भार ग्रहण किया। श्री रामकृष्ण जी मोहता तथा श्री गोविन्ददास जी मालपाणी मंत्री थे, इस अधिवेशन में इस संस्था का नाम ‘अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा’ किया गया, इस अधिवेशन में श्री जाजू जी ने स्वदेशी तथा राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन किया। अधिवेशन में २३ प्रस्ताव स्वीकृत हुए जिसमें पूर्व अधिवेशनों के अनेक प्रस्ताव दोहराये गये थे। सन् १९२३ में छठा अधिवेशन इंदौर में सम्पन्न हुआ। श्रीमान् रामकृष्णजी मोहता ने अध्यक्ष पद ग्रहण किया। श्री गोविन्ददास जी मालपाणी एवं श्री बृजवल्लभदास जी मूंदड़ा मंत्री तथा उपमंत्री चुने गये, कलकत्ता अधिवेशन की तरह इन्दौर अधिवेशन में भी महासभा ने स्वदेशी अपनाने का अनुरोध किया, इस अधिवेशन में करीब २० प्रस्ताव पारित हुए, इन प्रस्तावों में प्रायः पूर्व प्रस्ताव दोहराये गये थे। महासभा द्वारा महासभा अधिवेशन कोष के लिए २००००/- रू. स्थायी रखने का निश्चय किया गया। महासभा समयोचित सुधार की पुकार उठाने वाली संस्था थी, इसलिए प्राचीन पंथी लोगों के साथ टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई, यह संघर्ष ‘कोलवार प्रकरण’ के रूप में सन्मुख आया। सन् १९२४ में बम्बई में सातवां अधिवेशन सेठ गोविन्ददास जी मालपाणी, जबलपुर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, श्री रामकृष्ण जी मोहता तथा श्री आईदान जी मोहता मंत्री तथा उपमंत्री थे, इस अधिवेशन में कोलवार प्रकरण के कारण संघर्ष हुआ, इस कारण वातावरण बहुत क्षुब्द था, फिर भी अनेक प्रस्ताव पारित हुए, श्री घनश्यामदास जी बिड़ला ने सुझाव दिया कि माहेश्वरी बालकों के लिये छात्रवृतियां रखी जाये, इस दरम्यान भारत में पंचायतों के द्वारा महासभा से विरोध का वातावरण बनाने का प्रयत्न हुआ, कोलवार माहेश्वरियों के सम्बन्ध में पुनः जांच करने हेतु द्वितीय कोलवार कमीशन नियुक्त किया गया, जिसमें १५ सदस्य थे, इनकी रिपोर्ट के अनुसार कोलवार माहेश्वरी शुद्ध माहेश्वरी है तथा उनसे विवाह सम्बन्ध करने में बांधा नहीं है, यह प्रस्ताव कार्यकारी मण्डल में १६ अप्रैल १९२४ को स्वीकृत किया गया। सन् १९२७ में आठवां अधिवेशन पंढरपुर में श्री रामगोपाल जी मोहता की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, श्री रामकृष्ण जी मोहता एवं श्री ब्रजलाल जी बियाणी महामंत्री थे, कोलवार प्रकरण के कारण कलकत्ता पंचायत के प्रस्ताव में बहिष्कार नीति अपनाने सम्बन्धी अतिरेक हुआ था, इस अधिवेशन में सामाजिक बहिष्कार प्रथा के निषेध का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया, इस अधिवेशन में प्रथम बार माहेश्वरी महिला परिषद की स्थापना हुई।
सन् १९२९ में नौवा अधिवेशन धामनगांव में रावसाहेब श्री रूपचंदजी लाठी जलगांव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री राजवल्लभ जी लढा तथा श्री नन्दकिशोर जी गोदानी महामंत्री व सहमंत्री थे, इस अधिवेशन में पहली बार बडी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति थी, इस अधिवेशन में पर्दा प्रथा के बहिष्कार की घोषणा की गई। श्री घनश्यामदास जी बिडला ने ५१०००/- रू. की राशी माहेश्वरी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने हेतु प्रदान की।