माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा पर्व ‘महेश नवमी’ का विशेषांक ‘मेरा राजस्थान’ के प्रबुद्ध पाठकों के हाथों प्रस्तुत कर अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है, कारण यह है कि माहेश्वरी समाज के इतिहास का अध्ययन करने का मुझे भी मौका मिला, जिससे यह जानकारी मिली कि किस प्रकार भगवान महेश के भक्त माहेश्वरी क्षत्रिय से वाणिज्य प्रेमी बने, जो वाणिज्य के साथसाथ राष्ट्र की सेवा के लिए भी अग्रणीय हैं।
भारत की आजादी का श्रेय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ बिड़ला व बजाज परिवार को भी जाता है, मात्र आजादी ही नहीं भारतीय भाषायी संस्कृति संवर्धन के इतिहास में भी माहेश्वरीयों की कर्मठता का उल्लेख मिलता है।
जग जाहिर है कि ब्रह्माण्ड के रक्षक भोलेनाथ जिन्हें कई-कई नामों से हम पुकारते हैं जिनमें ‘महेश’ भी उल्लेखनीय है, भगवान महेश जी से जेष्ठ शुक्ला नवमी के दिन माँ पार्वती के आशीर्वाद से एक समाज की उत्पत्ति हुयी, आशीर्वाद यह मिला था कि भगवान शिव से प्राप्त वरदान प्रेमी कर्मठता, सुशीलता, संपन्नता, धैर्यता, मृदुलता आदि-आदि खिताबों से नवाजे जायेंगे, तभी तो करीब पॉच हजार सालों से अपने कार्यों की वरीयता ‘माहेश्वरी’ वंश बनाए हुए हैं। वैसे ७२ गोत्रों से हुयी शुरुआत समयकालीन घट-बढ़ जरुर हुयी है पर आज भी भगवान महेश के ये भक्त एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं, कई-कई बार कुछ विवादित घटनाएं सुनने या पढ़ने को मिल जाती हैं पर कार्य विशेष कर्मठ समाज पर किसी भी प्रकार का प्रश्नचिन्ह लगाया नहीं जा सकता।
पूर्णरुपेण माहेश्वरी अपने आपको राजस्थानी कहलाने में भी गर्वित महसूस करते हैं भले ही आज विश्व के हर कोने में प्रवासित हैं, भारत के साथ विदेशों की धरती पर कहीं भी रह रहे माहेश्वरी अपनी संस्कृति को नहीं भूलते और अपने वंशोत्पत्ति पर्व ‘महेश नवमी’ पर्व को आनंदपूर्वक सहपरिवार मिलकर मनाते हैं, भारत के हर कोने में निवासित नगर-शहर में झूमते गाते हैं, मिलकर कहते हैं कि हम हैं भगवान महेश के वंश ‘माहेश्वरी’!
‘मेरा राजस्थान’ जून महिने का अंक समस्त राजस्थानी परिवार के घरों की ११ जून ‘महेश नवमी’ पर्व के पूर्व शोभा बढायेगी और सम्मान प्राप्त करेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
एक बार पुनश्च: महेश नवमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें। जय भारत!जय भारतीय संस्कृति!