मेहनत व लगन की मिसाल माहेश्वरी भवन

चैन्नई

चैन्नई: बीता हुआ कल ऐतिहासिक कार्यों और उनकी उपलब्धियों का आधार होता है। कल, आज और कल में समाहित समय चक्र अपनी तीनों स्थितियों में सृजनशील समाज को सृजनशीलता की ओर उत्प्रेरित करता है। कहने से पूर्व यह आवश्यक सा लगता है कि इस समय (अतीत) की उन पर्तों को अनावृत करें, जिस समय माहेश्वरी समाज के पास सभाओं तथा उत्सवों आदि के लिए कोई एक निर्धारित अपना स्थान नहीं था, उस समय के माहेश्वरी बंधुओं को सीमित संख्या को देखते हुए यही प्रचलन था कि आपस में ही किसी माहेश्वरी बन्धु का कोई न कोई स्थान उपयोग में लाया जाता था, ज्यों-ज्यों माहेश्वरी समाज का विकास होता गया, जनसंख्या बढ़ती गई त्यों-त्यों यह भावना जोर पकड़ती गई कि समाज का अपना एक भवन हो। समाज के विभिन्न समाजसेवी बंधु जैसे श्री नथमलजी डागा, श्री श्रीकृष्णजी झंवर एवं अन्य बन्धु सदैव समाज के उपयोग के लिए अपनी जगह देने के लिए तत्पर रहे।१९५२ से १९५७ में माहेश्वरी समाज की सभाएँ श्री मुरलीधर चांडक माहेश्वरी भवन में होती रही, उन दिनों कोई बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों अथवा उत्सवों का आयोजन नहीं होता था। समाज की सभाएँ भी पंचायत के रूप में हुआ करती थी। समय की माँग और विकास प्रक्रिया को ह्य्दयंगम कर २४-१०-५७ को श्री माहेश्वरी सभा, मद्रास का गठन व पंजीकरण हुआ। सभा का अपना कोई भवन अथवा स्थान न होने के कारण सभा का कार्यालय श्री नथमलजी डागा के निवास स्थान- १०४, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस रोड, मद्रास-१ में ही रखा जाता था, धीरे-धीरे, समाज का एक निजी स्थान हो, यह भावना प्रबल होती गई, इसकी आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा। लिहाजा भवन तथा स्थान के लिए प्रस्तावित योजनाओं पर समय-समय पर विचार होता रहा। प्रारम्भ में सभा के कार्यकलापों के लिए स्थान की आवश्यकता महसूस की गई लेकिन समाज के लोगों की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए, यह सोचा गया कि भवन ऐसा बनना चाहिए जो केवल उत्सवों व सभाओं के लिए ही नहीं बल्कि अन्य सामाजिक कार्यों, जिसके लिए समाज के बंधुओं को भवन की आवश्यकता पड़ती है, के भी काम आ सके।