सन १९३१ में दसवां अधिवेशन देवलगांव (राजा) में विदर्भ केसरी श्री ब्रजलालजी बियाणी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री नन्दकिशोर जी गोदानी एवं ब्रजबल्लभदास जी मूंदड़ा मंत्री बने, इसके बाद महासभा के सूत्र श्री बियाणी जी जैसे प्रतिभा सम्पन्न नेता के हाथों में रहे, इस अधिवेशन में पहली बार विधवा-विवाह के सम्बन्ध में प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये, जिसमें कहा गया कि बाल विधवाओं की संख्या ज्यादा हो रही है, यदि उनकी इच्छा हो तो उनके विवाह का समाज विरोध ना करे, इसी अधिवेशन में ‘माहेश्वरी’ पत्र का भार उदीयमान युवक श्री रामगोपाल जी माहेश्वरी के हाथों में दिया गया एवं प्रकाशन कार्य नागपुर से आरम्भ किया गया। सन् १९३४ में ग्यारहवां अधिवेशन अजमेर में श्री गोविन्ददास जी मालपाणी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री वृन्दावनदास जी बजाज मंत्री थे, कोलवार प्रकरण बम्बई अधिवेशन में उत्पन्न हुआ और पंढलपुर, धामनगांव तथा देवलगांव अधिवेशनों तक चला, संघर्ष इस समय शान्त हो चुका था, इस अधिवेशन में अनेक राजनीतिक एवं सामाजिक प्रस्ताव पारित हुए। महात्मा गांधी के हरिजन आन्दोलन के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गई। शास्त्रों की घूंघट प्रथा उनकी उन्नति में बाधक एवं शारीरिक हृास का कारण बताते हुए शीघ्र हटाने का अनुरोध किया गया, इस अधिवेशन में महासभा की नियमावली में संशोधन किया गया, उसमें भविष्य में एक ही प्रधानमंत्री चुना जाये, ऐसा तय हुआ।
सन् १९३७ को बारहवां अधिवेशन कानपुर में सम्पन्न हुआ। श्री बृजबल्लभदास जी मूंदडा (कलकत्ता) ने अध्यक्ष पद ग्रहण किया। श्री बालकृष्ण जी मोहता मंत्री बने। सन् १९४० में सूरत में तेरहवां अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसका निमंत्रण कानपुर में ही दिया गया था, इस अधिवेशन में अध्यक्ष का स्थान श्री रामकृष्ण जी धूत (हैदराबाद) ने सम्भाला था तथा श्री राधाकृष्ण जी लाहोटी (बम्बई) मंत्री बने, इस अधिवेशन में विधवा विवाह के समर्थन में प्रस्ताव पारित हुआ। सन् १९४६ में महासभा का चौदहवां अधिवेशन स्वर्णजयंती के रूप में ग्वालियर में श्री गुलाबचन्द जी नागौरी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, श्री राधाकृष्ण जी लाहोटी मंत्री बने, इस अधिवेशन में प्रथम बार समाज में बढ़ रही दहेज प्रथा का विरोध किया गया। सन् १९६० में नागपुर में श्री रामगोपाल जी माहेश्वरी के निवास पर श्री ब्रजलाल जी बियाणी एवं रामगोपाल जी माहेश्वरी की प्रेरणा से बैठक होकर महासभा को पुनः सक्रिय बनाने हेतु ७ सदस्यों की कार्य संचालन समिति गठित की गई। सन् १९६१ में महासभा का पंद्रहवां अधिवेशन दिल्ली में रा.ब.शिवरतन जी मोहता की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, श्री रामकृष्ण जी धूत प्रधानमंत्री चुने गये, इस अधिवेशन में तपोधन श्री कृष्णदास जी जाजू की पुण्य स्मृति में १० लाख का ट्रस्ट बनाने का निश्चय किया गया। सन् १९६७ में महासभा का सोलहवां अधिवेशन बीकानेर में समाज के कर्मठ जनसेवी श्री रामगोपाल जी माहेश्वरी नागपुर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, इस अधिवेशन में बम्बई के श्री रामजी तापडिया प्रधानमंत्री चुने गये, इसी अधिवेशन में बीकानेर में एक छात्रावास का निर्माण का निश्चय किया गया, जिसके लिए ६००००/- रू. का आश्वासन प्राप्त हुआ तथा श्री कृष्णदास जाजू ट्रस्ट के लिए ४००००/- रू. की राशी के आश्वासन प्राप्त हुए, इस अधिवेशन में एक लघु औद्योगिक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। शारदा एक्ट के प्रणेता स्व. दीवान बहादुर हरिविलास जी शारदा की जन्म शताब्दी मनाने का निर्णय लिया गया, श्री माहेश्वरी जी ने पंचायत संघर्ष काल में टूटे स्थानीय संस्थाओं से पुनः सम्बन्ध प्रस्थापित कर संगठन को दृढ एवं क्रियाशील बनाने पर जोर दिया, साथ-साथ आर्थिक एवं रचनात्मक कदम उठाने की भी उतनी ही आवश्यकता प्रतिपादित की, उन्होंने कानपुर कार्यकारी मंडल की बैठक में ‘कर्तव्य निर्देश’ के रूप में आचार संहिता बनाने की प्रेरणा दी।