चित्तौड़गढ़ एक ऐतिहासिक वीरभूमि

चित्तौड़गढ़ एक ऐतिहासिक वीरभूमि

चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक नामचीन और ऐतिहासिक शहर है। यहाँ शूरवीरों का गढ़ था, जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, विंâतु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वह अपना लक्ष्य नहीं पा सका और प्रचंड गुस्से में आकर उसने अपना पांव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहां पानी का द्योत  फुट पड़ा, पानी के इस कुंड को भीम ताल कहा जाता है। बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय यह है कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले १५६८ तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी था।

यह माना जाता है कि सिसौदिया वंश के महान संस्थापक बप्पा रावल ने ८वीं शताब्दी के मध्य में सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौ़ड़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो १६वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैले चुका था।

अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौड़गढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की और एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल ह्वेल आकार में, पहाड़ी पर निर्मित दुर्ग लगभग ३ मील लंबा और आधे मील चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा हुआ है।

चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है, जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवं बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारा रुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा प्रेरणाद्योत बनी हुई है। यहाँ का कण-कण देश-प्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें ‘एकता’ का संकेत देती है।

इस किले ने इतिहास के ढेर-सारे उतार-चढाव देखे हैं, यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है, इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं, जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं।

चौगान के निकट ही एक झील के किनारे रावल रत्नसिंह की रानी पद्मिनी के महल बने हुए हैं। एक छोटा महल पानी के बीच में बना है, जो जनाना महल कहलाता है व किनारे के महल मरदाने महल कहलाते हैं। मरदाना महल के एक कमरे में एक विशाल दर्पण इस तरह से लगा है कि यहाँ से झील के मध्य बने जनाना महल की सीढियों पर खड़े किसी भी व्यक्ति का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दर्पण में नजर आता है, परंतु पीछे मुड़कर

राव रणमल की हवेली

गोरा बादल की गुम्बजों से कुछ ही आगे सड़क के पश्चिम की और एक विशाल हवेली के खण्डहर नजर आते हैं। इसको राव रणमल की हवेली कहते हैं। राव रणमल की बहन हंसाबाई से महाराणा लाखा का विवाह हुआ था।

 खातन रानी का महल

रानी पद्मिनी महल के तालाब के दक्षिणी किनारे पर पुराने महल के खण्डहर है, जो खातन रानी के महल कहलाते हैं। महाराणा क्षेत्र सिंह ने अपनी रुपवती उपपत्नी खातन रानी के लिए यह महल बनवाया था। इसी रानी से चाचा तथा मेरा नाम के दो पुत्र हुए जिसने सन् १४३३ में महाराणा मोकल की हत्या कर दी थी।

कालिका माता का मंदिर

पद्मिनी के महलों के उत्तर में बांई और कालिका माता का सुन्दर, ऊँची कुर्सीवाला विशाल महल है। इस मंदिर का निर्माण संभवत: ९ वीं शताब्दी में मेवाड़ के गुहिलवंशीय राजाओं ने करवाया था। मूल रुप से यह मंदिर एक सूर्य मंदिर था। निजमंदिर के द्वार तथा गर्भगृह के बाहरी पाश्र्व के ताखों में स्थापित सूर्य की मूर्तियाँ इसका प्रमाण है। बाद में मुसलमानों के समय आक्रमण के दौरान यह मूर्ति तोड़ दी गई और बरसों तक यह मंदिर सूना रहा। उसके बाद इसमें कालिका की मूर्ति स्थापित की गई। मंदिर के स्तम्भों, छतों तथा अन्त:द्वार पर खुदाई का काम दर्शनीय है। महाराणा सज्जनसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। प्रति वर्ष यहाँ आज भी एक विशाल मेला लगता है। रानी पद्मिनी का महलराव रणमल की हवेली