सितम्बर समीक्षा

( हेलो! मेरा राजस्थान )

जगत नारायण जोशी

पूर्व राज्यमंत्री सलाहकार
इंदौर, मध्यप्रदेश, भारत
भ्रमणध्वनि: ९४२५०५४९७०

महाष्र् दधीच न सिर्प दानवीर रहे बल्कि श्रेष्ठ न्यासी के रूप में समाज के सम्मुख उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया, देवताओं द्वारा सुरक्षित रखने हेतु दिए गए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की रक्षा के लिए अपने तपोबल से उन्हें अपने शरीर में धारण किया, जब 

देवताओं को इस शस्त्रों की आवश्यकता हुई तो अपने शरीर का त्याग कर वङ्का रूपी शस्त्र प्रदान किया। महर्षि दधीच को प्रथम न्यासी के रूप में जाना जाता है, उन्होंने मानव कल्याण हेतु व वत्रासुर के कष्टों से समाज की रक्षार्थ अपने शरीर का त्याग कर मानव जाति के लिए परम दानवीर व महा त्यागी कहलाए। वर्तमान समय में हम उनके वंशज अगर लेस मात्र भी उनके पद चिन्हों पर चल पाये तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी। प्रवासी ८८ वर्ष के जगतनारायण जी १९६४ से मध्यप्रदेश के इंदौर में निवासित हैं,  मुलत: नागौर राजस्थान के निवासी हैं, आपका जन्म व शिक्षा नागौर में ही सम्पन्न हुई है। मध्यप्रदेश सरकार के राज्य परिवहन मंत्री के सलाहकार व नीतिकार के रूप में भी आप सेवारत रहे, राज्य परिवहन प्राधिकरण में सदस्य के रूप में जुड़े रहे, आपको लेखन का भी शौक है, आपने कई मुद्दों पर लेख व कविताएं लिखी है। महर्षि दधीच पर भी अपने ‘चांदोपान’ की रचना की है। उज्जैन सिंहस्थ मेला १९९२ व २००४ के समय आप यातायात प्रबंधक रहे। मध्यप्रदेश स्थित राजस्थानी राजभाषा संघर्ष समिति में संयोजक के रूप में भी जुड़े हैं, राजस्थानी लोक मंच मध्यप्रदेश में उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत हैं। आप अखिल भारतवर्षीय दधीच (दायमा) ब्राह्मण महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रबंधककारिणी समिति के सदस्य है। ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा व राजस्थानी को राज्यभाषा घोषित करने को लेकर अनेक आंदोलन को सहयोग करते हैं। आप राजस्थानी राजभाषा व हिंदी के परम समर्थक है, आपका कहना है कि ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना ही चाहिए, हिंदी हमारी व हमारे राष्ट्र की पहचान है जिसके लिए हम भी संस्थाओं के माध्यम से प्रयत्नशील हैं।

आकर उन्होंने पारंपरिक व्यवसाय पुजा-पाठ का कार्य प्रारंभ किया। मैंने शिक्षा सम्पन्न करने  के पश्चात स्वयं का कारोबार स्थापित किया है। मेरी धर्म-कर्म में बड़ी आस्था है इसीलिए कई सामाजिक व धार्मिक कार्यों में सलग्न रहता हूँ। पुलगांव स्थित ग्राम पंचायत में सदस्य व सभापति के रूप में कार्यरत रहा, मुझ पर मेरे पिताजी का हमेशा से ही आशीर्वाद रहा, उन्हीं के आशीर्वाद से हमारा परिवार फल-पुल रहा है, मेरे जीवन में मेरी धर्मपत्नी सौ कमला जी का सम्पूर्ण सहयोग रहा है। मेरे दो बेटे संजय व नंदकिशोर व दो बेटियां मंजुलता व अंजूलता है सभी अपने-अपने व्यवसाय व समाजसेवी कार्यों में व्यस्त है। महर्षि दधीच ने मानव कल्याण के लिए देह त्याग कर देहदान दिया व उनकी अस्थियों से निर्मित अस्त्र-वङ्का का निर्माण हुआ, उनके इस त्याग की भावना को आज के समाज को अपनाने की आवश्यकता है, उनके बताये मार्गों पर चलकर ही हम अपना व समाज का कल्याण करने में सफल होंगे, हमारी युवा पिढ़ी को हमें अपनी संस्कृति व अपने रिति-रिवाज से अवगत कराने की आवश्यकता है, यह कार्य हमें ही करना ही पड़ेगा। हमारी ‘हिंदी’ व संस्कृति भाषा विश्व में सर्वश्रेष्ठ है जिससे आज विदेशी भी मान व अपना रहे हैं, पर हम भारतीय ही अपनी भाषा छोड़ विदेशी भाषा को अपनाने लगे हैं जो बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है, ‘हिंदी’ को सम्मान देने के लिए सर्वप्रथम इसे संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाना होगा

