महानसर शेखावाटी

महनसर (शेखावाटी) Mahansar (Shekhawati) in Hindi
महनसर (शेखावाटी) Mahansar (Shekhawati) in Hindi : राजस्थान का शेखावाटी इलाका अपने भव्य गढ़, हवेलियों और सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है। इसी के झुंझुनू जिले में चुरू और सीकर जिलों की सीमाओं से सटे गांव ‘महनसर’ की अलग ही शान है। इसकी पना नवलगढ़ राजा ठाकुर नवलसिंह जी के सुपुत्र नाहर सिंह द्वारा सन १७६८ में की गई। ‘महनसर’ अपने विशाल किले, कलात्मक हवेलियां व समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है।
सोने की दुकान अपने जटिल चित्रों जिसे सोने की झोल से बनाया गया इस कारण प्रसिद्ध है। इस हवेली में तीन गुंबददार छत हैं। रामायण के दृश्यों को बाईं ओर चित्रित किया गया है, केंद्र में विष्णु के अवतार और कृष्ण के जीवन के दृश्यों को दाईं और चित्रित किया गया है।
अनुमानित सन १७६८ में ठाकुर नाहर सिंह के द्वारा बसाया गया ‘महनसर’ विश्व मानचित्र पर आज अपनी अलग पहचान रखता है। हिन्दु-मुस्लीम की मिश्रित आबादी वाले इस गांव की अनुमानित जनसंख्या ८,००० के करीब है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार गांव में लगभग ४,००० मतदाता हैं। गांव का दर्जा हो कर भी ‘महनसर’ एक पुरा कस्बा है। महनसर अपनी ऐतिहासिक हवेलियों, किला, मन्दिरों, विश्वविख्यात सोने की दुकान, तोलाराम जी का कमरा के लिये पुरी दुनिया में मशहूर है।
पर्यटकों को लुभाती है महनसर की कला संस्कृति ‘महनसर’ के इतिहास ने आज के युग में एक पहचान बना ली है।
यहां के लोग एक ऐसी परंपरा को अपना रहे हैं जो प्राचीन काल से चली आ रही है। यह गांव झुंझुनू, चुरु, सीकर, तीन जिलों की सीमा पर स्थित है। यहां की शराब भारत में ही नहीं दुनिया भर में किसी समय प्रसिद्ध थी।
बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार किले के निर्माण के पूर्व यह गाँव महन गौत्र के जाटों के द्वारा बसाया गया, इसलिए इस गांव का नाम ‘महनसर’ पड़ा। कालातंर में ठिकानेदारों से विवाद के कारण वे गाँव छोड़ कर नवलगढ़ के पास देवगांव में जाकर बस गए। अभी गांव में कस्बा, धींवा, डूडी आदि गौत्र के कई जाट परिवार निवास करते है।
महनसर की प्रसिद्धि का कारण:- ‘महनसर’ अपने किले, तोलाराम जी कमरा, सोने की दुकान के लिए विश्वविख्यात है। किसी समय यहां पर बनायी जाने वाली हेरिटिज शराब, आज इसका फार्मूला अन्य सरकारी फेक्ट्रियों में जरुर बनने लगा है, मगर ‘महनसर’ को जानने समझने वाले आज भी इसके दीवाने हैं। कहते हैं ‘महनसर’ की ये शराब किसी समय ‘कई’ फ्लेवर में बनायी जाती थी, जिसमें सौंफ, संतरा, एलोविरा, धनिया, पुदिना (मिन्ट), अदरक, गुलाब, पान आदि प्रमुख है। बुजर्गों के बताये अनुसार काफी समय पहले जब बीकानेर रियासत पर महाराजा गंगा सिंह का शासन था, उस समय महाराजा गंगा सिंह जी ने अपनी लड़की की शादी में विभिन्न रियासतों के ठाकुरों को अपने-अपने इलाके की शराब के साथ बारातियों की मेजबानी के लिए आमंत्रित किया था, जिसमें ‘महनसर’ के ठाकुर सिर्फ एक बोतल शराब के साथ पहुंचे थे, जब महाराजा गंगा सिंह को ये बात पता चली तो उन्होंने ठाकुर साहब से कहा कि मेरी लड़की की शादी में हजारों मेहमान और बाराती आये हैं और आप सिर्फ एक बोतल शराब ले कर आये हो, तब ठाकुर साहब बोले! महाराज मैं जो शराब लेकर आया हूं, इसी से आप के सारे मेहमान तृप्त हो जायेंगे और शराब बच जाएगी, आप बस बड़े-बड़े पानी के टेंक भरवा दीजिये, जितनी शराब की आपको आवश्यकता है मिल जायेगी। अगर मैं अपने वायदे पर खरा न उतरुं तो आप मुझे फाँसी लगवा देना। बात यकीन करने वाली तो नहीं थी फिर भी बीकानेर महाराज ने ठाकुर साहब के कहे अनुसार आदेश दे दिया, कहते हैं हजारो लीटर के बड़े-बड़े टेंकों में महनसर ठाकुर साहब द्वारा सिर्फ बोतल से एक तीली भरकर टेंकों में डाली गई, उसी से सारे बाराती और मेहमान मदहोश हो गए। महाराजा गंगा सिंह ने जब ये नजारा देखा तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ, बाद में उन्होंने ‘महनसर’ के ठाकुर साहब को सम्मानित किया और काफी इनाम भी दिया, इस वाकये के बाद ‘महनसर’ का नाम अपनी अनूठी शराब के लिए विश्व में प्रसिद्ध हो गया।
