सुख, समृध्दि व शक्ति–उपासना का महापर्व ‘नवरात्र’
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जो देवी सर्व–भूत प्राणियों में शक्तिरुप होकर निवास करती है उसको पृथ्वी के समस्त प्राणियों का नमस्कार है।
सृष्टि की आदि शक्ति है मॉ दुर्गा। देवताओं पर मॉ भगवती की कृपा बनी रहती है। समस्त देव उन्हीं की शक्ति से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, यहां तक ब्रह्मा, विष्णु और महेश बिना भगवती की इच्छा या शक्ति से सर्जन, पोषण एवं संहार नहीं करते, परमेश्वरी के नौ रुप हैं, इन्हीं की नवरात्रा में पूजा होती है। धर्माचार्यों के अनुसार साल–भर में चार बार नवरात्रा व्रत पूजन का विधान है। चैत्र, आषाढ, अश्विन और माघ का शुक्ल पक्ष, इसमें चैत्र व अश्विन प्रमुख माने जाते हैं। नवरात्रा का अर्थ है– जो नौ दिन नौ रात का हो, जिनका ऋतुओं व प्रकृति से सम्बन्ध हो, शक्ति या ऊर्जा के बिना प्राणी निर्जीव है, अत: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड देवी का प्रतिबिम्ब है। दैवी शक्ति सदैव अविनाशी है। शक्ति के नौ–स्वरुपों का वर्णन इस प्रकार है–जयंति, मंगला, काली, भद्र काली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमाशिव, धात्री, स्वाहा और स्वधा नमोऽस्तुते। महामाया भगवती ही आज के संकटग्रस्त लोगोें के लिये मन को शान्ति प्रदान करती है। विभिन्न लोग अपनी–अपनी सुविधा अनुसार भगवती की पूजा–अर्चना करते हैं। दुर्गा कवच, अर्गला स्तोत्र, कीलक स्तोत्र, रात्रि सूक्त, दैवी सूक्त, दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र, सिध्द कुंजिका स्तोत्र, दुर्गा द्वात्रिंशन्माम माला, दैवी अपराध क्षमापन स्तोत्र आदि।
श्री दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में कथा है
‘‘यदा यदा दानवोत्था भविष्यति तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यदिसंक्षयम्’’
इस प्रकार नौ अवतारों की कथा है। महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, रक्त–दन्तिका, शाकम्भरी, श्री दुर्गा, भ्रामरी व चामुण्डा। नवरात्रा में देवी का अनुष्ठान मंगलकारी एवं शक्तिदायक होता है। नवरात्रा के अंतिम दिन कुंवारी कन्याओं का पूजन किया जाता हैं क्योंकि उन्हें देवी का रुप माना जाता है। नवरात्रा में दुर्गा उपासना के लिये हर दिन शुभ होता है और मॉ की पूजा का विशिष्ट महत्व है। ब्रह्मा जी ने सम्पूर्ण प्राणियों के कल्याण हेतु दैवी कवच का विधान बताया है एवं नौ महाशक्तियों के निम्न नाम बताये हैं:
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघटेति, कूष्माण्डेति, चतुर्थकम्, पचमं स्कन्दमातेति, षष्ठं कात्यायनीति च, सप्तमं कालरात्रिति, महागौरिती चाऽष्टमम्, नवमं, सिध्दिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रहमणैव महात्मना, इसी दिन बगलामुखी साधना करने से धन, मान, सम्मान और आयु बढ़ती है। दुर्गा सप्तशाली के पाठ करने से असाध्य रोग दूर होते हैं। भगवान राम व हनुमान जी की आराधना से शत्रु–बाधा दूर होती है। कलश–स्थापना से सुख–शांति व श्रीदुर्गा नवार्णयंत्रम को भोजपत्र या ताम्रपत्र पर लिखकर पूजन करने से समस्त कामनायें पूरी होती हैं। नौ दिन तक अखण्ड दीपक ज्योति रखना भी शुभ होता है। दुर्गा माँ की आराधना से सभी बाधाएं दूर होती हैं व
‘‘सर्वमंगलचे शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते’’
मंत्र का जाप करना चाहिये, प्रतिदिन भोग लगायें।
