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शीतला अष्टमी स्वच्छता का प्रतीक

शीतला अष्टमी स्वच्छता का प्रतीक

शीतला अष्टमी स्वच्छता का प्रतीक शीतला अष्टमी हिन्दुओं का त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं, ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह के बाद करते हैं। प्राय: शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है।...

रंगों का त्यौहार होली

रंगों का त्यौहार होली

        रंगों का त्यौहार होली होली एक ऐसा त्यौहार है जो सबको रंग-बिरंगा कर देता है और सब एक सामान हो जाते हैं। प्यार मोहब्बत कोबढ़ाने और बुराई के अंत का यह त्यौहार बहुत ही रंगीला है। भारत में यह त्यौहार मुख्यत: हिन्दू धर्म के लोग मनाते हैं, लेकिन भारत विविधताओं का देश है, यहाँ हर धर्म केव्यक्ति सारे त्यौहार मिल-जुल कर मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी अपनी सारी कटुता भुला कर फिर से मित्रता कर लेते हैं। एक दूसरे के चेहरे पर रंग, गुलाल और अबीर लगाते हैं। रंग-बिरंगे ये त्यौहार भारत के साथ-साथ...

शिल्प विद्या के उद्धारक विश्वकर्माजी का संक्षिप्त परिचय

शिल्प विद्या के उद्धारक विश्वकर्माजी का संक्षिप्त परिचय

    शिल्प विद्या के उद्धारक विश्वकर्माजी का संक्षिप्त परिचय नारायण की आज्ञा से ब्रह्माजी ने इस पृथ्वी का निर्माण किया तो उन्हें इसे स्थिर रखने की भी चिन्ता हुई, जब उन्होंने इसके लिए नारायण से स्तुति की तो स्वयं नारायणजी ने विराट विश्वकर्मा का रूप धारण कर डगमगाती पृथ्वी को स्थिर किया, पृथ्वी के स्थिर हो जाने के पश्चात विश्वकर्मा ने विभिन्न लोकों की रचना की।समस्त सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने विभिन्न युगों में प्रलय के पश्चात सृष्टि की पुर्नरचना की तथा हर युग में विश्वकर्मा ने अपना योगदान दिया। विश्वकर्मा कोई नाम नहीं यह तो पदवी ‘‘उपाधि’’ मात्र है,...

उदासर में देवस्थान ( God place in Udasar in hindi )

उदासर में देवस्थान ( God place in Udasar in hindi )

      उदासर में देवस्थान ठाकुरजी का मंदिर धार्मिक श्रद्धा एवं आस्था के प्रतीक इस मंदिर का निर्माण उदासर गाँव के ठा. इन्द्रभाण के वंशज ठा. मानसिंह के पुत्र क्रमश ठा. नत्थूसिंह, चांदसिंह के वंश में ठा. नत्थूसिंह के दत्तक पुत्र कुंवर खुमाणसिंह पड़िहार द्वारा विक्रमी सम्वत् १९४५ फाल्गुन शुक्ल तृतीया वार सोमवार को कराया गया। निर्माण-कार्य पूरा होने पर इसी दिन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करवा कर ब्रह्मभोज का आयोजन किया गया, इस ब्रह्मभोज में ब्राह्मणों के साथ-साथ ही पूरे ‘उदासर’ गाँव को भोजन के लिए बड़े ही आदर से निमंत्रण दिया गया था।इसी वंशवृक्ष में ठा. बालजी पड़िहार की...

