३० मार्च राजस्थान स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर मुंबई में भव्यातिभव्य आपणों राजस्थान कार्यक्रम सम्पन्न
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पूर्व संध्या पर हुआ राजस्थानी संस्थाओं का सम्मान
राजस्थान स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित भव्यातिभव्य ‘आपणों राजस्थान’ कार्यक्रम में उपस्थित दिलिप सांगनेरिया, वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’, प्रसिद्ध समाजसेविका व लोढा फाऊंडेशन की संस्थापिका श्रीमती मंजु लोढा, कार्यक्रम समन्वयक एवं अग्रबंधु सेवा समिति के ट्रस्टी कानबिहारी अग्रवाल, राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त ‘जैन एकता’ के परम समर्थक हिरालाल साबद्रा व शब्दों के जाल बुनने वाले प्रख्यात मंच संचालक त्रिलोक सिरसरेवाला
लोखंडवाला: मुंबई का ह्रदय कहा जाने वाला सभ्रांत इलाका लोखंडवाला कॉम्पलेक्स में स्थित लोखंडवाला गार्डेन क्र.२ में चतुर्थ वर्षीय ‘आपणों राजस्थान’ कार्यक्रम की रंगारंग शुरूआत २२-२४ फरवरी, त्रीदिवसीय रूप में शुरू हुयी, जिसका उद्घाटन २२ फरवरी को प्रसिद्ध समाजसेवी सुश्री मंजु लोढा ने किया और कहा कि ऐसे कार्यक्रम में आकर मुझे अपने बचपन की याद आ गयी, अपने भाषण में मंजु जी ने सम्पूर्ण राजस्थान का गुणगान कर श्रोताओं की तालियां बटोरी। विभिन्न परिधानों, खान-पान व सजावटी समानों की स्टॉल के साथ का आयोजन वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ने बच्चों के लिए विभिन्न झूले, कठपुतली, नृत्य, बाईस्कोप आदि का भी आयोजन किया, जिसका लुत्फ कार्यक्रम में पधारे राजस्थानी परिवारों ने उठाया।
आयोजक वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’ ने कहा कि ‘आपणों राजस्थान’ कार्यक्रम के आयोजन का उद्देश्य मुंबई में फैले राजस्थानी संस्थाओं को एकमंच पर लाना ही एकमात्र है जिसमें दिनों-दिन सफलता भी मिल रही है, लोग जुड़ते चले जा रहे हैं कारवॉ बनते जा रहा है, इसी कड़ी में इस वर्ष १३५ राजस्थानी संस्थाओं का सम्मान किया जा रहा है, श्री जैन ने कहा कि मेरे जीवन का उद्देश्य सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान बढाना है, और भारत की एक राष्ट्रभाषा को प्रतिष्ठापित करवानी है जिसमें मुझे सफलता भी प्राप्त हो रही है और एक दिन विश्व के सभी राष्ट्रों की तरह मेरे भारत का भी एक राष्ट्रभाषा घोषित होकर रहेगी।
श्री जैन ने कहा कि मेरे आदर्श महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि ‘जिस देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं होती वो राष्ट्र गूंगा होता है’
साथ यह भी कहा कि भारतीय आजादी के योद्धा नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि
यदि भारत को अखंड रखना है तो हम सभी को ‘हिंदी’ में ही संवाद करना चाहिए।
श्री जैन ने ‘राजस्थान स्थापना दिवस’ के बारे में भी उल्लेख करते हुए कहा कि वीरों की भूमि आज के राजस्थान को बनने के लिए सात साल लगे थे, जिसके लिए अथक परिश्रम सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था, जिनके कार्यों का भुलाया नहीं जा सकता।
रंगारंग ‘आपणों राजस्थान’ कार्यक्रम की संगीतमय प्रस्तुति बंटी ठाकूर-प्रिया ठाकूर के सहयोगियों द्वारा की गयी थी।
गणेश वंदना व विभिन्न राजस्थानी गीतों को कोकिला कंठी इंदु श्यामसुंदर अग्रवाल ने प्रस्तुति दी।
राजस्थानी नृत्य की छटा बिखेरी प्रसिद्ध नृत्यांगना व अभिनेत्री बरखा पंडित ने, प्रसिद्ध गीतकार व संगीतकार दिलिप सेन द्वारा गीतों की प्रस्तुति पर प्रसिद्ध राजस्थानी अभिनेता अरविंद कुमार ने जमकर नृत्य कर दर्शकों का मन मुग्ध कर दिया।
सुनिल चौहान, जो दिलिप सेन जी के शिष्य हैं गीत गाकर पुराने दिनों की याद दिला दी। अतिथि स्वतंत्रता संचालन प्रसिद्ध समाजसेवी कानबिहारी जी अग्रवाल व शब्दों के जाल बुनने के लिए प्रख्यात त्रिलोक सिरसलेवाला ने किया।
२२ मार्च यानि पहले दिन राजस्थानी कर्मठता सम्मान ‘राजस्थानश्री’ से सम्मानित होने वाले सर्वश्री हीरालाल सबाद्रा, सुधीर अग्रवाल, गोपालदास गोयल, श्रीधर गुप्ता, श्रीमती मंजू लोढ़ा, श्रीमती ऊषा सरावगी, दिलीप सेन, सतीश सुराणा, अरविंद वाघेला व अन्य है।
कार्यक्रम में अपनी विशेष उपस्थिति दी सर्वश्री ओमप्रकाश शाह, बंकेश अग्रवाल, अमित अग्रवाल, छोटेलाल अग्रवाल, शिव कुमार बागड़ी, प्रमोद अग्रवाल, श्री बुबना, दिलीप सांगानेरिया, अजय माहेश्वरी, टिवी सिरियल निर्माता सन्नी मंडावरा, सुश्री वर्षा जालान, सुमन बोहरा, ललिता अग्रवाल, शीला गोयल, श्रीमति संतोष बिजय जैन, पायल सौरभ जैन आदि-आदि ने उपस्थिति दी, कार्यक्रम में लगे स्टॉल (दुकानों) के सहयोगी, कठपुतली, राजस्थानी बाईस्कोप के साथ आगंतुकों का स्वागत अम्रत भट्ट एण्ड कम्पनी ने किया।
आपणो राजस्थान कार्यक्रम के संस्थापक बिजय कुमार जैन, सर्वश्री श्रीधर गुप्ता (उपाध्यक्ष मुंबई अग्रवाल सामुहिक विवाह सम्मेलन), श्री गोपालदास गोयल (मंत्री: आगरा नागरिक संघ), श्री सुधीर अग्रवाल (ट्रस्टी: अग्रवाल जनसेवा चेरिटेबल ट्रस्ट), श्री हीरालाल साबाद्रा (अध्यक्ष, नवी मुंबई स्थानकवासी जैन संघ) राजस्थानी समाज सेवी कानबिहारी अग्रवाल व ओमप्रकश शाह
बच्चों के लिए झूले वगैरह की व्यवस्था श्री राजेश जैसवाल ने की थी।
सुरक्षा व्यवस्था विश्वनाथ द्वारा की गयी थी।
कार्यक्रम के आर्थिक सहयोगी जीटीव्ही इंफ्रा. लि., अग्रवाल बिल्डर, जालान वायर्स, शारदा वल्र्ड वाइड, राजस्थानी सेवा संघ, बांसवारा सिन्टेक्स, मुरारका फाउंडेशन, पदमा ट्रेडर्स, पुश इन्टरप्राइजेस, मोगरा असोसियेशन, डॉ. श्याम अग्रवाल (नेत्र चिकित्सक विशेषज्ञ), लोढा फाउंडशेन, आर.एन. तिवारी, ब्लेन्ड फाइनेन्श, गुरूजी ठंडाईवाला, कुचामण विकास परिषद मुंबई, सिद्धार्थ कुलिंग कॉरपोरेशन, भारत बैंक व आकाश मार्बल आदि एम.टी.