मानव जीवन का पहला सुख निरोगी काया
by admin · Published · Updated
मानव जीवन का पहला सुख निरोगी काया
मनुष्य की दिनचर्या का प्रारम्भ निद्रा-त्याग से और समापन निद्रा आने के साथ होता है। स्वस्थ रहने की कामना रखने वालों को शरीर में कौन-से अंग और क्रियाएं कब विशेष सक्रीय होती हैं, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। यदि हम प्रकृति के अनुरूप दिनचर्या को निर्धारित करें तो हम स्वस्थ रह सकते हैं। अधिकांश व्यक्तियों की दिनचर्या प्रकृति के अनुरूप नहीं होती, जिससे वे रोगी हो जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति से ही स्वस्थ समाज का निर्माण सम्भव है।
हमें अपनी दिनचर्या इस प्रकार बनानी चाहिये कि शरीर के अंगों की क्षमताओं का अधिकतम उपयोग हो। शरीर के सभी अंगों में प्राण-ऊर्जा का प्रवाह वैसे तो चौबीसों घंटे होता है, परंतु सभी समय एक-सी ऊर्जा काप्रवाह नहीं होता। प्राय: प्रत्येक अंग कुछ समय के लिये अपेक्षाकृत कम सक्रिय होते हैं, इसी कारण कोई भी रोगी चौबीस घंटे एकसी स्थिति में नहीं रहते। अंगों में प्राण ऊर्जा के प्रवाह का संतुलन ही स्वास्थ्य सूचक है। शरीर में जिस समय जो अंग सर्वाधिक सक्रिय हो, उस समय अंग से सम्बन्धित कार्य करना चाहिये। हमारे शरीर में मुख्य रूप से १२ अंग होते हैं। प्राण-ऊर्जा २४ घंटे में १२ अंगों में जाती है। हर अंग में २ घंटे अधिकतम ऊर्जा प्रवाह रहता है, इसके ठीक विपरीत समय में उसी अंग में न्यूनतम ऊर्जा का प्रवाह होता है। प्रात: ३ बजे से ५ बजे तक प्राण-ऊर्जा का प्रवाह सर्वाधिक होता है, इसी कारण प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में उठकर खुली हवा में घूमना चाहिये। प्राणायाम तथा श्वसन का व्यायाम करना चाहिये, इससे फेफड़े स्वस्थ होते हैं। फेफड़ो को शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) प्राप्त होती है, इसके रक्त में मिलने से हीमोग्लोबिन ऑक्सीकृत होता है, जिससे शरीर स्वस्थ और बनेगा। ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाले छात्र अधिक बुद्धिमान, स्वस्थ एवं क्रियाशील होते हैं। फेफड़े से प्राण-ऊर्जा बड़ी आंत में जाती है। बड़ी आंत में प्रात: ५ बजे से ७ बजे तक चेतना का विशेष प्रवाह होने से यह अंग अधिक क्रियाशील होता है इसी कारण मलत्याग के लिये यह सर्वोत्तम समय है, जो व्यक्ति इस समय सोते रहते हैं,मलत्याग नहीं करते, उन्हें कब्ज रहता है, इस समय उठकर योगासन तथा व्यायाम करना चाहिये। प्रात: ७ बजे से ९ बजे तक आमाशय (स्टमक) में ऊर्जा का प्रवाह सर्वाधिक होता है, इस समय तक बड़ी आंत की सफाई हो जाने से पाचन आसानी से होता है। अत: इस समय भोजन करना चाहिये। प्रात: भोजन करने से पाचन अच्छी तरह से होता है और हम सैकड़ों पाचन संबंधी रोगों से सहज ही बचे रहते हैं। प्रात: ९ बजे से ११ बजे तक स्पलीन (तिल्ली) और पैन्क्रियाज की सबसे अधिक सक्रियता का समय है, इसी समय हमारे शरीर में पेन्क्रियाटिक रसतथा इन्सुलिन सबसे ज्यादा बनता है, इन रसों का पाचन में विशेष महत्व है। अत: डायबिटिज या किसी पाचन रोग से ग्रस्त हैं, उन्हें इस समय तक भोजन अवश्य कर लेना चाहिये। दिन में ११ बजे से १ बजे के बीच हृदय में विशेष प्राण ऊर्जा का प्रवाह
