आमेट
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तेरह सौ वर्ष ब्राह्मण अम्बाजी पालीवाल ने प्रकृति प्रकाप से ग्रस्त पाटन नगरी से पूर्व दिशा में प्रस्थान कर, सघन आम्रकुंज वृक्षों से आच्छादित, जंगली समतल भू-भाग को आवास-स्थल बनाया, जिसको पूर्व में अम्बापुरी बाद में इसी का अपभ्रंश आमेट इस नगर की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि है। आमेट नगर पूर्वाद्र्ध में ब्राम्हणों एवं राठौड़ वंशीय शासकों के अधिनस्थ रहा। क्षत्रियकाल के उत्तराद्र्ध में यहां पर चूण्डावतों का आधिपत्य रहा। सोलहवीं शताब्दी में मेवाड़ रियासत के सोलह उमरावों में से आमेट ठिकाने के ‘‘रावसाहब’’ भी एक उमराव थे, जिन्हें रावल कहा जाता है,
विद्यमान विशेषताएँ
आमेट कस्बा दक्षिणी राजस्थान में जिला राजसमंद के उत्तरी भाग में स्थित है, केलवा चौराहे से २० किलोमीटर दूर राज्य राजमार्ग ५६ पर यह कस्बा राजसमंद से ३५ किमी. की दूरी पर चन्द्रभागा नदी के दक्षिण तट तथा रेलवे लाईन के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर स्थित है। प्रशासनिक दृष्टि से यह कस्बा राजसमंद जिले का उपखण्ड मुख्यालय है। कस्बे के आसपास का क्षेत्र (भ्पदजमतसंदक) कृषि प्रधान है। समतल, धरातल एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से सुसज्जित यह कस्बा उत्तर-पूर्व में ब्यावर, भीलवाड़ा एवं दक्षिण-पूर्व में राजसमंद जिले से भली-भांति सड़क मार्ग एवं उदयपुर-मारवाड़ जंक्शन मीटर गेज रेलवे लाईन पर स्थित होकर रेलवे सुविधा से भी जुड़ा हुआ है।
इनकी गौत्र चूण्डावत है, इनके वंशजों में जग्गा एवं पत्ता जैसे अनूठे वीर योद्धा हुए, जिनकी शौर्य एवं बलिदानी गौरवपूर्ण गाथाएँ इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। आमेट के राजा जयसिंहजी ने विक्रम् संवत् १५१३ चैत्र ‘शुक्ल त्रयोदशी को भगवान श्री चारभुजानाथ जी की पूजा अर्चना एवं प्राण-प्रतिष्ठा पालीवाल ब्राम्हणों से करवाई जो आज रामचौक में विराजित भगवान श्री जयसिंह श्याम हैं, जो आमेट की जनता के अटूट आस्था एवं श्रद्धा भक्ति के केन्द्र बने हुए हैं। सामन्तशाही परम्परा के शिवनाथ सिंह के शासनकाल में नगर में साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई। यहाँ प्राचीन किला (आमेट रावला) चन्द्रभागा नदी के दक्षिण तट की सघन आबादी के मध्य स्थित है जिसके चारों ओर आबादी बसी हुई थी। आबादी के चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से लगभग १० फिट चौड़ी चारदीवार बनी हुई थी जिस पर तोपें रखी जाती थी, जो वर्तमान समय में लगभग ध्वस्त हो चुकी हैं। अवशेष के रूप में चन्द्रभागा नदी के दक्षिणी तट पर चार दीवारी की मात्र बुर्ज देखी जा सकती है।
