माहेश्वरी समाज वंशोत्पत्ति ( Maheshwari Samaj Genealogy in Hindi)
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माहेश्वरी समाज वंशोत्पत्ति ( Maheshwari Samaj Genealogy in Hindi)
माहेश्वरी समाज वंशोत्पत्ति ( Maheshwari Samaj Genealogy in Hindi) : माहेश्वरी समाज! समय के साथ कदम से कदम मिलाने में विश्वास रखता है, इस समाज के सदस्य परिवर्तनशीलता के पक्षधर हैं, इस दृष्टि से सब नित-नवीन हैं। महाकवि कालिदास ने नवीनता की व्याख्या करते हुए लिखा है- पदे-पदे यन्नवतामुमैति, तदैवरूपम् रमणीयताया: कदम-कदम पर जो नवीनता को स्वीकार कर लेते हैं, वे रमणीय रहते हैं। रमणीयता समय की शोभा है और समयरमणीय को रमणीयतम बना देता है।
कृपाण त्याग कर कलम लीन्हा
तज ढाल तराजू कुरतदीना
१.रतनपुर के राजा के दीवान माल्हदेवजी भामुजी के खचांजी थे। श्री बलाशाह राठी फौज को मोदीपा देते थे। श्री माल्हदेवजी के लड़कों को अंधगी की बीमारी हो गई। श्री जिनदत्त सुरिजी ने ठीक किया, तब उन्होंने जैन धर्म स्वीकार किया, उनके साथ डागा, मूंदड़ा के कई परिवारों ने जैन धर्म स्वीकार किया। भामुजी का पारख मोराजी का छोरीया
कहलाये। ५२ परिवारों ने जैन धर्म स्वीकार किया।
२.सिन्धु देश के मुलतान नगर में श्री धींगड़मल हाथी शाह माहेश्वरी राजा का दीवान था, उनका पुत्र लुणा था, जिसको सांप ने काटा था, उसे श्री जिनदत्त सूरीजी ने वापस जीवित किया, तब उन्होंने जैन धर्म स्वीकार किया, लुणा से लुणिया कहलाये।
३.श्री नाबाजी लढ़ा माहेश्वरी का ब्रह्ममान सूरीजी ने उपदेश देकर जैन धर्म स्वीकार कराया, लढा से लोढा कहलाये।
४.श्री खेताजी बाहेती के लाला व भीमा नाम के पुत्र थे, ये दोनों नवाब लोदी रूस्तम के खजाने का काम करते थे, इन्होंने करोड़ों रुपयों के साथ सामान भी माहेश्वरी व ब्राह्मणों को बांट दिया। किसी ने नवाब से चुगली कर दी। नवाब ने अहमदाबाद में दोनों को गिरफ्तार कर लिया, किसी तरह से जेल के पहरेदारों की नजर बचाकर वे भाग गये। तपागच्छ की जाति ने इनको लूकाया (छिपाकर रखा)। जोधपुर और फलौदी में लूककर (छिप कर) रहे, तभी उन्होंने जैन धर्म स्वीकार किया।
५.नागौर के पास मुधाड़ा नगर मूंदड़ा का बसाया हुआ है, वहां पर मुंदल देवी का मंदीर बनाया गया, उनका पुत्र गायब हो गया था। देवालजी जैन संत ने वापिस लाकर दिया, देवी ने नाहर का रूप बना रखा था, इसलिए जैन धर्म स्वीकार किया व नाहर कहलाये।
६.विक्रम संवत ११७६ में श्री वल्लभ सूरीजी मदोदर नगर में पधारे, वहां के राजा नानद परिहार के संतान नहीं थी, एक जैन आचार्य ने पुत्र वरदान दिया, पुत्र हुआ और जैन धर्म स्वीकार किया, उस समय कुछ माहेश्वरी व ब्राह्मणों ने भी जैन धर्म स्वीकार किया था।
७.श्री डीडाजी मोहता ने सिरोही में जैन धर्म स्वीकार किया।
८.सं.१०१६ में छोहरिया तातेड़ जाति लढ़ा माहेश्वरी से बनी। सं.४४४ से बीरणी मेढा जाति मूंदड़ा माहेश्वरी से बनी। सं.१०२२ में शाह लछमणजी माहेश्वरी मूंदड़ा, जिसके सुडाणी गुरू के प्रताप से पुत्र हुआ, नाहेरी चुंगी जैन धर्म स्वीकार किया और नाहर कहलाये।
१.महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे स्वाधीनता आंदोलन को सक्रिय समर्थन दिया जाए और असहयोग कार्यक्रमों में शामिल हुआ जाए।
२.स्वदेशी वस्तुएं ही उपयोग में ली जाएं।
३.गौरक्षण एवं गोवर्धन के कार्य की अनदेखी न की जाये।
४. देशी राज्यों में उत्तरदायी शासन प्रणाली प्रारंभ की जाये।
५. राष्ट्रभाषा हिन्दी तथा मातृभाषा मारवाड़ी का प्रचार किया जाये।
६. संगीत, कला के क्षेत्र में परिष्कृत रूचि को प्रोत्साहन दिया जाये।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रशस्ति
महासभा का पांचवां अधिवेशन १९२२ को कलकत्ता में हुआ, तब आम राय से इस संस्था का नाम ‘अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा‘ कर दिया गया।
कलकत्ता अधिवेशन के बाद महासभा का विशेष कार्य कलकत्ता से ही होने लगा और इसके संगठन ने व्यापक तथा व्यवस्थित रूप ले लिया।
१.महासभा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की निंदा करती है
२.ब्रिटीश सरकार से स्वराज्य प्राप्ति के संबंध में कांग्रेस द्वारा होने वाली समझौता वार्ता का महासभा सम्मान करती है और साथ ही यह भी चेतावनी देना चाहती है कि पाकिस्तान की मांग कदापि स्वीकृत न की जाये
३. अन्न की कमी के कारण हो रहे ‘काला बाजार‘ को देखकर महासभा ने चिंता व्यक्त की और समाज के बंधुओं से अनुरोध किया कि वे काला बाजार की प्रवृत्ति से बचें तथा बदली हुई परिस्थिति में अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का दृढ़ता से पालन करें, ताकि संकटपूर्ण खाद्य स्थिति को सुधारने में सहयोग हो सके
४. महासभा ने समाज से व्यापार के आधुनिक तरीकों और साधनों को अपनाने का आग्रह किया
५. बढ़ती हुई वर विक्रय की प्रथा पर चिंता व्यक्त करते हुए इस निंदनीय कार्य को छोड़ने का अभिभावकों से अनुरोध किया गया और समाज के अविवाहित युवकों से अपील की गयी कि वे इस प्रकार के अवांछनीय और लांछनप्रद कृत्य में सहयोग न दें।
६. सिंध में वहां के शासकों के अत्याचार से पीड़ित सिंधी समाज के प्रति माहेश्वरी भाइयों ने अपनी सहानुभूति प्रकट की।
- सामाजिक नियम तथा आचरण
- महासभा के संगठन का विस्तार
- आर्थिक मार्गदर्शन और कार्यक्रम
- शैक्षणिक दिशाएं एवं कार्य
- सांस्कृतिक मार्गदर्शन
महेश – ईश्वरी से माहेश्वरी कहलाये
माहेश्वरी गोत्र