रहता है। हृदय हमारी संवेदनाओं, करूणा, दया तथा प्रेम का प्रतीक है। अगर इस समय भोजन करते हैं तो अधिकतर संवेदनाएं भोजन के स्वाद की तरफ आकर्षित होती हैं, अत: हृदय प्रकृति से मिलनेवाली अपनी ऊर्जा पूर्णरूप से ग्रहण नहीं कर पाती। ९ बजे तक भोजन करने से रक्त-परिसंचरण अच्छा होता है और हम अपने आपको ऊर्जित महसूस करते हैं। दोपहर में १ बजे से ३ बजे तक हमारी छोटी आंत में अधिकतम प्राण-ऊर्जा का प्रवाह रहता है छोटी आंत का मुख्य कार्य पोषक तत्वों का शोषण करना तथा अविशिष्ट पदार्थ को आगे बड़ी आंत में भेजना होता है, इस समय जहां तक सम्भव हो भोजन नहीं करना चाहिये। इस समय भोजन करने से छोटी
आंत अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नहीं कर पाती, इसी कारण आजकल मानव में संवेदना, करूणा, दया अपेक्षाकृत कम होती जा रही है। दोपहर ३ बजे से ५ बजे तक यूरेनरी ब्लडर (मूत्राशय) में सर्वाधिक प्राण-ऊर्जा प्रवाह होता है, इस अंग का मुख्य कार्य जल तथा द्रव पदार्थों का नियंत्रण करना है। सायं काल ५ बजे से ७ बजे तक किडनी में सर्वाधिक ऊर्जा का प्रवाह होता है, इस समय शाम का भोजन कर लेना चाहिये, इससे हम किडनी और कान से संबंधित रोग से बचे रहेंगे। किडनी से ऊर्जा हमारे मस्तिष्क में जाती है। सायं ७ बजे से ९ बजे तक मस्तिष्क में सर्वाधिक ऊर्जा का प्रवाह रहता है, इस समय विद्यार्थी पाठ याद करें उन्हें अपना पाठ याद जल्दी होगा। रात्रि ९ बजे से ११ बजे हमारे स्पाइनल कार्ड में सर्वाधिक ऊर्जा का प्रवाह रहता है। इस समय हमें सो जाना चाहिये, जिससे हमारे स्पाइन को
पूर्वत: विश्राम मिले। रात्रि ११ बजे से १ बजे तक गालब्लेडर में अधिकतम ऊर्जा प्रवाह होती है, इसका मुख्य कार्य पित्त का संचय एवं मानसिक गतिविधियों पर नियंत्रण करना है, यदि हम इस समय जागते हैं तो पित्त तथा नेत्र से संबंधित रोग होता है। रात्रि १ बजे से ३ बजे तक लीवर में सर्वाधिक ऊर्जा का प्रवाह रहता है। लीवर हमारे शरीर का मुख्य अंग है। इस समय पूर्ण विश्राम करना चाहिये, यह गहरी निद्रा का समय है, इस समय बाहर का वातावरण भी शांत हो, तभी ये अंग प्रकृति से प्राप्त ऊर्जा का ग्रहण कर सकते हैं। यदि आप देर रात तक जगते हैं तो पित्त संबंधी विकार होता है, नेत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा व्यक्ति जिद्दी हो जाते हैं। यदि किसी कारण देर रात जगना पड़े तो हर १ घंटे के बाद १ गिलास पानी पीते रहना चाहिये। लीवर में प्राण-ऊर्जा वापस फेफड़े में चली जाती है इस तरह प्राण ऊर्जा चौबीस घंटे अनवरत रूप से चलती रहती है। आजकल शहरों में व्यक्ति का जीवन प्रकृति के विपरीत हो रहा है। सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय उनकी दिनचर्या के अनुरूप नहीं होता, इसलिये रोग बढ़ रहे हैं। यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करें तो हम निरोग रहेंगे और १०० वर्ष तक रोगमुक्त होकर जियेंगे। इसलिए हमारे जीवन का पहला सुख है – निरोगी काया