शत्रुओं का विनाश करने वाला पर्व विजयादशमी
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आसोज सुदी दशमी को विजयादशमी कहते हैं, इस दिन तीसरे प्रहर (अपराह्नकाल) में दशमी होना जरुरी है, अगर नवमी के अपराह्न में ही दशमी होती है तो यह दिन मान्य है अन्यथा यदि दशमी के तीसरे प्रहर में दशमी रहे तो वही सही मानी जाती है, यदि दशमी दो हों तो अपराह्र में रहने वाली दशमी ही ग्राह्य है, यदि अपराह्न में श्रवण नक्षत्र हो तो वह और भी उत्तम माना जाता है, दोनों ही दिन यदि श्रवण नक्षत्र आ जाये तो वह और अधिक श्रेष्ठ होता है।
श्रवण नक्षत्र में दशमी का योग ‘विजय-योग’ कहलाता है इसलिए इस दशमी को विजयादशमी भी कहते हैं, इस दिन अपराजिता देवी की भी पूजा की जाती है।
विधि-विधान – इस दिन चार काम किये जाते हैं-
(१) अपराजिता देवी का पूजन
(२) सीमा का लांघना
(३) शमी (खेजड़ी) का पूजन
(४) देशान्तर जाने का प्रस्थान। पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है। तीसरे प्रहर ईशान दिशा में गमन करके पवित्र स्थान पर जमीन लीपें, फिर वहाँ गेरु लीपकर, लाल कपड़े पर चावल का अष्टदल बनावें और आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके यह संकल्प करें कि ‘मैं अपने कुटुम्ब के लिये अपराजिता देवी की पूजन करुँगा, फिर अष्टदल के मध्य भाग में देवी की मूर्ति रखकर उसकी पूजा करें।
‘अपराजितायै नम:’ इस मंत्र से देवी का आवाह्म करें, फिर अपराजिता देवी के दाईं ओर जया देवी का आवाहन इस मंत्र से करें- ‘क्रियाशकत्ये नम:’। बाईं ओर ‘उमायै नम:’ मंत्र से विजया देवी का आवाह्म करें।
उपर्युक्त अलग-अलग मंत्रों से उपराजिता, जया, विजया नामक, तीनों देवियों की पूजा करें, फिर ‘आसनं समर्पयामि। पाद्यं अर्घ्यं, स्नानम्, वस्त्रं, कुमकुमं, चंदनं, अक्षतान्, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवैद्य, फलम्, ताम्बूलं, दक्षिणां समर्पयामि’ कह कर उन्हें पुन: ‘अपराजितायै नम:’ आसनं समर्पयामि। जयायै नम: आसनं समर्पयामि। ‘विजयायै नम:’ इन नामों से मंत्रों को बोलकर षोडशोपचार से उनकी पूजा करें। इस क्रिया की एवज में रावण का पुतला बनाकर तथा भगवान श्रीराम की पूजा कर, राजा की सवारी की एवज में राम की सवारी निकाली जाती है, शत्रु की जगह रावण को जलाया जाता है।