मारवाड़-मूण्डवा
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मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी
मारवाड़-मूण्डवा (Marwar Mundwa in hindi)मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी !!
मूण्डवा की पावन धरती है कितनी महान।
मूण्डवा इसकी पहचान है मूण्डवा ही हमारी पहचान ।।
मारवाड़-मूण्डवा (Marwar Mundwa in hindi)मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी !!
मारवाड़ मूण्डवा इतिहास के झरोखे से
- मूण्डवा नगर की स्थापना विक्रम संवत्ा् ११२३ की वैशाख शुक्ल तृतीया को मण्डोर के मुण्डेल जाट द्वारा हुई
मानी जाती है। - प्रसिद्ध लाखोलाव तालाब की खुदाई विक्रम संवत् ११५९ में हुई।
- लाखोलाव तालाब पर गिरीराज मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा विक्रम संवत्ा् १७०३ की माघ सुदी तृतीया को
तत्कालीन जोधपुर नरेश द्वारा करवायी गई। - कस्बे के ह्य्दय स्थल पर चारभुजा मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् १७२७ में हुआ, इसी मंदिर का जीर्णोद्धार
विक्रम संवत् १८८० में हुआ। - कस्बे के उत्तर दिशा में ज्ञान तालाब पर नृसिंह मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् १८४५ की चैत्र शुक्ल नवमी को
करवाया गया। - कस्बे के पूर्व में पौकण्डी तालाब पर शिवजी की बगेची (तारकेश्वर महादेव मंदिर) का निर्माण विक्रम संवत्ा् १९४७
में करवाया गया। - इसी मंदिर में विक्रम संवत्ा् १९२० की वैशाख शुक्ला तृतीया से जलाई गई ज्योत आज तक अखण्ड रूप से
प्रज्जवलित है। - मूण्डवा में प्रथम बार रेलगाड़ी विक्रम संवत्ा् १९४८ में आयी, उसी दिन से मूण्डवा को ‘मारवाड़ मूण्डवा’ कहा जाने
लगा। - कस्बे के चारभुजा मंदिर में दोपहर की सभा (सत्संग) श्री रामनाथ जाजू द्वारा विक्रम संवत्ा् १९७८ की वैशाख
सुदी तृतीया मंगलवार दिनांक ०५.०५.१९२९ को प्रारम्भ करवाई गई जो आज तक जारी है। - मारवाड़ मूण्डवा कस्बे में मारवाड़ के तिरूपति के रूप में स्थापित वैंकटेश मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विक्रम
संवत् १९८७ में हुई, जो दक्षिण भारत स्थित प्रतिवादी भयंकर गादी स्वामी श्री अनन्ताचार्यजी महाराज के कर कमलों
द्वारा हुई। - मारवाड़ मूण्डवा में वैंकटेश धर्मार्थ औषधालय विक्रम संवत्ा् २००२ से प्रारम्भ हुआ।
- मारवाड़ मूण्डवा में सरकारी अस्पताल जो आज सीएचसी है विक्रम संवत् २०१२ दिनांक ३१.१०.१९५५ को
लोकार्पित हुआ। - मारवाड़ मूंडवा में पहली बार बिजली विक्रम संवत् २०२० की मार्गशीर्ष शुक्ला ११ को आयी।
- चारभुजा मंदिर में प्रातःकाल रामचरित मानस के मास पारायण का नियमित संगीतमय वाचन संत बलराम दास
शास्त्री ने विक्रम संवत्ा् २०२९ की आसोज सुदी प्रतिपदा से प्रारम्भ करवाया जो आज तक जारी है। - लाखोलाव तालाब पर स्थित घुमटेश्वर महादेव मंदिर (घुमटी) विक्रम संवत्ा् १९६३ में बनी।
- मारवाड़ मूण्डवा में प्रथम बार सार्वजनिक नल ०८ मार्च १९७४ में आया।
- मूण्डवा के माहेश्वरी श्री शिवकरनजी रामरतन दरक ने माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति की खोज करके ‘इतिहास
कल्पद्रुम माहेश्वरी कुलभूषण’’ नामक ग्रंथ वि.सं.१८९८ भादवा सुदी ३ रो लिखा, जिणमें माहेश्वरी वैश्यों की उत्पत्ति,
