राजस्थान का एक प्रतिभाशाली धार्मिक गांव टमकोर

उत्तर पूर्वी राजस्थान के झुँझुनूं जिले के उत्तरी कोने पर बसे ‘टमकोर’ कस्बे का इतिहास विविधताओं से भरा हुआ है, जहाँ इस भूमि पर चोरड़िया परिवार में अहिंसा के पुजारी युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जैसी महान विभूति का जन्म हुआ, वहीं इस गांव के जन्म के साथ एक रोंगटे खड़े कर देने वाली किंवदंती भी प्रचलित है: लगभग ४५० वर्ष पूर्व गांव के पूर्वी छोर पर जहाँ आज गोगाजी की मेड़ी स्थित है, वहाँ यह गांव कस्वों (जाट जाति) का ‘टमकोर’ नाम से जाना जाता था। महला परिवार (जाट जाति) जो कि कस्वों के भाणजे थे, समयान्तर पर यहाँ आकर बस गये। पीने के पानी के लिये जोहड़े के पास एक कुआँ हुआ करता था, जिसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। कुएं के पानी को लेकर कस्वों एवं महला परिवार की महिलाओं में झगड़ा हो गया, उस झगड़े से दोनों परिवारों के मन में कटुता आ गई। कहा जाता है कि कस्वां परिवार महलों के यहाँ भोज पर आया हुआ था, जिस बाड़े में कस्वां परिवार खाना खा रहा था, उसमें आग लग गयी, फलस्वरूप, कस्वां परिवार लगभग समाप्त हो गया। बचे खुचे कस्वां परिवार के लोग अन्यत्र चले गये, ऐसा भी कहा जाता है कि ‘टमकोर’ मूलतः दो भागों में विभक्त था, उत्तरी भाग डूंडलोद ठिकाने से सम्बन्ध रखता था तथा दक्षिणी भाग बिसाऊ ठिकाने से। सम्भवतः उत्तरी भाग पहले बसा था। मुल्कपुरिया परिवार (शेखावत राजपूत) का यहाँ पर वर्चस्व था। दक्षिणी भाग में सबसे पहले गिड़िया (ओसवाल) परिवार आकर ‘टमकोर’ में बसा। केडिया (अग्रवाल) परिवार को इनका समकालीन माना जाता है, उस समय की व्यवस्था के आधार पर पडिहार, राजपूत, महला (जाट), गुजर गौड़ ब्राह्मण एवं नाई भी दक्षिणी भाग में बसाये गये। कालान्तर में गांव के ये दोनों भाग ‘बिसाऊ’ ठिकाने के अन्तर्गत आ गये। उसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि गांव के ठाकुर साहब (बिसाऊ क्षेत्र) घोड़े पर सवार होकर जा रहे थे, उसी समय कुछ महिलायें सिर पर घड़े लिये पानी भरने जा रही थी। महिलाओं को असुविधा न हो इस दृष्टि से ठाकुर साहब एक तरफ छिप गये, जब महिलायें आगे निकल गईं तब ठाकुर साहब पुनः रवाना हुए, किन्तु उनकी अचकन बाड़ में अटक कर कुछ फट गई, अतः उन्होंने मुल्कपुरिया परिवार को निवेदन किया कि रास्ते थोड़े चौड़े रखें ताकि इस तरह की असुविधा की पुनरावृत्ति ना हो, किन्तु मुल्कपुरिया परिवार ने उत्तर दिया कि ‘आप अपने क्षेत्र की चिन्ता करें यह तो हमारा क्षेत्र है’। उपरोक्त घटना की खबर ज्योंही बिसाऊ ठिकाने तक पहुंची, उन्होंने अपने समकक्षी ‘डूंडलोद’ ठिकाने वालों से कहा कि ‘आप चाहें तो ‘टमकोर’ का हमारा हिस्सा ले लें अथवा आपका हिस्सा हमें दे दें’। दोनो ठिकानों का परस्पर रिश्ता तो था ही, ‘टमकोर’ संपूर्णतः बिसाऊ ठिकाने के अधीन आ गया, इससे रूष्ट होकर मुल्कपुरिया परिवार ‘धेतरवाल’ गांव चला गया, परन्तु वहाँ ज्यादा दिन नहीं टिक सका एवं पुनः ‘टमकोर’ आकर बस गया। ‘टमकोर’ गांव वर्तमान में झुंझुनू जिले के अन्तर्गत होते हुए भी चारों ओर से चुरू जिले से घिरा हुआ है, ठीक वैसे ही पुराने जमाने में यह गांव जयपुर रियासत में था, परन्तु सीमायें ‘बीकानेर’ रियासत से घिरी हुई थी। जगात वगैरह के लिये यहीं पर व्यवस्था थी। राजकीय कर्मचारियों के आने जाने का तांता लगा रहता था। अनाज की अच्छी मण्डी होने के नाते ऊंटों पर लोगों का निरंतर आवागमन रहता था, अतः जयपुर रियासत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से गांव का काफी महत्व था। गांव के मध्य भाग में स्थित रामजसरायजी माखरिया एबं कनीरामजी रावतमलजी अग्रवाल की विशाल धर्मशालायें, यहाँ बड़ी संख्या में आने वाले व्यापारियों एवं यात्रियों की चश्मदीद गवाह है। चूंकि व्यापार की अच्छी सम्भावनाएँ थी, इसलिये यहाँ महाजन समाज धीरे-धीरे आकर बसने लगा। सबसे पहले आने वालों में गिड़िया (सम्भवतः श्री फूलचन्द गिड़िया) एवं केडिया परिवार थे। वहीं लगभग २०० वर्ष पूर्व श्री दुलीचन्द चोरड़िया भी यहां ‘बहल’ से आकर बस गये। कालान्तर में उनके चचेरे भाई श्री खमाणचन्द, श्री चुन्नीलाल एवं श्री जालमचन्द, श्री सालमचन्द चोरड़िया के परिवार भी ‘बहल’ से आकर यहां बस गये। मेघराजोत राठोड़ परिवार (राजपूत) वि.