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श्री बाबा गंगाराम की परम आराधिका
बाबा गंगाराम की अनन्य साधिका एवं भक्त शिरोमणि श्री देवकीनंदन की सहधर्मिणी और श्री पंचदेव मंदिर झुंझुनू की संस्थापिका माता गायत्री देवी अपने लाखों-लाखों भक्तों से विदा लेते हुए मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी दिनांक 29 नवम्बर 2017 को अपने नश्वर शरीर को त्यागकर बाबा के धाम के लिए महाप्रयाण कर गयी. मंदिर में एक ओर जहाँ भक्तवृंद घंटे,नगाड़े और शंख की ध्वनि के साथ बाबा की आरती में मग्न थे,वहीं माँ गायत्री बाबा गंगाराम का नाम उच्चारित करते हुए इस मृत्युलोक को छोड़कर परम ज्योति में लीन हो गयी. लाखों भक्तों की जीवन प्रेरणा आध्यात्म शक्ति और मार्गदर्शिका माता गायत्री देवी के लिए तो ये लोक और परलोक दोनों समान ही थे. तभी तो उन्होंने कुछ दिन पूर्व ही बाबा की पावन दशमी तिथि को अपने महाप्रयाण के लिए चुनकर सबको बता दिया था.
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युगदृष्टा माता गायत्री के चरित्र को दो शब्दों में बखान करना असंभव है. उनको बाबा गंगाराम और उनके भक्तों के बीच एक सेतु के रूप में माना जाता था. बाबा के भक्तों का पक्का विश्वास रहता था,कि घोर से घोर संकट से घिरने पर भी माँ गायत्री के शुभाशीष प्राप्त करते ही उनके समस्त ष्ट कट जायेंगे,दुखड़ों का अन्त हो जायेगा. सच क में वे करुणा की मूरत थी ।
माँ कहती है,तुम्हेँ बारम्बार प्रणाम तेरे त्याग व भक्ति से, हमें मिल गए गंगाराम माँ गायत्री का सादगी भरा चेहरा,नेत्रों में करुणा और उनका दिव्य आभामंडल भक्तों को बरबस अपनी ओर खींच लेता था. बाबा गंगाराम धाम में जाने वाले श्रद्धालू जब बाबा दर्शन के पश्चात् माँ के चरणों में बैठते और माँ उनके मस्तक पर अपना हाथ फिराती के तो ऐसा प्रतीत होता मानों सारे पापों का शमन हो गया और सारे सांसारिक सुख प्राप्त हो गए. वे अपनी दैवीय सत्ता को विनय के आवरण में छिपाए रखती थी ।
समस्त सम्पदा का त्याग
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समस्त सम्पदा का त्याग विष्णु अवतारी बाबा गंगाराम की आध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण था माता गायत्री का आभामण्डल. वे भक्ति के चैतन्य लोक में रहती थी और प्रत्येक के ह्रदय की बात जानती थी. वे ज्ञान का भण्डा रथीउन्होंने पौराणिक ग्रंथों का गहन अध्ययन कर उनका सूक्ष्म विश्लेषण किया था और उन्हें अपने जीवन में उतारा था. जो उनके उपदेश,उनकी वाणी में साफ झलकता था. उनके उपदेशों में माँ सरस्वती विराजमान होकर लोगो का मार्गदर्शन करती थी. माता गायत्री विलक्षण भक्त एवं परम तपस्विनी थी. वे प्रेम, दया,परोपकार और धैर्य की प्रतिमूर्ति थी ।
श्री पंचदेव मंदिर की स्थापना के पश्चात भक्त शिरोमणि श्री देवकीनन्दन व परम आराधिका माता गायत्री देवी को सांसारिक मोह माया से विरक्ति हो गयी. उन्होंने तुलसी दल लेकर संकल्प करते हुये अपनी करोड़ों की सम्पदा, समस्त चल अचल सम्पति का त्याग कर जनसामान्य में बांट दिया. इतना ही नहीं उनके दो पुत्र और चार पुत्रियों ने भी आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा करते हुये भक्ति के पथ पर चलने का अडिग निर्णय ले लिया और फिर श्री देवकीनन्दन और माता गायत्री देवी अपने पुत्र,पुत्रियों के साथ मंदिर के परिसर को ही अपना संसार समझकर बाबा की सेवा में समर्पित हो गए. कलयुग के इस भौतिक युग में हरिश्चन्द्र के समान उनका ये त्याग स्वयं में एक उदाहरण है ।
भक्ति मार्ग पर चलने वालों को सदैव ही विकट विरोध एवं उपहास का सामना करना पड़ा है. इसी तरह भक्त देवकीनंदन और माता गायत्रीदेवी के भक्ति पथ के अवरोधक बन गए उनके परिजन व धर्म विरोधी लोग. परन्तु अपनों की विमुखता और अपनों का अत्याचार उन्हें उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सका. वे काँटों को भी फूल समझकर चलते रहे, बढ़ते रहे अपनी मंजिल पर. कोलकाता महानगर में करीब ४० वर्ष पूर्व वैभवपूर्ण जीवन त्यागने के पश्चात् वे श्री पंचदेव मंदिर के परिसर में सतत साधना में लीन हो गये,अभूतपूर्व था उनका त्याग ।
