श्रीमान सेठ बहादुरमलजी सा. बांठिया
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श्रीमान सेठ बहादुरमलजी सा. बांठिया
संक्षिप्त परिचय:
स्थानकवासी सम्प्रदाय के पुराने नायकों का स्मरण करने पर भीनासर (बीकानेर) के श्रीमान सेठ बहादुरमलजी
सा. बांठिया का नाम अवश्य याद किया जाता है। आपने अपने जीवनकाल में समाज की बहुमूल्य सेवाएँ की हैं।
समाज की अनेक प्रसिद्ध संस्थाओं के साथ आपका घनिष्ठ संबंध रहा है।
सेठ बहादुरमलजी सा. आदर्श गुणों से युक्त महानुभाव थे। आपके हृदय की उदारता, सदाचारिता, सरलता और
सेवा प्रेम अणुकरणीय रहे हैं। भीनासर के बांठिया-वंश में उदारता तो परम्परागत वस्तु बन गई है। सेठ
बहादुरमलजी सा. को भी वसीयत में मिली थी। सेठजी के पितामह श्री हजारीमलजी बांठिया ने तत्कालीन समय
में एक लाख, एकतालीस हजार रुपये का उदार दान दिया था, जिसका सार्वजनिक कार्यों में सदुपयोग करते हुए
आपने भी अपने जीवनकाल में लगभग सवा लाख रुपयों का दान दिया। आपकी ओर से ‘भीनासर’ में एक जैन
औषधालय चलता है। बहुत वर्षों तक सेठजी अपने निजी खर्च से और निजी देख-रेख में उसका संचालन करते रहे।
वि. सं. ६६ में आपने स्थायी रूप प्रदान करने के उद्देश्य से २५००० रु, दान कर औषधालय का स्थायी फंड बना
दिया था।
पींजरापोल गौशाला के लिए आपने अपना एक मकान भेंट में दिया, पंचायत के लिए मकान और जमीन दी, घोड़ा
आदि पशुओं की दया से प्रेरित हो गंगाशहर से लेकर भीनासर तक पक्की सड़क बनवाने में आपका मुख्य हाथ रहा
और उसके लिए आपने आधा खर्च भी दिया था। स्व. पूज्यश्री जवाहरलालजी म. सा. के प्रति आपकी अनुपम
भक्ति थी।
पूज्यश्री को जय युवाचार्य पदवी देने का श्रीसंघ ने जब निश्चय किया, पूज्यश्री ने उसे स्वीकार न करते हुए
सामान्य मुनि के रूप में ही रहने की इच्छा प्रदर्शित की, तब सेठ वर्धमानजी पीतलिया के साथ आप पूज्यश्री की
सेवा में उपस्थित हुए थे और आपने युवाचार्य पद की स्वीकृति प्राप्त की थी।
जलगाँव में जय पुज्यश्री का स्वास्थ्य बहुत अधिक खराब हो गया था, तब आपने-अपने घर-द्वार की चिन्ता छोड़
पूज्यश्री की सेवा में उपस्थित रहे। उस समय आपकी सेवा भक्ति अत्यन्त सराहनीय थी। संवत् १९८४, ८९, और
९९ में भी आपको पूज्यश्री की सेवा का महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुआ था।
वि. सं. १९९६ में आप लकवा ग्रस्त हो कर चलने-फिरने में असमर्थ हो गये थे। फिर भी भक्ति के आधिक्य के
कारण आप प्रतिदिन पूज्यश्री तथा सन्तों के दर्शन करने के लिए खास तौर पर बनवाई गई गाड़ी से जाते थे,
सामायिक करते थे और व्याख्यान सुनते थे। जब अनेक तन्दुरुस्त लोग धर्मक्रिया में प्रमादशील बने रहते हैं तब
सेठ साहेब की यह धर्मभक्ति देखकर ह्य्दय से ‘वाह-वाह’ निकल पड़ता था।
सेठ सा. की धर्मपत्नी का जब स्वर्गवास हुआ, तब उनकी उम्र सिर्फ ३९ वर्ष की थी। धन की बहुलता और
यौवनकाल होने पर भी आपने दूसरा विवाह नहीं किया, पूर्ण ब्रहमचर्य का ही यह प्रताप था कि लकवा होने पर भी
आप अन्त तक धर्मध्यान करते रहे। स्वर्गीय सेठ बहादुरमलजी सा. को साहित्य से बहुत प्रेम था। आपने अपनी
ओर से कई पुस्तकें प्रकाशित की थीं और कइयों के प्रकाशन में सहायता प्रदान की थी। ‘धर्म-व्याख्या’ की दो
हजार प्रतियाँ आपने बिना मूल्य वितरण कराई और ‘सत्यमूर्ति हरिश्चन्द्र’, ‘ब्रह्मचर्य व्रत’ ‘सुदर्शन चरित्र’ और
‘मुख-वखिका सिद्धि’ आदि पुस्तकों को अर्द्धमूल्य में विक्रय करने के लिए सहायता दी। दीक्षाभिलाषी वैरागियों
को आपकी ओर से शास्त्र आदि धर्मोंपरायण भेंट किये जाते थे। आपने अपने अध्ययन के लिए पुस्तकों का
ग्रन्थालय के रूप में संग्रह किया था। जिसमें छपे हुए ग्रन्थों के अतिरिक्त हस्तलिखित धर्म-ग्रन्थ भी हैं। जो कि
अभी ‘आरोग्य बोहि लाभम्’ बैंगलोर में दे दिये गये हैं। सेठ साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक ‘हितेच्छु
श्रावक मंडल’ रतलाम आदि अनेक संस्थाओं के प्रथमश्रेणी के सदस्य रहे। आपका कुटुम्ब बीकानेर के प्रसिद्ध
धनिकों में गिना जाता है। कलकत्ता और आसाम में आपके फर्म चलते हैं।
कलकत्ते में छतरी का, प्लास्टिक का आपका प्रसिद्ध कारखाना था। बम्बई, दिल्ली और नागपुर में भी विभिन्न
नामों से छाते के कारखाने हैं। इस प्रकार धन का भरापूरा भंडार होने पर भी सेठ साहब की सादगी प्रशंसनीय रही।
आप अत्यन्त सरल, मिलनसार और भावुक थे। आपके दो पुत्र सेठ श्री तोलाराम जी बाँठिया और श्याम लाल जी
बाँठिया थे, आप भी पूर्ण धर्मानुरागी रहे। सेठ बहादुर मलजी बाँठिया का स्वर्गवास सम्वत् २००९ माघ वदी-६ को
हो गया।