सं. १८६६ में यहाँ आकर बसा। श्री जीतुसिंह मेघराजोत ने अपनी अच्छी पेठ जमाई। माखरिया (अग्रवाल) परिवार के लिए ऐसा कहा जाता है कि ढींगी से उठकर अन्यत्र बसने के लिये जा रहा था, ‘टमकोर’ के ठाकुर साहब की नजर उन पर पड़ गयी, उन्हें गढ़ में बुलाया गया एवं रहने की जगह तथा दुकान गढ़ के पास ही बनवा दी गई। श्री देवकरणदास माखरिया टमकोर के वाशिन्दे बन गये, अन्य जातियों का भी निरन्तर आवागमन चालू रहा। यहाँ पीने के पानी के लिये कुंडों पर निर्भर रहना पड़ता है, क्योंकि भूगर्भीय जल पीने योग्य नहीं था। वि.सं १७१५ के लगभग जब गांव में कुंड काफी कम थे, ठाकुर जवाहरसिंह किले की छत पर घूम रहे थे, उन्हें सूर्य की रोशनी में पानी की तरह चमकती हुई धरती दिखायी दी। खोज करने पर पता चला कि पीने का पानी खारा होने के कारण प्रजा दस्त की बीमारी से ग्रस्त है। आपकी नजर जहाँ पड़ी है वहां प्रजा के शौच जाने की जगह है, इतना सुनते ही उन्होंने प्रजा के िलये पीने के पानी के कष्ट के निवारण हेतु पक्के ‘जोहड़े’ के निर्माण का निर्णय लिया। वि. सं. १७१७ में ठाकुर जवाहरसिंह निर्माण कार्य के निरीक्षण करने हेतु ‘टमकोर’ आ रहे थे, ‘बिसाऊ’ से किसी परिवारजन के बीमार होने की खबर आ गयी। उन्हें वापस लौट जाना पड़ा। जोहड़े का निर्माण कार्य तो पुरा हो गया, परन्तु सौन्दर्यकरण बाकी रह गया। विदित हो कि गढ़ (किले) का निर्माण वि.सं. १७१५ से पहले हुआ, साथ ही राजतंत्र का उज्ज्वल पक्ष भी प्रदर्शित होता है तथा प्रजा के कष्टों के प्रति राजघराने कितने संवेदनशील होते थे, यह स्पष्ट हो जाता है। कालान्तर में ‘टमकोर’ के क्षेत्र से कुछ हिस्सा काटकर ठाकुर श्री जवाहरसिंह ने जवाहरपुरा गांव आबाद किया। ‘टमकोर’ के पास अट्ठारह हजार बीघा जमीन थी, जिसमें से छः हजार बीघा जमीन जवाहरपुरा गांव को दे दी गयी। ‘टमकोर’ के अधीन केवल बारह हजार बीघा जमीन रह गयी। गाँव की प्रशासनिक व्यवस्था हेतु किले में किलेदार की नियुक्ति होती थी। गाँव के प्रमुख व्यक्ति को ‘पटवारी’ बनाया जाता था। प्रारम्भ में गिड़िया परिवार का कोई एक पटवारी हुआ करता था। श्री पूर्णमल गिड़िया काफी समय तक पटवारी रहे, श्री रूपचन्द गिड़िया परिवार से अन्तिम पटवारी हुए, तत्पश्चात्‌ श्री भादरमल चोरड़िया ने पटवारी का काम सम्भाला, उनकी उदारता आज भी लोगों को याद है। अपनी पत्नी के गहने भी गिरवी रखकर गरीबों की सहायता करना उनके स्वभाव का अंग था। घर खर्च की वस्तुओं में से भी जरूरतमंदों की आवश्यकता को पूरा कर दिया करते थे। गांव के चौकीदार की माँ का द्वादशी कर्म सम्पन्न करने हेतु अपनी विवाहित पुत्री (राजगढ़) से गहने उधार मांगकर गिरवी रख देने की घटना आज भी गाँव में बुजुर्गों के मानस पटल पर अंकित है। श्री भादरमल चोरड़िया के बाद पटवारी की बागडोर श्री रावतमल अग्रवाल ने सम्भाली। भारत स्वतंत्र होने के बाद वे गांव के प्रथम सरपंच बने, अपितु पटवारी के नाम से उनकी पहचान जीवन भर बनी रही, उनका सरपंच काल काफी लम्बा रहा। श्री सत्यदेव सत्यार्थी भी गांव के सरपंच पद पर सुशोभित हुए किन्तु उनका सहज स्वभाव आज की व्यवस्था को आत्मसात्‌ नहीं कर पाया। श्री गोकुलचन्द सोनी को सन्‌ा् १९७८ में निर्विरोध सरपंच चुना गया, उनका कार्यकाल भी काफी लम्बा रहा, उनकी पत्नी श्रीमती गीतादेवी सोनी ने उनसे कार्यभार सम्भाला। वर्तमान में श्रीमती संतोष देवी सोनी सरपंच हैं। गांव की चौधराहट महला परिवार के पास रही। श्री खेताराम, श्री जीवनराम, श्री बोहीतराम, श्री रामचन्द्र एवं श्री मुंगाराम ने बखूबी इस दायित्व को निभाया। आजादी के समय चौधराहट श्री जालुराम महला के पास थी, आज भी गांव वाले होलिका-दहन के समय उनका सम्मान पहले की तरह ही करते हैं। ‘टमकोर’ का भूगर्भीय जल पीने योग्य नहीं था फिर भी पशुओं के पीने एवं सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समय-समय पर कुओं का निर्माण करवाया जाता रहा, ‘जोहड़े’ के पास बना हुआ कुआँ, जिसके अब केवल अवशेष ही देखे जा सकते हैं, गांव के साथ आरम्भ से ही जुड़ा हुआ है, उसका निर्माण कस्वों ने करवाया था, इसके बाद निर्मित कुओं में गांव के दक्षिणी भाग में निर्मित महलों का कुआँ माना जाता है। खाडे वाला कुआँ प्रारम्भिक अवस्था में कुई के रूप