राजस्थानी संस्कृति री खास ओळख करावती पागड़ा

मिनख जीवण री सरसता सारु अनुशासन ज्ञान, परमात्मा री कल्पना अर केई मरजादावां नै निरोगी अर सैयोगी भावना रौ आधार बणायौ। होळै-होळै मिनख आपरै जीवण रा हरेक क्षेत्र में तरक्की करी अर नगर-विकास रै साथै उणरै खाण-पाण, पहनावा आद ई सुधरता गया। रितुवां माथै आधारित धारमिक तिंवारां री पौराणिक मान्यतावां मुजब अपणायोड़ी सांस्कृतिक परंपरावां मिनख रै सामाजिक जीवण रै साथै विकसित हुवण लागी।
पैली सदी (ई.पू.) रा भित्तिचित्रां में पगाड़ियां रौ अंकन मिळै। अजंता अर अ‍ेलोरा री गुफावां में खुदियोड़ी मूर्तियां में पगाड़ियां रा सरुआती इतिहास खोज्यौ जाय सवैâ। शुंगकालीन प्रस्तर मूर्तियां अर कुशाण सूं गुप्त काल तांई रा चित्रां अर हस्तलिखित ग्रंथां में लगभग १३वीं सदी सूं आज तांई जागा-जागा पगड़ियां रौ चित्रण हुयौ है।
मिनिअ‍ेचर्स माय पगड़ियां री रंगीन प्रथा अकबरकालीन चित्रां सूं मालूम हुवै। इणसूं पैला रा चित्रां माय धोळी पगड़ियां घणी हुवती। पगड़ियां माय बदळाव आवण रौ खास कारण क्षेत्रीय अर उणरै राजावां रौ प्रभाव रैयौ है। भारतीय वेशभूषा नै अकबर जरुर अपणाई पण भारतीय पगड़ियां माथै मुगलाई सिणगार रौ प्रभाव ई देखियौ जा सवैâ। मुगलां रा खाण-पाण अर पहनावा रौ प्रभाव अठारा राजावां माथै पड़ियौ अर उणरा दरबारियां ई उणनै अपणाई। राजस्थान री पाग पगाड़ियां क्षेत्रीय प्रभाव अठा री सांस्कृतिक अर सामाजिक मान्यतावां रै कारण हावी रैयी। मारवाड़ में पाग, पागड़ी और पेचा आदि रौ प्रयोग परंपरागत प्रणाली सूं हुवतौ रैयी है।
साफा रौ प्रयोग महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय रै समै में मारवाड़ में सरु हुयौ। महाराजा सरदारसिंह अर सर प्रताप साफा रा पेच परिस्कृत करियौ अर उणने सगळा राजस्थान री पिछाण रौ प्रतीक बणायौ। साफौ उच्च वरग में प्रचलित हुयौ जदके ‘पोचियौ’ या ‘फेंटौ’ गांवांई परिवेस अर दूजी जातियां री पगड़ी रै रुप में जाणीजण लागौ। राजस्थान में पगड़ी रौ स्थान सबसूं उपर है अर उणरौ महत्व ई घणौ आंकीजियौ है। आपांरी संस्कृति में माथै नै सर्वोत्तम मानीजो है, इण सारु उण पर धारण की जावण वाळी पगड़ी रौ महत्व कम क्यूंकर हुवतौ।
आपांणा कवियां तौ पगड़ी नै ई वीरां री अ‍ेकाअ‍ेक शोभा मानी है। उणां कायरां नै पगड़ी नीं धारण करण री सीख दीवी है क्यूंके वे पगड़ी रै मान री रक्षा करण जोग नीं है। इणी सारु बांकीदास व्यंग करतां थकां लिखियौ –
मावड़िया सोवै नहीं, मुख मूंछां सिर सूत
जुद्ध निवड़ियां मरियोड़ा सैनिकां री पिछांण
उणारी पागड़ियां रा पेच सूं हुवती
राजस्थान में कोई प्रकार रा रिवाज, परंपरावां अर मर्यादावां पगड़ियां सूं जुड़ियोड़ी है। इणनै कोई व्यक्ति विशेष नीं बणाई। आं अणलिखि परंपरावां नै समाज समै-समै माथै स्वीकार कियौ, अर उणनै आम स्वीकृति मिळती गयी। पगड़ी अठा री संस्कृति में रसी-बसी है। अठै सिगरी (सपरिवार) न्यूतौ देवणौ हुवै तौ उणनै पगड़ीबंध न्यौतौ वैâवे, यानि घर में पगड़ी पैरण वाळा सगळा लोग आमंत्रित है।