घनश्याम शर्मा

व्यवसायी व समाजसेवी
नागौर निवासी- वर्धा प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२३००७१६२

मरो जन्म १५ सितंबर १९५० व शिक्षा महाराष्ट्र के वर्धा जिले स्थित पुलगांव में हुयी है, मेरा मूल निवास स्थान राजस्थान के नागौर स्थित भावता है जहां से मेरे पिताजी कई वर्ष पूर्व पुलगांव में आकर बस गए, यहां 

हरिप्रसाद सुंठवाल

महामंत्री दाधीच प्रगति समाज
चेरिटेबल ट्रस्ट रायचूर
कुराडा (नागौर) निवासी-रायचूर प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४४८६३३४२६

महर्र्षि दधीचि के त्याग व प्रतिभा को भारत ही नहीं विदेशों में भी जाना व पहचान जाता है, वे श्रेष्ठ न्यासी, दानवीर व त्यागमूर्ति थे, उन्होंने देवताओं की रक्षा हेतु अपने अस्थियों का त्याग किया, उनके इस महात्याग व समाज कल्याण के कार्यों से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए व उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करना 

चाहिए, समाज सेवा हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए। भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पर महर्षि दधीचि की अस्थियों से बनें वङ्का का अंकन है,  इस चिन्ह की रचना विदेशी महिला द्वारा की गई। हमें गर्व है कि हम उनके वंशज है। रायचूर में दधीच समाज के लगभग ३० परिवार हैं महर्षि दधीचि की जयंति के अवसर एक हफ्ते के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें समाज की युवा पीढ़ि को सहभागी होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। रायचूर में ७५०० स्क्वा. फीट की जगह में दक्षिण भारत का एकमात्र दधीमती माता जी का मंदिर बनाया गया है जो रमणीय स्थल है। रायचूर नगर पालिका द्वारा दधीच सर्वल का नामांकन किया गया है। पिछले ४० वर्षों से रायचूर का प्रवासी हूँ, राजस्थान के नागौर जिले में स्थित कुराडा गांव मेरा जन्म स्थान है व मेरी प्रारंभिक शिक्षा यहीं सम्पन्न हुई। मैट्रिक की शिक्षा कर्नाटक के गुलेडवुड से प्राप्त की, वाणिज्य से स्थातक की शिक्षा रायचूर से प्राप्त की, रायचूर में फाइनेंस के व्यवसाय से जुड़ा हूँ, नैमिषारण्य में भव्य भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है इस आयोजन समिति में कार्यकारी सदस्य के रूप में सेवारत हूँ। हैदराबाद दधीच युवा संघ द्वारा अतिथि सम्मान दिया गया व रायचूर के भाजपा पार्टी में सचिव के रूप में कार्यरत हूँ। राजस्थान पत्रिका (हुबली) व डेली हिंदी मिलाप पत्रिका में पत्रकार के रूप में कार्यरत हूँ। ‘हिंदी’ हमारी पहचान है ‘हिंदी’ के माध्यम से ही देश का सम्पूर्ण विकास संभव है। ‘हिंदी’ से भारत का प्रत्येक नागरिक जुड़ा है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए, रायचूर की युवा शक्ति द्वारा भी हिंदी का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

