फ्रूट थैरेपी
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यदि हम स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण जागरूक हैं तो निश्चित ही हमारा जीवन शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अनुकूलित का समवेत व्यक्तित्व बन सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को ही प्रमुख औषधि माना गया है। सात्विक आहार की नियमितता हमें पूर्ण स्वस्थ बना सकती है। अन्कुरित अनाज, ऋतु अनुकूलित हरी सब्जी, फल आदि का सेवन निश्चित ही स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखता है। सन्तुलित भोजन, विश्राम, व्यायाम, योगाभ्यास आदि का दूसरा नाम ही प्राकृतिक चिकित्सा है। वैज्ञानिक अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि शाकाहारी भोजन के साथ फलों का आहार शरीर को चिरयौवन प्रदान करता है। मांसाहारी और तेज मिर्च मसाले युक्त पदार्थ शरीर को रोगी बनाते हैं और त्वचा की लवण्यता को कम करते हैं। हरे पत्तों का सूप या फल आदि शरीर को निरोग बनाने में काफी सहायक होते हैं। खासकर फलों का तो बहुत ही महत्व है। विभिन्न फलों के रस द्वारा अनेक बीमारियों का स्वयं के द्वारा उपचार किया जा सकता है।
आम- यह फलों का बादशाह माना जाता है। इसकी अनेक जातियाँ होती है जिनमें हाफुस , लन्गड़ा, सफेदा , दशहरी, चौसा, दरबारी और राजभोग प्रमुख हैं। यह गले के रोगों के लिए बहुत लाभदायक पाया गया है। अतिसार, मूत्र रोग, योनि रोग में लाभ प्रदान करता है और वीर्यवद्र्धक भी होता है। गर्मी में लू लगने पर कच्चे आम का पना बहुत लाभप्रद होता है। दूध के साथ आमरस शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
अमरूद- यह फल भारत में सभी प्रान्तों में पाया जाता है, लेकिन इलाहाबाद के अमरूद का विशेष स्थान है। यह सात्विक मधुर फल है। हल्का खट्टा, पकने पर स्वादिष्ट-शीतल, कफ कारक, रक्तवद्र्धक, त्रिदोषनाशक, दाह, मूच्र्छा में सहायक, कब्ज के रोगियों में बहुत उपयोगी है। कुछ देशों में इसके पत्तों को पानी में उबालकर लोग स्नान करते हैं और मधुमेह के रोगियों को पिलाते हैं। इसके पत्तों का काढ़ा हैजा, दन्त पीड़ा और जले स्थान आदि पर लगाने से लाभ होता है।
केला- यह वृक्ष भारत ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध है। इसकी अनेक जातियाँ होती हैं। हरी छाल, लाल छाल, पीली छाल, कोकनी और चीनी छाल। यह पौष्टिक और कृमिनाशक होता है। यह मासिक धर्म की अनियमितताओं को दूर करता है, रक्त विकार, मधुमेह, अग्निमथ, कुष्ट, कान की पीड़ा, गुर्दे की निर्बलता में सहयोगी, सर्प दन्श के रोगी को इसके पेड़ से निकले जल का एक प्याला देने से लाभ होता है और इसे कच्चे खाने से पेशाब की अधिकता में कमी आती है।
अनार- देश में सभी वर्ग के लोग इसके रस का आनन्द लेते हैं। अनार त्रिदोष नाशक, ज्वर दूर करने वाला, हृदय रोग में लाभप्रद, मुखरोग दूर करने वाला और बलवद्र्धक होता है। इसके फूल के रस को नाक से खून बहने की अवस्था में डालने पर लाभ होता है और इसके छिलके का काढ़ा कृमिनाशक और खाँसी में लाभप्रद होता है।
सेब- इसका वृक्ष मध्यम श्रेणी की ऊँचाई को लिए हुए होता है। भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में सेब प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह वात, पित्तनाशक, पौष्टिक, शीतल, वीर्यवद्र्धक होता है। इसमें विटामिन ‘बी’ काफी मात्रा में होता है। नेत्रों के अनेक रोगों में इसका सेवन लाभप्रद होता है। कब्ज के रोगी को रात को सेब खाकर दूध पीना चाहिए। इससे प्रात: पेट अच्छी तरह साफ होता है। सेब गुर्दे की पीड़ा में लाभप्रद होता है और इसके रस के सेवन से नींद अच्छी आती है।सेब- इसका वृक्ष मध्यम श्रेणी की ऊँचाई को लिए हुए होता है। भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में सेब प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह वात, पित्तनाशक, पौष्टिक, शीतल, वीर्यवद्र्धक होता है। इसमें विटामिन ‘बी’ काफी मात्रा में होता है। नेत्रों के अनेक रोगों में इसका सेवन लाभप्रद होता है। कब्ज के रोगी को रात को सेब खाकर दूध पीना चाहिए। इससे प्रात: पेट अच्छी तरह साफ होता है। सेब गुर्दे की पीड़ा में लाभप्रद होता है और इसके रस के सेवन से नींद अच्छी आती है।
जामुन- भारत के सभी प्रान्तों में इसके पेड़ पाए जाते हैं ग्रीष्म ऋतु के अन्त में इसके सेवन से रक्त विकार सम्बन्धी रोगों में राहत मिलती हैं मधुमेह को रोगों को रोजाना तीन रत्ती जामुन का चूर्ण दिया जाना लाभप्रद होता
है। यह खाँसी में लाभप्रद, मसुड़ों को मजबूत करता है।
अन्गूर- यह फल कश्मीर, कर्नाटक आदि, स्थानों में काफी होता है। यह वीर्यवद्र्धक होता है। काले अन्गुर और हरे अन्गुर का शर्बत शरीर के लिए पुष्टिकारक होता है। ज्वर, हल्की हरारत एवम् पेट के रोगों में तो यह बहुत ही हितकारी होता है। नेत्रों के लिए अन्गूर का सेवन बहुत फायदेमन्द होता है।
सन्तरा, मौसम्मी, मालटा एवम् चीकू- ये फल भारत के लगभग सभी भागों में प्राप्त होते हैं। नागपुर का सन्तरा, मुम्बई की मौसम्मी प्रसिद्ध है। इनके फलों का रस पेट के रोग, गले के रोग, श्वाँस के रोग, दस्त में लाभदायक होता है। बलवद्र्धक, ज्वरनाशक, प्यास बुझाने वाले, रक्त पित्तनाशक।