मारवाड़ में अ‍ेक खास प्रकार रौ कर लागतौ। घर में जितरा पगड़ी बांधण वाळा हुवता, उणरै मुजब उणां नै राजकोष में अ‍ेक प्रकार रौ कृषिकर जमा करावणौ पड़तौ। इण कर री वजै सूं केई दफा गांवांई लोग आपरै बेटै ने मोट््यार हुयां ई पगड़ी बंधावता जिण समें उण कर सूं बचियौ जाय सवैâ।
पाग-पगड़ियां रौ भौगोलिक, ऐतिहासिक अर सांस्कृतिक दीठ सूं राजस्थान रौ खास स्थान है। अठा रौ सांस्कृतिक परिवेश आपरै निजी रुप में घणौ भव्य, निरालौ अर अनूठो है। पगड़ी रै बिना आदमी अधूरौ सो लागै। पगड़ी संपूर्णता रौ प्रतीक, बहादुरी रौ सोपान अर आपांरी रंगभीनी संस्कृति री ओळख है।
इतिहास रा ताना-बाना सूं इणरी परंपरावां प्रतिष्ठित हुई अर धरम रा करमकांडां, संदर्भा माय पगड़ी री आपरी न्यारी मान्यता अर मर्यादा रैयी है। सैकड़ां बरसां सूं जुड़ी आ परंपरा आज ई आपां रै आस-पास बचियोड़ी है। कवियां री लेखनी ई पगड़ियां री परंपरा नै कदैई विजोगण री दीठ सूं देखियौ तौ कदैई केसरिया बाना धारण करियोड़ा सूरमावां रै दृढ संकल्प में उणनै खास स्थान दियौ। सुरंगी पाग अर केसर भीगै वातावरण में उण विजोगण रै विरह नै और घणौ बधा दियौ –
पाग सुरंगी पीव री, सालू त्रिया सुरंग
केसर भीना कुमकुमै, पुसपां भरया पिलंग
पंचरंगी पाग रा संदर्भ में चन्द्रमुखी प्रिया सगळा समरपण रै साथै अ‍ेक रंग होवण नै तत्पर रौ न्यौतौ देवै अर उणनै औ ई जतावण री कोसीस करै के बरसात में भीगी पाग सूं टपकतै पाणी नै जद म्हैं देखूंली तौ म्हनै भरोसो हुवैला के थांनै म्हारा सूं सिरै बजारां वाणिया, मुख मूंछां फरकंद।
मारवाड़ में बातां वैâवण रौ अ‍ेक न्यारी ढंग हुवै जिणमें बात वैâवण वाळौ एक सबद- आपरां भावां नै यूं वक्त करै :
चन्द्रमुखी री चूंदड़ी, पिय की पंचरंग पाग
सेजड़ली नै सुण सखी, रह्यौ आज रंग लाग
मारवाड़ री भगत शिरोमणि मीरांबाई भगवान री कसूमल पाग अर उणरा केसरिया जामा बाबत यूं वैâयौ है –
कसुमल पाग केसरिया जामा, ऊपर फूल हजारी
मुकट ऊपरे छाग बिराजे, कुंडल की छब न्यारी
प्रेम है –
आज धुराऊ धूंधलौ, मोटी छांटा मेह।
भींजी पाग पधारस्यौ, जद जाणूंली नेह।।
पगड़ी बाबत अ‍ेक लोक गीत इण भीत है-
ऐ झटपट बांधी पागड़ी रुणझूणियो ले
ऐ दौ़ड्या बागां जाय, जाजो मरवो ले
बांकीदास अ‍ेक अजीव व्यक्तित्व रौ बखाण हंसा रौ पुट देय’र इण सबदां में कियौ है-
कर कम चाले जीभ इत, सिर पागड़ सिरगंद। चितराम खेंच देवै। बात खतम हुवण साथै छोगा वैâवण री रिवाज है जिणमें पगड़ी रौ उल्लेख मिळे-
केई नर सूता केई नर जागै
जागतड़ा री पागड़िया ढोल्यां रै पागै
सूतोड़ा री पागड़ियां जागतड़ा ले भागै
फोरा पतळा रौ दाव नीं लागै
मारवाड़ में रितुवां अर तिंवारां मुजब पाग-पगड़ियां रा रंगां रौ चयन हुवै। उदाहरण रुप में बसंत रितु में गुलाबी, गरमी रितु में फूल गुलाबी अर लहरिया, बरखा रितु में लाल चंदनिया। सावण-भादवा में बरखा री फुंआरां ज्यूं ई पाग नै भिजोवै, उणमें चंदण री सुगंध आवण लागै। आसोज अर काती री सरद रितु में गुल-अ‍े-अनार री पाग बांधी जावै। मिगसर अर पौष, हेमंत रितु में भांत-भांत री पगड़ी जिणनै ‘मौळिया’ वैâवै, बांधण ही परंपरा है। शिशिर रितु माघ अर फागण में आवे जिणमें फागुणिया अर होळी माथै केसरिया रंग बांधण रौ आम रिवाज है।