सन् १९७२ में सत्रहवां अधिवेशन कलकत्ता में सम्पन्न हुआ। बीकानेर अधिवेशन से समाज का कुशल नेतृत्व करने की वजह से श्री रामगोपाल जी माहेश्वरी पुनः अध्यक्ष निर्वाचित हुए। माहेश्वरी समाज के इतिहास में पहला अवसर था कि एक ही व्यक्ति लगातार दो अधिवेशनों के अध्यक्ष निर्वाचित हुए, श्री बद्रीप्रसाद जी तोषनीवाल प्रधानमंत्री चुने गए, इस अधिवेशन में अ.भा.युवा संगठन का प्रादुर्भाव हुआ, कानपुर कार्यकारी मंडल बैठकों में पारित आचार संहिता पर जोर देना निश्चित हुआ। आचार संहिता के चार सूत्र मान्य हुए: विवाह सम्बन्ध में मांग या ठहराव न हो तथा सगाई का तिलक १०१/- रू. से ही किया जाये।विवाहादि प्रसंगों पर दिखावा न हो तथा सभी कार्यक्रम सादगीपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो।जाजू ट्रस्ट का लक्ष्य २५ लाख रू. किया गया तथा लक्ष्यपूर्ति हेतु देशव्यापी दौरों का आयोजन करने का निश्चय हुआ।सन् १९७६ में नागपुर में अठारहवां अधिवेशन पूना के श्री लक्ष्मीनारायण राठी की अध्यक्षता में भव्य रूप में सम्पन्न हुआ। श्री रामनिवास जी लखोटिया कलकत्ता महामंत्री चुने गये। श्री राठी जी ने आगामी सत्र के लिए कार्यक्रम निश्चित किया, तथा आचार संहिता पर पुनः विशेष बल दिया गया। अधिवेशन अति भव्य था तथा उपस्थिति लगभग १०००० व्यक्तियों की थी।
सन् १९८२ में उन्नीसवां अधिवेशन अलीग़ में श्री हरिकिशन जी मुछाल इन्दौर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। श्री रघुनाथदास जी सोमानी कलकत्ता महामंत्री चुने गये। सन् १९८५ में बीसवां अधिवेशन इन्दौर में हुआ, श्री रघुनाथदास जी सोमानी अध्यक्ष तथा श्री हरिनारायण जी सादानी महामंत्र चुने गये। सन् १९८६ में तपोधन श्री कृष्णदास जी जाजू का शब्तादी वर्ष था, इस अवसर पर कार्यकारी मण्डल के सभी सदस्यों को जाजू जी का चित्र व स्टीकर भेजे गये एवं उनकी स्मृति में उनकी जीवनी प्रकाशित की गई, जिसका नाम ‘‘राजनीति का विकल्प” था, इसी सत्र में अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा के इतिहास लेखन का कार्य प्रारम्भ हुआ। प्रथम खण्ड ‘अमृत बल्लरी’ नाम से १९८५ के अन्त में प्रकाशित हुआ, दूसरा अंक १९८९ में, इस ग्रन्थ में महासभा की यात्रा सन् १८६२ से लेकर १९३० तक लिखी गयी, आगे का कार्य पाण्डुलिपि के रूप में कुछ तैयार किया हुआ है, इस सत्र में जाजू ट्रस्ट के धन संग्रह हेतु एवं सामाजिक विचार क्रान्ति को जन-जन तक पहुंचाने के लिये व्यापक भ्रमण हुआ, कार्यकर्ता सम्मेलन हुए, जिसवे फलस्वरूप नये-नये कार्यकर्ता महासभा से जुडे। ‘‘मैरीज ब्यूरो” व ‘‘सामूहिक विवाह” का भी काफी प्रचार-प्रसार हुआ। पूर्वोंत्तर में महासभा की स्थापना के बाद पहली बार गौहाटी में कार्यकारी मंडल का अधिवेशन हुआ, जिसमें आसान व आस-पास के क्षेत्रों में बहुत बड़ी जागृति हुई। सन् १९८९ में तिरूपति में कार्यकारी मंडल का इक्कीसवां अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसमें मद्रास के समाजसेवी श्री बालकृष्ण जी कोठारी ने सभापति का पद ग्रहण किया तथा वाराणसी के श्री गोवर्धनलाल जी झंवर महामंत्री चुने गये, इस अधिवेशन में जाजू ट्रस्ट की एक करोड़ की लक्ष्यपूर्ति की घोषणा की गई।