दीपावली और लक्ष्मी पूजन का महत्व

भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है, यहां पर सभी धर्म के मानने वालों को रहने व अपने-अपने धर्म के अनुसार विभिन्न त्यौहारों को मनाने का संवैधानिक अधिकार है। सबके अपने अलग-अलग प्रिय पर्व हैं जैसे मुस्लिम धर्म के मानने वाले ईद, क्रिश्चिन-क्रिसमस, सिक्ख-गुरुनानक जयंती को अपना विशेष त्यौहार मानते हैं उसी प्रकार हिंदू धर्म में होली, दिवाली, दशहरा आदि पर्वों का विशेष महत्व है। भारतीय सभ्यता व संस्कृति के इतिहास में अनादिकाल से भारतवर्ष में दिवाली पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा चली आ रही है- रामायण हिन्दुओं का पवित्र महाग्रंथ है जिसे महाकवि महर्षि बाल्मिकि ने, इसी तरह रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है जैसा कि हमारे पूर्वज कहते हैं कि भगवान रामचंद्रजी १४ वर्ष वनवास पूर्ण कर रावण के साथ युद्ध कर, उसे मार कर, इसी दिन अयोध्या वापस आए थे। अयोध्या वासियों ने रामचंद्रजी के आने की खुशी में नगर को खूब अच्छी तरह सजाया और दीपक जलाकर खुशी का इजहार किया तभी से दिवाली मनाई जा रही है। दिवाली कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन मनाई जाती है। दीपावली के दिन सभी भारतीय अपने पुराने झगड़ों को भुलाकर आपस में एक दूसरे को शुभकामना देते हैं। िंहदू रिवाज के अनुसार दीपावली खुशी और आनंद का पर्व है। िंहदुओं में दीपावली के दूसरे दिन से नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है, इस दिन से व्यापारी लोग अपना पुराना हिसाब खत्म कर, फिर से नया बही खाता बनाते हैं। व्यापारी लोग लक्ष्मी जी का पूजन कर उन्हें प्रसन्न करते हैं तथा लक्ष्मी जी की सदा हमारे ऊपर कृपा बनी रहे, ऐसी इच्छा व्यक्त करते हैं। लक्ष्मी जी की उत्पत्ति वैâसे हुई, इसके बारे में भी एक किंवदन्ती है कि देवताओं व राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन के समय, समुद्र में जो १४ रत्न निकले थे उनमें से एक लक्ष्मी जी भी थी। विष्णुजी के साथ शादी होने पर, लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी कहलाई। लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहे इसकी हर व्यक्ति कामना करता है। लक्ष्मी जी की अनेकों रूप व नाम से पूजा की जाती है, जैसे दीपलक्ष्मी, महालक्ष्मी, कांचनकाया चंद्र, अश्वपूर्वा, श्रीदेवी, सूर्या, हिरण्यमयी आदि लक्ष्मी जी के नाम हैं, लक्ष्मी जी का प्रिय फूल कमल है। भारतीय संस्कृति में मनाया जाने वाले पर्व दीपावली, भारत ही नहीं दूसरे देशों में भी मनाया जाता हैं लेकिन इसके हर देश में अलग-अलग नाम हैं- चीन में दीपावलीउत्सव को तईमहुआ, जापान में तोरोनगासी, थाईलैन्ड में कथोग और स्वीडन में लूसियाडे के नाम से मनाया जाता है। दीपावली में दीपक हमें अज्ञान रूपी अंधकार, ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर व असत्य से सत्य की ओर जाने का संदेश देता है। पावन पर्व दीपावली मनाने का महत्व आज लोग भूलते जा रहे हैं फिर भी जो प्रथा अनादिकाल से चली आ रही है वह आज भी कायम है, इन त्यौहारों की तरफ से लोगों का ध्यान क्यों हट रहा है इसके अनेक कारण हैं जिनमें कमर-तोड़ महंगाई की मूख्य भूमिका है क्योंकि नव वर्ष की खुशी में हर व्यक्ति की अपनी अनेक इच्छाएं होती हैं जिनको पूरा करना इस महंगाई के युग में असंभव नहीं तो कठिन जरुर है, इसके अलावा आज के इस आधुनिक युग में लोगों की सोच में भी काफी परिवर्तन होता जा रहा है। विशेषकर आज की युवा पीढ़ी इस तरफ से भटकती जा रही है, पावन पर्व को मनाने के लिए कई-कई व्यसनों को अपनाने लगे हैं, इन सबके बावजूद आज भी हमारे देश में दीपावली मनाने