मारवाड़-मूण्डवा

मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी

मारवाड़-मूण्डवा (Marwar Mundwa in hindi)

मारवाड़-मूण्डवा (Marwar Mundwa in hindi)मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी !!

मूण्डवा की पावन धरती है कितनी महान। 
मूण्डवा इसकी पहचान है मूण्डवा ही हमारी पहचान ।।

मारवाड़ मूण्डवा अपने आप में जोधपुर स्टेट का एक प्रमुख ग्राम (कस्बा) रहा है, अगर इसे संस्कृति व धर्म-कर्म का एक प्रमुख स्थल कह दिया जाए तो अतिशियोक्ति पूर्ण होगा।
मारवाड़ मूण्डवा की स्थापना लगभग एक हजार वर्ष पूर्व धधाणी तालाब के सामने स्थित टीबे पर हुई थी, उसी समय यहां माताजी के मंदिर का निर्माण हुआ, बाद में कस्बा पहाड़ी तले बसा और मध्य में चारभुजा मंदिर का निर्माण बंग व मुण्डेल जाति ने मिलकर सामूहिक रूप से मिलकर करवाया था। मारवाड़ मूण्डवा की स्थापना में बंग परिजन के कुल गुरू व्यास परिवार व मुण्डेल (चौधरी) व मुण्डेल (दाधीच) ने महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन की।
मारवाड़ मूण्डवा को धार्मिक नगरी के रूप में देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति के जीवन्त उदाहरण यहां मिल सकते हैं। यहां सभी सम्प्रदायों ने धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया गया है। सर्वधर्म समन्वय की स्थापना की गई, जिस प्रकार संसार में दस दिशाएँ विद्यमान हैं उसी प्रकार यहां पूर्व में पौकण्डी, पश्चिम में मोटोलाव, उतर में ज्ञान तालाब व दक्षिण में लाखोलाव का निर्माण हुआ है। अन्य गावों में छोटे-मोटे दसियों तालाबों की उपलब्धता इसके भौगोलिक स्वरूप में चार चांद लगता है।
‘मारवाड़ मूण्डवा’ के धर्म प्रिय श्रेष्ठी वर्ग ने जज-जन के उपयोग में आने वाले अनेक स्थलों का निर्माण करवाया, जिनमें भौतिक जगत में प्रमुख भूमिका निभाते हुए विद्यालयों का निर्माण, चिकित्सा व्यवस्था को मूर्त रूप दिया गया। यात्रियों के लिए कई सार्वजनिक जलमन्दिरों का निर्माण करवाया गया, जिसमें प्रमुख भूमिका निभायी स्वर्गीय सेठ श्री शिवनारायणजी बंग, स्वर्गीय सेठ श्री किशनजी चांडक, स्वर्गीय सेठ श्रीरामप्रसाद झंवर, स्वर्गीय सेठ श्री गोपीलाल काबरा, स्वर्गीय सेठ श्री रामनिवासजी सारडा के कार्यों की आज भी प्रशंसा की जाती है।

मारवाड़-मूण्डवा (Marwar Mundwa in hindi)मारवाड़ मूण्डवा जो आपका भी है और हमारा भी !!