उनके दाता, गौत्र, प्रवर बेद शाखा, देवसती एवं ७२ खापों तथा ९८९ नखों का क्रम से वर्णन किया गया है। - मूण्डवा गांव में माहेश्वरी की जात
- १) बंग, २) पटवारी, ३) पसारी, ४) गिलड़ा, ५) सारडा, ६) अट्टल, ७) मूंदड़ा, ८) हैडा, ९) भट्टड़, १०) सोनी, ११) सिखची,
१२) असावा, १३) मोदाणी, १४) टवाणी, १५) लड्ढा, १६) नावंधर, १७) काबरा, १८) झंवर, १९) भियाणी २०) पलोड़, २१)
जाजू, २२) बूब, २३) दरक, २४) लाहोटी, २५) चंडक, २६) मनिहार २७) साबू, २८) मक्कड़, २९) चौकड़ा, ३०) इनाणी, ३१)
राठी, ३२) धूत, ३३) मालानी ३४) भायेती (बाहेती), ३५) बजाज, ३६) सोमानी
– रतन सिंह राठौड़
मारवाड़ मूण्डवा कविता
मारवाड़-मूण्डवामारवाड़-मूण्डवा
श्री उम्मेदसिंहजी महाराज बडे ज्ञानी है।
जिनका मारवाड़ जोधाना राजधानी है।। टेर।।
राजन के राज वे धर्म राज करते हैं।
दीनों के ऊपर खूब दया रखते हैं।।
महाराज वीर नर ऐसा हुवा न कोय।
बावन रजवाड़ा बीच, उनकी जै जै की धुन होय।।
सुरों में सुर और ज्ञानियों में ज्ञानी है।। जिनका।।१।।
यह छत्रपति राठोड़ राज रणवंका।
जिनका मारवाड़ में वजे चहूं दिश डंका।।
दुष्टों को देते दंड करे नहीं शंका।
जो विजय करे तलवार मात जगदम्बा।।
महाराज कहूं क्या कहा ना जावे मोय।
इस कलियुग के बीच वीर नर ऐसा विरला होय।।
श्री धर्मराज के धार्मिक रानी है। जिनका।।२।।
एक मारवाड़ में शहर मूँडवा भारी।
लखपत की शोभा कई मुल्क में जारी।।
चहूं ओर जाट वृक्षों को ठाट गुलजारी।
कोने कोने पर टोडीयां की की छिव न्यारी।।
महाराज कहूं क्या कह्योना जावेजी।
देखत खुश होजायक मानो स्वर्ग लखावे।।
लखपत में रहता इम्रतसा पानी है।। जिनकी।।३।।
एक पश्चिम बाजु महादेव का मंदिर।
वहां हरदम पूजा करे पुजारी अन्दर।।
छोटा सा बगेचा बाजु तर्फ है सुन्दर।
वहां जुई मोगरा फल फुलवारी अन्दर।।
महाराज कहूं क्या वहां वृक्षों को ठाट।
आजु बाजु कम से कम है और बगेची आठ।।
वहां आते-जाते धनी गुनी दानी है।। जिनका।।४।।
एक बाग बड़ा फिर फल फुलवारी का।
बाजु में बड़ा है मंदिर गिरधारी का।।
दरशन करने को आवे झुंड नरनारी का।
तुलसी दल चर्णामृत मुकट धारी का
महाराज और कई छोटा बड़ा तलाब।
पूर्व तर्फ पोकंडी पीछम छोटा मोट लाव।।
वहां से दिखती कड़लानी सामी है।। जिनका।।५।।
एक कडलाणी पे कुंड बड़ा है भारी।
आजु बाजु रुखों की है छीव न्यारी।।
वहां सड़क रेल की नाले पे है डरी।
दोनों ही टेम गाड़ी आ रही है जारी।।
महाराज वहां एक सती का अस्थान।
चारों तर्फ देखलो मानों दिखत है मैदान।।
सुवरणकर कड़लों की कड़लाणी है। जिनका।।६।।
उत्तर की तर्फ एक तलाब है सुन्दर।
नरसिंह देव का बहुत बड़ा है मंदिर।।
वहां से चल कर फिर बड़ माता है भारी।
वहां दरसन करने जावे नर अरु नारी।।
महाराज उनका भारी चमत्कार।
करे शहर पे महर मात का बोले जै जैकार।।
इस शहर के अन्दर बड़े-बड़े दानी हैं।। जिनका।।७।।
यह जोड़ लावणी बंकन ने गाई है।
जिनकी रक्षा करे जगदम्बा माई है।
जाति की सेवा करनी मन भाई है।
तज सह़ज शुद्धताई छाई है।।
महाराज अठ यह लागा दिखन ने में।
राजस्थानी समाज नाट्य में रया सीखन ने में।।
उस्ताद हमारे खाजुराम सोनी है।। जिनका।।८।।
– नरसिंह कडेल, मूण्डवा