वालों की कमी नहीं है। महीनों पहले से लोग अपने घरों की सफाई व दिवाली की अन्य तैयारी में जुट जाते हैं। दीपावली के त्यौहार पर क्या-क्या विशिष्ट व्यंजन बनाए जाएं इसकी भी तैयारी लोग करने लग जाते हैं। बड़े लोग जहां पर इन सब की तैयारी करते हैं वहीं बच्चे पटाखे छुड़ाने की खुशी में झूमने लगते हैं, इस प्रकार यह खुशियों का त्यौहार दीपावली, सब के लिए कुछ न कुछ लेकर आता है। अपने प्रिय पाठकों-शुभचिंतकों-विज्ञापनदाताओं को दीपावली की शुभकामनाओं के साथ, भगवान सदैव उन्हें सुखी रखे ऐसी प्रार्थना `मेरा राजस्थान’ परिवार करता है। बलि के राज्य में निम्न पाँच कार्य वर्जित थे (१) जीवहिंसा (२) मदिरापान (३) परस्त्रीगमन (४) चोरी (५) विश्वासघात उस समय इन आचरणों को ‘नरक का द्वार’ माना जाता था, उस समय राजधर्म के कुछ ऐसे नियम भी बने हुए थे जिनका परिपालन करना राजा का कर्तव्य माना जाता था, वे नियम इस प्रकार थे- आधीरात में राजा को नगर में भ्रमण करना चाहिये। लक्ष्मीपूजन के लिए किस प्रकार नगर में सजावट हुई है, इसकी भी उसे जाँच करनी चाहिए। राजा के साथ उसके अधिकारी भी होने चाहिए। गाजे-बाजे के साथ सवारी निकलनी चाहिये, लोगों के घरों में जलती मशालें होनी चाहिये, इस तरह करने से राज्य में लक्ष्मी की वृद्धि होती है। लक्ष्मीपूजन : कार्तिक वद अमावस के दिन प्रदोश पूजा करें, यदि कोई बाधा हो तो स्थिर लग्न में पूजा करें, उस दिन चित्रा-स्वाति योग अच्छा माना गया है। लक्ष्मीपूजन करने से पहले मंडप बनावें और उसमें गणेश, लक्ष्मी और कुबेर की स्थापना कर उनकी पूजा करें। प्रात:काल उबटन अथवा तेल लगाकर मालिश करने के पश्चात् स्नान कर तर्पण, श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन, सुवासिनी-भोजन तथा दीनहीन लोगों को भोजन कराने के बाद लक्ष्मी जी की पूजा करें। सर्वप्रथम मंडप के सामने आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करें और यह संकल्प लें ‘‘अद्य दीपोत्सवंगणपतिपूजनं, लक्ष्मीपूजनं, उल्कादर्शनं च करिष्ये’’ तत्पश्चात् मंडप से गणपति की मूर्ति निकालकर और उसे ताम्रपात्र में रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए। पूजा करते समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें- गं गणपतये नम:, आवाहनं समर्पयामि गं गणपतये नम: (ध्यानं) गं गणपतये नम: (आसनं) समर्पयार्मि इसी मंत्र से पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, कुंकुम, चन्दन, अक्षत, पुष्प, अबीर, गुलाल, धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई) चने की फलिया, चपड़ा, खांड की कतली, फल (सीताफल) बेर, काचरा, शकरकन्द, सेव, ताम्बूल आदि को भेंट चढ़ाकर प्रार्थना करनी चाहिए, इसके बाद लक्ष्मी-पूजन करें और उसके पहले लक्ष्मीजी का आवाहन। ‘हिरण्यवर्णा, लक्ष्मीं आवाहमामि, तां आवहे’ मंत्र पढ़कर उन्हें आसन समर्पित करें। उसी क्रम से ये मंत्र बोले जाने चाहिए- ‘अश्वपूर्वा (पाद्यं समर्पयामिं) भकांसो स्मितां’ मंत्र से (अर्घ्यम्) ‘चन्द्राप्रभासां’ मंत्र से आचमीनयं ‘आदित्यवर्णे’ मंत्र से स्नान क्षुत्पिपासा अथवा ‘गन्धता द्वारा’ (गन्ध) ‘अक्षताश्च से अक्षत’, ‘मनस:काम’ से पुष्प, कर्दमेन से (धूपं) ‘आपस्त्र जन्तु’ से (दीपं), ‘आर्द्रापुष्करिणी‘ से नैवेद्यम, ‘आर्द्राय:करिणी से (फलम् ताम्बूलं) ‘हिरण्यगर्भ:’ (दक्षिणां) तथा ‘‘य: शुचि: प्रयतो’’ से पुष्पाजंलि देकर ‘श्रिये जात: श्रियमंत्र’ से आरती उतारें, फिर पुरुषसूक्त के १५ मंत्र पढ़कर पुष्पांजलि देवें, स्वर्ण या चांदी के सिक्कों से पंचामृत का स्नान कराकर उनकी भी पूजा करें, फिर दीपावली का पूजन कर उल्कादर्शन करें।
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