समय अपनी गति से चल रहा था, इसी तरह सोचते-विचारते १० वर्ष बीत गये और समाज भी काफी विस्तृत हो गया। निजी भवन की आवश्यकता भी बढ़ते समाज के साथ बढ़ती गई, इस दिशा में प्रथम ठोस कदम २१-०५-६७ को उठाया गया, जब सभा में श्री खेमचन्दजी तोषनीवाल की अध्यक्षता में यह निश्चित किया गया कि भवन शीघ्रातिशीघ्र बनाया जाए और समाज के जो भी बन्धु एक लाख की राशि दान दे उनके नाम पर भवन का नाम रखा जा सकता है, इसी आधार पर आगे की कार्यवाही होती रही, कई स्थान देखे गये। बातचीत भी चली। १३-१२-६७ को वर्ष की नयी गठित कार्यकारिणी समिति ने श्री बालकृष्ण कोठारी की अध्यक्षता में एक उपयुक्त स्थान खरीदने का निश्चय किया, जहाँ आज समाज का भव्य भवन बनकर तैयार है। निश्चय के बाद सबकी राय के अनुसार इस विषय में श्री चम्पालालजी मूँधड़ा से मिला गया। समाज के गणमान्य व्यक्ति श्री श्रीकृष्णजी झँवर के साथ एकत्रित होकर समाज के लोग जमीन लेने का कार्यक्रम बनाकर श्री चम्पालालजी मूँधड़ा के यहाँ पहुँचे। श्री चम्पालालजी ने ‘‘शुभ काम में देरी क्यों’’ के सिद्धांत को अपनाते हुए तुरंत चिट्ठा आरम्भ किया, उसी समय निश्चय किया गया कि भूमि मकान खरीद लिया जाए। श्री चम्पालालजी ने तुरंत दान की राशि लिख दी और यह निश्चय किया गया कि भवन पर श्री फुसाराम चम्पालाल मूँधड़ा का नाम दिया जाएगा। आरम्भ में यह सोचा गया कि पुराने मकान में रद्दो बदल कर भवन की रूपरेखा बनाई जाए, इसके लिए ४-५ लाख की लागत आंकी गई। समाज के अन्य सुधी बन्धुओं ने भी उदारतापूर्वक दान देकर उत्साह बढ़ाया, फलस्वरूप ३-७- १९७८ को भूमि का पंजीकरण कर लिया गया। समाज की जागरूकता और बढ़ती जनसंख्या तथा उत्साह को देखते हुए ४ लाख से १४ लाख रूपए की लागत का भव्य भवन आकार लेता गया। ज्यों-ज्यों योजना बढ़ती गई त्यों-त्यों न केवल मूँधड़ा परिवार बल्कि अन्य माहेश्वरी समाज के दानवीरों द्वारा दानराशि बढा दी गई। काम जितना बड़ा होता है, कठिनाइयाँ भी आती हैं जिसे दूर करने वाले व्यक्ति भी आगे आते हैं। भूमि लेने के लिए व भवन के लिए एक ट्रस्ट की योजना बनाई गई, इस कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी श्री बृजमोहनजी मोहंता, श्री छगनलालजी मूँधड़ा, श्री बृजरतनजी मोहता व श्री रामरतनजी बागड़ी को सौंपा गया। फलस्वरूप श्री माहेश्वरी भवन ट्रस्ट का पंजीकरण ६-१०- १९६९ को हुआ जिसके संस्थापक ट्रस्टी श्री फुसाराम चम्पालालजी मूँधड़ा, श्री सोहनलालजी मूँधड़ा, श्री बालकृष्णजी कोठारी, श्री श्रीकृष्णजी झंवर, श्री नथमलजी डागा, श्री खेमचन्दजी तोषनीवाल तथा श्री माणिकलालजी भैया हुए। धीरे-धीरे योजना की रूपरेखा भी बदलती गई और कालान्तर में यह निश्चित किया गया कि भवन ४ मंजिल का बनाया जाए, इसके लिए पुराना मकान खाली करवाने और पूरा तुड़वाने की आवश्यकता थी। जगह खाली कराने में श्री छगनलालजी मूँधड़ा, श्री रामनारायणजी भट्टड़, श्री सोहनलालजी मूँधड़ा का योगदान विशेष रहा, इसी बीच समाज के दो महत्वपूर्ण व्यक्ति (जिनका महती सहयोग भवन को मिलता रहा) श्री चम्पालालजी मूँधड़ा और श्री श्रीकृष्णजी झंवर का स्वर्गवास हो गया, लेकिन इनके प्रयत्नों से रोपा गया बिरवा धीरे-धीरे बढ़कर वृक्ष का रूप लेता गया।

भवन की बृहद् रूप रेखा बन जाने पर समाज ने समय के अनुरूप अपना ह्य्दय भी विशाल करने की योजना बनाई, अस्तु यह निश्चित किया गया कि भवन का उपयोग मात्र माहेश्वरी समाज के लोग ही नहीं बल्कि इतर समाज के लोगों अर्थात् सार्वजनिक रूप में भी किया जा सकता है, इस निश्चय को कार्यरूप में परिणित करने के
लिए ही वर्तमान में जो ट्रस्ट है उसकी रूपरेखा बनाई गई। प्रथम ट्रस्टी श्री सोहनलालजी मूँधड़ा (मैनेजिंग ट्रस्टी), श्री जीवनलालजी मूँधड़ा, श्री नथमलजी डागा, श्री बालकृष्णजी कोठारी, श्री माणकलालजी भैया, श्री हरिकृष्णजी झंवर व श्री खेमचन्दजी तोषनीवाल हुए, इस महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्री फुसाराम चम्पालाल मूँधड़ा माहेश्वरी चैरिटेबल ट्रस्ट का नाम बदलकर मद्रास माहेश्वरी चैरिटेबल ट्रस्ट किया गया। श्री सोहनलालजी व श्री जीवनलालजी मूँधड़ा को मूंधड़ा परिवार के विशेष दान व काम को दृष्टि में रखते हुए  ट्रस्टी बनाया गया। ट्रस्ट का पंजीकरण होते ही भवन के निर्माण का कार्य शीघ्रता से आगे बढ़ने लगा। प्रारम्भ में निर्माण कार्य में श्री बालकृष्णजी कोठारी, श्री माणकलालजी भैया, श्री शिवलालजी दम्मानी, श्री पन्नालालजी मूँधड़ा आदि का विशेष सहयोग रहा। श्री गोविन्दरावजी को आर्किटेक्ट तथा श्री एन.आर. दवे को भवन निर्माण का ठेका दिया गया। आवश्यक नक्शे बनाये गये और २-५-१९७४ को भवन शिलान्यास श्री बी.आर. नेडुन्चेलियन (तत्कालीन शिक्षा मंत्री, तमिलनाडु) के कर-कमलों द्वारा हुआ। भूमि पूजन का सद्कार्य समाज के माननीय श्री विश्वेश्वरदासजी दम्मानी ने सम्पन्न कराया। भवन निर्माण कार्य में मद्रास माहेश्वरी समाज के सभी बन्धुओं ने तन-मन-धन से समय समय पर अपना पूरा योगदान दिया, जिसके कारण आज भवन का कार्य पूर्ण हो सका है,इस कार्य में अनेकों कठिनाईयाँ भी आर्इं जिन्हें सुलझाने के लिए भवन के ट्रस्टियों एवं सभा के कार्यकारिणी समिति के सदस्यों ने शालीनता और धीरता से अपना योगदान दिया। श्री माणकलालजी भैया ने जिनकी तीन वर्ष की अध्यक्षता में यह कार्य पूरा हुआ, की कार्यकुशलता और सक्रियता को देख कर पूरी समिति कार्य में जुटी रही। दान राशि एकत्रित करने में श्री बालकृष्णजी कोठारी का योगदान भूलाया नहीं जा सकता। जिन्होंने येन-केन भवन के काम के लिए आर्थिक कमी का अनुभव किसी को नहीं होने दिया, इसके साथ श्री बंशीलालजी राठी, श्री हरिकृष्णजी सारडा, श्री माणकलालजी भैया, श्री जयनारायणजी डागा, श्री छगनलालजी मूँधड़ा, श्री दामोदरदासजी राठी, श्री अमरन्दजी बिहाणी, श्री दाऊलालजी राठी, श्री ब्रजगोपालजी फुमड़ा, श्री मगनलालजी झंवर आदि का भरपूर योगदान मिला।