सी. ग्रुप, गुप्ता इन्वेसमेंट, ब्युटीफुल ग्रुप, श्रीधर गुप्ता अग्रवाल जनसेवा चेरिटेबल ट्रस्ट रहे। प्रथम दिवसीय कार्यक्रम के विशेष सहयोगी ‘आपणों राजस्थान’ के सह संयोजिका सुश्री अनुपमा शर्मा के साथ गेलार्ड ग्रुप के सर्वश्री आकाश कुम्भार, संध्या मौर्या, आशा कुमार, भूपेंन्द्र कोरी, विजय जांगड़ा, रंजना पाटील, रोशनी जाधव, राजेश्री पेडणेकर, अक्षय डोंगरे, रोशनी माने, ज्योति नाईक, करिश्मा पाटोळे, मोनिका खरात, स्वरूपा दळवी, अंकिता माने, मंगेश चव्हाण, अस्मिता मस्कर, रंगारंग कार्यक्रम के विशेष सहयोगी ‘राजस्थानी मंडल लोखंडवाला कॉम्पलेक्स’ के साथ स्थानीय पुलिस विभाग, मनपा विभाग, अग्निशमन दल के साथ लोखंडवाला गार्डन के पदाधिकारियों के सहयोग को सराहा जा सकता है।
-मे.रा
ना देखा गया आजतक-ना ही सोचा गया आश्विरकार सम्पन्न हुआ २४ मार्च को आपणों राजस्थान का कार्यक्रम
दिनांक २४ मार्च को सुबह आयोजित विश्व प्रसिद्ध अमृतवाणी सत्संग के पश्चात अमृतवाणी प्रवर्तक आध्यात्मिक गुरू डॉ. श्री राजेन्द्र जी महाराज जी को ‘आपणों राजस्थान’ की तरफ राजस्थान रत्न से संस्थापक बिजय कुमार जैन जी द्वारा सम्मानित किया गया।
दिनांक २४ मार्च को कार्यक्रम का शुभारंभ शाम को आए हुए अतिथियों द्वारा ईश्वर के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया, स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है, इसी की तर्ज पर कोकीला बेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पीटल से पधारे डॉक्टर्स की श्रृंखला में डॉ. विलास लढ्ढा, हृदय चिकित्सा डॉ. प्रविण कहाले, कैंसर विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत न्याति ने लोगों को बीमारीयों के कारण व उनसे बचने के उपायों पर चर्चा प्रस्तुत की, मुख्य रूप से कैंसर के लक्षण पर चर्चा की गई तत्पश्चात गायक सतिश देहरा द्वारा संगीतमय संध्या का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया, इसी बीच विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष को सम्मान पत्र व पगड़ी पहना कर सम्मानित होने वाली हस्तियां सर्वश्री सतिश देहरा, बंटी ठाकुर (गायक), कानबिहारी अग्रवाल, अमरीशचंद अग्रवाल, महेश बंसीधर अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल (मन्नुसेठ), उदेश अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल (बिरजू भाई), अशोक जैन, विजय सिंह सिसोदिया, तुलसीराम कयाल, नवरत्न दुग्गड, विश्वनाथ जोशी, मुरली बालाण, जे. पी. खेमका, तुलसीराम कयाल, सुभाष जांगीड, सुरजमल माकड़, पन्नालाल सारडा आदि ने अपनी उपस्थिति देकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिया। पूर्व अध्यक्ष मुंबई कांग्रेस संजय निरूपम ने अपनी उपस्थिति देकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा दी, कार्यक्रम को सम्पन्न बनाने के लिए सर्वश्री कानबिहारी अग्रवाल व राजस्थानी मंडल के पदाधिकारी दिलीप सांगानेरिया, ओम प्रकाश शाह, अमित अग्रवाल, गगन गुप्ता, शिव बागड़ी, श्रीमती अनुपमा शर्मा, स्वरूपा, आशा कुमार, संध्या मौर्या, आकाश कुंभार, मंगेश, भूपेंद्र कोरी का विशेष सहयोग रहा। ने संभाली तीन दिवसीय भव्यातिभव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन जय-जय राजस्थान के घोष के साथ सम्पन्न हुआ।
-मेरा
हम स्वयं भाग्यविधाता हैं राजस्थान के!