(१) शैलपुत्री– पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रुप में शैलपुत्री मानी जाती है। शैल पुत्री गौरी के अर्थ में भी ‘बरों त शम्भु न तो रहौ कुमारी’ के संकल्प बल की ही विशेषता है। नवरात्रा के प्रथम दिन इसकी पूजा उपासना होती है, योगी अपनी योग–साधना करते हैं। ब्रह्म–जिज्ञासु, सत्यान्वेषी संकल्पक बल, यही बल जीवन में शक्ति प्रदान करती है और जीवन के कार्यों में पूर्ण सफलता मिलती है।
(२) ब्रह्मचारिणी- मॉ दुर्गा का दूसरा रुप। नवरात्रा के दूसरे दिन पूजा–उपासना की जाती है। ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न सृष्टि का संचालन करने वाली माता, मनुष्य में तप, संयम एवं सदाचार की वृद्धि करती है, ज्वालामुखी पहाड़ पर इनका स्थान है।
(३) चन्द्र घंटा- नवरात्रा के तीसरे दिन इसी नाम की पूजा आराधना की जाती है, यह स्वरुप कल्याणकारी है, इसकी कृपा से पाप एवं बाधाएं दूर हो जाती हैं, चन्द्रमा की किरणों के समान शीतल व सौम्य है, यह कर्नाटक के कान्चीपुरम में स्थित है।
(४) कुष्मांडा- नवरात्रा के चौथे दिन इसी नाम से पूजा की जाती है। ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इसका नाम कुष्मांडा पड़ा, इसकी आराधना से रोग व शोक नष्ट हो जाते हैं। भीमा पर्वत पर इसका डेरा बताया गया है, योग वशिष्ठ में लिखा है, जो कुछ शरीर में है, वही प्रक्रिया पूरे ब्रह्माण्ड में है।
(५) स्कन्द माता– यह दुर्गा का पांचवा स्वरूप है, इसी नाम से पांचवें दिन पूजा–अर्चना की जाती है, इसकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है, कहते हैं कि इनकी कृपा से ही महाकवि कालिदास के ‘मेघदूत’ व ‘रघुवंश’ जैसे महाकाव्य पूर्ण हुए, यह माता चेतना का निर्माण करती है।
(६) कात्यायनी- यह दुर्गा माँ का छठा रुप है और इसी के नाम से छठे दिन पूजा आराधना की जाती है, कहते हैं कि देवताओं के कार्य सिध्द करने के लिये महर्षि कात्यायनी के आश्रम में प्रकट हुईं और ऋषि ने उसे कन्या के रुप में माना, इसकी पूजा से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों की प्राप्ति होती है, यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर विख्यात हुईं।
(७) कालरात्रि– यह मॉ दूर्गा का सातवां रुप है और इसी नाम से नवरात्रों में इनकी आराधना की जाती है, अन्धकारमय परिस्थितियों का विनाश करने के कारण कालरात्रि नाम पड़ा। दुष्टों का विनाश करती है, मनुष्य इसकी कृपा से भय से मुक्त रहता है, इसका स्थान कोलकाता में बताया जाता है, इन्हें रत्नागिरी भी कहते हैं।
(८) महागौरी- यह आठवां रूप है, इसी नाम से नवरात्रों में पूजा की जाती है, इसके तीन रूप हैं–पहला महागौरी, दूसरी राज कन्या, तीसरा शैल कन्या, यह सबकी रक्षा करने वाली मॉ है। हरिद्वार कनखल नामक स्थान पर इनका स्थान है, वाहन वृषभ की कृपा से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
(९) सिद्धिदात्री– नवरात्रा के नवें दिन सिद्धिदात्री के रुप में पूजा होती है, ये सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। हिमाचल के नन्दा पर्वत पर इनका तीर्थ स्थान है, कठिन से कठिन कार्य इनकी कृपा से चुटकी बजाते ही सिद्व होते हैं।
मॉ की पूजा उपासना–आराधना करने पर सभी प्रकार की मनोकामनायें पूूर्ण होती हैं, हम पूर्ण रुप से हर तरह का विधि–विधान नहीं जानते, किसी प्रकार की त्रुटि हो जाये और मॉ से क्षमा मांगने पर सभी त्रुटियों को मॉ क्षमा कर देती है।
‘‘न मंत्रम नौ यत्रं तदपि च न जाने स्तुति महो
न चाह्मानं ध्यानं तदपि न च जाने स्तुति कथा:
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्’’
भवतारिणी, भयहारिणी, पापनाशिनी, सुख–सम्पदा प्रदान करने वाली शक्तिरुप, सिद्धिदात्री नव दुर्गा मॉ को ‘मेरा राजस्थान’ परिवार का कोटिश: नमन!