चार दीवारी से नगर में आवागमन हेतु चार दरवाजे बने हुए थे, पश्चिम में मारू दरवाजा, शनि मंदिर के पास, पूर्व में वराही दरवाजा, माली मौहल्ले के पास, उत्तर में चन्द्रभागा नदी के तट पर नदी दरवाजा, दक्षिण में आगरिया दरवाजा जो वर्तमान सब्जी मंडी के चौराहे पर था, उपरोक्त दरवाजों में से उत्तर एवं पूर्व के दरवाजों के अवशेष खण्डहरों के रूप में देखे जा सकते हैं। आमेट नगर राष्ट्रीय राजमार्ग नं. ८ के समीपस्थ होकर, दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, मुंबई जैसे प्रमुख महानगरों से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। पूूर्व में श्रद्धालु रेल यात्रियों के भगवान श्री चारभुजाजी को जाने वाले मार्ग की दीशा तर्ज पर आमेट के रेल्वे स्टेशन का नाम चारभुजा रोड़ रखा गया, जो उदयपुर मारवाड़ जंक्शन रेल्वे मार्ग पर स्थित है। इसकी समुद्रतल से उंचाई ५३६.५९ मीटर है। इसके चारों ओर अरावली पर्वत शृ्रँखलाएं की श्रेणियाँ नगर के समानान्तर स्थित होने से अरबसागरीय मानसूनी वर्षा का लाभ आमेट को कम मिलता है बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून का लाभ नगर के आधे भाग में अर्थात पर्वतीय क्षेत्र में अच्छी वर्षा के रूप में मिलता है। वर्तमान में आमेट रावला (किला) सुरक्षित है जिसमें वर्तमान में इनके वंशजों का आवास है तथा विद्यालय भी चल रहा है, यह रावला ऐतिहासिक धरोहर है जिसे सुरक्षित एवं संरक्षित किया जाना आवश्यक है, इस रावले का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है। पूर्व दिशा में स्थित प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पर मध्य में एक चौक है तथा पूर्वी भाग में आवास भवन, उत्तरी भाग में प्रशासनिक भवन बने हुए हैं। दक्षिणी भाग में हाथियों एवं घोड़ों का रसाला था जो आज भी विद्यमान है।
रावले के उत्तर में ‘हिरणों की भागल’ क्षेत्र के पूर्व भाग में राजवंश के कर्मचारी एवं राजवैद्य के भवन इत्यादि थे, कस्बे में एक गौशाला लिकी रोड पर है। आमेट के महाराजा द्वारा चन्द्रभागा नदी के तट पर हवामहल का निर्माण करवाया गया, जो वर्षाकाल में नदियों में पानी के बहाव व श्रावण माह में नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं दर्शनीय है, वर्तमान में यह संत आशाराम बापू के आश्रम परिसर के मध्य स्थित है। आशाराम बापू आश्रम के उत्तर में नदी के तट पर वेवर महादेव का सुंदर एवं भव्य मंदिर है जो आमेटवासियों के धार्मिक समारोह एवं वर्षाकाल में आकर्षण का केन्द्र है। आमेट कस्बे में अनेकों मंदिर स्थित है जिनमें से मुख्य बड़ा मंदिर, भाईराम आश्रम, ढेलाना में भेरूनाथ मंदिर, महात्मा भूरीबाई का आश्रम, कोन्टेश्वरी महादेव मंदिर है, इसके अतिरिक्त आमेट के उत्तर-पश्चिमी दिशा में आसनग्राम क्षेत्र पहाड़ी पर नाथ सम्प्रदाय का प्रसिद्ध स्थान है जो प्राचीन किले के आकार में निर्मित होकर सुरक्षित है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व तक यह कस्बा किले एवं इसके आसपास की पुरानी आबादी में चन्द्रभागा नदी के दक्षिणी तट पर विकसित था, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कस्बे का विकास मुख्य रूप से रेलवे लाईन के दक्षिणी भाग एवं केलवा (उदयपुर) मार्ग पर होने लगा, यहाँ हायर सैकेण्डरी स्कूल तथा पुलिस थाना एवं पंचायत समिति भवन का निर्माण हुआ, साथ ही नगरपालिका एवं अन्य राजकीय कार्यालयों की स्थापना हुई तथा जल प्रदाय योजना एवं विद्युतीकरण योजना लागू की गयी। वर्ष १९७१ में यहां की जनसंख्या मात्र ७,८८२ थी, जो वर्ष २००१ में बढ़कर १६,६७२ हो गई, पिछले दशकों में सर्वाधिक वृद्धि दर ३६.