गौ माता की सेवा में महनसर के निवासी-प्रवासी अग्रसर
गौ माता की सेवा में महनसर के निवासी-प्रवासी अग्रसर (In Gau Mata Seva the resident-migrant of Mahnsar is marching in Hindi) गौ माता की सेवा में महनसर के निवासी-प्रवासी अग्रसर (In Gau Mata Seva the resident-migrant of Mahnsar is marching in Hindi) : देवभूमि शेखावाटी में, गौ सेवा की परम्परा सदियों से रही है। यहाँ के हर छोटे-बड़े शहरों में गौशाला संचालन का कार्य, प्रवासी सेठों व स्थानीय समाज सेवियों द्वारा तन-मन-धन से पूरी निष्ठा के साथ किया जाता है। ‘महनसर’ में भी गौशाला के अभाव में, वृद्ध व लावारिस गौ वंश की दुर्दशा देखकर समाज सेवी ठा. महिपाल......
महानसर शेखावाटी
महनसर (शेखावाटी) Mahansar (Shekhawati) in Hindi महनसर (शेखावाटी) Mahansar (Shekhawati) in Hindi : राजस्थान का शेखावाटी इलाका अपने भव्य गढ़, हवेलियों और सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है। इसी के झुंझुनू जिले में चुरू और सीकर जिलों की सीमाओं से सटे गांव ‘महनसर’ की अलग ही शान है। इसकी पना नवलगढ़ राजा ठाकुर नवलसिंह जी के सुपुत्र नाहर सिंह द्वारा सन १७६८ में की गई। ‘महनसर’ अपने विशाल किले, कलात्मक हवेलियां व समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है।सोने की दुकान अपने जटिल चित्रों जिसे सोने की झोल से बनाया गया इस कारण प्रसिद्ध है। इस हवेली......
शीतला अष्टमी स्वच्छता का प्रतीक
शीतला अष्टमी स्वच्छता का प्रतीक शीतला अष्टमी हिन्दुओं का त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं, ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह के बाद करते हैं। प्राय: शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है।......
रंगों का त्यौहार होली
रंगों का त्यौहार होली होली एक ऐसा त्यौहार है जो सबको रंग-बिरंगा कर देता है और सब एक सामान हो जाते हैं। प्यार मोहब्बत कोबढ़ाने और बुराई के अंत का यह त्यौहार बहुत ही रंगीला है। भारत में यह त्यौहार मुख्यत: हिन्दू धर्म के लोग मनाते हैं, लेकिन भारत विविधताओं का देश है, यहाँ हर धर्म केव्यक्ति सारे त्यौहार मिल-जुल कर मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी अपनी सारी कटुता भुला कर फिर से मित्रता कर लेते हैं। एक दूसरे के चेहरे पर रंग, गुलाल और अबीर लगाते हैं। रंग-बिरंगे ये त्यौहार भारत के साथ-साथ......
शिल्प विद्या के उद्धारक विश्वकर्माजी का संक्षिप्त परिचय
शिल्प विद्या के उद्धारक विश्वकर्माजी का संक्षिप्त परिचय नारायण की आज्ञा से ब्रह्माजी ने इस पृथ्वी का निर्माण किया तो उन्हें इसे स्थिर रखने की भी चिन्ता हुई, जब उन्होंने इसके लिए नारायण से स्तुति की तो स्वयं नारायणजी ने विराट विश्वकर्मा का रूप धारण कर डगमगाती पृथ्वी को स्थिर किया, पृथ्वी के स्थिर हो जाने के पश्चात विश्वकर्मा ने विभिन्न लोकों की रचना की।समस्त सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने विभिन्न युगों में प्रलय के पश्चात सृष्टि की पुर्नरचना की तथा हर युग में विश्वकर्मा ने अपना योगदान दिया। विश्वकर्मा कोई नाम नहीं यह तो पदवी ‘‘उपाधि’’ मात्र है,......