‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना
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दीपावली के रात को जो हम पूजा करते हैं, उसे साधारण शब्दों में ‘लक्ष्मी पूजन’ कहा जाता है, आज ज्यादातर लोग समझते हैं कि लक्ष्मी का अर्थ है धन की देवी या रुपया-पैसा, जो कि बहुत ही संकुचित अर्थ हो गया है। वास्तव में इस शब्द का अर्थ बहुत गहरा व विशाल है, जिसे समझना बहुत जरुरी है। लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘लक्ष’ धातु से हुई है। लक्ष का शाब्दिक अर्थ है ‘लक्ष्य’, जीवन के लक्ष्य की ध्यान पूर्वक खोज इत्यादि, इसका अर्थ ये है कि जब हम मन कर्म वचन से एकाग्रचित्त होकर कोई कार्य करते हैं तो उसका जो फल प्राप्त होता है उसे ‘लक्ष्मी’ कहते हैं। लक्ष्मीजी की पुजा करने से पहले हमें यह बात समझना बहुत जरुरी है, कि लक्ष्मीजी विष्णु भगवान की पत्नी हैं, इसलिये लक्ष्मीजी का उपयोग करें ना कि लक्ष्मीजी उपभोग करें अर्थात् लक्ष्मीजी का सच्चाई, सादगी के साथ परोपकार, परमार्थ, धर्म दया के साथ उपयोग करें, ऐसा करने से लक्ष्मीजी हमारे यहां टिकी रहेगी, हमारे प्राचीन ऋषियों का प्रत्येक कार्य तप, ध्यान इत्यादि का उद्देश्य हमेशा शुभ एवं आध्यात्मिक समृद्धि के लिए होता था, तब लक्ष्मी का अर्थ जीवन के चार आयामों धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के समन्वय से जीवन को परमतत्व के मार्ग पर ले जाना था, हमारी सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में भी लक्ष्मी देवी का उल्लेख आता है परंतु वहां लक्ष्मी का अर्थ धन की देवी नहीं, सौभाग्य एवं धर्म की देवी है जो मानव लक्ष्य की और किया हुआ इशारा है, धन की उपयोगिता सीमित है, इस संसार में आप धन से सब कुछ नहीं प्राप्त कर सकते, न धन से आप माता-पिता खरीद सकते हैं, न प्रेम, न ज्ञान, ऐसा बहुत कुछ है जो धन से नहीं खरीदा जा सकता, परंतु सौभाग्य से आप जो चाहें वो प्राप्त कर सकते हैं। अथर्ववेद में भी लक्ष्मी को शुभता, सौभाग्य, संपत्ति, समृद्धि, सफलता एवं सुख का समन्वय बताया गया है। पुराणों में लक्ष्मी के आठ प्रकार बताए गए हैं जिन्हें ‘अष्ट – लक्ष्मी’ के नाम से संबोधित किया गया है, ये हैं आदिलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैयलक्ष्मी, गजलक्ष्मी