जोधपुर स्टेट के समय भी यहां की शिक्षा व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिए अनटचेबल दरबार प्राथमिक शाला व वर्तमान में जहां उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थित है, जिसे पूर्व में दरबार पाठशाला के नाम से जाना जाता था।
मारवाड़ मूण्डवा में सर्वप्रथम संस्कृत विद्यालय की स्थापना मोदाणी परिवार द्वारा की गई, वो लगभग दो वर्ष तक चली, बाद में स्वर्गीय श्री पुसारामजी व्यास ने वर्तमान में संचालित श्री सनातन धर्म संस्कृत विद्यालय की स्थापना की गयी जो आज पूरे क्षेत्र में संस्कृत और संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहा है।
स्वर्गीय सेठ श्रीशिवनारायणजी बंग ने अपनी एक बालिका के आकस्मिक निधन से दुःखी हो आमजनों के दुःख को पहचाना और वैंकटेश धर्मार्थ आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की, जिसमें कार्यरत रहे स्वर्गीय श्री मोहनलालजी कोठारी, जिनकी चिकित्सा आज भी जनमानस से मिट नहीं पायी है। आयुर्वेद चिकित्सा में जहां बंगजी ने योगदान दिया उसी प्रकार ऐलोपेथी चिकित्सा में स्वर्गीय सेठ श्री गोपीलालजी काबरा ने राजकीय चिकित्सालय का निर्माण करवा कर जन मानस को लाभ पहुंचाते हुए चिकित्सा सेवा का विकास किया, इसी प्रकार यहां के सदावत परिवार ने भी यहां पशु चिकित्सालय का निर्माण करवाते हुए पशुपालकों को राहत प्रदान की। मारवाड़ मूण्डवा के निवासी सबको समान भाव से देखते थे, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है हरिजन बस्ती और उस बस्ती में निर्मित भव्य मंदिर, इस बस्ती व मंदिर के निर्माण में भरपूर सहयोग यहां के लोगों ने किया।
आजादी पूर्व भोर-ए-राजस्थान स्वर्गीय श्री जयनारायणजी व्यास लोकजन शक्ति पार्टी द्वारा जन जागरण यहां किया जाता था, उसी दौरान स्वर्गीय व्यास भी मूण्डवा पधारे थे, उस समय उनकी पार्टी के अध्यक्ष थे स्वर्गीय सेठ श्रीकिशनलालजी बंग व मंत्री स्वर्गीय वैद श्री जुगल किशोरजी व्यास। जन जागरण में वाचनालाय और पुस्तकालयों की विशेष भूमिका रहती है, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वर्गीय सेठ श्रीशिवनारायण बंग ने वाचनालय व पुस्तकालय की स्थापना की, उसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की स्वर्गीय श्री रामकुंवर बंग, स्वर्गीय श्री मुन्नालाल गिलडा, स्वर्गीय श्रीमिश्रीलाल सारडा, श्री मांगीलाल कंदोई, स्वर्गीय श्री अर्जुन भारती व स्वर्गीय श्री जुगलकिशोर व्यास।
वैष्णव सम्प्रदाय के बालकृष्ण लाल के मंदिर का निर्माण रसवैध स्वर्गीय श्री बद्रीप्रसादजी व्यास यहां संस्कृत विद्यालय व कूप का निर्माण भी करवाया, जिनके जिर्णोद्धार में सारडा परिवार ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। मारवाड़ मूण्डवा के प्रवासी बंधु जहां भी व्यवसायरत व कार्यरत हैं उन्होंने वहां अपने व्यावसायिक क्षेत्र में दक्षता सिद्ध की है तो वहां के सार्वजनिक व जनहितकारी कार्यों में तन-मन-धन से समर्पित हो, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का दिग्दर्शन करवा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है, जिसकी वहां के लोग प्रशंसा करते नहीं थकते।