में था। बीरामणीया कुआँ, गणगोर का कुआँ एवं सागरमलजी के कुएं ने भी गांव की जरूरतों को पूरा करने में अहम् भूमिका निभायी। वि. सं. १९८६ में गांव के दक्षिण पश्चिमी कोने पर श्री भुवानीराम रâंगटा की पत्नी ने एक कुआँ बनवाया जो आज भी जल की आपूर्ति करता है। श्री हरखचन्द चान्दमल बागला ने गांव के उत्तरी छोर पर वि. सं. १९९३ में कुएं का निर्माण करवा कर आसपास के पशुओं को नया जीवन दान दिया, तब से अब तक कुआँ सुचारू रूप से बागला बंधुओं द्वारा चलाया जा रहा है। वि. सं. १७१७ में बना पक्का जोहड़ा ‘जवाहर सागर’ गांव में पीने के पानी का प्रमुख स्त्रोत बना रहा। यथासंभव ग्रामवासियों ने पीने के पानी हेतु कुंड बनवाने प्रारम्भ कर दिये। महला परिवार द्वारा एक कुंड का निर्माण करवाया गया था। मठ के पास भी राहगीरों को पानी पिलाने हेतु ‘बिसाऊ’ के सेठ ने एक कुंड बनवाया जो आज भी प्याऊ वाले कुंड के नाम से प्रसिद्ध है, अब तो कुंड का निर्माण, भवन निर्माण के साथ पहली आवश्यकता बन गयी है। लगभग २५ वर्ष पूर्व सरकार द्वारा लुटु योजना के तहत गांव को पाइप लाइन से जोड़ा गया। पानी भी पीने योग्य अच्छा है। सरकारी योजना के अन्तर्गत, खारे पानी को मीठा करने की एक मशीन खाडे वाले कुएं के पास लगायी गयी, जो कि लगभग तीन वर्ष तक ही कार्यरत रही। ‘टमकोर’ के विकास के लिये यहाँ के लोग निरंतर सचेष्ट रहे हैं। प्रारम्भ में डाक की व्यवस्था बिसाऊ से थी। डाकिया बिसाऊ से आकर पत्र आदि देता था। एक बार बिसाऊ के ठाकुर श्री रघुवीरसिंह ‘टमकोर’ पधारे तब उनसे पोस्ट ऑफिस की सुचारू व्यवस्था चालू करने का आग्रह किया गया। सन्‌ा् १९४६ में छाजेड़ों की हवेली के नीचे पोस्ट ऑफिस चालू कर दिया गया, जिसका नाम ठाकुर श्री बिशनसिंह की यादगार में ‘बिशनगढ़’ रखा गया, इस प्रकार ‘टमकोर’ दो नामों से जाना जाने लगा-टमकोर और बिशनगढ़, किन्तु कुछ दशकों के बाद टेलीफोन की व्यवस्था हेतु सरकारी अधिकारियों को बिशनगढ़ गांव खोजने में असुविधा हुई, तब पोस्ट ऑफिस का नाम बदलकर ‘टमकोर’ कर दिया गया। राजस्व विभाग में तथा स्कूल, अस्पताल आदि सभी ‘टमकोर’ के नाम से थे ही… टेलीफोन व्यवस्था का श्रीगणेश पी.सी.ओ. के रूप में पोस्ट ऑफिस में किया गया। कालान्तर में टेलीफोन एक्सचेन्ज जोहड़े पर बने तीबारे में स्थापित किया गया जो आज संचार व्यवस्था के रूप में ग्रामवासियों के काम आ रहा है। शिक्षा के प्रति ग्रामवासियों की सजगता बराबर रही है। प्रारम्भ में अध्यापन की व्यवस्था आर्य-समाज भवन में की गई। कालान्तर में ओसवाल समाज ने अलग अध्यापन की व्यवस्था की। कुछ समय बाद दोनों व्यवस्थायें एक में परिवर्तित हो गयी। विद्यालय सन्‌ १९३८ में गांगियासर निवासी सेठ श्री जमुनादास टीबड़ेवाला की धर्मपत्नी गुलाबीदेवी (गांव मंडेला) द्वारा गांव के उत्तरी छोर पर निर्मित भवन में आ गया। शिक्षा के क्षेत्र में गुरूजी के नाम से विख्यात श्री विष्णुदत्त शर्मा का नाम कोई भी नहीं भूला सकता। आज भी उनके पास पढ़े हुए विद्यार्थी गर्व का अनुभव करते हैं। युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ जैसे दार्शनिक भी उनके शिष्य रह चुके हैं। कालान्तर में मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी, कलकत्ता ने स्कूल की व्यवस्था अपने हाथ में ली। कुछ अर्से बाद इस व्यवस्था का भार बिड़ला ऐज्युकेशन ट्रस्ट ने सम्भाला। श्री मोतीलाल झुंझुनूवाला (गांव मलसीसर) ने भी कुछ दिन इस व्यवस्था में योगदान दिया। ग्रामवासियों की एक समिति कलकत्ता में श्री बच्छराज कोठारी के नेतृत्व में गठित की गई, इस समिति ने थोड़े समय के लिये इस व्यवस्था को सम्भाला, किन्तु २७ अक्टुबर सन्‌ १९५२ को खोरी गांव के श्री मगराज शर्मा के विशेष प्रयास से यह स्कूल राजकीय व्यवस्था में चली गयी एवं सातवीं तक चलने वाली यह स्कूल मीडिल स्कूल बन गयी। गांव के बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिये बाहर जाने में आने वाली असुविधाओं को देखते हुऐ इसे हाईस्कूल में क्रमोन्नत करवाने के प्रयास चालू हो गये। फतेहपुर के दानवीर सेठ श्री सोहनलाल दुगड़ को निमंत्रण भेजा गया। भवन निर्माण के लिये पाँच हजार रुपये प्रदान कर उन्होंने ग्रामवासियों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने पुनः दो हजार