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सम्पादकीय
बिजय कुमार जैन
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए का आव्हान करने वाला एक भारतीय
सम्पादकीय
महेश नवमी पर्व माहेश्वरी परिवारों का वंशोत्पत्ति दिवस है
इतिहास के पन्नों में झांक कर देखें तो हमें जानकारी मिलती है कि क्षत्रिय से वैश्य समाज में परिवर्तित हुए भगवान महेश व पार्वती मां के आशीर्वाद से ‘माहेश्वरी’ आज विश्व के व्यापारिक व समाज सेवा के मानचित्र में प्रथम दृष्टया प्रतिष्ठित हैं। भगवान महेश ने ७२ उमराव, जो पाषाण के रूप में ऋषि-मुनि के श्राप से परिवर्तित हो गए थे, उन्हें वापस मानव जीवन प्रदान किया, फिर वे ही ७२ उमराव के नाम आज ७२ गोत्र के रूप में परिवर्तित ‘माहेश्वरी’ जाने जाते हैं और विश्व में फ़ैल अपने समाज के साथ भारतीय संस्कृति के सिरमौर बने हुए हैं।
भगवान महेश व पार्वती से मिले आशीर्वाद से हर पल ‘जय उमा महेश’ का जयघोष करने वाले माहेश्वरी व्यापारी तो हैं ही क्योंकि उन्हें ‘तराजू’ जो विरासत में मिली थी, तभी तो माहेश्वरी’ आज श्रेष्ठ ही नहीं श्रेष्ठता को अपनाते हुए समाज की सेवा के साथ राष्ट्र की सेवा में भी पीछे नहीं, यदि इनकी सेवा का बखान करने लगें तो विश्वस्तरीय घोषित ऐतिहासिक, समस्त राजस्थान की एकमात्र पत्रिका ‘मेरा राजस्थान’ के रंगीन पन्ने भी कम पड़ जाएंगे।
‘महेश नवमी’ के पावन पर्व पर विभिन्न भारतीय राज्यों में रहने वाले माहेश्वरी सुधीजनों का साक्षात्कार प्रस्तुत विशेषांक में प्रस्तुति करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, तो विभिन्न जानकारियां व श्रेष्ठता के कार्य को पढ़-समझ कर ऐसा लिखने को मन किया कि अन्य राजस्थानी समाज को भी माहेश्वरी परिवारों
के कार्यों का अवलोकन कर आगे ही आगे बढ़ते चले जाना चाहिए।
‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाना चाहिए’ इंडिया नहीं, अभियान आज जितना भी सफलता के पायदान तक पहुंचा है उसका श्रेय विश्व में फैले भगवान महेश के वंशजों ‘माहेश्वरियों’ को विशेषकर जाता है, क्योंकि ‘भारत नाम सम्मान’ अभियान की सफलता के लिए किए गए कार्यक्रमों को आयोजित करने, जग में अभियान को फैलाने वालों में माहेश्वरी परिवारों की सोच व आर्थिक सहयोग विशेषकर मुझे प्राप्त होता रहा है, कहते भी हैं कि जब तक ‘भारत’ नाम को विश्व के मानचित्र में सम्मान नहीं मिलेगा बिजयजी! आपके साथ कदम दर कदम मिलाकर चलते रहेंगे, ऐसे उमा महेश के वंशजों को भारत मां का आशीर्वाद प्राप्त होता रहे, यही मंगल कामना करता हूं।
‘महेश नवमी’ का विशेषांक ‘मेरा राजस्थान’ ऐतिहासिक पत्रिका के प्रबुद्ध पाठकों को कैसा लगा, मुझे मार्गदर्शन मिलेगा तो आगे के विशेषांकों को और भी पठनीय व संकलनीय बनाया जा सकेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी का सहयोग जिस प्रकार मुझे मिलता रहा है, आगे भी मिलता रहेगा।
जय जय राजस्थान!