मारवाड़ मूण्डवा इतिहास के झरोखे से

  1. मूण्डवा नगर की स्थापना विक्रम संवत्‌ा् ११२३ की वैशाख शुक्ल तृतीया को मण्डोर के मुण्डेल जाट द्वारा हुई
    मानी जाती है।
  2. प्रसिद्ध लाखोलाव तालाब की खुदाई विक्रम संवत् ११५९ में हुई।
  3. लाखोलाव तालाब पर गिरीराज मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा विक्रम संवत्‌ा् १७०३ की माघ सुदी तृतीया को
    तत्कालीन जोधपुर नरेश द्वारा करवायी गई।
  4. कस्बे के ह्य्दय स्थल पर चारभुजा मंदिर का निर्माण विक्रम संवत्‌ १७२७ में हुआ, इसी मंदिर का जीर्णोद्धार
    विक्रम संवत् १८८० में हुआ।
  5. कस्बे के उत्तर दिशा में ज्ञान तालाब पर नृसिंह मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् १८४५ की चैत्र शुक्ल नवमी को
    करवाया गया।
  6. कस्बे के पूर्व में पौकण्डी तालाब पर शिवजी की बगेची (तारकेश्वर महादेव मंदिर) का निर्माण विक्रम संवत्‌ा् १९४७
    में करवाया गया।
  7. इसी मंदिर में विक्रम संवत्‌ा् १९२० की वैशाख शुक्ला तृतीया से जलाई गई ज्योत आज तक अखण्ड रूप से
    प्रज्जवलित है।
  8. मूण्डवा में प्रथम बार रेलगाड़ी विक्रम संवत्‌ा् १९४८ में आयी, उसी दिन से मूण्डवा को ‘मारवाड़ मूण्डवा’ कहा जाने
    लगा।
  9. कस्बे के चारभुजा मंदिर में दोपहर की सभा (सत्संग) श्री रामनाथ जाजू द्वारा विक्रम संवत्‌ा् १९७८ की वैशाख
    सुदी तृतीया मंगलवार दिनांक ०५.०५.१९२९ को प्रारम्भ करवाई गई जो आज तक जारी है।
  10. मारवाड़ मूण्डवा कस्बे में मारवाड़ के तिरूपति के रूप में स्थापित वैंकटेश मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विक्रम
    संवत् १९८७ में हुई, जो दक्षिण भारत स्थित प्रतिवादी भयंकर गादी स्वामी श्री अनन्ताचार्यजी महाराज के कर कमलों
    द्वारा हुई।
  11. मारवाड़ मूण्डवा में वैंकटेश धर्मार्थ औषधालय विक्रम संवत्‌ा् २००२ से प्रारम्भ हुआ।
  12. मारवाड़ मूण्डवा में सरकारी अस्पताल जो आज सीएचसी है विक्रम संवत् २०१२ दिनांक ३१.१०.१९५५ को
    लोकार्पित हुआ।
  13. मारवाड़ मूंडवा में पहली बार बिजली विक्रम संवत्‌ २०२० की मार्गशीर्ष शुक्ला ११ को आयी।
  14. चारभुजा मंदिर में प्रातःकाल रामचरित मानस के मास पारायण का नियमित संगीतमय वाचन संत बलराम दास
    शास्त्री ने विक्रम संवत्‌ा् २०२९ की आसोज सुदी प्रतिपदा से प्रारम्भ करवाया जो आज तक जारी है।
  15. लाखोलाव तालाब पर स्थित घुमटेश्वर महादेव मंदिर (घुमटी) विक्रम संवत्‌ा् १९६३ में बनी।
  16. मारवाड़ मूण्डवा में प्रथम बार सार्वजनिक नल ०८ मार्च १९७४ में आया।
  17. मूण्डवा के माहेश्वरी श्री शिवकरनजी रामरतन दरक ने माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति की खोज करके ‘इतिहास
    कल्पद्रुम माहेश्वरी कुलभूषण’’ नामक ग्रंथ वि.सं.१८९८ भादवा सुदी ३ रो लिखा, जिणमें माहेश्वरी वैश्यों की उत्पत्ति,
    उनके दाता, गौत्र, प्रवर बेद शाखा, देवसती एवं ७२ खापों तथा ९८९ नखों का क्रम से वर्णन किया गया है।
  18. मूण्डवा गांव में माहेश्वरी की जात
  19. १) बंग, २) पटवारी, ३) पसारी, ४) गिलड़ा, ५) सारडा, ६) अट्टल, ७) मूंदड़ा, ८) हैडा, ९) भट्टड़, १०) सोनी, ११) सिखची,
    १२) असावा, १३) मोदाणी, १४) टवाणी, १५) लड्ढा, १६) नावंधर, १७) काबरा, १८) झंवर, १९) भियाणी २०) पलोड़, २१)
    जाजू, २२) बूब, २३) दरक, २४) लाहोटी, २५) चंडक, २६) मनिहार २७) साबू, २८) मक्कड़, २९) चौकड़ा, ३०) इनाणी, ३१)
    राठी, ३२) धूत, ३३) मालानी ३४) भायेती (बाहेती), ३५) बजाज, ३६) सोमानी