महनसर की शराब प्रसिद्ध थी। मगर अब शराब बनाना अवैध है इसलिये किले में शराब नहीं बनती पर। इसी परिवार के राजेन्द्र सिंह महनसर ने पुराने नुख्शों का पेटेंट कराकर हेरिटेज शराब बनाने की अनुमति लेकर इसका व्यवसायिक उत्पादन जयपुर के पास फैक्ट्री में शुरू किया है, जो महाराजा महनसर व महारानी महनसर के ब्रांड से देश और विदेश में बिकती है ओर शौकीन चाव से सेवन करते हैं।
महनसर की शराब प्रसिद्ध थी। मगर अब शराब बनाना अवैध है इसलिये किले में शराब नहीं बनती पर। इसी परिवार के राजेन्द्र सिंह महनसर ने पुराने नुख्शों का पेटेंट कराकर हेरिटेज शराब बनाने की अनुमति लेकर इसका व्यवसायिक उत्पादन जयपुर के पास फैक्ट्री में शुरू किया है, जो महाराजा महनसर व महारानी महनसर के ब्रांड से देश और विदेश में बिकती है ओर शौकीन चाव से सेवन कसैलानियों की पसंद:- महनसर गाँव के बसने के साथ ही अपनी बेजोड़ निर्माण कला एवं उत्कृष्ठ शैली के साथ ‘महनसर’ को बसाने वाले राजा नाहर सिंह जी के द्वारा बनाया गया महनगढ़ किला आज भी अपनी मजबूती और बहादुरी के किस्से सुनाता नजर आता है। सन १७६८ में बनाया गया ये किला वास्तु और पुरातन शैली का एक नायाब नमूना पेश करता है। किले की मजबूत बाहरी दीवारें और २ मजबूत प्रमुख दरवाजे, इसकी रक्षात्मक शैली का अनूठा उदहारण है।रते हैं।
हर साल आने वाले हजारों विदेशी पर्यटकों की सुविधा के लिए, स्वर्गीय ठाकुर तेजपाल सिंह जी द्वारा किले के कुछ हिस्से में एक होटल का ाfनर्माण किया गया, जिसे होटल ‘नारायण निवास कैसेल’ का नाम दिया गया। होटल में आने वाले हर देशी-विदेशी पर्यटकों को उच्च स्तरीय सुविधा मुहैया करवाई जाती है। विदेशी पर्यटकों के गाँव में रुकने के कारण गाँव के लोगों को भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आर्थिक लाभ मिल रहा है।
पोद्दार मेमोरिअल स्मारक:- प्राचीन समय में अपने पूर्वजों की याद में स्मारक बनाने का अनुशरण करते हुए, गाँव के पोद्दार परिवार द्वारा अपने बुजर्गो की यादें सहेजने के लिए इस स्मारक का निर्माण करवाया गया। गाँव में पोद्दारों की छतरी के नाम से मशहुर ये ईमारत गरीबों के लिए हवा महल भी कहलाती है। भीषण गर्मी हो या ठण्ड या चाहे बारिश का मौसम, इसकी बेजोड़ निर्माण शैली हर मौसम से बचाव करती है। गाँव में आने वाले हर देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने के साथ-साथ, घुमक्क्ड़ और गरीबों का आशियाना भी है, इसकी दीवारों पर की गई चित्रकारी भी राजस्थानी चित्र कला का नायाब नमूना है। इसकी निर्माण कला को देखते हुए प्रसिद्ध विडियो निर्माता कुबेर ग्रुप ने अपने राजस्थानी एल्बम गणगौर का विडियो यहीं चित्रित किया था।

महनसर पर एक नजर:- 
जनसंख्या : ८,०००
मतदाता: ४,०००
ग्राम पंचायत: महनसर पंचायत, पुलिस् थाना बिसाउâ
ब्लॉक : अलसीसर, विधान सभा:‍ मन्डावा
लोकसभा:‍ झुंझुनू
जिला:‍ झुंझुनू

सोने की दुकान: सेठ शिवबक्श राय पोद्दार ट्रस्ट द्वारा संचालित १८४६ में निर्मित यह सोने की दुकान पूरे विश्व में मशहूर है। दुकान की भीतरी दीवारों पर बहुत ही कलात्मक ढंग से की गई रामायण और महाभारत काल की अनूठी भीती चित्र कला बहुत ही अनुपम प्रतीत होती है। इसकी खास बात यह है कि इसमें सुनहरे रंग के लिए सोने के झोल का प्रयोग किया गया है। जिसके कारण इसे सोने की दुकान के नाम से बुलाते है। जो कभी पोद्दार सेठों का व्यवसायिक कार्यालय भी था। भीती चित्रों पर की गई अनूठी सोने की कलाकारी पूरे विश्व में अपना एक अलग स्थान रखती है। हर साल पूरे विश्व से लाखों देशी-विदेशी पर्यटक इसे देखने आते हैं।
