मूण्डवा की अद्वितीय धरोहर लाखोलाव तालाब है (The unique heritage of Mundwa is Lakholav Pond in Hindi)

मूण्डवा की अद्वितीय धरोहर लाखोलाव तालाब है (The unique heritage of Mundwa is Lakholav Pond in Hindi)
मूण्डवा की अद्वितीय धरोहर लाखोलाव तालाब है (The unique heritage of Mundwa is Lakholav Pond in Hindi)

मूण्डवा की अद्वितीय धरोहर लाखोलाव तालाब है (The unique heritage of Mundwa is Lakholav Pond in Hindi) :मूण्डवा नगर की भौगोलिक बसावट अपने आप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए है। यह समूचा कस्बा एक टीलेनुमा
स्थान पर बसा है। इस कस्बे के प्रमुख चार दिशाओं में चार प्रमुख तालाब है, जो कस्बे की पेयजल समस्या का समाधान करते हुए कस्बेवासियों को बारहों महिने फ्लोराईड मुक्त पानी उपलब्ध करवाते हैं। आज आबादी के बढ़ते दबाव को ध्यान में रखते हुए इन तालाबों के संरक्षण एवं विकास की महत्ती आवश्यकता है। बढ़ती आबादी का भी समायोजन होता चला जाए और तालाब एवं उनकी अंगोर भूमि का भी संरक्षण होता रहे, इस प्रकार की दुरगामी योजना की नितांत आवश्यकता है। कस्बे से निकलने वाले नालों का पानी इन तालाबों में न पहुंचे इस ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।

कस्बे के पूर्व में पौकण्डी तालाब तो पश्चिम में मोटोलाव तालाब है। दक्षिण में लाखोलाव तो उत्तर में ज्ञान (गेंद) तालाब है। चारों ही तालाबों का अपना धार्मिक महत्व है जिनसे कई एतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। चारों ही तालाबों का प्राकृतिक दृश्य मनोरम है जो हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट करता है। आज लाखोलाव तालाब सर्वधर्म समभाव का एक अनुपम उदाहरण है, यहां से सभी वर्ग, धर्म समुदाय के लोग एक साथ पानी भरते हैं।
‘लाखोलाव तालाब’ किवदंती के अनुसार इस तालाब को लखी बन्जारे ने विक्रम संवत ११५९ में खुदवाया था। लाखोलाव तालाब न केवल मूण्डवा कस्बेवासियों की बल्कि आस-पास के सैकड़ों ग्रामीणों की प्यास बुझाता है। तत्कालीन मारवाड़ रियासत के शासकों ने भी समय-समय पर इस तालाब के संरक्षण के लिए अपनी ओर से भरपूर सहयोग किया। पृथ्वीराज चौहान द्वारा भी इस तालाब के लिए ११५१ /- खर्च की एक लेखनी मिलती है। यहां आम वार्तालाप में लखी बणजारे द्वारा इस तालाब की खुदाई करवाये जाने की बात ज्यादा मिलती है यहां के निवासी इस बात पर एक मत है। राजस्थान परातत्वान्वेषण मंदिर जयपुर द्वारा प्रकाशित ‘बाँकीदासरी’ ख्यात में उल्लेख आया है कि

‘‘चूडाजीनू मार तुरकां नागोर लियो, 
पछे तुरकांनू मार राणै लाखे नागोर रिडमलजीनू दीयो,
जोधपुर सता चूडावतरी ठकुराई,
नागौर गाव मूडवै राणै लाखै लाखासर तब्गव नागोर करायो” जिसके अनुसार लाखोलाव तालाब मेवाड़ के राणा लाखा द्वारा निर्मित है।

कालांतर में विभिन्‍न शासकों, लोगों ने जन सहयोग इत्यादि से इसकी खुदाई एवं पक्के घाट निर्माण का कार्य करवाते हुए इसे भव्यरूप देने का कार्य किया है।
एक समय में लाखोलाव तालाब की पनघट देखने लायक हुआ करती थी। यहाँ पणिहारियां जितनी बार पानी के लिए आती थी उतनी बार अपने परिधान बदल कर आती थी। इन पणिहारियों की तादाद के बारे में यहां एक किवदंति प्रचलित है कि पनघट रोड के मुख्य मार्ग पर यदि एक थाली फेंकता तो वो पणिहारियों के एक घड़े से दुसरे घड़े होते हुए तालाब तक पहुंच सकती थी। इस पनघट का नजारा देखने मात्र के लिए अनेक लोग एकत्रित हुआ करते थे।
तालाब बनने के बाद गांव एवं जन सहयोग से इसके चारों तरफ पत्थर के पक्के घाट बनाए गए। विक्रम संवत्‌ा् २००४ में पण्डित श्री देवीलाल शर्मा के द्वारा तालाब में पानी आने की पक्की नहर बनवाई गई। तालाब के अंगोर तथा घाट पर जन सहयोग से विभिन्‍न किस्म के सैकड़ों छायादार पेड़ लगाए गए, इनमें से कई तो आज विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुके हैं। तालाब का दृश्य बड़ा ही मनोरम एवं रमणीक बना हुआ है। तालाब के चारों ओर स्थित देवालय, इसको धार्मिक आस्था से जोड़ते हुए इसका संरक्षण कर रहे हैं। तालाब के साक्षी में कस्बे के कई धार्मिक आयोजन होते रहते हैं, जिनमें छोटी तीज, बड़ी तीज, गणगौर, नाग पंचमी, नरसिंह चौदस, जलझूलनी, देवझूलनी, एकादशी जैसे कई तीज-त्यौहार इसी तालाब की तीर पर सम्पन्न होते हैं। गणगौर की भोलावणी भी यहीं होती है। हिन्दू धर्म का एक प्रमुख संस्कार जलवा पूजन इसी तालाब की तीर पर होता है।
इस तालाब का धार्मिक दृष्टि से अपना विशेष महत्व है। तालाब के चारों ओर स्थित देवालय इसके साक्षी हैं। रियासत काल का गिरीराज मंदिर, घुमटेश्वर महादेव मंदिर सहित छोटे बड़े देवालय यहां पर बने हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि घुमटेश्वर महादेव मंदिर एवं गिरीराज मंदिर की सेवा पूजा इसी लाखोलाव तालाब के जल से होती है। ऐसा भी सुनने में आता है यदि तालाब पूरा खाली भी हो जाए, इन मंदिर की पूजा के लिए इसके पूर्वी घाट से एक अविरल जल धारा आती रहती है जिससे मंदिरों की सेवा अर्चना इसी के जल से होती रहती है।
भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विशेषताओं को एक साथ लेकर चलने वाले लाखो तालाब के संरक्षण की ओर ध्यान देना नितांत आवश्यक हैं। इस तालाब का पानी हमेशा यहां के निवासियों को अतीत की तरह निर्बाध रूप से स्वच्छ मिलता रहे, इसका प्राकृतिक सौंदर्य बरकरार रहे इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि आज कोई विशेष समस्या यहां नहीं है। आम जन एवं जनप्रतिनिधि इसके लिए जागरूक हैं, मगर कालांतर में बढ़ती आबादी के बोझ का असर इस तालाब पर दिखाई देगा और फिर उसे रोक पाना भी चुनौती बन जाएगा, जिस प्रकार की दशा आज जिला मुख्यालय के तालाबों की है, उसी प्रकार की दशा इस लाखोलाव तालाब सहित Dान्य तालाबों की भी हो सकती है?
मूण्डवा की अद्वितीय धरोहर लाखोलाव तालाब है (The unique heritage of Mundwa is Lakholav Pond in Hindi)
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