भवन के लिए श्री हरिकृष्णजी सारड़ा, तत्कालीन मंत्री का कार्य कभी भी भूलाया नहीं जा सकता। श्री श्रीगोपाललालजी बागड़ी, श्री एन.डी. बाहेती, श्री राजमोहन मोहंता का ट्रस्ट की रूपरेखा ठीक करने में अतुल्य योगदान रहा। भवन निर्माण का काम आरम्भ श्री पन्नालालजी मूँधड़ा, श्री ब्रजरतनजी डागा व अन्य व्यक्तियों ने किया। भवन निर्माण का काम लगभग दो वर्ष (१९७५-१९७६) में पूरा हुआ, इस अवधि में श्री बालकृष्णजी कोठारी, श्री शिवलालजी दम्माणी, तत्कालीन संयुक्त मंत्री के निरीक्षण में पूरा काम हुआ, जिन्हें भवन के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। १९७७ में माहेश्वरी समाज का विशाल भवन को पूरा करने का श्रेय तीन वर्षों से कार्य करते आ रहे, सभा के पदाधिकारियों व कार्यकारिणी के सदस्यों को है, नवीन भवन जिन्होंने अनेकों कठिनाइयों का सामना करते हुए श्री माहेश्वरी समाज का सपना साकार किया। दिनांक २७-३-१९७७ को श्री सोहनलालजी मूँधड़ा द्वारा भवन की प्रतिष्ठा की गई। भवन को मुकम्मिल होने में अभी भी कुछ काम बाकी था, लेकिन सभा की तथा अन्य कार्य अपने ही भवन में होने लगे, प्रथम बार लक्ष्य निश्चित होने की प्रथा कार्यकारिणी ने बनाई और भवन निर्माण का कार्य पूरा करने का श्री महेशनवमी का दिन निश्चित किया गया, इसी निर्णय के फलस्वरूप आज हम भवन का कार्य पूरा कर सके। काम के अंतिम दिनों में कठिनाइयाँ अधिक आती हैं लेकिन श्री छगनलालजी मूँधड़ा, श्री ब्रजरतनजी मोहता, श्री राजमोहनजी मोहंता व अन्य समाज सेवियों के अथक परिश्रम से भवन बनकर निर्धारित समय पर तैयार हो सका। महिलाओं का योगदान: भवन निर्माण कार्य में महिलाओं का योगदान भी अपूर्व रहा, श्री लक्ष्मीनारायणजी राठी की प्रेरणा से महिलाओं ने लगभग ४०,००० की राशि भवन-निर्माण हेतु एकत्रित करके दी, स्पष्ट है कि हमारे समाज की महिलाओं ने जो कार्यभार संभाला उसे पूर्ण किया और यह सबके लिए एक प्रेरणा का विषय है। भव्य भवन: माहेश्वरी सभा, मद्रास का कीर्ति स्तम्भ, माहेश्वरी भवन की विशालता इसी से आंकी जा सकती है कि इस भवन के साथ दो विवाह हो सकते हैं। निचले तल्ले (ग्राउण्ड फ्लोर) पर एक सुसज्जित व्याख्यागार है जिसमें चार सौ लोग एक साथ बैठ  सकते हैं, पहली मंजिल पर आधुनिक साधनों से युक्त १२ कमरों का निर्माण किया गया है, जिनमें सात स्नानागार युक्त हैं और पाँच सादे हैं। पहली मंजिल पर भी एक हाल निर्माण किया गया है, दूसरी और तीसरी मंजिल पर भी हाल का निर्माण किया गया है जिसमें शादी तथा अन्य समारोह विधिवत किए जा सकते हैं। चौथी मंजिल पर रसोई की व्यवस्था के साथ भोजन आदि के लिए खुली छत है। भवन की उपयोगिता और लोगों की सुविधा के लिए एक लिफ्ट की भी व्यवस्था की गई है, कहना न होगा कि माहेश्वरी भाईयों की लगन और कर्मठता से एक ऐसा भवन बनकर आज तैयार हो गया है, जिसकी गणना मद्रास के इने-गिने सामाजिक भवनों में बखूबी की जा सकती है।

– राजमोहन मोहंता
चेन्नई

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