विश्व के धर्मप्रधान, विश्वगुरु व लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान स्थित नाम सिटी, मारोठ का मूल निवासी होना और ईश्वर की कृपास्वरुप अपनी माटी-संस्कृति के प्रति गहरा जुड़ाव, कुछ सृजनशील-मौलिक ध्येयों को लेकर ही ‘मेरा राजस्थान’ जैसी मासिक पत्रिका का अभ्युदय होता है, एक ऐसे राजस्थानी मानस द्वारा, जो संयोगवश अपने गांव-समाज से दूर हो, महाराष्ट्र के राष्ट्रचर्चित महानगर मुम्बई में रोजी-रोजगार हेतु संघर्षरत करता है, यह स्वाभाविक सत्य है, बगैर दु:ख-दर्द, संघर्ष-त्रास के सृजन नहीं होता। एक राजस्थानी शख्स की मानसिक-सामाजिक उपज के रुप में ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका आज सफलतापूर्वक १३ वर्षों का सफर पूर्ण कर १४ वें वर्ष में दाखिल हो चुकी है, यह सफर इतना सहज नहीं रहा, सृजन तो संघर्ष मांगता ही है। प्रवासी जीवन जीते हुए अपनी जन्मभूमि व संस्कृति के प्रति हार्दिक लगाव, दूर होने का दर्द, कुछ कर गुजरने की महत्वाकांक्षा, फिर जीवनयापन की उत्तम आकांक्षा आदि भावनात्मक वजहों से ‘मेरा राजस्थान’ का सफर शुरु हुआ था। सफर की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसा लगा, मेरा छूट गया राजस्थान! काफी दूर होकर मूल से ‘राजस्थान’ हमारापन अर्थात् हमारा ‘मेरा’ बनकर अपनत्व का भरपूर उद्गार बन, कोई न कोई स्वरुप ले लेता है, ऐसा ही एक रचनात्मक स्वरुप है ‘मेरा राजस्थान’ इस प्रांतीय पत्रिका (मासिक) का श्रीगणेश सितंबर, २००६ में हुआ, सक्रियता के साथ लगातार सफर जारी रहा, यही जोश और कई वर्षों के खट्टे-मीठे एहसासों के बीच संघर्ष की यात्रा किस प्रकार, पढ़ते हैं: यह सच कहते हुए गौरव-भाव जाहिर होता है कि राजस्थान के कई व्यक्तित्वों की आत्मीयता, हर संभव-सहयोगात्मक भूमिका से ‘मेरा राजस्थान’ का संघर्ष सकारात्मक व सार्थक उद्देश्यों को यथासंभव पूरा करने में सफलीभूत रहा है।
कृतज्ञता उनके प्रति भी, जिन्होंने स्नेह-सहयोग का भाव हर हाल में बनाये रखा, संघर्षपूर्ण यात्रा में दुआ-मार्गदर्शन बनाये रखा, साथ ही कृतज्ञता उन दु:खदर्दों, नकारात्मक तत्वों के प्रति भी, जिनकी वजह से प्रतिरोधात्मक शक्ति-ऊर्जा मिली और सकारात्मकता बनी रही, दिग्भ्रमितता नहीं हुई, विभिन्न प्रकार की पत्रिकाएं तो अपने स्तर पर जहाँ-तहाँ फल-फूल रही हैं परंतु एक प्रांतीय व माटी जन्मभूमि व समाज की पत्रिका यदि प्रवासी या निवासी समाज के सामने प्रस्तुत होती है तो कितनी सुखद बात है, इसी फलस्वरुप ‘मेरा राजस्थान’ यहाँ तक पहुँची और अनवरत गतिशील-प्रगतिशील जारी है…..