ठा. बीदाजी एवं ठा. ऊदाजी पड़िहार

ठा. बीदाजी एवं ठा. ऊदाजी पड़िहार

ठा. बीदाजी एवं ठा. ऊदाजी पड़िहार इतिहास प्रसिद्ध मण्डोर के अंतिम पड़िहार शासक राणा रूपड़ाजी के लघु भ्राता राणा बलूजी पड़िहार के वंश वृक्ष में क्रमश श्यामसी, छाजूरामी, सारंगजी व चांदसी हुए। इसी चांदसी ने बारू-छायण से पलायन करके विक्रम संवत् १५९४ की वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया को अपने नाम से ‘चांदमसो’ गाँव बसाया।चांदसी के पुत्र संग्रामसी के समय विक्रम संवत् १६०९ में खारबारा के नरावत राजपूतों ने चांदसमो गाँव पर अक्रमण कर दिया, जिसमें संग्रामसी एवं उनके छ पुत्रों क्रमश रामदासजी, श्यामदासजी, सुखजी, अजबसी, रूगदासजी और थानसी ने नरावतों से युद्ध करते हुए वीरगति पाई। इस युद्ध में संग्रामसी के...

ऐतिहासिक आध्यात्मिक नगरी नापासर

ऐतिहासिक आध्यात्मिक नगरी नापासर

      ऐतिहासिक आध्यात्मिक नगरी नापासर ‘नापासर’ भारत के राजस्थान राज्य में बीकानेर जिले का एक कस्बा है। नापासर कस्बा एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धार्मिक धरोहरो को संजोये हुए हर क्षेत्र में प्रगती की ओर अग्रसर होता हुआ बिकानेर ही नहीं पूरे राजस्थान के हृदयपटल पर अपनी छाप बनाये हुए है। इसे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी के भतीजे, युगदृष्टा कुशल राजनीतिज्ञ नापाजी सांखला ने बीकानेर स्थापना के एक वर्ष बाद संवत् १५४६ में नापासर की नींव रखी, जिसका शिलालेख नाइयों का मोहल्ला, रामसर रोड पर शिव मंदिर के दरवाजे के ऊपर लगा हुआ है। ‘नापासर’ की स्थापना के साथ सांखला, धांधल राजपूतों...

भारत का स्वर्णिम संक्षिप्त इतिहास

भारत का स्वर्णिम संक्षिप्त इतिहास

      भारत ने अपने इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है। जब कई संस्कृतियों में ५००० साल पहले घुमंतू वनवासी थे, तब भारतीयों ने सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की। भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इं‍डस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्‍यताएं निवास करती थी। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा। ईरान से आए आक्रमणकारियों ने सिंधु को हिंदु की तरह प्रयोग किया। ‘हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है। शतरंज की...

संपादकीय जून 2019

संपादकीय जून 2019

सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘हिन्दी सेवी’  माहेश्वरीयों का इतिहास प्रणम्य हैमाहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा पर्व ‘महेश नवमी’ का विशेषांक ‘मेरा राजस्थान’ के प्रबुद्ध पाठकों के हाथों प्रस्तुत कर अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है, कारण यह है कि माहेश्वरी समाज के इतिहास का अध्ययन करने का मुझे भी मौका मिला, जिससे यह जानकारी मिली कि किस प्रकार भगवान महेश के भक्त माहेश्वरी क्षत्रिय से वाणिज्य प्रेमी बने, जो वाणिज्य के साथसाथ राष्ट्र की सेवा के लिए भी अग्रणीय हैं। भारत की आजादी का श्रेय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ बिड़ला व बजाज परिवार को भी जाता है, मात्र आजादी ही नहीं...

अंग्रेज चले गए भारत में India छोड़ गए

अंग्रेज चले गए भारत में India छोड़ गए

अंग्रेज चले गए भारत में India छोड़ गए अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा, उस काफिले के पास सौ ऊंट थे, उन्होंने खूंटियां गाड़कर ऊंट बांधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है, उनकी एक खूंटी और रस्सी कहीं खो गई थी, अब आधी रात वे कहां खूंटी-रस्सी लेने जाएं!काफिले के सरदार ने सराय मालिक को उठाया – बड़ी कृपा होगी यदि एक खूंटी और रस्सी हमें मिल जाती, ९९ ऊंट बंध गए, एक रह गया–अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।बूढ़ा बोला- मेरे पास न तो रस्सी है और न...

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