सितंबर पत्रिका

मेरा राजस्थान सितंबर २०१८
दधीचि तीर्थ नेमिषारण्य नव निर्माण के लिये पधारें
दाधीच​

ब्राह्मण ब्रह्मा अथर्वा, दधीचि एवं पिप्पलाद ऋषि की परंपरा के वंशज है अथर्वानंदन दधीचि हमारे अग्रणी हैं व माँ दधिमथी हमारी बुआ हमारी कुलदेवी हैं, इन्होंने पिप्पलाद का पालन कर हमारे वंश पर महती कृपा की है। नैमिषारण्य महर्षि दधीचि की तपस्थली रही शिव के परम भक्त दधीचि यहाँ दधिचेश्वर महादेव की नित्य पूजा 

स्वार्थ में अंंधे ना होकर राष्ट्र कल्याण के बारे में भी सोचना चाहिए
भारत में बड़े-बड़े

 परन्तु सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम महादान किया था ‘महार्षि दधीचि’ ने। महर्षि दधीचि अर्थवापुत्र थे। महादानी महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियाँ देवताओं को समाज कल्याण के लिए दान कर दी थी। अस्थिदान के लिए उन्होंने हँसते-हँसते प्राण त्यागे थे। आज कोई किसी से दान माँगता है तो देनेवाला एक बार जरुर सोचता है, परन्तु जब देवता महर्षि दधीचि से प्रार्थना करने लगे कि उनकी अस्थियों से जो अस्त्र बनेंगे उसी से वृत्तासुर का वध हो सकता है, उस वक्त महर्षि ने एक पल भी बिना किसी के बारे में सोच, तुरन्त हँसकर बोले, ‘‘देवताओं! यह शरीर तो नाशवान है, यदि इस शरीर से संसार का हित होता है तो ले 

सातुड़ी तीज
भारत में बड़े-बड़े

एक साहुकार और साहुकारनी थे। साहुकार हमेशा वेश्या के घर जाता था। वो कोढ़ी था, जिससे उसकी पत्नी उसे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाती और वो कहता अब तू जा, तो वो चली जाती, ऐस

अनन्त चतुर्दशी का व्रत
ब्रह्मपुराण

में लिखा है कि जो मनुष्य भाद्रपद शुक्ल को प्रात:काल अनन्त भगवान् की पूजा करता है, उसे सारी सिद्धियाँ स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। सूर्योदय के वक्त यदि एक घड़ी भी चौदस हो तो उस दिन पूजा करनी चाहिए, अगर चौदस दो हो तो जिस चौदस में

भृगुवंशी अथर्वानन्दन महर्षि दधीचि
भारत में बड़े-बड़े

पावन पुण्य भूमि जो ऋषियों महर्षियों की भूमि कहलाती है जहाँ भगवान महावीर रामकृष्ण, गौतमबुद्ध आदि ने अवतरित होकर भारत भू का भार उतारा (मिटाया) और अपने पावन चरणों से भारत भू को पवित्र किया, जिस भूमि पर पवित्र गंगा-यमुना, गोदावरी एवम् सरस्वती की धारा बह कर पुण्य बढ़ाती है, उस भारत भूमि पर देवता लोग (देवगण) भी आने को तरसते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
देश भर के

श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीके से एक महान पर्व के रूप में मनाते हैं, यह पर्वों का पर्व है, परम पर्व ‘गुरूपर्व’ है। सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं। विशेष रूप से यह महोत्सव वृन्दावन, मथुरा (उत्तरप्रदेश)

उद्धारक है गणेश संकष्ट चतुर्थी
गणेश

संकष्ट चतुर्थी व्रत की कथा ‘हेमाद्रि स्कन्द पुराण’ से ली गई है इसमें विभिन्न वक्ताओं द्वारा उन जिज्ञासुओं के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है जिन्होंने अत्यंत भक्तिपूर्वक इस व्रत का माहात्म्य जानने की इच्छा प्रकट की थी। ऋषियों ने स्कन्द (स्वामी

ऋषि पंचमी
ऋषि पंचमी की व्रतकथा

विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर 

श्राद्ध कर्म से मिलती पूर्वजों को मुक्ति
हिंदू धम

में वैदिक परंपरा के अनुसार अनेक रीति-रिवाज़, व्रत-त्यौहार व परंपराएं मौजूद हैं। हिंदूओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किये जाते हैं। अंत्येष्टि 

दही हांडी
प्रतियोगिता के नये

एक और जहां इस उत्सव में सभी गोविंदा उल्लास से भरे होते हैं तो वहीं कुछ टोलियां संतुलन खोकर दुर्घटना का शिकार भी होती हैं कई बार तो किसी प्रतिभागी की मृत्यु भी हो जाती है तो कुछ को इतनी गंभीर चोट आती है कि इन सबको देखते हुए २०१४ में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने दही हांडी को लटकाने की उच्चत्तम सीमा २० फीट तय कर दी, साथ ही अब बच्चों को इस प्रतिभागिता से दूर रखने की हिदायतें भी अदालत ने दी हैं। २०१६ में सुप्रीम कोर्ट ने भी महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया, लक्ष्य के लिये चुनौतियों से पार पाने की सीख देती है दही हांडी

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