आकर बस गए, यहां आकर उन्होंने पारंपरिक व्यवसाय पुजा-पाठ का कार्य प्रारंभ किया। मैंने शिक्षा सम्पन्न करने  के पश्चात स्वयं का कारोबार स्थापित किया है। मेरी धर्म-कर्म में बड़ी आस्था है इसीलिए कई सामाजिक व धार्मिक कार्यों में सलग्न रहता हूँ। पुलगांव स्थित ग्राम पंचायत में सदस्य व सभापति के रूप में कार्यरत रहा, मुझ पर मेरे पिताजी का हमेशा से ही आशीर्वाद रहा, उन्हीं के आशीर्वाद से हमारा परिवार फल-पुल रहा है, मेरे जीवन में मेरी धर्मपत्नी सौ कमला जी का सम्पूर्ण सहयोग रहा है। मेरे दो बेटे संजय व नंदकिशोर व दो बेटियां मंजुलता व अंजूलता है सभी अपने-अपने व्यवसाय व समाजसेवी कार्यों में व्यस्त है। महर्षि दधीच ने मानव कल्याण के लिए देह त्याग कर देहदान दिया व उनकी अस्थियों से निर्मित अस्त्र-वङ्का का निर्माण हुआ, उनके इस त्याग की भावना को आज के समाज को अपनाने की आवश्यकता है, उनके बताये मार्गों पर चलकर ही हम अपना व समाज का कल्याण करने में सफल होंगे, हमारी युवा पिढ़ी को हमें अपनी संस्कृति व अपने रिति-रिवाज से अवगत कराने की आवश्यकता है, यह कार्य हमें ही करना ही पड़ेगा। हमारी ‘हिंदी’ व संस्कृति भाषा विश्व में सर्वश्रेष्ठ है जिससे आज विदेशी भी मान व अपना रहे हैं, पर हम भारतीय ही अपनी भाषा छोड़ विदेशी भाषा को अपनाने लगे हैं जो बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है, ‘हिंदी’ को सम्मान देने के लिए सर्वप्रथम इसे संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाना होगा

नारायणदास दायमा

व्यवसायी व समाजसेवी
नागौर निवासी-सोलापुर प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२२४६०७९९

मरो जन्म १५ सितंबर १९५० व शिक्षा महाराष्ट्र के वर्धा जिले स्थित पुलगांव में हुयी है, मेरा मूल निवास स्थान राजस्थान के नागौर स्थित भावता है जहां से मेरे पिताजी कई वर्ष पूर्व पुलगांव में 

राजेन्द्र शर्मा

व्यवसायी व समाजसेवी
कुचामन निवासी-कोलकात्ता प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८३१३३५०९६

महषि दधीच सिर्प हमारे समाज ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत किया है

,   उन्होंने मानव कल्याण हेतु अपने शरीर का त्याग कर मानवजाति की रक्षा की, उनसे सम्पूर्ण समाज को प्रेरणा लेनी चाहिए, महर्षि दधीचि की जयंति के अवसर हवन-यज्ञ, सांस्कृतिक आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। राजस्थान का कुचामन हमारा मूल निवास स्थान है जो मेरा जन्म स्थान भी है, मेरी शिक्षा कुराडा व औरंगाबाद में सम्पन्न हुई, लगभग २७-२८ वर्षों से मैं कलकत्ता का प्रवासी हूँ, जहां मेरे दादाजी व पिताजी आकर बसे थे, यहां स्थित गारमेंट असोसियेशन में कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्यरत हूँ, दधीच परिषद के साथ अन्य सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़ा हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ काफी सुंदर पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से राजस्थान से जुड़े होने का अनुभव होता है। पत्रिका से विभिन्न राजस्थानी समाज व लोगों की संस्कृति आदि की जानकारी प्राप्त होती है, जिसके लिए ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका परिवार धन्यवाद के पात्र हैं। ‘हिंदी’ को बढ़ावा देने के लिए अधिक प्रयास करना होगा, इसके लिए हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए। ‘हिंदी’ ही एकमात्र वह भाषा है जो विभिन्न भाषायी वाले भारत को आपस में जोड़ती है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

