श्री पंचमुखी हनुमान

राजस्थान के झुंझुनूं स्थित श्री पंचदेव मन्दिर के विष्णुअवतारी बाबा गंगाराम के प्रति लोगों की आस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कलियुग में भक्तों के कल्याण के लिए प्रगट हुये बाबा गंगाराम प्रत्यक्ष देव हैं, इनके चमत्कारों को गिनना पृथ्वी के रज-कणों को गिनने के सामान है, अपने परम आराधक ‘भक्त शिरोमणि श्री देवकीनन्दन एवं शक्ति स्वरूपा देवी गायत्री’ के माध्यम से बाबा ने संसार को भक्ति और त्याग का जो दिव्य सन्देश दिया, वह अविस्मरणीय है। बाबा गंगाराम जी का अवतरण और लीलाएं: भारत भूमि का कोना-कोना परम पवित्र एवं आध्यात्मिकता के तेज से परिपूर्ण है। समय-समय पर इस पावन धरा पर ईश्वर अवतार लेकर मानव रूप में क्रीड़ा करते हैं और धर्म की पुर्नस्थापना स्थापना करते हैं। ऐसे दिव्य अवतारी बाबा गंगाराम का प्राकट्य राजस्थान के झुंझुनूं नगर में श्रावण शुक्ल दशमी सन्‌ा् १८९५ को श्री हरि विष्णु अंश से अग्रवंशीय वैश्य परिवार में पिता झूथारामजी एवं माता लक्ष्मीदेवी की गोद में हुआ था। जन्म से पूर्व ही इन्होंने अपने माता-पिता को विष्णुरूप में दर्शन देकर अपने दैविय गुणों का आभास करा दिया था, इनका प्रादुर्भाव होते ही हवेली में एक अलौकिक प्रकाश छा गया। शुभाशुभ लक्षणों से उनके दिव्य गुणों का प्रकाश चारों ओर फैलने लगा। कुलपुरोहित ने बाबा के अलौकिक जन्म नक्षत्रों को देखकर बताया कि यह अवतारी बालक ‘गंगा’ के समान पाप विनाशक एवं ‘राम’ के समान पतितपावन होगा, अतएव इसका नाम ‘गंगाराम’ होगा। युवा होते-होते उन्होंने अपने ज्ञान, दर्शन और आचरण से सबको चमत्कृत कर दिया। उनके देवोपम तेज से लोगों को दिव्य आनन्द की अनुभूति होती थी। कर्मभूमि में दिव्य दर्शन: बाबा गंगाराम को परिवार का वैभव, राजसी जीवन व हवेली की दीवारें रोक नहीं पाई और वे सात्विक वातावरण का प्रसारण करते हुये उत्तर-प्रदेश के बाराबंकी जनपद के सफदरगंज नामक स्थान में पावन कल्याणी नदी के तट पर पधारे, उनके आगमन से बरसाती कल्याणी नदी एक बारहमासी नदी के रूप में बहने लगी। एक बार इसी नदी के जल में बाबा ने अपने विष्णुरूप का आभास भक्तों को कराया था, इस प्रकार अनेकों लीलायें करते हुये बाबा मात्र ४३ वर्ष की अल्पायु में ही कल्याणी नदी के तट पर वट वृक्ष के नीचे योगाग्नि से अपने शरीर को त्यागकर स्वधाम प्रयाण कर गये। महाप्रयाण के समय उस वट-वृक्ष में अद्भुत कम्पन हुआ, वह वृक्ष आज भी कल्याणी नदी के तट पर उक्त घटना का साक्षी बना खड़ा है। स्वप्नादेश एवं झुंझुनूं में श्री पंचदेव मंदिर का निर्माण: विष्णु अवतारी बाबा गंगाराम की लीला में भक्त शिरोमणि देवकीनंदन जी एवं शक्ति स्वरूपा देवी गायत्री का वही स्थान है, जो भगवान राम की लीला में भक्त हनुमान जी का है। बाबा गंगाराम जी ने अपने महाप्रयाण के पूर्व अपने परम भक्त पुत्र देवकीनंदन को मात्र ६ वर्ष की आयु में ही अपनी दिव्य शक्तियां प्रदान करते हुए कहा था कि यह बालक देवकीनन्दन मेरी लीलाओं का माध्यम बनकर कलियुग में भक्ति का अमर इतिहास लिखेगा। मैं स्वधाम जा रहा हूं और देवलोक से अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करूंगा। मेरी भक्ति और आराधना से सभी मनोरथ पूरे होंगें। इसी प्रकार गायत्री देवी को भी विवाह पूर्व ही दर्शन देकर अपनी लीलाओं का माध्यम बना लिया था। अपने विष्णुलोक गमन के करीब ३० वर्ष पश्चात्‌ा् बाबा गंगाराम जी ने भक्त देवकीनन्दन को दिव्य स्वप्न में आकाशवाणी के द्वारा श्री पंचदेव मंदिर की स्थापना का आदेश दिया। उक्त आदेश को शिरोधार्य करते हुये भक्त शिरोमणि देवकीनन्दन अपनी परम साध्वी धर्मपत्नी गायत्रीदेवी के साथ ‘झुंझुनूं’ पधारे और गंगादशहरा सन्‌ा् १९७५ में ‘झुंझुनूं’ नगर में भव्य और विशाल श्री पंचदेव मंदिर की स्थापना करवाई, जिसकी पावन प्राण-प्रतिष्ठा पुरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेवजी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुई। जन आस्था का केन्द्र बना श्री पंचदेव मंदिर: ‘झुंझुनूं’ नगर के पूर्वी छोर पर सीकर-लोहारू राजमार्ग पर अवस्थित श्री पंचदेव मंदिर दूर से ही अपनी आभा का दर्शन करा देता है। प्राकृतिक हरितिमा से ओतप्रोत यहां का सात्विक वातावरण लोगों का मन मोह लेता है। मंदिर में बाबा गंगाराम सहित भगवान शिव, आंजनेय हनुमान, भगवती दुर्गा और महालक्ष्मी के मंदिर मिलाकर कुल पांच मंदिर हैं, अतएव इस मंदिर का नाम ‘श्री पंचदेव मंदिर’ विख्यात हुआ। बाबा जी की चित्ताकर्षक प्रतिमा के दर्शन करते ही मन में अपार शांति का संचार होता है और मन की समस्त कामनाएं पूर्ण होती है। बाबा की शक्ति की महिमा देश के कोने-कोने में फैलने लगी है। भक्तों को मनवांछित फल मिलने लगे है। भक्त शिरोमणि देवकीनन्दन जी का अभूतपूर्व त्याग: इतिहास साक्षी है कि भक्त को पग-पग पर अग्नि परीक्षा देनी होती है। भक्त प्रहलाद, मीरा, नरसी आदि भक्तों को विकट विरोध का सामना करना पड़ा था, इसी प्रकार भक्त देवकीनंदन और गायत्री देवी को कुछ धर्म विरोधी और ईर्ष्यालु परिजन उनका उपहास करते हुये तरह-तरह से सताने लगे, उन्हें भक्ति पथ से डिगाने के लिए भांति-भांति के कुचक्र रचने लगे, परन्तु यह सब देखकर भक्त देवकीनंदन और गायत्री देवी को सांसारिक मोह माया से विरक्ति हो गई और उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पदा, चल-अचल सम्पत्ति तथा सुख-वैभव का परित्याग कर दिया। भक्त देवकीनंदन और गायत्री देवी अपने आत्मांश दो पुत्र और चार पुत्रियों के साथ मंदिर परिसर को ही अपना संसार समझकर बाबा की सेवा में समर्पित हो गए। उनके सभी पुत्र-पुत्रियों ने आजीवन विवाह न करने का संकल्प लेकर आज के इस भौतिकतावादी युग में त्याग का एक नया इतिहास रच दिया। भक्‍त देवकीनन्दन का महाप्रयाण व चिता पर चमत्कार: अन्ततः २४ अप्रैल १९९२ (बैशाख कृष्ण चतुर्थी) को संसार को सत्य, त्याग एवं भक्ति का मार्ग दिखाने वाले भक्त शिरोमणि देवकीनन्दन ने प्रभु बाबा गंगाराम का नाम लेते-लेते अपना नश्वर शरीर त्याग दिया, जब उनके पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन किया जा रहा था, तो करुणा, प्रेम और दया की मूरत धर्मपत्नी गायत्री देवी ने सूर्य को साक्षी मानकर