सन् १९९४ में महासभा का २२ वां अधिवेशन जैसलमेर में आयोजित किया गया, जिसमें हैदराबाद के श्री ब्रदीनारायण जी राठी ने सभापति का पद ग्रहण किया। संगमनेर के श्री ओंकारनाथ जी मालपाणी का महामंत्री पद के लिये निर्विरोध निर्वाचन हुआ, इस सत्र में प्रादेशिक संगठन को श्रृंखलाबद्ध करना प्रादेशिक ट्रस्ट, सम्मेलनों का आयोजन करना आदि पर विशेष ध्यान दिया गया। सन् १९९५ को जनगणना वर्ष घोषित किया गया और सभी प्रान्तों की जनगणना की गई। सन् १९९८ में इचरकरंजी में महासभा का २३ वां अधिवेशन सम्पन्न हुआ, इस अधिवेशन में श्री बद्रीलाल जी राठी ने पद ग्रहण किया।श्री ओंकारनाथ जी मालपाणी का महामंत्री पद पर पुनः निर्वाचन हुआ, इस सत्र में हर जिले में जिला सभा स्थापित करना का प्रयास करने, प्रत्येक प्रान्त में प्रादेशिक ट्रस्ट का गठन करना, प्रान्तवार विवाह सहयोग केन्द्र तथा परिचय सम्मेलन कराने पर जोर देना, व्यापार उद्योग सहयोग केन्द्र द्वारा युवाओं को व्यापार करने में आर्थिक सहयोग करना, प्रोफेशनल सेल तथा प्रशिक्षित शिविरों का आयोजन आदि करने का निश्चय हुआ, इस सत्र में आदित्य विक्रम बिड़ला व्यापार सहयोग केन्द्र, जिसके द्वारा जरूरतमंदों को व्यवसाय हेतु ५० हजार रूपये तक का कर्ज देने का लक्ष्य रखा गया था जो कि विशेष उपलब्धि थी। श्री रामगोपाल माहेश्वरी स्मृति शिक्षा कोष की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति प्रदान करना था। गांधीधाम में महासभा के नाम से छात्र, छात्राओं हेतु दो हॉस्टल का निर्माण इस सत्र की विशेष उपलब्धि थी। अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा के २४ वें सत्र (२४ जुलाई २००२ से जनवरी २००६) हेतु तत्कालीन संविधान की व्यवस्थानुसार सभापति का चुनाव पुण्यनगरी उज्जैन (मध्यप्रदेश) में २३ सितम्बर २००१को हुआ जिसमें श्री चुन्नीलाल सोमानी, कलकत्ता सभापति पद पर निर्वाचित हुए तथा शेष पदाधिकारियों का निर्वाचन १४ जुलाई २००२ को शौर्यनगरी उदयपुर (राजस्थान) में हुआ, जिसमें महामंत्री पद पर श्री श्यामसुन्दर जी सोनी, नागपुर निर्वाचित हुए। उदयपुर में ही नवीन सत्र की कार्यसमिति एवं कार्यकारी मण्डल की प्रथम बैठक सम्पन्न हुई, इस सत्र में कार्यसमिति की ११ एवं कार्यकारी मण्डल की ४ बैठक हुई। २४ वें सत्र की विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियों में महासभा की अपनी वेबसाईट, अपना स्थाई केन्द्रीय कार्यालय, आपदा कोष, माहेश्वरी विद्यापीठ तथा जनगणना को रखा जा सकता है, इस सत्र में महासभा की वेबसाइट बनाना, नागपुर में केन्द्रीय कार्यालय भवन खरीदना विशेष उपलब्धि रही। वर्तमान में ‘माहेश्वरी’ पाक्षिक का कार्यालय भी यहीं है, मुख्य सभा कक्ष का नाम श्री चुन्नीलाल जी सोमाणी कक्ष रखा गया, इस सत्र में माहेश्वरी विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव पास हुआ, किन्तु राजकीय नियमों की रूकावट के कारण कार्य आगे नहीं बढ सका। माहेश्वरी बोर्ड के अध्यक्ष श्री नथमल जी डालिया ने ‘माहेश्वरी’ पत्रिका को नया स्वरूप देने का प्रयास किया। महासभा का २५ वां (रजत जयन्ती) सत्र दिनांक ६ जनवरी, २००६ को औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मे सम्पन्न चुनावों के साथ प्रारम्भ हुआ, इस सत्र के लिए श्री रामपाल जी सोनी भीलवाड़ा को सभापति पद एवं श्रीकस्तुरचन्द जी बाहेती चैन्नई को महामन्त्री पद का दायित्व सौंपा गया, इस सत्र की विशेष उपलब्धियॉं इस प्रकार रही।
१. श्रीकृष्णदास जाजू स्मारक ट्रस्ट
२. श्रीआदित्य विक्रम बिड़ला व्यापार सहयोग केन्द्र
३. श्री रामगोपाल माहेश्वरी स्मृति शिक्षा केन्द्र
४. श्री कोठारी बन्धु शौर्य स्मृति ट्रस्ट
५. छात्रावास निर्माण योजना के अन्तर्गत
६. श्री बद्रीलाल सोनी माहेश्वरी शिक्षा सहयोग केन्द्र
७. श्री बांगड़ माहेश्वरी मेडिकल वेलफेयर सोसायटी
८. मतोश्री प्रकोष्ठ
९. माहेश्वरी सर्वांगीण विकास योजना