 

मुंबई स्थित कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। राजस्थान सेवा समिति व लायन्स क्लब एवरशाइन, मलाड में सदस्य के रूप में जुड़ा रहा, बॉम्बे टॉकीज कम्पाउंड स्मॉल स्केल इंड्रस्टीज असोशिएशन में १२ वर्षों तक अध्यक्ष पद सेवारत रहा। हम सभी ब्राह्मण भगवान परशुराम के वंशज है, वे हमारे आराधक है। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका बहुत ही बढ़िया पत्रिका है। पत्रिका के माध्यम में प्रकाशित लेख व विभिन्न समाज की जानकारी प्राप्त होती है। पत्रिका में प्रकाशित राजस्थान के गांवों के प्रकाशित विशेषांक बहुत ही सुंदर व पठनीय होते हैं, जिससे वहां की संस्कृति व समाज के लोगों के बारे में ज्ञात होता है, ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका हम प्रवासियों के लिए राजस्थान से जुड़े रहने का एहसास दिलाती है। ‘हिंदी’ के पाठ्यक्रम में हमारे धार्मिक व ऐतिहासिक महापुरूषों के जीवन-परिचय को प्रकाशित किया जाना चाहिए, जिससे शिक्षा के माध्यम से मौलिक सिद्धांतों का विकास हो व उनसे प्रेरणा प्राप्त हो। सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा ‘हिंदी बनें राष्ट्रभाषा’ का मैं पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ, यह अवश्य है कि हमारे राष्ट्र की एक राष्ट्रभाषा हो क्योंकि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र अधुरा है, ‘हिंदी’ राष्ट्र के सभी नागरिकों को आपस में जोड़ती है अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

जितेन्द्र शर्मा

व्यवसायी व समाजसेवी
पिलानी निवासी – मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२११५४४२२

शिक्षा नगरी कहे जाने वाले राजस्थान का ‘पिलानी’ मेरा जन्म स्थान है, मेरी शिक्षा भी यहीं से सम्पन्न हुई, सन १९७३ में रोजगार के उद्देश्य से मेरा मुंबई आना हुआ। मुंबई आने के पश्चात लगभग ११ वर्षों तक नौकरी की, मेहनत व लगन से १९८४ में प्लास्टिक ऑउट सोल्ट का कारोबार प्रारंभ किया।

डॉ. सी.एल. दाधीच

अध्यक्ष, दधीच समाज मुंबई
हरियाडाणा (जोधपुर) निवासी-मुंबई प्रवासी भ्रमणध्वनि: ९३२१०६४६७०

महर्षि दधीचि परम तपस्वी महाज्ञानी, प्रख्यात शैल्य चिकित्सक, महान वैज्ञानिक प्रकृति प्रेमी, सत्यवक्ता एवं महादानी महापुरूष थे जिन्होंने समाज एवं मानव रक्षा व सेवा के लिए अपने प्राण निछावर कर दिये, वे दयालू एवं क्षमाशील थे, इंद्र द्वारा उद्ंडता करने के बावजूद भी उन्होंने उसे क्षमा कर दिया एवं अपनी अस्थियों का दान कर दिया, वे शरण में आए हुए की रक्षा करते थे। भगवान परशुराम जी के कोप से उन्होंने महाराज 

