जयसिंह श्याम गोशाला
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अरावली शृ्रंखला
अरावली शृ्रंखला की सुरम्य पहाड़ियों में बसा राजसमंद जिले का आमेट कस्बा मार्बल पत्थर व कपड़ा मण्डी के रूप में विख्यात है। वर्षों पूर्व अम्बाजी नामक पालीवाल ब्राह्मण ने आमेट नगर की नींव रखी। रघन आम्रकुंज की स्मृति में गांव का नाम आमेट पड़ा। क्षत्रिय काल उत्तराद्र्ध में यहां चुण्डावतों का शासन रहा। उनके वंशजों में जग्गा व पत्ता जैसे वीर हुए। उन्होंने मेवाड़ी इतिहास में शौर्य व गौरव के पन्ने जोड़े। राजा जयसिंह की अनूठी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान चारभुजानाथ चमत्कारिक रूप में आमेट की धरा पर अवतरित हुए। जो आज जन-जन की श्रद्धा का केन्द्र बना है। भगवान जयसिंह श्याम यहां के सामंत हुए। उन्होंने कस्बे को साहित्य, कला और संस्कृति का अनोखा संगम दिया। तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु केवला की अम्बेरी ओदी से आमेट आए। इनकी स्मृति में यहां भिक्षुजी का ओटा है। जयसिंह श्याम मंदिर के पास ही तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ का मंदिर है।
बड़ा मंदिर, माईराम मंदिर, संत आसाराम आश्रम, वेवर महादेव, महात्मा भूरी बाई आश्रम, कोठिश्वर महादेव, शहीद गुलाबशाह बाबा, ढेलाणा भैरूनाथ आदि प्रसिद्ध धार्मिक, प्राकृतिक व पर्यटन स्थल है। आमेट का रेडिमेड वस्त्र व्यवसाय आज विख्यात है। कस्बे में सभी सरकारी व अद्र्ध सरकारी कार्यालय हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी व गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं हैं। वर्तमान में खनिज उद्योग का अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केन्द्र है। क्षेत्र के लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है। यह कुम्भलगढ़ विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा कस्बा है जहां सभी सम्प्रदाय के लोग भाषायी सौहार्द की भावना से रह कर एक अनूठी मिसाल कायम करते हैं।
प्रभु जयसिंह श्याम की पावन नगरी आमेट में स्थित जयसिंह श्याम गोशाला, गो-सेवा धाम बन कर अपनी आभा चारों ओर बिखेर रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था एवं सम्पन्नता की रीड़ गो-माता को बचाने के लिए प्रबुद्धजनों एवं भामाशाहों ने नगर के बाहर भीलवाड़ा रोड पर ६० बीघा के भूखण्ड पर इस गो-शाला की स्थापना की। यहां वर्तमान में ५०० से अधिक गो-माताएं हैं। यह स्थान आमेट में एक तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो रहा है। दीपावली के दूसरे दिन यहां की गायों का शृंगार कर पूजन किया जाता है। मकर संक्राति को भी गायों को नगर भ्रमण करवाया जाता है। गोशाला में मनोहरलाल शर्मा ‘मामाजी’ अवैतनिक पूर्णकालिक सेवा देते हैं। उनका सभी से यही कहना होता है कि सभी इसमें अधिक से अधिक सहयोग करें।
-मे.रा.
राष्ट्रभक्त वीर पत्ता
वीर चूण्डावत पत्ता आमेट ठिकाने के जागीरदार थे। सन् १५६७ में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उस समय महाराणा उदयसिंह एवं युवराज प्रताप को चित्तौड़ से बाहर सुरक्षित भेजकर सेनापति राठौड़ जयमल ने भाई ईसरदास कल्ला व पत्ता आदि वीरों की सहायता से मुगल सेना से लोहा लिया, ईसरदास व पत्ता जैसे मेवाड़ी वीरों का रौद्र रूप देखकर अकबर कांप उठा था। दोनों महावीरों ने तलवार एवं भालो से हाथियों के पैर व कुभ्मस्थल फोड़ते हुए, विशाल मुगल सेना का मान मर्दन करते हुए अकबर की सुरक्षापंक्ति को भेद दिया था हाथी का दांत पकड़ अकबर पर वार करने के लिये ईसरदास उछले ही थे कि गद्दार भगवानदास ने उनका मस्तक काट दिया चूण्डावत पत्ता भी वहीं वीरगति प्राप्त कर इतिहास में अमर हो गये।