इस पत्रिका के संघर्ष और उत्थान की गहन यात्रा में कई अहम व्यक्तित्व हैं जिन्होंने स्थायी व प्रमुख रुप से विज्ञापन-सहयोग का आर्थिक संबल दिया है और आशा है, उनका यह योगदान लगातार कायम भी रहेगा, यह ‘मेरा’ का सौभाग्य है कि मेरा आत्मबल हमेशा पुष्ट-सुदृढ़ करता रहा है। आज के दौर में स्तरीय व उत्तम द़र्जे की पत्रिका निकालना एक बड़ा खर्चीला और जोखिम-भरा प्रयास है, जिसका ध्येय प्रामाणिक सेवा है और ऐसे में विज्ञापन ही पत्र-पत्रिकाओं की जीवनी है, यह शक्ति श्री बनाये रखने वाले सद्भावी, उदार महाजनों के नाम सदैव स्मरणीय-उल्लेखनीय मेरे जहन में रहेंगे रहते हैं।
‘मेरा राजस्थान’ का उद्देश्य राजस्थान की सेवा और विकास है। श्रेय सिर्फ माध्यम-भर का है, सद्भाव को सुपरिणाम देने का क्रम बना रहे, यही समस्त राजस्थानी (आमो-खास) जनों से विनती है, गैर राजस्थानी सहयोगी सज्जनों से भी आग्रह है कि वे स्नेह-श्रद्धा बनाये रखें।
‘राजस्थान’ भारत देश का एक अहम हिस्सा है, राजस्थान का अर्थ, विकास भारत से ही संबद्ध है। राजस्थान का कण-कण, जनगण भारतीय ही है। राजस्थान की सेवा भारतीय सेवा है। राजस्थान को मरुभूमि से ‘राजस्थान’ बनाने की महायात्रा में ‘मेरा राजस्थान’ के कुछ कदम, एक छोटी पहल ही सही परंतु सार्थक, उद्देश्यपूर्ण दिशा-लक्ष्य की तरफ है जिस बात का बड़ा तोष और आत्म गौरव है ‘मेरा राजस्थान’ से जुड़े परिवार का…..
‘मेरा राजस्थान’ के श्री गणेश से लेकर आज तक जितने भी सहयोगी-सेवाभावी तत्व जुड़े-बिछुड़े या सक्रिय हैं और भी जुड़ेंगे, सबके प्रति ‘मेरा राजस्थान’ सदैव कृतज्ञ है और रहेगा। समाज-देश की सेवा सकल सेवा नहीं सामुदायिक प्रयास का सुपरिणाम है। राजस्थान प्रांत के बहुआयामी उत्थान के प्रति सचेष्टता, जागरुकता, परिणामदायी संघर्ष और समर्पण-सम्मान भाव अक्षुण्ण रहे, यही मूल ध्येय है, साथ ही राजस्थान के पर्याप्त विकास के माध्यम से भारत के विकास का ही लक्ष्य है, मेरी समझ से यदि हर प्रांत स्वयं को आत्मनिर्भर और पर्याप्त विकसित कर ले तो हमारा भारत देश विकासमान ही न रहकर एक विकसित राष्ट्र के रुप में विश्व में सर्वथा सुघोषित हो जायेगा, इसी दूरदर्शी प्रबुद्धता को सिद्ध करने की लंबी साधना की यह आंशिक भूमिका है ‘आपणों राजस्थान’।
‘कदे न देख्यो राजस्थान, जग म आकर के करयो?’
अर्थात् यदि पावन व पवित्र नगरी ‘राजस्थान’ का दर्शन सुख आपने नहीं लिया तो इस जग में आकर फिर क्या किया? अर्थ साफ-साफ जाहिर है, प्रत्येक भारतीय को एक बार राजस्थान का भ्रमण अवश्य करना चाहिए, यह संदेश है मेरे ही द्वारा सम्पादित ‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका का। राजस्थान प्रदेश के अन्तर्गत झीलों की नगरी, हवेलियों-महलों की नगरी, कला-धर्म-अध्यात्म की अनूठी नगरी, वीरता-बलिदान की ऐतिहासिक नगरी के अलावा और भी बहुत कुछ है
जैसे राजस्थानी भूखंड बीकानेर की विशेषता की झलक इन पंक्तियों में –
ऊँट, मिठाई, स्त्री, सोनो-गहणों शाह!
पांच चीज पिरथी सिरै वाह बीकाणा वाह!