रत्नसेन एवं उनके राज्य की रक्षा की। वर्तमान युग में भी महात्मा गांधी ने उनसे प्रेरणा लेकर साबरमती आश्रम की   स्थापना महर्षि दधिचि के आश्रम के निकट पावन भूमि पर की एवं त्याग सत्य व निष्ठा के बल पर भारत को स्वतंत्रता दिलायी। सेना द्वारा सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पर भी महर्षि दधीचि के देह त्याग के बने अस्त्र पर ‘वङ्का’ अंकित है। भारत सरकार ने भी इस ऐतिहासिक महापुरूष के सम्मान में डाक टिकट जारी किया। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी कहा था कि जिस तरह नौ दधीचियों ने राक्षसों के आक्रमण से मानव जाति की रक्षा की उसी तरह हमारी सेना आतंकवादियों से भारत वासियों की रक्षा करे, महर्षि दधीचि से प्रेरणा लेकर हमें अंगदान, देहदान, रक्तदान एवं चक्षुदान कार्यक्रम को गति प्रदान करना चाहिए। मैं १९७५ से मुंबई का प्रवासी हूँ मेरा मूल निवास स्थान राजस्थान का जोधपुर शहर स्थत हरियाडाणा है, जहां मैंने जे.एन. व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से पी.एच.डी. तक की शिक्षा प्राप्त की है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के रिसर्च डिपार्टमेंट के आर्थिक विश्लेषण विभाग में शोध अधिकारी के रूप में प्रथम कार्यरत रहा व महानिदेशक के पद पर सेवानिवृत्ति प्राप्त की, भारत सरकार की अनेक विशेषज्ञ समिति में सदस्य के पद पर कार्य किया है। वर्तमान में ग्रामीण ऋण समिति का सदस्य हूँ साथ ही ‘कृषि अर्थ’ पत्रिका का संपादक भी हूँ। ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करना चाहिए। ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान एवं स्थान प्राप्त होने से ही राष्ट्र एकता एवं विकास को गति मिलेगी, अंग्रेजी भाषा की वैश्विकता पर चलकर हम विकास की दौड़ में प्रथम नहीं आ सकते। ड

देवत्व समाज की रक्षा करने के लिए अपने शरीर का त्याग किया, स्वयं हड्डियों से बने वङ्का से वृत्रासूर को परास्त किया, महर्षि दधीचि प्रथम ट्रस्टी के रूप में भी जाने जाते हैं, देवासूर संग्राम के जिन दिव्य अस्त्रों का उद्भव हुआ, रक्षा के लिए देवताओं ने महर्षि दधीचि को जिम्मेदारी सौंपी थी, उन अस्त्रों को अणु बनाकर पी गए, इस तरह वे प्रथम वैज्ञानिक उद्घोषक के रूप में स्थापित हुए, आप शैल्य चिकित्सक के प्रथम प्रवर्तक भी थे, उनके जैसा महान तपस्वी ज्ञानी, वैज्ञानिक व दानी न कोई हुआ है न कोई होगा। राजस्थान का लक्ष्मणगढ़ मेरा जन्मस्थान है पर मेरी शिक्षा-दिक्षा कोलकाता में सम्पन्न हुई है। वर्तमान में चार्टर्ड अकाउंटेड के रूप में कार्यरत हूँ। महर्षि दधीचि की तपो भूमि जहां उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, जो उ.प्र. के सीतापुर जिले के मिश्रित नैमिषारण्य में स्थित है, इस स्थल पर ७ दिनों (१२-१८ सितंबर) का राष्ट्रसंत श्री गोविंददेवगिरीजी महाराज के मुखार बिंदू से श्रेष्ठ भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा हैं। इस आयोजन समिति में मैं भी सेवारत हूँ, इसके साथ अन्य कई सामाजिक संस्थाओं में सेवारत हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका हम प्रवासी राजस्थानियों के लिए उत्तम पत्रिका है, इस पत्रिका में प्रकाशित लेख विभिन्न समाज से संबंधित जानकारियों व गांवों के विशेषांक ऐतिहासिक व उत्तम होते हैं, जो हम प्रवासी को हमारी मातृभूमि जुड़े रहने का एहसास दिलाती है। ‘हिंदी’ राष्ट्रभाषा के रूप में विख्यात है, ‘हिंदी’ भारत की प्रमुख संपर्वâ भाषा है। ‘हिंदी’ को भारत का प्रत्येक नागरिक बोलता व समझता है अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