का आर्थिक सहयोग दिया। ओसवाल एवं अग्रवाल समाज के सज्जनों ने आर्थिक सहयोग देकर भवन निर्माण पुरा करवाया। यहां श्री लक्ष्मीनारायण बागला का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने बागला परिवार की परम्परा को चालू रखते हुऐ स्कूल में हॉल के निर्माण का खर्च वहन किया एवं एक-एक कमरे के निर्माण हेतु आर्थिक अनुदान देने वाले सज्जन थे: (१) श्री गणपतराय नेमीचन्द भन्साली (२) श्री छोटूलाल प्रहलादराय अग्रवाल (३) श्री दीपचन्द प्रेमचनद नखत (४) श्री ओंकारमल अग्रवाल (५) श्री हीरालाल धर्मचन्द चोरड़िया (६) श्रीमती मणियादेवी अग्रवाल। श्री ओंकारमल माखरिया ने कुंड का निर्माण करवाया। हाईस्कूल निर्माण के लिये एक ओर जहाँ श्री नेमीचन्द भन्साली ने श्रमदान कर एक मिशाल पेश की, वहीं दूसरी और श्री हीरालाल चोरड़िया, श्री प्रेमचन्द नखत एवम् श्री सोहनलाल भन्साली के प्रयास भी सराहनीय रहे। हाईस्कूल की स्वीकृति के लिये श्री धनराज चोरड़िया, श्री नथमल शर्मा, श्री सत्यदेव सत्यार्थी ने निरन्तर प्रयास किये, इस हेतु तत्कालीन विधायक श्री लच्छुराम के सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता, वे इस स्कूल में अध्यापक भी रह चुके थे, सन्‌ा् १९६१ में यह स्कूल हाईस्कूल में क्रमोन्नत हो गयी। सैकेन्डरी स्कूल में क्रमोन्नत करवाने का श्रेय तत्कालीन विधायक श्री रामनारायण चौधरी को जाता है। कालान्तर में राजकीय योजना के अन्तर्गत यह माध्यमिक विद्यालय राजकीय उच्च-माध्यमिक विद्यालय, टमकोर में क्रमोन्नत हो गयी। हाईस्कूल के प्रथम प्रधानाध्यापक रहे श्री मुरारीदान सिंह रतलाम निवासी। यह विद्यालय सन् १९८५-८६ में आदर्श विद्यालय घोषित हो चुका था। श्री गोर्धनदास गिड़िया के सहयोग से कमरे का निर्माण, जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत दो कमरों का निर्माण, श्री पूनमचन्द चोरड़िया द्वारा टंकी एवं बुक बैंक, श्री बालचन्द भन्साली द्वारा सौंदर्यकरण के लिए सहायता मिलने से विकास को गति दी गयी। उत्तरोत्तर विकास के लिये प्रधानाचार्य श्री राधेश्याम जिनगर प्रयासरत रहे। मिडिल स्कूल से हाईस्कूल में क्रमोन्नत होते ही प्राथमिक स्कूल के लिये व्यवस्था की जरूरत महसूस हुयी। सामयिक तौर पर यह स्कूल कनीरामजी रावतमलजी अग्रवाल की धर्मशाला में चलायी गयी, बाद में श्री लक्ष्मीनारायण बागला द्वारा प्रदत्त जमीन पर तत्कालीन सरपंच श्री रावतमल अग्रवाल के प्रयास से प्राप्त आर्थिक जन सहयोग द्वारा प्राथमिक स्कूल भवन का निर्माण गांव के पश्चिमी छोर पर किया गया, जहाँ यह राजकीय प्राथमिक विद्यालय अभी चल रहा है। गांव में बालिकाओं की अलग स्कूल की आवश्यकता महसूस की गयी, इस हेतु श्री धर्मचन्द चौरड़िया ने अपनी मातुश्री बुधीदेवी की स्मृति में जमीन देकर उत्साहित किया, पुन: श्री लक्ष्मीनारायण बागला ने उदारता का परिचय देते हुए एक कमरे हेतु आर्थिक सहयोग दिया तथा एक कमरा श्री हीरालाल सुजानमल बच्छराज चोरड़िया ने बनवाया। टमकोर डेवलपमेन्ट कमेटाr ने अपने कोष का उपयोग करते हुए इस भवन के निर्माणकार्य को सम्पन्न करवाया। सन्‌ा् १९६७ में प्राइमरी स्कूल के तत्कालीन प्रधानाध्यापक श्री मंगलचन्द शर्मा, अध्यापक श्री अब्दुल हमीद, स्थानीय कार्यकर्ता श्री मालमचन्द जैन के विशेष प्रयास से बालिकाओं की अलग प्राइमरी स्कूल का शुभारम्भ उपरोक्त भवन में हो गया, इस स्कूल के प्रथम अध्यापक रहे स्थानीय श्री जगदीशप्रसाद शर्मा। श्रीमती सोनीदेवी सांगानेरिया (मलसीसर निवासी-पुत्री श्री रामणसराय माखरिया, टमकोर) ने सन्‌ १९७३ में कुंड बनवाकर पीने के पानी की व्यवस्था की। वर्षों तक बालकों की प्राइमरी स्कूल के अन्तर्गत ही अलग बालिकाओं की स्कूल के रूप में चलने के बाद तत्कालीन विधायक श्री रामनारायण चौधरी के प्रयास से यह स्कूल मीडिल स्कूल में क्रमोन्नत हो गया। बालिकाओं की स्कूल को हाईस्कूल में क्रमोन्नत करवाने के लिये पुनः श्री लक्ष्मीनारायण बागला ने उदारता का उदाहरण पेश करते हुए दो लाख रुपये सहकारी खजाने में जमा करवाये। अब यह राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय अकाल राहत योजना में बने सरकारी भवन में सुचारू रूप से चल रहा है। प्राइमरी स्कूल मूल भवन में पूर्ववत चल रहा है। ज्ञातव्य है कि गांव के पूर्वी