प्राच्यविद्या सम्मेलन
अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक, मानवता के मसीहा, इन्दिरागांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से पुरष्कृत आचार्य तुलसी ने एक स्वप्न देखा कि जैन धर्म का भी एक ऐसा विश्वविद्यालय होना चाहिए जो प्राच्यविद्याओं विशेषकर जैनविद्या एवं आगमविद्या को सुरक्षित, संरक्षित, पुष्पित एवं पल्लवित कर सके। यह स्वप्न साकार हुआ जब २० मार्च, १९९१ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर, मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की और विश्वविद्यालय के मान्य संविधान के अनुसार आचार्य तुलसी इसके प्रथम अनुशास्ता बने। महान दार्शनिक विभूति, महान साहित्यकार, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के...