आर.के. व्यास

व्यवसायी व समाजसेवी
लक्ष्मणगढ निवासी-कलकत्ता प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९३३१०३२१७७

हमारी परंपरा व संस्कृति के अंतर्गत महर्षि दधीचि का स्थान सर्वोपरी है उन्होंने मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया जो अपने-आप में श्रेष्ठ है। आज तक इस तरह का त्याग न किसी ने नहीं किया, उन्हें त्यागमूर्ति कहा जाता है, सतयुग में आतंकवादी वृत्रासूर राक्षस से महर्षि ने

शंकरलाल शर्मा

व्यवसायी व समाजसेवी
इंदौर प्रवासी-बिदासर निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२६०४०९४७

हमारा परिवार ३०-३१ वर्षों से इंदौर का प्रवासी है, मूलत: हम राजस्थान के बिदासर के निवासी हैं, जहां मेरा जन्म हुआ व शिक्षा सूजानगढ़ बिकानेर में सम्पन्न हुई। इंदौर में मेरा ट्रांस्पोर्ट का कारोबार है, साथ ही सामाजिक व धार्मिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी रहती है। अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण

समाज में तीन बार उपाध्यक्ष के रूप में सेवारत रहा व लायन्स क्लब में प्रांतिय चेयरपर्सन के पद पर भी कार्यरत रहा, इसके अतिरिक्त अन्य सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में सक्रियता निभा रहा हूँ। इस वर्ष उत्तर प्रदेश स्थित महर्षि दधीच द्वारा शरीर त्याग की गई भूमि मिश्रित नैमिषारण्य में ७ दिनों का भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया रहा है, इसी दौरान दधीच जयंति का भी आयोजन किया गया है, जिसमें देश भर से २००० ब्राह्मण समाज के लोग उपस्थित होगें, इस पावन भूमि को जीर्णोद्धार के लिए सरकार द्वारा १०० करोड़ रूप की राशी पारित की जा रही है, पास ही संस्कृत विश्वविद्यालय की भी स्थापना की जा रही है, इसकी सफलता के लिए दधीच समाज के सभी लोगों द्वारा प्रयत्न किया जा रहा है। १२से १८ सितंबर को होने वाले इस भव्य कार्यक्रम में अधिक से अधिक लोग उपस्थित होकर इस आयोजन को सार्थक करें, यही मंगल कामना करता हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका हम प्रवासी राजस्थानियों के लिए राजस्थानी संस्कृति व गांवों से जुड़ने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है, हमें राजस्थान से जोड़े रखता है, जिसके लिए ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका परिवार का प्रयास सराहनीय है। ‘हिंदी’ हमारे देश की भाषा है, भारत विभिन्न भाषाओं वाला देश है जहां एक प्रमुख भाषा होना अनिवार्य है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए, भारत का प्रत्येक नागरिक ‘हिंदी’ को जानता व समझता है।