अर्थात् ऊँट यानी मरुप्रदेश का जहाज, श्रेष्ठ मिठाई, फिर कलावंत रमणी, फिर शुद्ध सोना और विविध श्रृंगारों वाले मोहक गहनों का राजा नगर है बीकानेर, सारी पृथ्वी पर अपने ढंग की ये पांच चीजें राजस्थान के ‘बीकानेर’ जैसे अलबेले नगर में ही सुलभ हैं।
राजस्थान को मरुभूमि, मरुप्रदेश आदि कहा जाता है परंतु ‘मरु’ शब्द के दर्द, अर्थ को गुम कर जीवन से भर-भरकर संवार-निखार देने के महाप्रयास में काफी हद तक सफलीभूत राजस्थानी जनगण, जिन्हें मारवाड़ीगण भी कहा जाता है। राजस्थानी विशेषतया नौकरी-प्रधान जीवन के बदले व्यवसाय प्रधान जीवन जीना पसंद करते हैं, हम राजस्थानी सेवा, दान अवश्य करते हैं परन्तु श्रेष्ठी बनकर इतना श्रम, संघर्ष करते हैं कि स्वयं को संपन्न समृद्ध कर अपने आपका स्वामी बना देते हैं ताकि उदारता बरतते समय कोई अक्षमता, हीन भाव उन्हें छू न जाये। मरुभूमि में मरुजीवन जीने की मजबूरी को नकार, उतार फेंककर व्यापार के पारावार में कूद पड़ते हैं राजस्थानी / मारवाड़ी समृद्धि का स्वाद खुद लेते और दिलाते भी हैं। मारवाड़ी का सच्चा अर्थ कुछ ऐसा भी संभव है कि ‘मरु’ को संवारने वाले मारवाड़ी हैं। ‘मरु’ को संवारकर अर्थात् नीरसता को रसदार निर्जीवता को जीवनपूर्ण, मधु प्राणवंत बनाना। मरुभूमि को प्राणभूमि बनानेवाले हैं मारवाड़ी गण, यानी राजस्थानी जन……
देश-दुनिया के कोने-कोने में ‘धोरां री धरती’ के लालों-नौनिहालों ने पूâलों की धरती रचने का कीर्तिमान स्थापित करना आरंभ कर दिया है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व वर्तमान अशोक गेहलोत जैसे वरिष्ठ विश्वस्त और पारंगत जनहितैषी नैत्री आज राजस्थान का कायाकल्प करने में जी-जान से जुटी हैं, महिलाओं के मौलिक पक्षों को भी बड़े आदर और गंभीरतापूर्वक उन्होंने अपनाया है। भारत का एक विशाल प्रांत ‘राजस्थान’ जिसे वक्त तो लगेगा ही, बुनियादी विकास की दीर्घतम पिपासु धरती ‘राजस्थान’ को अपेक्षित प्रगति के रस-रंग से आप्लावित करने की यात्रा निस्संदेह लंबी हो सकती है परन्तु संतुलित-सार्थक प्रयास जारी है और रहेगा मेरे द्वारा…..
बड़ा हर्ष है, गौरव-सा महसूस भी होता है कि राजस्थानी जन देश-विदेश में जहाँ भी निवास कर रहे हैं, उनमें जितने लोगों तक पहुँच पायी है ‘मेरा राजस्थान’ सराही-अपनायी गयी है, जुड़ाव-लगाव-सद्भाव बढता जा रहा है। एक रचनात्मक आनंद, उपलब्धि का एहसास बड़ा ही सुखद, संतोषप्रद है। प्रत्येक राजस्थानी तक स्वप्रांत राजस्थान-केन्द्रित ‘मेरा राजस्थान’ पहुँचे और सामाजिक प्रांतीय व राष्ट्रीय मूल्यों को साधने में सार्थक सिद्ध हो, यही सद्कामना है तभी तो प्रति माह राजस्थान के एक शहर गाँव-कस्बे पर या प्रमुख राजस्थानी व्यक्तित्व, महत्वपूर्ण त्यौहार व राजस्थान स्थापना दिवस पर ‘आपणों राजस्थान’ जैसा भव्य कार्यक्रम का आयोजन करना आदि जैसे महाराजा