शिल्प ही जीवन का आधार, शिल्प बिना सूना संसार
शिल्प और शिल्पियों का मानव जीवन में बहुत महत्व है, एक किसान से लेकर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, मेवैâनिकल, ऋषिमुनि व साधु सन्तों के जीवन में भी शिल्पियों का आधार है, संसार का कोई भी निर्माण कार्य का आधार शिल्प ही है, इस संसार में मील, कारखाना, उद्योग, कम्प्यूटर, मशीन, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी निर्माण में विश्वकर्मा वंशियों की ही देन है।
विश्वकर्मा जी कला, विज्ञान एवं शिल्प की दृष्टि से अग्रणीय थे, उपलब्ध साहित्य में उनके विज्ञान एवं शिल्प चातुर्य को देखकर सब चकित हो जाते हैं, उस समय की कला व विज्ञान, अत्यधिक उन्नत अवस्था को प्राप्त थी। विश्वकर्मा ने देवों के लिये अनेक साधन बनाये, विभिन्न कलात्मक कार्य किये। महात्मा हिमाचल की प्रार्थना पर पार्वती विवाह के लिए विस्तृत मण्डप व यज्ञीयवेदी बनाई जो अनेक आश्चर्यों से युक्त थी।
कुबेर के लिये अल्कापुरी, शिव लोक, ब्रह्म लोक का निर्माण किया। श्रीपुर नामक कई योजन का विचित्र नगर बनाया, स्फटिक मणि का उमापति शंकर-निवास, महाराजा इन्द्रधुन्य की यथशाला, अमरावती तथा द्वारकापुरी, लंकापुरी, गरूड़ भवन आदि अनेक भवन एवं विचित्र पुरी विश्वकर्मा ने ही बनाये हैं।
स्कन्द पुराण के नागर खण्ड के अनुसार विश्वकर्मा ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र निर्माण किये। ब्रह्मा को कण्डिका, विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इन्द्र को वङ्का, अग्नि को पाशु तथा धर्मराज को दण्ड बनाकर दिये। ब्रह्मा पुराण तारक महात्म के अध्याय २९ के अनुसार सब देवताओं को विश्वकर्मा ने आयुध प्रदान किये, जिससे देवताओं ने युद्ध में शत्रुओंं का विनाश किया।
संस्कृत में ‘वि’ का अर्थ पक्षी तथा ‘मान’ का अर्थ अनुरूप है, अत: विमान का अर्थ पक्षी के समान, इसी प्रकार हंस को समझना चाहिये।
आजकल विमान चिड़िया के रूप में होते हैंं। विश्वकर्मा ने कई प्रकार के अद्भुत विमान निर्माण किये, जैसे विष्णु का वाहन ‘गरूड़’ है परन्तु यह कोई पक्षी नहीं था वरन् श्येन की आकृति का विशिष्ट प्रकार का विमान था, इसके अतिरिक्त मयूर, पुष्पक, शातकुम्भ, कामग, वैहायस एवं सोमयान इत्यादि असंख्य विमानों का निर्माण किया।