कहा जाता है, सतयुग में आतंकवादी वृत्रासूर राक्षस से महर्षि ने  देवत्व समाज की रक्षा करने के लिए अपने शरीर का त्याग किया, स्वयं हड्डियों से बने वङ्का से वृत्रासूर को परास्त किया, महर्षि दधीचि प्रथम ट्रस्टी के रूप में भी जाने जाते हैं, देवासूर संग्राम के जिन दिव्य अस्त्रों का उद्भव हुआ, रक्षा के लिए देवताओं ने महर्षि दधीचि को जिम्मेदारी सौंपी थी, उन अस्त्रों को अणु बनाकर पी गए, इस तरह वे प्रथम वैज्ञानिक उद्घोषक के रूप में स्थापित हुए, आप शैल्य चिकित्सक के प्रथम प्रवर्तक भी थे, उनके जैसा महान तपस्वी ज्ञानी, वैज्ञानिक व दानी न कोई हुआ है न कोई होगा। राजस्थान का लक्ष्मणगढ़ मेरा जन्मस्थान है पर मेरी शिक्षा-दिक्षा कोलकाता में सम्पन्न हुई है। वर्तमान में चार्टर्ड अकाउंटेड के रूप में कार्यरत हूँ। महर्षि दधीचि की तपो भूमि जहां उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, जो उ.प्र. के सीतापुर जिले के मिश्रित नैमिषारण्य में स्थित है, इस स्थल पर ७ दिनों (१२-१८ सितंबर) का राष्ट्रसंत श्री गोविंददेवगिरीजी महाराज के मुखार बिंदू से श्रेष्ठ भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा हैं। इस आयोजन समिति में मैं भी सेवारत हूँ, इसके साथ अन्य कई सामाजिक संस्थाओं में सेवारत हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका हम प्रवासी राजस्थानियों के लिए उत्तम पत्रिका है, इस पत्रिका में प्रकाशित लेख विभिन्न समाज से संबंधित जानकारियों व गांवों के विशेषांक ऐतिहासिक व उत्तम होते हैं, जो हम प्रवासी को हमारी मातृभूमि जुड़े रहने का एहसास दिलाती है। ‘हिंदी’ राष्ट्रभाषा के रूप में विख्यात है, ‘हिंदी’ भारत की प्रमुख संपर्वâ भाषा है। ‘हिंदी’ को भारत का प्रत्येक नागरिक बोलता व समझता है अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

श्यामसुंदर आसोपा

अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दाहिमा
(दाधीच ) ब्राह्मण महासभा
बीकानेर निवासी भ्रमणध्वनि: ९९२८२७०७८४

हमारी परंपरा व संस्कृति के अंतर्गत महर्षि दधीचि का स्थान सर्वोपरी है उन्होंने मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया जो अपने-आप में श्रेष्ठ है। आज तक इस तरह का त्याग न किसी ने नहीं किया, उन्हें त्यागमूर्ति 

रामकुमार शर्मा

व्यवसायी व समाजसेवी
नागौर निवासी-हैदराबाद प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२८३३०१४३

महर्षि दधीचि का उल्लेख रामायण वेदों व अन्य पौराणिक ग्रंथों में प्राप्त है, वे एक महान आत्मा, परम तपस्वी व श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे, वे संजीवनी विद्या के ज्ञाता भी है, उन्होंने समाज व मानव कल्याण हेतु अपने शरीर का त्याग किया, उनकी अस्थियों से निर्मित वङ्का से वृत्रासूर का संहार किया गया, जिससे

वृत्रासूर के आतंक से मानव जाति को मुक्ति प्राप्त हुई, उनके इस त्याग को आज भी लोगों द्वारा स्मरण किया जाता है, उनकी जयंति हम समाज द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, उनका सम्पूर्ण जीवन मानवजाति के प्रेरणा स्वरूप है, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये, यह हमारा सौभाग्य है कि हमने इस कुल में जन्म लिया, हमारा कर्तव्य है कि उनके द्वारा दी गयी शिक्षा का हम अनुसरण करें, अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक व रचनात्मक रूप में क्रियान्वित करें, जिससे स्वयं के साथ-साथ समाज का भी उत्थान होगा, अन्यथा हमारा पूरा जीवन निरर्थक है। हैदराबाद मेरी कर्मभूमि है, मेरा जन्म व शिक्षा राजस्थान के नागौर जिले तरनाऊ गांव में सम्पन्न हुई जो जायल तहसील के अंतर्गत आता है, यहां हमारा कपड़ों व भवन निर्माण की वस्तुओं का कारोबार है, लगभग ४० वर्षों से सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, अखिल भारतीय दाधीच दायमा ब्राह्मण महासभा में १५ वर्षों तक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप कार्यरत रहा, इसके अतिरिक्त दधीमति मंदिर में ट्रस्टी के रूप में सेवारत हूँ, लगभग ४० वर्षों से ट्रस्ट से जुड़ा हूँ, इसके अतिरिक्त आप अन्य कई सामाजिक व धार्मिक सेवाओं से जुड़ा हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका बहुत ही उत्तम पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से राजस्थान के सभी समाजों-गांवो, लोककला संस्कृति-रिति रिवाजों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, इसके लिए ‘मेरा राजस्थान’ परिवार धन्यवाद के पात्र है। ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, हिंदी ही एकमात्र हमारी प्रमुख संपर्वâ भाषा है जिसके माध्यम से हम एक-दूसरे से आसानी से स्थापित कर सकते हैं।