मेवाड़ रा राजपरिवार में रितुवां मुजब पगड़ी बांधण रौ रिवाज है। सावण भादवा में हरे रंग री, सरदी में कसुंभी अर गरमी में केसरिया रंग री पगड़ी पसंद की जावै। मेवाड़ रा महाराणा चेत सुद ३ सूं ६ तांई गणगौर उछब मनावै। उण समै महाराणा अर उणांरा १६ बतीसा उमराव गणगौर री तिंवार माथै कसुंबल, सुआपांखी, गुलाबी अर केसरिया रंग री पागां धारण करै। सावण सुद ३ मेवाड़ में छोटी तीज मनाईजै। उन दिन गुलाबी अर धोळी धारीवाळी लहरिया पाग बांगण रौ रिवाज है। भादवा वद ३ काजळी तीज रै रुप में मनाईजै। इण मौके धोळी अर काळी धारियां री बंधेज री पागां बांधीजै। उण माथै सोनै री छपाई रौ काम भी हुवै। आंसजी नवरात्रा रै पछै दसरांवा तिंवार माथै महाराणा सलमा-सितारा वाळी जुलूसी पाग धारण करै। बसंत पांचम माथै केसरिया अर पीळा रंग री पाग जणि माथै गुलाबी छांटा दियोड़ा हुवै, बांधण री परंपरा मेवाड़ में रैयी है। होळी माथै धोळी फागुणी पाग बांधण रौ रिवाज है।
मारवाड़ राजपरिवार में तिवारां माथै रंगा रौ चयन ही न्यारौ है। गणगौर, आखातीज अर दसरावा तिंवार माथै महाराजा अर दूजा सामंत केसरिया रंग रा साफा धारण करै। दीवाळी री रात काळी चूंदड़ी रौ साफौ, जिणमें सलमा-सितारा री पगड़ी रा दोनां किनारां माथे कलात्मक काम हुवै, बांधिया जावै। राखड़ी माथै चटकीलै रंग री मोठड़ा पाग बांधीजै। बसंत पांचम नै पीळै रंग रौ साफौ अर उण माथै गुलाबी छांटा लाग्यौड़ा हुवै। सरद पूनम नै फूल गुलाबी साफा बांधण रौ रिवाज जोधपुर राजपरिवार माय है। सावण में समंदर लहर, इन्द्रधनुषी साफा बांधण री रिवाज आज भी है। होळी रा तिंवार माथै धौळा साफा माथै राता लाडू भांत बंधेज वाळा साफा बांधीजै। जोधपुर राजपरिवार में ब्याव सूं पैला पीठी री रस्म रै मौके राता पल्लां वाळा काळा साफा बांधण रौ रिवाज है अर फेरां रै समै दूल्हे रौ साफौ केसरिया रंग री ई हुवै।
मेवाड़ रा महाराणा भूपालसिंहजी बाबत वैâयौ जावै के वे आपरी पाग नै धारण करियां पछै उणनै ‘धारण री पाग’ री श्रेणी में राखता अर पछै उणनै आपरा मरजीदानां नै भेटस्वरुप दे देवता। महाराणा फतेहसिंहजी आपरा जंवाई जोधपुर रा महाराजा सरदारसिंहजी रा देवलोक हुयां पछै कदैई रंगीन पाग नीं बांधी। वे फगत धोळा रंग री पाग धारण करता, जिण माथै शोकसूचक काळी डोरी हुवती। मेवाड़ में पाग रौ जीवणौ हिस्सौ ‘खग’ ऊपर उठियोड़ौं तीखा आकार रौ हुवतौ, जिणसूं बांधण वाळा री वीरता रौ जीवणौ हिस्सो सिर माथै दबियोड़ौ निगै आवतौ जिकौ उणां री नम्रता रौ प्रतीक मानियौ जावतो।
मारवाड़ में कंवरपदा शोक रा रंग ज्यूं मलयागिरी, खाकी, आसमानी इत्याद बांधण री मनाही ही। अ‍ैड़ा अवसरां माथै सिंधरुपी रंग रौ साफौ बांधियौ जावतौ। राजस्थान रा शहरी परिवेस में पागड़ी परंपरा नै ब्याव, गमी तांई सीमित कर दियौ है, पण गांवां में पागड़ी रौ प्रचलन आज ई है अर वाण वाळा सैकड़ां बरसां तांई रैवैला। जे इण परंपरा की जड़ां गैरी नीं हुवती तौ और रिवाज कदैई उठ जावतौ। पागड़ी परंपरा आपांणै संस्कारां सूं जुड़ियोड़ी है अर इणरौ अंत आपांणा संस्कारां री समाप्ति माथै ई हुवैला।

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