छोर पर बने बालिकाओं की स्कूल के सरकारी भवन में तत्कालीन सांसद श्री अयूब खां ने अपने कोटे से साढ़े तीन लाख रुपये देकर तुलसी सभा-भवन का निर्माण करवाया, इस समय गांव में सरकारी, गैर-सरकारी, आंगनबाड़ी आदि १२ विद्यालय सुचारू रूप से चल रहे हैं। स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से यहाँ श्री हरखचन्द लक्ष्मीनारायण बागला की तरफ से आयुर्वेदिक औषधालय काफी समय से कार्यरत है। इस औषधालय में श्री महावीरप्रसाद शर्मा काफी समय तक वैद्य के रूप में कार्यरत रहे, वे अपने समय के अच्छे वैद्यों की गिनती में आते थे, इनसे आस-पास के ग्रामवासियों ने भरपूर चिकित्सा लाभ लिया। ज्ञातव्य है कि श्री महावीरप्रसाद शर्मा से पहले उनके पूर्वज भी इस औषधालय में कार्यरत रहे। सन्‌ १९६४ में युनिसेफ योजना के अन्तर्गत छाजेड़ों के नोहरे में उप-स्वास्थ्य केन्द्र खोला गया। श्री मोतीलाल गुप्ता प्रथम अधिकारी थे। सन्‌ १९६५ में श्री चम्पालाल मोहनलाल सुमेरमल चोरड़िया ने अपनी जमीन देकर अस्पताल के भवन निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। भवन का शिलान्यास किया आचार्य श्री महाप्रज्ञ के काका श्री पन्नालाल चोरड़िया ने। सरकारी अनुदान श्री रावतमल अग्रवाल एवं श्री सुजानमल चोरड़िया के प्रयास से प्राप्त हुआ। स्वास्थ्य केन्द्र खुलवाने में श्री रामनारायण चौधरी ने अहम्‌ा् भूमिका निभायी। मूल भवन का निर्माण कार्य टमकोर डेवलपमेंट ने करवाया। श्री सोहनलाल भंसाली ने कुंड बनवाकर पीने के पानी की व्यवस्था करवाई। उप-स्वास्थ्य केन्द्र को डा. पी.आर. जैन के समय में चिकित्सालय का दर्जा मिल गया, फिर सन्‌ा् १९९० में राजकीय स्वास्थ्य केन्द्र (खण्डीय) बन गया। ज्ञातव्य है कि इस भवन का विस्तार ‘काम के बदले अनाज’ योजना के अन्तर्गत दो हॉल बनवाकर किया गया। सन्‌ा् २००१ में सरकारी योजना के अन्तर्गत इसे विस्तारित कर बीस बिस्तरों से सज्जित भवन में परिवर्तित कर दिया गया, गांव में पशु-चिकित्सालय की सुविधा भी उपलब्ध की गई। जन्मधरा टमकोर के लिए महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष की विशेष उपलब्धियां: ‘टमकोर’ सड़क मार्ग के बीच रेलवे अंडर ब्रिज का निर्माण संपन्न हुआ। इस ब्रिज के लिए आसपास के गांव वासियों ने वर्ष २०१० में जबरदस्त जन आंदोलन किया था, इस ब्रिज का नाम महाप्रज्ञ रेलवे सेतु रखने के लिए प्रयास किया गया। जन्म शताब्दी वर्ष की दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि ‘टमकोर’ से सादुलपुर भाया रयाऊं, कालाना होते हुए सबसे पुराने कच्चे मार्ग का पक्का बनकर डामरीकरण करना था। तीसरी उपलब्धि टमकोर की शान जवाहर सागर तालाब के किनारे ग्राम पंचायत के नए कार्यालय भवन का निर्माण होना, गांव के लड़कों और लड़कियों के स्कूल के दोनो खेल के मैदानों के चारों तरफ तारबंदी करवाना तथा लड़कियों के खेल के मैदान में जन सहयोग से ४०० मीटर का रनिंग ट्रैक तथा सरकारी सहयोग से लड़कों के खेल के मैदान में रनिंग ट्रैक बनवाना जरूरी था। गांव में जन सहयोग से पिछले पांच सालों में एक हजार नीम के पौधे लगाना, जो गर्मी की ऋतु में राहगीरों और पशुओं को ऑक्सीजन के अलावा भरपूर छाया दे। गांव के दो प्रमुख चौराहों को सुंदर बना कर बैठने के लिए बेंच लगाना उनका नामकरण करना तथा वहां छायादार पौधे भी लगया जाना है। श्री रावतमल अग्रवाल ने अपने सरपंचकाल में जन सहयोग से काफी निर्माण कार्य करवाये, वहीं श्री गोकुलचन्द सोनी ने अपने १४ वर्ष के लम्बे सरपंचकाल में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हुए काफी निर्माण कार्य करवाये, जिनमें आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्मस्थली बस स्टैण्ड, लड़कियों के हाईस्कूल का भवन आदि प्रमुख हैं। लड़कियों के हायस्कूल में पांच कमरों का निर्माण जैन समाज द्वारा कराया गया। लगभग सात हजार की आबादी वाले इस गांव को मंदिरों का गांव भी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बाजार के मध्य स्थित गोपीनाथजी का मन्दिर एवं गांव के दक्षिण-पूर्व में बने मठ में शिवालय प्राचीनत्तम हैं, जहाँ भौमियाजी एवं गुगोजी के पुराने मन्दिर हैं, वहीं रामदेवजी, बालाजी एवं करणीमाताजी के आधुनिकतम भव्य मंदिर भी हैं। मंदिरों की श्रृंखला गांव