अग्रसेन, महाराणा प्रताप जयंती, दधीचि जयंती, राजस्थान-दिवस, होली, दीपावली, नव वर्ष आदि विशेष विषयों पर अंक प्रकाशित करने का क्रम सम्पन्न किया जाता रहा है। राजस्थान के सुचर्चित स्थानों-उदयपुर, जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, कुचामन, गंगाशहर सिटी, छोटी खाटू, झुंझुनूं, बिसाऊ, ताल छापर, चित्तौड़गढ़, कालू, राजलदेसर, नोखा, केड़, सुजानगढ़, लाडनूं, रतनगढ़, सिरोही, चिड़ावा, फतेहपुर, पाली, नागौर, सरदारशहर, सीकर, निम्बी जोधां, हनुमानगढ़, डीडवाना, रामगढ़, (मन्दिरनगरी), जैसलमेर, रतननगर, साँभर इत्यादि-इत्यादि गॉव-शहरों पर विशेषांक प्रकाशित कर भविष्य में संपूर्ण राजस्थान को उसके बहुआयामी मूल्यों के मद्देनजर प्रकाशित करना ‘मेरा राजस्थान’ का एक नव ऐतिहासिक लक्ष्य भी है।
राजस्थान हवेलियों, मन्दिरों, हस्तकलाओं और ऐतिहासिक-पौराणिक संस्कृति का महाकेन्द्र माना जाता है। रामगढ़ को ‘दूसरी काशी’ की संज्ञा प्राप्त है संस्कृत की शिक्षानगरी और मन्दिर नगरी के रुप में। विश्वचर्चित भारत का महाप्रांत होने के साथ इसकी गुलाबी राजधानी नगरी जयपुर की खासियतों-खूबियों को अभिव्यक्त करने के लिए इतना संकेत ही पर्याप्त है कि एक बार जयपुर की यात्रा नहीं कर पाये तो दुनिया में आकर क्या किया? जन सेवा-स्नेह, परोपकार, मानव जाति के उत्थान-विकास आदि मानवीय गुणों की कसौटी पर ‘सेठ’ शब्द की परिभाषा राजस्थानी दृष्टि में इस तरह की जाती है –
दया-धरम अर मान रो, राखै मोटो पेट
खरी कमाई लोक हित खरचै सांचो सेठ
जयपुर नगरी की महारानी गायत्री देवी जो विश्वसुंदरी भी रहीं, जिन्होंने एक स्वतंत्र राजनैतिक पार्टी स्थापित कर और अविस्मरणीय रुप से सफलीभूत कर, राजनीतिक जगत में अपनी एक अमिट पहचान-प्रतिष्ठा कायम की। चित्तौड़गढ़ के स्वाभिमान सूर्य महाराणा प्रताप, महावीरांगना महारानी पद्मावती और भगवान कृष्ण की महाभक्त मीरा बाई, जैन धर्म के अमर स्तंभ महासंत आचार्य तुलसी और सनातन धर्म के अपूर्व विलक्षण संत रामसुख दास आदि ढेर सारी विभिन्न हस्तियों का पावन, मनभावन एक विशिष्ट भूमि रही है ‘राजस्थान’। आज भी कितनी बहुआयामी संभावनाओं को समय के गर्भ में लिये राजस्थान अपने उज्ज्वल भविष्य मंडल की ओर तेजी से अग्रसर है।
‘मेरा राजस्थान’ पत्रिका व हम-सभी इन दिनों राजस्थानी भाषा के साथ हिंदी बनें राष्ट्रभाषा हेतु राष्ट्रव्यापी संघर्ष अभियान में शिद्दत से सक्रिय है। समस्त राजस्थानी भाई-बहनों से यथोचित अपेक्षा है कि ‘मेरा राजस्थान’ के समग्र राजस्थानी अभियान में सद्भाव के साथ सक्रिय-समर्पित हों।
बस देखो आकर हमारे साथ, लक्ष्य को साध लेंगे हम जरुर
कोई सपना न होगा अपना, जब तक हैं पथ से पांव दूर
हम राजस्थानी स्वयं के हैं भाग्यविधाता,
अपने और सारे राजस्थान के देर से ही सही,
अब तो समझो, ये सफलता का महागुर
जय – जय राजस्थान!