चिता में अलौकिक चमत्कार
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इतिहास साक्षी है माता सीता, सती अनुसुईया और सती सावित्री को भी अपने सत की परीक्षा देनी पड़ी थी. ठीक उसी प्रकार भक्त शिरोमणि श्री देवकीनन्दन के महाप्रयाण के अवसर पर (दिनांक २१ अप्रेल १९९२ को) माता गायत्री देवी ने द्रोपदी की भांति अपने दोनों हाथ उठाकर सूर्य की साक्षी में बाबा से सत्य की परीक्षा काप्रमाण देने के लिए प्रार्थना की थी, तब भक्त देवकीनंदन की चिता पर अलौकिक चमत्कार हुए थे. बाबा ने साक्षी स्वरुप ऐसा परिचय दिया जिसे सम्पूर्ण सृष्टि का इतिहास कभी भुला न सकेगा. सर्वविदित हैं कि उसी समय जलती हुई चिता में गडगडाहट हुई और भक्त देवकीनंदन का दाहिना हाथ पीछे से निकलकर आशीर्वाद देता हुआ हिलने लगा. उनके मस्तक से जल की धारा बहने लगी और चेहरा बाल रूप में बदल गया. सचमुच मानों सूर्य का रथ भी ठहर गया हो. संपूर्ण वातावरण भक्त और भगवान की जय जयकार से गूंज उठा. माता गायत्री की करुण पुकार पर चिता में हुये ये अलौकिक चमत्कार माँ गायत्री की भक्ति की पराकाष्ठा को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है माता गायत्री देखकर, तेरा भारी त्याग।
पर अलौकिक चमत्कार हुए थे. बाबा ने साक्षी स्वरुप ऐसा परिचय दिया जिसे सम्पूर्ण सृष्टि का इतिहास कभी भुला न सकेगा. सर्वविदित हैं कि उसी समय जलती हुई चिता में गडगडाहट हुई और भक्त देवकीनंदन का दाहिना हाथ पीछे से निकलकर आशीर्वाद देता हुआ हिलने लगा. उनके मस्तक से जल की धारा बहने लगी और चेहरा बाल रूप में बदल गया. सचमुच मानों सूर्य का रथ भी ठहर गया हो. संपूर्ण वातावरण भक्त और भगवान की जय जयकार से गूंज उठा. माता गायत्री की करुण पुकार पर चिता में हुये ये अलौकिक चमत्कार माँ गायत्री की भक्ति की पराकाष्ठा को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैमाता गायत्री देखकर, तेरा भारी त्याग। सीता और अनुसुईया की, आती है हमको याद।।
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उन्होंने न सिर्फ झुंझुनूं नगर में बाबा गंगाराम धाम श्री पंचदेव मंदिर की ही स्थापना की, अपितु अपने त्याग,तपस्या व बलिदान से उसे पावन तीर्थ स्थल बना दिया. माता गायत्री के मुख से जो भी निकला वो मंत्र बन गया. सादा जीवन जीनेवाली माँ अपने अन्दर विराट संसार समेटे हुये थी. परम तपस्विनी, जगदम्बा, लक्ष्मी स्वरुपा, माँ गायत्री का जीवन तो बस बाबा की लीला में एकमात्र भक्तों के लिए ही थाङ्खवैराग्य ठमूर्ति ममतामयी माँ गायत्री देवी नमो नमःठ ठयोगधारिणी आत्मजयी माँ गायत्रीदेवी नमो नमःठ माता गायत्रीदेवी और भक्त शिरोमणि श्री देवकीनंदन ने जो त्याग किया उसकी कल्पना भी आज के इस भौतिक युग में कोई नहीं कर सकता. जल में कमल की भांति वे धन सम्पत्ति और माया से निर्लिप्त थे. उनके द्वारा देश भर में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ, गौशालाओं की सहायता की गयी और गरीब कन्याओं का विवाह करवाया गया परन्तु उन्होंने कहीं भी अपना नाम प्रकाश में नहीं आने दिया. वे मान सम्मान, प्रचारऔर प्रतिष्ठा से सदैव दूर रहे उनकी कठोर तपस्या व् साधना का ही परिणाम है की आज बाबा गंगाराम के असंख्य भक्त देश-विदेश में फैले हुए हैं धन्य है कलियुग की शक्ति स्वरूपा माँ गायत्री की साधना, तपस्या और भक्ति को वे आज भी श्री पंचदेव मंदिर के कण-कण में विराजमान हैं. विष्णु अवतारी बाबा गंगाराम की दिव्य, सत्वमयी लीलाओं की साकार प्रतिमूर्ति माँ गायत्री देवी की कठोर साधना युगों-युगों तक भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती रहेगी, मार्गदर्शन करती रहेगी।