डॉ. जीवराज सोनी: विज्ञान एवं अध्यात्म की योजक कड़ी
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समस्त राजस्थानी समाज की पत्रिका ‘मेरा राजस्थान’ के एक सम्पादकीय कड़ी का निधन
बीकानेर: डॉ. जीवराज सोनी, वनस्पति विज्ञान के ऐसे शिक्षक, शोधकत्र्ता एवं विशेषज्ञ थे, जिन्हें वनस्पति विज्ञान में कठिन समझे जाने वाले विषय ‘‘पादप वर्गिकी’’ का व्यापक, सशक्त एवं वास्तविक ज्ञान था, राजस्थान में पाये जाने वाले किसी भी पादप की पहचान तर्वâ एवं कारण सहित करने की आपको महारथ हासिल थी सेवानिवृति के बाद आपकी अध्यात्म में ऐसी रूचि लगी कि कई शोध-पत्र प्रकाशित कर दिये, आप हमेशा अध्यात्म व प्रचलित संस्कृति एवं संस्कारों की वैज्ञानिक व्याख्या करते रहते थे, अतः आपको विज्ञान एवं अध्यात्म की योजक कड़ी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। डॉ. जीवराज सोनी का जन्म १५ फरवरी, १९३९ को श्री कुन्दनमल एवं श्रीमती देवकी के यहाँ राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गाँव फड़ौद में हुआ था, आपका विवाह डॉ. मोतीलाल कड़ेल की सुपुत्री कोमल सोनी के साथ ४ जून, १९६६ को हुआ, आपके तीन सुपुत्र मोहित, पुनीत व अनुपम है। ‘‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’’ यह कहावत सोनी जी पर पूरी तरह खरी उतरती है, दस वर्ष की आयु में ही आपके पिता का देहान्त हो गया, आपकी बुद्धिमता, लगन, मेहनती स्वभाव व ओजस्वी व्यवहार को देखते हुए परिवारजनों ने आपको विद्यालयी शिक्षा नागौर शहर में दिलाई, आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव आपके ताऊजी पे्रमराज जी सोनी का पड़ा, जिन्होंने न केवल अध्ययन में आर्थिक मदद की, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का संस्कारित रास्ता दिखाया, आपका बीकानेर के सरदार पटेल आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में एमबीबीएस के अध्ययन के लिए चयन हो गया एवं आपने वहां अध्ययन भी प्रारंभ कर दिया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण एमबीबीएस की पढ़ाई छोड़नी पड़ी, जोधपुर में अपने परिवारजनों के साथ रहने की सुविधा मिलने एवं जल्दी रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से तत्कालीन जसवंत कॉलेज, जोधपुर में बी.एससी. उपाधि के लिए दाखिला लिया, बी. एससी. के बाद इसी कॉलेज से आपने एम. एससी. की उपाधि प्राप्त की, इस दौरान प्रसिद्ध वनस्पतिविज्ञ डॉ. सी.वी. सुब्रमण्यम के आप प्रिय शिष्य रहे। मास्टर डिग्री प्राप्त करते ही आपका चयन राजस्थान महाविद्यालय शिक्षा सेवा में हो गया, आपने राजस्थान के विभिन्न महाविद्यालयों में अपनी सेवाएं दी एवं आपका अधिकांश कार्यकाल राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर में रहा, प्राध्यापक रहते हुए आपने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से उत्तक संवद्र्धन एवं जैव प्रौद्योगिकी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, आपने कई शोधपत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुत किए एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी करवाए।
आप राजकीय महाविद्यालय, बांसवाड़ा से उपाचार्य के पद से वर्ष १९९७ में सेवानिवृत्त हुए। वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थी होने के नाते प्रकृति से आपका संबंध सदैव रहा, आपको प्राकृतिक दृश्यों विशेषतः वनस्पति की फोटोग्राफी में शुरू से रूचि थी जो जीवन-पर्यन्त बनी रही। वाट्सएप एवं फेस-बुक के माध्यम से पादपों के संबंध में जानकारी साझा करते रहते थे। महाविद्यालय से वानस्पति भ्रमण का आपने हमेशा नेतृत्व किया एवं भारत के विभिन्न वनस्पति बाहुल्य क्षेत्रों का विद्यार्थियों को भ्रमण करवाया, आप पादप रोग विज्ञान, शारिरीकी, अकारिकी एवं वर्गिकी के विशेषज्ञ माने जाते थे। पादप वर्गिकी में रूचि एवं विशेषज्ञता के कारण आप वनस्पति जात से हमेशा जुड़े रहे। डॉ. जीवराज सोनी एक सर्वाधिक लोकप्रिय शिक्षक थे, आपने अनुशासन में रहते हुए सदैव शैक्षिक आदर्शों की स्थापना की एवं दूसरे के प्रति सम्मान और आदर प्रदर्शित करते हुए