‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना
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दीपोत्सव एक बहुआयामी पर्व है जिसमें हम श्री गणेश, दीप, भगवती लक्ष्मी, विष्णु भगवान, यम, धन्वंतरी, कुबेर तथा मां सरस्वती की वंदना करते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्यानुसार दीपावली का पुराना नाम नवसम्येष्टि पर्व है जो नवीन सावनी फसल के आगमन से प्रसन्न कृषि प्रधान भारत वर्ष में नयी फसल के स्वागत के लिये दीपों का उत्सव दिवाली मनाया जाता है तथा अत्याधिक वर्षा से विकृत मलिन वायु मंडल का शुद्धि के लिये घी के दीये एवं ब्रहत यज्ञों में नये अन्न की आहुति देकर प्रभू का धन्यवाद किया जाता है, इसके अलावा समुद्रमंथन में भगवती लक्ष्मी के प्रकट होने की प्रसन्नता में उल्लासोत्सव, भगवान श्रीराम के विजयोपलक्ष्य, उनके स्वागतार्थ स्वागतोत्सव नरकासुर को मारकर उसके द्वारा बंदी बनायी गयी १६००० राजकन्याओं का उद्धार और उनके साथ श्री कृष्ण का विवाह के प्रतीक विवाहोत्सव, पांडवो के वनवास से कुशल लौटने पर अभिनंदन स्वरूप अभिनंदनोत्सव, जैन संप्रदाय प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी के निर्वाण को निर्वाणोत्सव तथा आर्य समाज संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती की पुण्यस्मृति पर स्मृति उत्सव के रूप में इस महापर्व को मनाया जाता है। यह पर्व स्वास्थ्य सम्पदा, धन सम्पदा, शक्ति सम्पदा है तथा उल्लास व आनंद को परिवर्धित करनेवाला उत्सव है, अज्ञान से ज्ञान की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, पाप से पुण्य की ओर, प्रकृति से परमात्मा की ओर चलने की प्रेरणा यह पर्व प्रतिवर्ष लेकर आता है। ‘‘दीपावली तथा नूतन वर्ष के दिन सद्ग्रंथ, पुष्प-वाटिका, चंदन, कुमकुम, अष्टगंध, गोमूत्र, कलश, दीपक, श्वेत पुष्प, कपूर, बछड़े सहित गाय, चाँदी, देव-प्रतिमा आदि का दर्शन करना शुभ पुण्य प्रदायक माना गया है। अ) दीप महोत्सव : इस दीप महोत्सव में दीप का बड़ा महत्व है जो पंचतत्व व ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक स्वरूप है। दीपक ब्रह्मस्वरूप, तेल विष्णु स्वरूप व अंधकार को नष्ट करने के प्रतिक महेश के रूप में दीप को देखा जाता है। दीप पंचतत्व स्वरूप भी माना गया है। दीप जो ज्ञान का प्रतीक है अनेक नामो से जाना जाता है। विष्णुदीप, साक्षी दीप, स्थापित दीप, नंदीदीप, ज्ञानदीप, विजयदीप, धर्मदीप, आरती दीप, कुलदीप, आकाशदीप, रात्रिदीप व आत्मदीप के रूप में इसे देखा जाता रहा है। हिंदु शास्त्रों में नौ प्रकार की पूजा का प्रावधान है उसमें दीप पुजा को श्रेष्ठ माना गया है।
सूर्यांश संभवों दीप : दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है। शास्त्रों में विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ती के दीपक के भिन्न-भिन्न प्रकार के बताये गए हैं जो इस प्रकार है
- आर्थिक लाभ एवं मनोकामना पूर्ती के लिए सायंकाल घी का दीपक जलाने का प्रावधान है।
- शत्रुओं से रक्षा हेतु तथा सुर्य कष्टों की मुक्ति के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है।
- शनिदेव प्रसन्नार्थ तथा न्याय व स्वास्थ्य प्राप्ती हेतु तिल के तेल का दीपक जलाया जाता है।
- सौभाग्य प्राप्ती के लिए – महुए के तेल का दीपक जलाया जाता है।
- राहु और केतु की शांति के लिए अलसी के तेल का दीपक शिवजी को अर्पित किया जाता है, विभिन्न देवताओं को भिन्न-भिन्न प्रकार के दीप अर्पित करने का प्रावधान है।
- श्री शिवजी – आठ बत्तिओं का दीप अर्पित किया जाता है। ४ श्री विष्णुजी – दस या सोलह बत्तियों का दीप अर्पित किया जाता है। ४ श्री गणेशजी – तीन या बारह बत्तियों का दीप अर्पित किया जाता है। ४ मां दुर्गाशक्ति – एक बत्ती का दीप अर्पित किया जाता है। ४ श्री लक्ष्मीजी – सात बत्तियों का दीप अर्पित किया जाता है