रघुनाथ मंदिर: गाँव के लोगों में बड़े मंदिर के नाम से मशहुर यह मंदिर सेठ हरकंठ राय पोद्दार द्वारा विव्रâम संवत १९०४ में बनवाया गया था। मंदिर परिशर में श्री राम परिवार, शिव परिवार और श्री वीर हनुमान की सुन्दर एवं मुर्तियां स्थापित हैं। कुछ सालों पहले गाँव के युवाओं द्वारा मंदिर परिसर में एक संगठन बनाया गया था, जो गाँव के हर उत्सव और सामुदायिक कार्यो में बढ़-चढ़ कर भाग लेता था, मगर समय के अभाव और युवाओं में बढती बेरोजगारी की वजह से युवाओं द्वारा रोजगार के लिए परदेश में बसने के कारण १९८८ के बाद यह बंद कर दिया गया। आपसी प्रेम और सोहार्द के प्रतिक आजाद युवा संगठन की आज गाँव को फिर से जरुरत है।
श्री जोहड वीर गोगा जी का मंदिर: राजस्थान के लोक देवता जोहड वीर गोगा जी महाराज का ये मंदिर गाँव के छोर पर विशाल रेतीले टीले पर स्थित है। गाँव के दोनों धर्मों के लोगों की सामान आस्था वाले इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है। मंदिर को ग्रामीण बोली में गोगा मेडी और मंदिर की सेवा करने वाले पुजारी को भक्त जी कहा जाता है।
हर साल भाद्रपद महीने में २ दिवसीय विशाल मेले का आयोजन मंदिर कमेटी द्वारा किया जाता है, जिसमें प्रथम दिन अष्टमी तिथि को गोगा जी के सेवक और गाँव में भगत जी के नाम से मशहुर भगत श्री सोहन लाल जी, जिन्होंने काफी लम्बे समय तक मंदिर में पुजारी के रूप में अपनी सेवा दी, उनके देह त्यागने के उपरांत उनकी अंतिम इच्छानुसार मंदिर प्रांगण में ही समाधी दी गई, इस कारण मेला लगता है, दुसरे दिन नवमी तिथि को जोहड वीर श्री गोगा जी का मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें दूर-दूर के भक्तों के अलावा गाँव छोड़ कर देश और विदेशों में बसे प्रवासियों द्वारा भी शीश नवाया जाता है।
मेले में मंदिर कमेटी द्वारा विभिन्न ग्रामीण खेलों जैसे कबड्डी, कुश्ती, ऊँटों की दौड़ आदि का मुकाबला करवाया जाता है, जीतने वाली टीम को मंदिर कमेटी द्वारा सम्मानित किया जाता है। मंदिर कमेटी व दानी सज्जनों के सहयोग से मंदिर विकाश में भी सहयोग मिलता है। मेले में काफी संख्या में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं।
श्री जोहड़े वाला बालाजी धाम :- गाँव के पश्चिम छोर पर स्थित जन-जन की आस्था का केंद्र एवं ग्राम देवता के तौर पर पूजे जाने वाले महावीर श्री बजरंग बली हनुमान का विशाल मंदिर, जो जोहड़े वाले बालाजी के नाम से मशहुर है। गाँव में होने वाले विवाह-शादी और नए बच्चे के जन्म पर लोग यहां विशेष तौर पर शीश नवाने के लिए आते हैं। कई बीघा जमीन पर बने इस मंदिर की हरियाली भी यहां आने वालों को मानसिक एवं शारीरिक शांति प्रदान करती है। मंदिर के पास ही स्थित छोटे से तालाब के नाम से, जिसे गाँव की भाषा में जोहड़ कहा जाता है, इनका नामकरण जोहड़े वाले बाला जी के नाम से है। मंदिर प्रांगण में स्थित इस तालाब की भी ग्रामीणों में विशेष आस्था है। तालाब के साथ ही गाँव में घुमने वाले बेसहारा पशुओं के पिने के पानी की सुविधा के लिए एक और छोटा तालाब जिसे गौघाट कहते हैं, बनाया गया है। सावन महीने की तीसरी तिथि को मंदिर के मैदान में विशाल मेला लगाया जाता है, जिसमें गाँव के अलावा आस-पास के क्षेत्र से भी भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। विश्व में सालासर बालाजी के नाम से मशहुर मेले में जाने वाले यात्रियों की सेवा के लिए भी हर वर्ष मंदिर कमेटी द्वारा २ सेवा केम्पों का आयोजन किया जाता है।
महनसर (शेखावाटी) Mahansar (Shekhawati) in Hindi
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