देवत्व समाज की रक्षा करने के लिए अपने शरीर का त्याग किया, स्वयं हड्डियों से बने वङ्का से वृत्रासूर को परास्त किया, महर्षि दधीचि प्रथम ट्रस्टी के रूप में भी जाने जाते हैं, देवासूर संग्राम के जिन दिव्य अस्त्रों का उद्भव हुआ, रक्षा के लिए देवताओं ने महर्षि दधीचि को जिम्मेदारी सौंपी थी, उन अस्त्रों को अणु बनाकर पी गए, इस तरह वे प्रथम वैज्ञानिक उद्घोषक के रूप में स्थापित हुए, आप शैल्य चिकित्सक के प्रथम प्रवर्तक भी थे, उनके जैसा महान तपस्वी ज्ञानी, वैज्ञानिक व दानी न कोई हुआ है न कोई होगा। राजस्थान का लक्ष्मणगढ़ मेरा जन्मस्थान है पर मेरी शिक्षा-दिक्षा कोलकाता में सम्पन्न हुई है। वर्तमान में चार्टर्ड अकाउंटेड के रूप में कार्यरत हूँ। महर्षि दधीचि की तपो भूमि जहां उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, जो उ.प्र. के सीतापुर जिले के मिश्रित नैमिषारण्य में स्थित है, इस स्थल पर ७ दिनों (१२-१८ सितंबर) का राष्ट्रसंत श्री गोविंददेवगिरीजी महाराज के मुखार बिंदू से श्रेष्ठ भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा हैं। इस आयोजन समिति में मैं भी सेवारत हूँ, इसके साथ अन्य कई सामाजिक संस्थाओं में सेवारत हूँ। ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका हम प्रवासी राजस्थानियों के लिए उत्तम पत्रिका है, इस पत्रिका में प्रकाशित लेख विभिन्न समाज से संबंधित जानकारियों व गांवों के विशेषांक ऐतिहासिक व उत्तम होते हैं, जो हम प्रवासी को हमारी मातृभूमि जुड़े रहने का एहसास दिलाती है। ‘हिंदी’ राष्ट्रभाषा के रूप में विख्यात है, ‘हिंदी’ भारत की प्रमुख संपर्वâ भाषा है। ‘हिंदी’ को भारत का प्रत्येक नागरिक बोलता व समझता है अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

श्यामसुंदर आसोपा

अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दाहिमा
(दाधीच ) ब्राह्मण महासभा
बीकानेर निवासी भ्रमणध्वनि: ९९२८२७०७८४

हमारी परंपरा व संस्कृति के अंतर्गत महर्षि दधीचि का स्थान सर्वोपरी है उन्होंने मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया जो अपने-आप में श्रेष्ठ है। आज तक इस तरह का त्याग न किसी ने नहीं किया, उन्हें त्यागमूर्ति कहा जाता है, सतयुग में आतंकवादी वृत्रासूर राक्षस से महर्षि ने

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