दीपावली के देव कुबेर
by admin · Published · Updated
तिब्बतवासी कुबेर को धन-वैभव का देवता व उत्तर का स्वामी मानते हैं, चीन में कुबेर की गणना आठ लोकपालों में की जाती है, उन्हें धरती, धन व मनुष्यों का रक्षक बताया गया है। बौद्धधर्म में कुबेर को जंजाल बताया गया है। कुबेर दीपावली के देवता होने के साथ-साथ यक्षों, मनुष्यों तथा दैत्यों के भी देवता स्वीकारे गये हैं प्राचीन काल से भारत में दीपावली यक्ष रात्रि के रुप में मनाई जाती है, इस दिन घरों को दीपकों से सजाकर धन के देवता व रक्षक कुबेर की पूजा बहुतायत में की जाती थी, उस समय उन्हें दीपावली के आदि देवता के रुप में भी सम्मान प्राप्त था, समय परिवर्तित होता रहा और दीपावली के देवता होने का गर्व कुबेर के हाथों से जाता रहा, यह गर्व और सम्मान कालांतर में देवी लक्ष्मी को प्राप्त हुआ। कुबेर को धन का देवता तथा देवताओं के धन का कोषाध्यक्ष भी माना गया। कुबेर का स्थान वटवृक्ष बताया गया है, जिसे कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, ज्यादातर लोग कुबेर की ही पूजा-अर्चना किया करते थे, खजाने के द्वार शीर्ष पर कुबेर की विशाल प्रतिमाएँ स्थापित की जाती थी। कुबेर की पशुपति वैलाशनाथ भगवान शिव के साथ भी घनिष्ठता थी। वैलाश पर्वत पर यक्षों के देवता कुबेर के नगर अलका में चैत्ररथ का सुन्दर उद्यान था, चैत्ररथ में भगवान शिव का वास है, कुबेर का जन्म भारद्वाज की पुत्री से हुआ, हजारों वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद उन्हें ब्रह्माजी से धन देवता व लंकापति होने का वर प्राप्त हुआ। कुबेर व रावण दोनों सौतेले भाई थे, भारत में कई स्थानों पर कुबेर का स्थान गणेश जी ने ले लिया, परन्तु अभी भी कई प्रांतों में दीपावली के दिन लक्ष्मी व कुबेर की पूजा की जाती है। खुदाई के दौरान कृषाण व गुप्त काल की कई कलात्मक मूर्तियाँ मिली हैंं, जिनमें कुबेर के साथ उनकी पत्नी हारीती तथा कहीं लक्ष्मी दिखाई देती है, गुप्त व कृषाण काल में कुबेर को सम्पन्नता व ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है। कुबेर जन्म से ही कुरुप थे, ऐसा निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता, पहले वे सुन्दर थे, उनकी सुन्दरता का कोई सानी नहीं था। पुराण के अनुसार एक बार वे दुर्गा का सौन्दर्य देखकर ईष्र्या करने लगे, दुर्गा ने उनका घमण्ड तोड़ने के लिये उन्हें श्राप दे दिया और सुन्दर कुबेर कुरुप हो गये।
कहीं-कहीं कुबेर को कुबड़ा भी दर्शाया गया है शायद इसलिए, क्योंकि उन पर धन का भार बहुत अधिक था, भारत में ही नहीं, विदेशों में भी कुबेर को सम्मान प्राप्त है एवं उनकी पूजा की जाती है। तिब्बतवासी कुबेर को धन-वैभव का देवता व उत्तर का स्वामी मानते हैं। चीन में कुबेर की गणना आठ लोकपालों में की जाती है, उन्हें धरती, धन व मनुष्यों का रक्षक बताया गया है। बौद्ध-धर्म में कुबेर को जंजाल बताया गया है। कुबेर दीपावली के देवता होने के साथसाथ यक्षों, मनुष्यों तथा दैत्यों के भी देवता स्वीकारे गये हैं। महायान व व्रजयान धर्म सम्प्रदायों में कुबेर को बहुत सम्मान प्राप्त है, ये बात अलग है कि आज हम उन्हें दीपावली के देवता के रुप में भूल चुके हैं और लक्ष्मी को धन की देवी मान उसकी पूजा-अर्चना कर रहे हैं।