देवकीनंदन जी से भक्ति का प्रमाण संसार को दिखाने के लिये करूण प्रार्थना की और उसी समय चिता पर अलौकिक चमत्कार दिखने लगे। भक्त शिरोमणि देवकीनन्दन का दाहिना हाथ जलती चिता में उâपर उठ कर आशीर्वाद देता हुआ हिलने लगा, मस्तक से जल की धारा बहने लगी और चेहरा बालरूप में परिवर्तित हो गया, जिस प्रकार रामभक्त हनुमान ने अपना सीना चीरकर सियाराम के दर्शन कराकर भक्ति का प्रमाण दिया था, उसी प्रकार भक्त शिरोमणि देवकीनन्दन ने जलती चिता से अपने त्याग, तपस्या व निष्काम भक्ति का सशक्त प्रमाण जगत को दिया। शक्ति स्वरूपा देवी गायत्री: माता गायत्री देवी की करुण पुकार पर भक्त शिरोमणि देवकीनंदन की चिता पर हुए अलौकिक चमत्कार उनकी भक्ति की पराकाष्ठा को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। भक्त देवकीनंदन के महाप्रयाण के पश्चात उन्होंने बाबा के लाखों भक्तों को मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद देकर कृतार्थ किया। अध्यात्मिक शक्तियों से भरपूर वे सत्य और त्याग की साक्षात‌ प्रतिमा एवं परम विदुषी थीं। उनके मुख से जो भी निकला वो लोगों के लिए मंत्र बन गया। इसप्रकार कठोर साधना करते हुये अंततः बाबा की पावन दशमी दिनांक २९ नवम्बर २०१७ को वे भी बाबा की पावन ज्योति में विलीन हो गईं। भक्ति और शक्ति का प्रतीक आशीर्वाद मंदिर श्री पंचदेव मंदिर के प्रांगण में ३० अप्रैल २०२१ को ‘आशीर्वाद मंदिर’ की स्थापना की गई। आशीर्वाद मंदिर में प्रतिष्ठापित शिव स्वरूप श्री देवकीनंदन जी और शक्ति स्वरूपा देवी गायत्री जी की युगल प्रतिमा के दर्शन से अपार आनंद की अनुभूति होती है, यह मंदिर अद्भुत वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के निर्माण के बाद मानों श्री पंचदेव मंदिर में स्वर्ग ही उतर आया है, इसी कारण मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बाबा के धाम की पावन ‘रज’: मंदिर में जाने वाले श्रद्धालू दर्शन करने के पश्चात वहाँ की ‘रज’ को प्रसाद स्वरूप अपने साथ ले जाते हैं, जो सांसारिक कष्टों के निवारण हेतु कलियुग में संजीवनी बूटी के समान है। बाबा के दरबार में सच्चे मन से की गई कोई भी प्रार्थना निष्फल नहीं जाती। मंदिर में श्रावण शुक्ल दशमी को बाबा का ‘जन्मोत्सव’, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मंदिर का ‘पाटोत्सव’ एवं बैशाख कृष्ण चतुर्थी को ‘आर्शीवाद दिवस’ धूमधाम से मनाया जाता है। बाबा गंगाराम के मंत्र-जाप एवं चालीसा-पाठ करने से अभीष्ट फल मिलता है। विष्णु अवतारी बाबा गंगाराम की महिमा को शब्दों में पिरोना सम्भव नहीं है। बाबा गंगाराम जी की कृपा से लाखों भक्तों के जीवन में अभूतपूर्व चमत्कार हुए हैं, जो भी सच्चे हृदय से बाबा गंगाराम की आराधना करता है, बाबा उसकी समस्त मनोकामनाए अवश्य पूरी करते हैं। भक्त शिरोमणि श्री देवकीनंदन जी एवं शक्ति स्वरूपा देवी गायत्री जी को और उनके आराध्य सभी धर्मों के एकमात्र ध्येय विष्णु अवतारी बाबा गंगाराम जी सहित सभी को ‘मेरा राजस्थान’ परिवार का कोटिश: नमन है…
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