की दक्षिणी सीमा पर निर्माणाधीन करंट बालाजी के मंदिर से शुरू होती है। माताजी का मंदिर, गिड़ियों के जूझार स्थल भैरूजी का मन्दिर, शीतलामाता का मंदिर, आदि सभी उत्तरी दिशा की तरफ कतारबद्ध दर्शनार्थ हैं। गोपीनाथजी का मन्दिर गढ़ के पास ही बिसाऊ ठिकाने द्वारा दक्षिणी ‘टमकोर’ के प्रारम्भ में ही बनाया गया था। पूजा अर्चना की जिम्मेदारी मेड़ीवाले ब्राह्मणों को सौंपी गयी। ६०० बीघा जमीन मंदिर को दे दी गयी ताकि जीविका उपार्जन की चिन्ता न रहे। मठ में बने शिवालय की पूजा कानासी के श्री जीतगीरी गुसाई को ठाकुर बिशनसिंहजी द्वारा सौंपी गयी, आज भी उनकी चौदहवीं पीढ़ी के श्री नन्दकिशोर गुसाई पूजा अर्चना कर रहे हैं। श्री जीतगीरी गुसाई की यादगार में बनी छतरी, मठ में अभी भी मौजूद है। २०० बीघा जमीन इस मन्दिर के नीचे दी गयी, दोनों मन्दिरों के लिये गाँव में आने वाले अनाज पर जगात की व्यवस्था भी थी। भौमियोंजी की पूजा गांव के जन्मकाल से ही ‘भूमिपूजन’ के रूप में होती रही है किन्तु इसके साथ एक विचित्र किंवदंती भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महला परिवार के एक निर्माणाधीन कुंड पर सामान की निगरानी करते हुऐ भारूजी महला की उस कुंड में गिर कर मृत्यु हो गयी। तदुपरान्त भारूजी की मृतात्मा ने अपने लिये स्थान की मांग की, जिसकी पूर्ति हेतु भौमियोंजी का मन्दिर उनके स्मृति चिन्ह के रूप में बना दिया गया, तब से गांव की लगभग सभी जातियों में शादी के अवसर पर निकासी के समय दुल्हे द्वारा भौमियोंजी के दर्शन करने की प्रथा आज भी प्रचलित है। आर्य समाज की स्थापना वि. सं. १९४१ में महात्मा श्री कालूरामजी रामगढ़ के कर कमलों से हुई। आर्य समाज का अपना भवन मुल्कपुरिया परिवार द्वारा प्रदत्त जमीन पर है, इसकी स्थापना हेतु श्री रघुनाथराय, श्री त्रिलोकचन्द, श्री टीकुराम कंकड़ेऊवाला, श्री जैतसिंह राजपूत, श्री नानसिंह राजपूत, श्री भूरसिंह राजपूत (मुल्कपुरिया) की अहम्‌ा भूमिका रही। श्री नून्दराम माखरिया, श्री भगतराम माखरिया, श्री जुहारमल केडिया आदि की भी सराहनीय भूमिका रही। श्री हरदेवदास आर्य, श्री मेघराज आर्य, श्री मोहनलाल आर्य, श्री केदारमल आर्य एवं श्री बनारसीलाल आर्य, समाज के कर्मठ कार्यकर्त्ताओं में थे। साप्ताहिक (रविवार को) हवन एवं सत्संग यहाँ अवाध रूप से चलता है। प्रतिवर्ष जलशे के समय ग्रामवासियों को अच्छे-अच्छे विद्वानों के सत्संग का अवसर मिलता है। श्री ज्वालाप्रसाद केडिया ने वि. सं. २०५४ में चार कमरे एवम्‌ा् बरामदे बनवाकर, आर्य समाज मन्दिर को सन्त-महात्माओं के ठहरने का उत्तम स्थान बना दिया है। श्री संघ ओसवाल पंचायत का गठन वि. सं. १९८५ से काफी पहले हो गया था। संस्था का अपना भवन गांव के मध्य भाग में स्थित है। आरम्भ में सामुहिक चन्दे से कुछ कमरे बनाये गये। श्री प्रेमचन्द नखत एवम्‌ा् श्री हीरालाल चोरड़िया के प्रयास से संस्था अपना भव्य भवन है। करीब पन्द्रह छोटे बड़े कमरे, रसोईघर, स्नानघर, कुंड आदि के साथ-साथ अच्छा वर्त्तन-भण्डार आदि सभी सुविधाओं के साथ सामाजिक एवम‌ धार्मिक कार्यों के लिये काफी महत्वपूर्ण है। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा ‘टमकोर’ की स्थापना दिनांक १६-६-१९४५ को श्री हनुतमल चोरड़िया के मकान में हुई सभा में की गयी। प्रथम अध्यक्ष श्री दीपचन्द कोठारी एवं प्रथम मंत्री श्री मोहनलाल चोरड़िया बने, तब से अब तक संस्था अपने सामाजिक एवं धार्मिक दायित्वों का निर्वाह बखूबी करती आ रही है। वि. सं. १९७० से निरतंर होने वाले सुखद चातुर्मास एवं समय-समय पर साथु-साध्वियों का आवागमन संस्था की सक्रियता एवं गुरू कृपा का परिणाम है। आचार्य श्री तुलसी का वि. सं. २००३ में इस छोटे से गांव में श्री चिमनीराम चोरड़िया की हवेली में २१ दिवसीय प्रवास संस्था की सफलता का प्रमाण है। युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की पुश्तैनी जमीन पर भव्य प्रज्ञा भवन का निर्माण गांव की शोभा में चार चांद लगा रहा है। श्री मोतीलाल चोरड़िया ने इस हेतु जमीन प्रदान की थी। श्री धर्मचन्द चोरड़िया द्वारा इस जमीन के पश्चिम स्थित अपना हॉल प्रदान करने की घोषणा के साथ प्रज्ञा भवन के निर्माण कार्य को गति मिली। भवन निर्माण में श्री मित्रालाल भन्साली, श्री रतनलाल नाहटा, श्री हुकमचन्द चोरड़िया एवं श्री भीखमचन्द नखत ने सराहनीय भूमिका अदा की। श्री धर्मचन्द चोरड़िया द्वारा प्रज्ञा भवन को प्रदत्त हॉल में भगवान महावीर होम्योपैथिक चिकित्सालय श्री चैनरूप पूनमचन्द चोरड़िया के सहयोग से चलाया जा रहा है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्मस्थली भी दर्शनीय स्थान बन गया है। विशेषता की बात यह है कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ का जन्म खुले आकाश के नीचे हुआ था। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के सन्‌ा् २००० ई. में ग्राम में पदार्पण के अवसर पर इसका जीर्णोद्धार श्री अशोक चोरड़िया द्वारा कराया गया। गांव में आने वाले सभी आगंतुक इसे देखने के लिए आते हैं। सम्भवतः यही वह स्थल है जहाँ पर आचार्य श्री महाप्रज्ञ के दादाजी श्री बीजराजजी चोरड़िया वि. सं. १६३४ में झुंझुनू से आकर बसे थे। मुनिश्री भूपेन्द्रकुमारजी इस पावन स्थल पर रात्रिकालीन प्रवास (जनवरी २००३) करने वाले प्रथम सन्त हैं। गांव के बाजार के निकट स्थित गढ़ (किले) में श्री लक्ष्मीनारायण बागला द्वारा निर्मित बागला गेस्ट हाऊस और श्री जयचन्दलाल माखरिया द्वारा अपनी पुश्तैनी जमीन पर निर्मित माखरिया गेस्ट हाऊस आधुनिक व्यवस्था के अनुरूप हैं तथा सभी सुविधायें उपलब्ध हैं। चैत्र शुक्ला २ वि. सं. २०२३ को मुस्लिम समुदाय द्वारा एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया। यहाँ आज भी नियमित रूप से नमाज अदा की जाती है। ‘टमकोर’ में जहाँ चार जैन भगवती दीक्षाएँ दी जा चुकी हैं, वहीं यहाँ के सत्ताइस भाई-बहिन (छ: भाई, इक्कीस बहिनें) तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित हो चुके हैं। ‘टमकोर’ से दीक्षित होने वालों में श्री नथमल चोरड़िया, जो कि आज आचार्य श्री महाप्रज्ञ के नाम से विश्वविख्यात हैं, प्रमुख हैं, इस भूमि पर जन्मे मुनि श्री श्रीचन्द ‘कमल’ (श्री श्रीचन्द चोरड़िया) ने अवधान एवं ज्योतिष में क्षितिज को छुआ तो मुनि श्री संगीतकुमार (श्री संचियालाल चोरड़िया) ने संगीत के क्षेत्र में ‘यथा नाम तथा गुण’ वाली कहावत चरितार्थ कर दिखायी। जहाँ मुनिश्री बिमल विहारी (श्री बिमलकुमार कोठारी) द्वारा भरे-पूरे परिवार को छोड़कर दीक्षा लेना एक साहसपूर्ण कार्य था, वहीं मुनि श्री देवेन्द्र कुमार (श्री देवेन्द्र कुमार चोरड़िया) का निर्मोही होकर साधुचर्या को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेना अपने आप में अद्वितीय है। भन्साली परिवार की सुश्री गोर, जो कि साथ्वी श्री गोरांजी के नाम से विख्यात हुई, ने साधुकाल में अपार कष्ट झेले, परन्तु साधुत्व से टस से मस नहीं हुई। ऐसा कहा जाता है कि अन्तिम समय में उन्हें अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के संसारपक्षीय काका श्री पन्नालाल चोरड़िया की सुपुत्री कानकंवरी चोरड़िया साध्वी श्री कमलश्रीजी भी विदुषी साध्वियों में एक है। समण श्रेणी में प्रतिभाप्रज्ञाजी (सुश्री प्रेम नाहटा) विदेशों में महावीर एवं महाप्रज्ञ के अहिंसा दर्शन को जन-जन तक प्रसारित कर अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ रही है। श्री हंसराज कोठारी को श्रद्धानिष्ठ श्रावक की उपाधि से सम्मानित किया गया है। श्री रणजीतसिंह कोठारी तेरापंथ धर्मसंघ की प्रमुख संस्था श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के प्रमुख न्यासी के पद पर आसीन हैं। श्रीचन्द चोरड़िया का नाम समाज के प्रबुद्ध श्रावकों में आता है। साधु-साध्वियों को पढ़ाने का अधिकार भी उन्हें दिया गया था। जैन आगम पर शोध कर योग-कोश, पुदूगल कोश, लेश्या कोश, क्रिया कोश, वर्द्धमन जीवन कोश आदि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कोशों की रचना की है। ग्रामवासियों ने न केवल अपने ही गांव के विकास की ओर ध्यान दिया, बल्कि जहाँ रहे वहाँ के विकास में भी अपना योगदान दिया है। ऐसी ही एक मिशाल पेश की है श्री मदनलाल चोरड़िया ने, २ जनवरी १९७८ को बिहारशरीफ (नालन्दा) में ज्ञानशाला की शुरूआत कर गांव के पूर्वी छोर पर श्री प्रदीपकुमार गिड़िया ने अपने पिताजी श्री गोर्धनदास गिड़िया की स्मृति में उद्यान बनवाकर गांव के सौन्दर्यकरण में चार चांद लगाये हैं। भौमियोंजी से बाजार तक तथा बाजार से सीनियर सैकेन्डरी स्कूल तक मुख्य मार्ग श्री लक्ष्मीनारायण बागला एवं उनके पुत्रों ने ‘अपना गांव-अपना काम’ योजना के तहत बनवाया, इसी योजना के अन्तर्गत सन् १९९६ में श्री तोलाराम चम्पालाल चोरड़िया मार्ग एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ मार्ग का निर्माण श्री बच्छराज माणकचन्द बाबुलाल चोरड़िया ने करवाया। आजादी के बाद कुछ दशकों में पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की बाढ़ सी आ गयी थी, इनमें बालकिशोर संघ, ग्राम सुधार संघ, बालविजय संघ, देशप्रेमी संघ आदि प्रमुख हैं। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा का अपना पुस्तकालय था, जिसका निरीक्षण बिसाऊ ठाकुर श्री रघुवीर सिंह ने भी किया था एवं गतिविधियों से प्रसन्न होकर उस समय दो सौ पचास रुपयों का अनुदान दिया था, अब आचार्य श्री महाप्रज्ञ पुस्तकालय एवम्‌ वाचनालय कार्यरत है। बाजार के मध्य एक प्याऊ, पुस्तकालय एवम्‌ वाचनालय भवन का निर्माण श्री ओंकारमल अग्रवाल एवम्‌ श्री जयचन्दलाल माखरिया ने करवाया है। सुव्यवस्थित रूप से चल रहे हैं। गांव के उत्तर-पूर्वी छोर पर श्री लक्ष्मीनारायणजी बागला की बगीची, दक्षिण-पूर्वी छोर पर श्री ओंकारमलजी अग्रवाल की बगीची, पश्चिम छोर पर श्री सागरमलजी अग्रवाल की बगीची एवम्‌ दक्षिण-पश्चिमी छोर पर रूंगटा जी की बगीची तत्कालीन व्यवस्था की परिचायक है। गोगोजी का मेला प्रतिवर्ष भाद्रमास में गोगोजी की मेड़ी पर पुराने समय से ही लगता आ रहा है। गणगौर के मेले में ऊंटों की दौड़ सबका मन मोह लेती है। हाल ही में बने रामदेवजी एवं बालाजी के मन्दिरों में भी प्रतिवर्ष मेले लगते हैं। गांव के उत्तर-पूर्वी कोने पर मुख्य परम शान्ति स्थल स्थित है। श्री दुलीचन्द एवं श्री बिरधीचन्द चोरड़िया की छतरी तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है, इसी स्थल पर श्री चान्दमल हरखचन्द बागला, श्री सागरमल अग्रवाल एवं श्री जंवरीमल सुनार की छतरियां भी हैं। साध्वीश्री मोलाजी एवं साध्वीश्री राजकुमारीजी की स्मृति में बने स्मारक भी इसी स्थल पर हैं। परम शान्ति स्थल की चारदीवारी का काम ‘अपना गांव-अपना काम’ योजना के तहत जनसहयोग से करवाया गया। ओसवाल एवं अग्रवाल समाज ने प्रमुख भूमिका निभाते हुए प्रवासी होने के बावजूद अर्थसहयोग देकर गांव के प्रति अपने लगाव को फिर साबित कर दिया। मुख्य द्वार एवं लकड़ियों का ढारा श्री केदारमल बंका की स्मृति में उनके पुत्रों द्वारा बनवाया गया। श्री कन्हैयालाल बिजयसिंह नखत ने एक कमरा बनवाया। कुई का निर्माण श्री ज्वालाप्रसाद केडिया एवं कुंड का निर्माण श्री सोहनलाल सुनार की स्मृति में उनके पुत्रों द्वारा करवाया गया। परम शान्ति स्थल के सौन्दर्यकरण का प्रारम्भ लगभग १००० पौधे लगाकर किया गया, जिसके लिये श्री पूनमचन्द चोरड़िया एवं श्री बालचन्द भन्साली ने आर्थिक सहयोग दिया। गो सेवा हेतु श्री विष्णु गौशाला, टमकोर प्रारम्भ की गई है, इसमें भी प्रवासी ओसवाल एवं अग्रवाल समाज ने अच्छा सहयोग किया है। ‘टमकोर’ में धार्मिक दृष्टि से सनातन धर्मावलम्बियों का बाहुल्य है, जहाँ आर्य समाज का अच्छा प्रभाव है, वहीं तेरापंथ जैन समुदाय ने विश्व को युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ जैसा महापुरूष प्रदान किया है। मुस्लिम धर्मावलम्बियों की भी अच्छी संख्या है। सभी धर्मावलम्बियों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण ‘टमकोर’ कस्बे की विविधता में एकता को प्रदर्शित करता है। उद्योग: पिछले १५-२० वर्षों में कुछ कुटीर उद्योग तथा छोटे उद्योग भी पनपे हैं, जिनमें प्रमुख हैं एक आटा मिल जिस का उत्पादन दिल्ली तक जाता है। ६ साल पहले एक कूलर फैक्ट्री का निर्माण हुआ है और आसपास के बहुत शहरों तथा गांव ने इस उद्योग के उत्पादन को सराहा है अभी इसके मालिक श्री महेंद्र जांगिड़ ने बतया है कि वे बहुत जल्दी एक लोहे की अलमारी का कारखाना निर्माण कर रहे हैं। इसके अलावा मसाला पीसने तथा विलिया बनाने के लिए भी कुटीर उद्योग प्रारंभ हुए हैं। कंप्यूटर की शिक्षा के लिए भी दो सेंटर चालू हुए हैं। आईटीआई में नियमानुसार प्रशिक्षण चल रहा है। – केशरीचंद चोरड़िया
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