 

– रतन सिंह राठौड़

मारवाड़ मूण्डवा कविता

मारवाड़-मूण्डवामारवाड़-मूण्डवा 
श्री उम्मेदसिंहजी महाराज बडे ज्ञानी है।
जिनका मारवाड़ जोधाना राजधानी है।। टेर।।
राजन के राज वे धर्म राज करते हैं।
दीनों के ऊपर खूब दया रखते हैं।।
महाराज वीर नर ऐसा हुवा न कोय।
बावन रजवाड़ा बीच, उनकी जै जै की धुन होय।।
सुरों में सुर और ज्ञानियों में ज्ञानी है।। जिनका।।१।।
यह छत्रपति राठोड़ राज रणवंका।
जिनका मारवाड़ में वजे चहूं दिश डंका।।
दुष्टों को देते दंड करे नहीं शंका।
जो विजय करे तलवार मात जगदम्बा।।
महाराज कहूं क्या कहा ना जावे मोय।
इस कलियुग के बीच वीर नर ऐसा विरला होय।।
श्री धर्मराज के धार्मिक रानी है। जिनका।।२।।
एक मारवाड़ में शहर मूँडवा भारी।
लखपत की शोभा कई मुल्क में जारी।।
चहूं ओर जाट वृक्षों को ठाट गुलजारी।
कोने कोने पर टोडीयां की की छिव न्यारी।।
महाराज कहूं क्या कह्योना जावेजी।
देखत खुश होजायक मानो स्वर्ग लखावे।।
लखपत में रहता इम्रतसा पानी है।। जिनकी।।३।।
एक पश्चिम बाजु महादेव का मंदिर।

वहां हरदम पूजा करे पुजारी अन्दर।।
छोटा सा बगेचा बाजु तर्फ है सुन्दर।
वहां जुई मोगरा फल फुलवारी अन्दर।।
महाराज कहूं क्या वहां वृक्षों को ठाट।
आजु बाजु कम से कम है और बगेची आठ।।
वहां आते-जाते धनी गुनी दानी है।। जिनका।।४।।
एक बाग बड़ा फिर फल फुलवारी का।
बाजु में बड़ा है मंदिर गिरधारी का।।
दरशन करने को आवे झुंड नरनारी का।
तुलसी दल चर्णामृत मुकट धारी का
महाराज और कई छोटा बड़ा तलाब।
पूर्व तर्फ पोकंडी पीछम छोटा मोट लाव।।
वहां से दिखती कड़लानी सामी है।। जिनका।।५।।
एक कडलाणी पे कुंड बड़ा है भारी।
आजु बाजु रुखों की है छीव न्यारी।।
वहां सड़क रेल की नाले पे है डरी।
दोनों ही टेम गाड़ी आ रही है जारी।।
महाराज वहां एक सती का अस्थान।
चारों तर्फ देखलो मानों दिखत है मैदान।।
सुवरणकर कड़लों की कड़लाणी है। जिनका।।६।।
उत्तर की तर्फ एक तलाब है सुन्दर।
नरसिंह देव का बहुत बड़ा है मंदिर।।
वहां से चल कर फिर बड़ माता है भारी।

वहां दरसन करने जावे नर अरु नारी।।
महाराज उनका भारी चमत्कार।
करे शहर पे महर मात का बोले जै जैकार।।
इस शहर के अन्दर बड़े-बड़े दानी हैं।। जिनका।।७।।
यह जोड़ लावणी बंकन ने गाई है।
जिनकी रक्षा करे जगदम्बा माई है।
जाति की सेवा करनी मन भाई है।
तज सह़ज शुद्धताई छाई है।।
महाराज अठ यह लागा दिखन ने में।
राजस्थानी समाज नाट्य में रया सीखन ने में।।
उस्ताद हमारे खाजुराम सोनी है।। जिनका।।८।।
– नरसिंह कडेल, मूण्डवा

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