अपने विषय के प्रति न्याय किया एवं अनुसंधानों, अध्यापन एवं प्रशासनिक क्षमता से ख्याति प्राप्त कर देश को लाभ पहुँचाया, आपको हिन्दी, अंग्रेजी व राजस्थानी भाषा का अच्छा ज्ञान था यही कारण था कि उनकी अभिव्यक्ति का प्रत्येक रूप नितान्त मौलिक और हृदयग्राही होता था। डॉ. जीवराज सोनी वैज्ञानिक, शिक्षाविद् एवं अध्यात्मवेत्ता जैसे व्यक्तित्वों का एक सम्मिश्रण थे। वनस्पति विज्ञान के संवद्र्धन में बहुत बड़ा योगदान है, आपने पादप पहचान के लिए सैकड़ों वर्गिकी विशेषज्ञ तैयार किये,कहते हैं व्यक्ति अपने साथ कुछ नहीं ले जाता, आप तो ज्ञान का बहुमूल्य भण्डार अपने साथ ले गए। किसी भी कार्यक्रम, संगोष्ठी, धर्मसभा में किसी भी विषय पर बोलने में आप पारंगत थे। आप मंचीय सफलता के लिए सस्ती उत्तेजना का सहारा नहीं लेते थे, आप गंभीरता और धैर्य से सुननवालों के लिए विषय को संवेदनशील बना देते थे
एवं आपकी शैली, शब्दों को अपनी संवेदना में मिलाकर, परम आत्मीय भाव प्रवाहित करती थी। डॉ. जीवराज सोनी को राजकीय सेवा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् अध्यात्म में गहरी रूचि हो गई। आपने गीता, रामायण, राजस्थान के लोकदेवता, महात्मा बुद्ध, लोक संस्कार इत्यादि का गहन अध्ययन किया। आपने मीरा की जन्म भूमि मेड़ता व नागौर के गोठ-मांगलोद गॉंव स्थित दधिमति माता के मन्दिर पर शोध कर मीरायन, ‘मेरा राजस्थान’, वैचारिकी इत्यादि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध-पत्र प्रकाशित किए एवं शोध को विभिन्न संगोष्ठियों में भी प्रस्तुत किया। बीकानेर में होने वाले विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में आप नियमित धर्म विचार प्रकट करते रहते थे। स्वाध्याय करना व अपने ज्ञान को उचित स्थान पर सेवा रूप में लगाना ही आपने अपने जीवन का उद्देश्य बनाया, अपनी सकारात्मक सोच के कारण ही आप सभी के प्रिय बनते गये, आप कहते थे कि व्यक्ति को शिक्षा एवं ज्ञान सदैव सुपात्र को ही देनी चाहिए तभी ज्ञान की कद्र होती है। आप ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी के साथ समर्पित कर्मयोगी थे। आप अपने अन्तिम समय तक अपने विद्यार्थियों को अपने ज्ञान से लाभान्वित करते रहे, आपके स्वर्गवास से पन्द्रह दिन पूर्व आपके ही एक शिष्य ने आग्रह किया कि इस वर्ष वर्षा अच्छी होने के कारण डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर परिसर में वनस्पति काफी अच्छी हुई है। स्नात्तकोत्तर के विद्यार्थियों को पादपों की पहचान करवाना चाहते है।
आप ८० वर्ष की आयु में भी तुरन्त तैयार हो गये और चार दिनोंतक लगातार परिसर में भ्रमण कर विद्यार्थियों को पादपों की न केवलपहचान करवाई बल्कि उनमें वानस्पतिक विविधता के प्रति रूचि भी पैदा की। विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभव साझा किये एवं जीवन में वनस्पति विज्ञान विषय के साथ आगे बढ़ने की पे्ररणा दी, आपकी मृत्यु का समाचार जब आपके एक साथी वनस्पति विज्ञानी को दी तो उनके मुख से सबसे पहले यह वाक्य निकला कि राजस्थान के वनस्पति जात विशेषज्ञ जगत ने पादप की सही पहचान करने वाले एक विद्वान व्यक्ति को खो दिया, डॉ. जीवराज सोनी एक युगान्तकारी वनस्पति शिक्षाविद्एवं धर्मपुरूष थे, अपने अध्यापन से आप प्रत्येक विद्यार्थी का दिल जीत लेते थे।विद्यार्थियों में आपकी एक अलग छवि रही, विषय की इतनी व्यापकता, सक्षमता और सरसता के साथ प्रस्तुत करने वाले शिक्षाविद् दुनिया में बहुत कम है, आप ऐसे अध्यापक थे जिन्हें वास्तविक व्यावहारिक ज्ञान था, आपने विद्यार्थियों के अध्ययन में आने वाली हर समस्या का समाधान प्रस्तुत किया एवं सफलता का मार्ग प्रशस्त करवाया।लोकदेवताओं,गीता, रामायण, भगवान बुद्ध इत्यादि पर आपका ज्ञान विस्तृत एवं गम्भीर था, आपके प्रवचन श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे एवं वे आपको बार-बार सुनना पसंद करते थे, यही कारण है कि आपसे पढ़ा हुआ प्रत्येक विद्यार्थी एवं धार्मिक प्रवचन सुना हुआ प्रत्येक धर्मार्थी १३ अक्टूबर, २०१८ को देहान्त का समाचार पाकर सन्न रह गया।
– श्रीमती कोमल सोनी
धर्मपत्न