६० प्रतिशत, १९८१-९१ के दशक में आंकी गई है। वर्ष १९९१-२००१ के दशक के दौरान कस्बे की जनसंख्या वृद्धि दर में काफी कमी आयी, जो घटकर १४.०८ प्रतिशत रह गई, इसका मूल कारण इस कस्बे से रोजगार की तलाश में लोगों का बाहर पलायन करना था, कस्बे का विकास बेतरतीब एवं अव्यवस्थित तरीके से हो रहा है, पुरानी बस्तियों में तंग सड़कें, अव्यवस्थित जंक्शन, अनियोजित एवं अव्यवस्थित वाणिज्यिक स्थलों के विकास के साथ-साथ ही इन क्षेत्रों में आधारभूत जन-सुविधाओं का अभाव होने के कारण यहां अनेक समस्यायें उत्पन्न हो रही हैं।
दक्षिण-पूर्व की ओर है, पश्चिमी भाग प्राकृतिक छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है, इस कस्बे की जलवायु सामान्यतः शुष्क है, ग्रीष्म ऋतु में यहां का अधिकतम तापमान ४४.२ डिग्री सेल्सियस के आसपास तथा शीत ऋतु में न्यूनतम तापमान ४४.२ डिग्री सेल्सियस के आसपास तथा शीत ऋतु में न्यूनतम तापमान २.९ डिग्री सेल्सियस तक रहता है, यहां का औसत तापमान २२ डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।
व्यावसायिक संरचना :- वर्ष १९९१ की जनगणना के अनुसार आमेट कस्बे में कार्यशील जनसंख्या का सहभागिता अनुपात १९.९१ प्रतिशत तथा २००१ में ३१.५९ प्रतिशत रहा है। तालिका-२ के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वर्णित वर्षों में केवल मात्र अन्य सेवाओं, व्यापार एवं वाणिज्य, गृह उद्योग तथा कृषि सम्बन्धी क्रियाओं में ही कार्य करने वालों की सहभागिता अधिक रही है, इससे स्पष्ट है कि आमेट अपने पश्चिम क्षेत्र का प्रमुख वाणिज्यिक एवं प्रशासनिक केन्द्र है तथा इसका आर्थिक आधार व्यापार एवं वाणिज्यिक गतिविधियां है, तालिका से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष २००९ में आमेट में अन्य सेवाओं में १,८५१ व्यक्ति कार्यरत थे, जो कि कुल काम करने वालों का ३०.८५ प्रतिशत है, जबकि वर्ष १९९१ में यह ३४.३६ प्रतिशत था। आमेट में वाणिज्य एवं व्यापार में काम करने वालों की संख्या वर्ष २००१ में १,६०० थी,वहीं यह संख्या वर्ष २००९ में १,६७२ हो गयी, जो २७.८७ प्रतिशत है। सर्वाधिक कामगारों का प्रतिशत अन्य सेवाऐं/ व्यापार एवं वाणिज्य क्षेत्र से सम्बन्धित क्रियाओं में रहा है। नगर के लोगों का मुख्य रोजगार संगमरमर व रेडीमेड वस्त्र व्यवसाय है। आमेट वर्तमान में खनिज उद्योग का अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केंद्र है। यहां पर मार्बल व्यवसाय अधिकाधिक विकसित हुआ है। यहां का मार्बल देश-विदेशों में बिकता है।
नगर में सभी जातियों एवं सम्प्रदायों के लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते है। जैनों की बहुतायत है। यह कुम्भलगढ़-विधान सभा क्षेत्र का सबसे बडा नगर है। यहां पर तहसील मुख्यालय, नगर पालिका थाना, पंचायत समिती, राजकीय महाविद्यालय, रेफरल चिकित्सालय, रेल्वे स्टेशन, उच्च-माध्यमिक विद्यालय, डाकघर, बैंक इत्यादि प्रमुख सरकारी, कार्यालय विद्यमान है। शिक्षा क्षेत्र में यहां एक महाविद्यालय दो सिनियर हायर सैकन्डरी स्कूल,आठ उच्च प्राथमिक विद्यालय सहित अनेक गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं।